90 के दशक की बचपन की यादें – जब भी हम 90 के दशक की भूली-बिसरी यादों के बारे में सोचते हैं तो सबके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। आज, समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है, सब कुछ बहुत उन्नत और आधुनिक हो गया है, और इसके परिणामस्वरूप लोगों का जीवन व्यस्त हो गया है। ऐसे में आज हम आपको 1990 के दशक की सच्ची घटनाओं से रूबरू कराएंगे, उपलब्धियां किसी जंग जीतने से कम नहीं हैं। इस लेख को पढ़ने के बाद आपके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान जरूर आ जाएगी –
90 के दशक तक बच्चों के पास मनोरंजन के गिने चुने साधन ही होते थे। घूमने के नाम पर मामा घर या फिर बुआ मौसी के घर तक जाने को मिलता था। इस दौरान उन बच्चों की मौज होती थी जिनका ननिहाल दूर होता था। या फिर किसी बहाने ट्रेन में सफर करने का मौका मिलता। शायद आज के आधुनिक जमाने में पैदा हुए बच्चों को ये जान कर आश्चर्य हो।
मगर हमने जो बचपन जिया है उसमें यात्रा से ज़्यादा रोमांचकारी कुछ था ही नहीं। हमारे लिए ये एक तरह से एडवेंचर जैसा होता था। हमने बाहर की दुनिया सिर्फ़ उस एक घंटे के दौरान देखी होती जो हमें टीवी देखने के लिए मिलते थे। उस टीवी के अलावा और कुछ नहीं था जो हमारे स्कूल से लेकर घर तक के रास्ते से इतना हमें कुछ दिखा सके। ऐसे में यात्रा का क्या महत्व होता होगा ये 90 के दशक से पहले वाले बच्चों से पूछिए। तो चलिए आज हम बचपन के दिनों की सैर कर आते हैं और जानते कि हम में और आज के बच्चों में क्या कुछ समान होता था यात्राओं के दौरान :
1. ट्रेन टिकट तब और अब
हम सभी ट्रेन में यात्रा करते हैं। लेकिन पहले आज की तरह कम्प्यूटराइज्ड प्रिन्टेड टिकट नहीं मिलती थीं। अब तो तो आरक्षित एवं अनारक्षित दोनो तरह की ई टिकट से बिना प्रिंट कराये यात्रा कर सकते हैं बस मोबाइल में टिकट सेव होनी चाहिए। याद है बचपन में गत्ते वाली मैन्युअल टिकट मिलती थीं टिकट पहले से ही प्रिंट होती थी बस तारीख छापने वाली मशीन से खटाक की आवाज के साथ टिकट बाबू तारीख छाप कर टिकट दे देते थे। किस किसने इस तरह की टिकट लेकर यात्रा की है? कमेंट में अपनी अपनी यादें साझा करें।
2. RAC
हम जब ट्रेन में यात्रा करतें हैं, कभी कभी हमारी टिकट कन्फर्म नही होती । वेटिंग या आरएसी में रहतीं है। आरएसी में रहने का मतलब 1 सीट पर दो लोग बैठेंगे। तब किसी अनजान के साथ बैठना पड़ जाता था। उससे विचार मिले तो ठीक नहीं तो पूरी यात्रा में उसको झेलते हुए ही उसकी बकवास बातों में हामी भरते हुए रहना पड़ता था। आप लोग भी आरएसी यात्रा से जुड़ी अपनी यादों को साझा करें।
3. 90s में बसों और ट्रकों में इस्तेमाल होने वाला छोटा tv
80 ,90 के दौर में ऐसी छोटी टीवी भी प्रचलन में थी। इसमें जुड़ा एंटिना से Doordarshan सभी कार्यक्रम देख पाते थे। ज्यादातर बसों ट्रकों में ऐसे टीवी लगे होते थे, जिससे यात्रा में मनोरंजन चलता रहे। इसका महत्व उस दिन ज्यादा हो जाता था जिस दिन भारत का क्रिकेट मैच होता था। पर आजकल इसकी जगह बसों में LCD टीवी ने ले ली है। क्या आप लोगो ने भी ऐसी टीवी पर दूरदर्शन के कार्यक्रमों का आनंद लिया है ? या अपने आस पड़ोस में ही ऐसी टीवी देखी है?
