भारत की विविध संस्कृति और गंगा की सुंदर छवि लिए, बिहार सभी मायनों में एक वंडरलैंड है। अपने समृद्ध इतिहास के चलते और दुनियाभर की भीड़ को आकर्षित करते हुए, बिहार पर्यटन का केंद्र बन गया है। बहती गंगा की शांति, प्राचीन गुफाएँ, किलों की देखने योग्य वास्तुकला और विशाल खेतों की लहलहाती फसल, ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से बिहार आपकी बकेट लिस्ट में शामिल होना चाहिए। चाहे ऐतिहासिक स्मारक हों या गंगा में डॉल्फिन देखने जैसी नई परियोजनाएँ हों, इस समृद्ध राज्य की बात आने पर अक्सर पर्यटकों में थोड़ी झिझक देखी जाती है। एक बार बिहार की झोली में झाँककर तो देखिए, आप निराश नहीं होंगे।
1. प्राकृतिक सौंदर्य
सबट्रोपिकल जलवायु में स्थित होने और विभिन्न मौसमों के कारण, बिहार की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रही है। खसखस के बागान, हरे-भरे खेत हों या इसके उत्तर में नेपाल से जुड़ी रोलिंग पहाड़ियाँ, यहाँ की शांति काफी प्रशंसनीय है। चंपारण के राष्ट्रीय उद्यानों और वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में सफारी एन्जॉय करने जैसा सुख आपको कहीं और नहीं मिलेगा। दूसरी तरफ राजगीर शहर आपको पुराने जमाने की खूबसूरत स्थलाकृतिक गुफाओं में ले जाएगा। कैमूर में झरने और विक्रमशिला, भागलपुर में डॉल्फ़िन रिजर्व ने भी पर्यटकों के लिए प्रकृति से जुड़ाव करना आसान बना दिया है। राज्य में विभिन्न वनस्पति उद्यान और संरक्षित पार्क भी विकसित किए हैं। खामोश झीलों से लेकर गंगा की गरजती धाराओं तक, बिहार की प्राकृतिक सौंदर्य का कोई तोड़ नहीं है।
2. खानपान
नेपाल, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से लगे होने के कारण, बिहार की खाद्य संस्कृति में विविधता दिखाई देती है। नुक्कड़ पर मिलने वाले पकोड़े से लेकर शानदार गोल्ड प्लेटेड थाली तक, बिहार में आपको खाने के लिए कई स्वादिष्ट चीजें मिलेंगी। बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव ने पर्यटकों के लिए इस राज्य के लगभग हर कोने में वेगन और शाकाहारी भोजन खोजना आसान बना दिया है। आग पर बने सत्तू पराठे से लेकर दाल, भात, चोखा तक, आपकी खाने की समस्या बिहार में आसानी से हल हो जाएगी। इस विविध राज्य में आने वाले सभी लोगों द्वारा पसंद किया जाने वाला, लिट्टी चोखा बिहार में सबसे आम व्यंजनों में से एक है, और सच कहूँ तो, यह इस प्रसिद्धि के लायक भी है। शुद्ध देसी घी में डूबा हुआ और सामग्री का उपयोग करके बनाया गया, लिट्टी चोखा को इस राज्य का क्षेत्रीय व्यंजन है। मीठा खाने वालों के लिए, खाजा, लौंग लतिका और ठेकुआ जैसी कोई मिठाइयाँ हैं जो हर बिहारी घर में बनाई जाती है और पूरे एक महीने तक खाई जाती है। पेय के मामले में, ताजा तैयार सत्तू शरबत और बेल का शरबत बिहार के पुराने शहरों के साथ-साथ सड़क के किनारे विभिन्न स्टालों पर आसानी से मिल जाता है। इसलिए, यदि आप तीखे स्वाद और अनोखे जायके के लिए तरस रहे हैं, तो बिहार के ये सभी व्यंजन आपकी हर इच्छा पूरी कर देंगे।
3. वन्य जीवन