4. 90s का कैनवास वाॅटर बैग
80,90 के दशक का canvas water bag, इसमें पानी रखकर ठंडा किया जाता था। उस जमाने का फ्रिज। लंबी यात्रा वाले ड्राइवर, यात्री, मजदूर इसका उपयोग करते थे। कुछ लोग गर्मी के मौसम में अपने घरों में भी इसका उपयोग करते थे। पर आजकल मिल्टन वाॅटर बाॅटल, वाॅटर कूलर का उपयोग किया जाता है, जिससे लम्बे समय तक पानी को ठंडा रखा जा सके।
5. 90 के दशक की रेल यात्रा के दौरान पढ़ी जाने वाली मैग्जीन
दोस्तों यह पत्रिका तो आपको याद ही होगी। नब्बे के दशक में ट्रेन में,बसों में यात्रा कर रहे है लोगों के हाथों में ज़रूर दिख जाती थी। महिलाओं पर केंद्रित यह पत्रिका युवाओं ,महिलाओं सभी की पहली पसंद थी। दिल्ली प्रकाशन की इस पाक्षिक हिंदी पत्रिका में थोड़ा थोड़ा सब कुछ मिलता था। राजनीति पर केंद्रित एक या दो लेख,सामाज से जुड़े मुद्दों पर लेख,कहानी आदि सभी का मिश्रण था, पर आजकल स्मार्ट फोन का जमाना है जिसमें आप कुछ भी यात्रा के दौरान पढ़ सकते है।
6. उस दौर की बस यात्रा
एक बस और बहुत सारे लोग और धक्का मुक्की। हमारे 80 90 के बचपन के समय हर चीज में कुछ अलग ही बात होती थी बचपन में कहीं भी जाना होता था तो इसका मुख्य स्रोत बस ही होता था। बस में जाने का मतलब होता था की जरूरी नहीं वहां बैठने मिल ही जाए ज्यादातर खड़े-खड़े ही पूरी यात्रा करनी पड़ती थी । अब तो आधुनिक जमाना आ गया है । अब तो ज्यादातर बस ac वाली हो गई हैं। खड़े खड़े वाला सिस्टम खत्म हो रहा है। बचपन में मैंने बहुत सफर किया है बचपन के उस आनंद भरे सफर की आज बहुत याद आती है आप लोगों को भी क्या बचपन का वह सफर याद आता है।
7. टिकट बुक करने के लिए कतार में खड़े होना
आपकी क्लास में कुछ ऐसे बच्चे भी रहे होंगे जो अपने ननिहाल के अलावा कभी कहीं और नहीं गए होंगे घूमने। ऐसे कई बच्चों ने एक उम्र तक रेल यात्रा नहीं की होती। ऐसे में जब हमें पता होता था कि ट्रेन की टिकट बुक करना है और अब हमें छुट्टियों में रेल यात्रा करनी है तो हम दोस्तों को खूब मनगढंत कहानियां सुनाते थे। ऐसा बताते थे जैसे हम हर महीने रेलयात्रा करते हैं लेकिन जब स्टेशन पर पहुंचते तो एक बार को अपने आप ही पूरा मुंह खुल जाता यहां की भीड़ देख कर। एक साथ इतने लोग डराते भी और यहां का नज़ारा देख कर मज़ा भी आता था। हर तरह के लोग मिलते यहां।कुछ देर तो यहां की भीड़ को देखने में ही बिता देते थे हम।अब हम केवल एक क्लिक के साथ अपने टिकट बुक कर सकते हैं, हालांकि पहले, लंबी कतार में संघर्ष करने के बाद आपको यात्रा का सौभाग्य प्राप्त होता था।
8. फोटोग्राफी एक महंगा मामला था
एक फिल्म कैमरे में केवल 36 कीमती क्लिक के साथ, फोटोग्राफी तब एक लक्जरी थी। सैकड़ों तस्वीरों से भरे फोन के साथ, बच्चे इन दिनों क्लिक करने के उत्साह को नहीं समझ सकते हैं।
9. ट्रेन में खाने का मज़ा
वैसे तो मन होता था कि ट्रेन में जो भी चीज़ बिकने आ रही है वो सब खरीदते रहें हम। हर बिकने वाली चीज़ को खरीदने के लिए एक बार कोशिश भी करते थे मगर मम्मी हर बार ये कह कर मना कर देती कि 'अभी तो 'वो' ले के दिया था।' और 'वो' जो है वो स्टेशन पर ही ले कर दिया था। खैर मम्मी से बहस कौन करे। हां लेकिन सारी शिकायत भूल जाती थी जब घर से लाए खाने का डब्बा खुलता था। ट्रेन में वो खाना खाने में भी मज़ा आता था जिसे घर पर खाने में हम नखरे किया करते थे। मगर शुक्र है, अब आपके पास आईआरसीटीसी (IRCTC) की ई-केटरिंग की सुविधा है, जिससे जरिए ना सिर्फ आप अपना पसंदीदा खाना ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं बल्कि उसे अपनी बर्थ या अपने पसंदीदा स्टेशन पर बुलवा सकते हैं। है ना कमाल की सुविधा?
10. यात्रा के दौरान नए दोस्त बनाना
जिस तरह से हम अपने रिश्तेदारों के यहां घूमने जाते थे वैसे ही हमारे आसपड़ोस में भी कई बच्चे छुट्टियां मनाने आते थे। ऐसे में हमारी दोस्ती किसी ऐसे बच्चे से जरूर हो जाती थी जो किसी दूसरे राज्य से आया होता था। हम उससे नई नई बातें सुनते और उसे अपने स्कूल और अन्य दोस्तों के बारे में बताते।इस तरह से हमारे दोस्तों की लिस्ट में एक अजनबी दोस्त का नाम भी जुड़ जाता था। पर समय भले ही बदल गया हो पर यह सिलसिला अभी भी जारी है। अजनबियों से दोस्ती करने का मौका हम भारतीय आज भी नहीं छोड़ते है।
11. विंडों सीट के लिए लड़ना
विंडो सीट का लालच ऐसा है कि ये उम्र देख कर नहीं आता। पापा से लेकर हम बच्चों तक को इसी सीट पर बैठना होता था लेकिन पापा से कहे कौन। ऐसे में मुंह बना कर मम्मी से ही सिफारिश लगवानी पड़ती थी। समस्या अब भी कहां सुलझती थी बल्कि और उलझ जाती थी। लोगों को लगता है केवल राजनीति में ही सीट के लिए लड़ाई होती है, नहीं भाई विंडो सीट के लिए तो भाई भाई और भाई बहन तक में गदर मच जाया करता है। अंत में जीत छोटे की होती है और आपको उसके बगल में सट कर बैठे हुए बाहर का नज़ारा देखना पड़ता है। एक खिड़की और बहुत सारे लोग! कभी न खत्म होने वाली लड़ाई यह दौर कल भी था, आज भी है, और हमेशा रहेगा।
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