संपन्न पक्षी जीवन और वनस्पतियों की विशाल विविधता ने बिहार के वन्यजीवों को पर्यटकों के लिए वास्तव में देखने योग्य बना दिया है। कई वन्यजीव अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों का घर, बिहार अलग-अलग प्रजातियों को घर और प्राकृतिक परिवेश प्रदान कर रहा है। वाल्मीकि नेशनल पार्क सफारी और बर्ड वॉचिंग में दिलचस्पी रखने वालों के लिए वन-स्टॉप डेस्टिनेशन है, वहीं यह हाथियों, लाल पांडा, रॉयल बंगाल टाइगर और इंडियन बाइसन जैसे कई जंगली जानवरों का भी घर है। पंत वन्यजीव अभयारण्य और कांवर झील पक्षी अभयारण्य भी वन्यजीवों के लिए बढ़िया जगहें हैं। हाल ही में विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन रिजर्व भी खोला गया है, जो डॉल्फ़िन के लिए प्रसिद्ध है। देश में पहली और एकमात्र डॉल्फ़िन वेधशाला होने के नाते, इस जगह पर डॉल्फिन को करीब से देखा जा सकता है। यदि आपको वन्य जीवों में रुचि है तो बिहार में आपको काफी रोमांचक जगहें मिल जाएंगी।
4. बौद्ध और जैन धर्म
बौद्ध धर्म की किंवदंतियों और विशाल प्राचीन इतिहास के सार से जुड़ा, बिहार एक सांस्कृतिक सर्किट रहा है। गौतम बुद्ध से संबंधित कई स्थानों और वर्धमान महावीर की जन्मभूमि होने के कारण, यह राज्य विविध संस्कृति का दावा करता है। जैन धर्म से संबंधित कई स्थलों जैसे पावापुरी का जल मंदिर और लचौर का जैन मंदिर, बिहार का जैन इतिहास छठी शताब्दी ईसा पूर्व का है। बोधगया, महाबोधि मंदिर और बोधि वृक्ष जैसी जगहों के कारण हर साल हजारों की संख्या में बौद्ध श्रद्धालु बिहार आते हैं। दूसरी ओर नालंदा, राजगीर और वैशाली कई प्रसिद्ध भारतीय राजवंशों की सीट रहे हैं। चूँकि बौद्ध और जैन धर्म से जुड़े अधिकांश स्थान भीड़भाड़ वाले इलाकों से दूर हैं, इसलिए यात्रा और भी यादगार हो जाती है। बिहार असंख्य धार्मिक भावनाओं और स्थलों का उद्गम स्थल रहा है, जिसका एक सार इसकी परंपराओं और संस्कृति में भी देखा जा सकता है। विभिन्न समुदायों के एक साथ रहने के कारण, बिहार में कई मेलों और त्योहारों का आयोजन किया जाता है जीससे पूरे साल एक कार्निवल जैसा माहौल रहता है। बुद्ध पूर्णिमा से लेकर महामस्तकाभिषेक महोत्सव तक, बिहार के कई अलग-अलग शहरों में विभिन्न कार्यक्रम मनाए जाते हैं।
5. ऐतिहासिक स्थल
बिहार कम लोकप्रिय वेकेशन डेस्टिनेशन हो सकता है, लेकिन इसकी यही खूबी आपको भीड़ से बचाती है और यहाँ की यात्रा को यादगार बनाती है। बिहार का शिल्प कौशल और शानदार वास्तुकला देखकर आप मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। कभी "मगध" के रूप में जाना जाने वाला, बिहार कई अलग-अलग राजवंशों का गढ़ रहा है और इसका सार इसके प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों में आसानी से देखा जा सकता है। गोलघर से शेर शाह सूरी मकबरे तक और बराबर गुफाओं से नालंदा महाविहार तक, यहाँ सदियों पुराने कई खूबसूरत स्थलों की एक श्रृंखला मिलेगी। इनमें से कई ऐतिहासिक स्थान अब खंडहर हो चुके हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर आपको 5वीं शताब्दी में वापस ले जाएंगे और आपको पुराने विश्वविद्यालयों की एक झलक देखने का मौका मिलेगा।किले से लेकर मकबरों तक और पहाड़ियों की चोटी पर स्थित मंदिरों से लेकर गुफाओं तक, बिहार असंख्य ऐतिहासिक स्थानों से भरा हुआ है, जिनमें सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दोनों ही हैं।
6. सांस्कृतिक विविधता
विभिन्न धर्मों का घर होने के कारण, बिहार की संस्कृति और परंपरा पूरी तरह से विविध है। जहाँ बौद्ध धर्म और जैन धर्म पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के झुंड को अपने सांस्कृतिक स्थलों की ओर आकर्षित करते हैं, वहीं राज्य हिंदू धर्म का केंद्र भी रहा है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और नेपाल से सटे होने के कारण, बिहार विभिन्न परंपराओं और धर्मों के लिए वन-स्टॉप डेस्टिनेशन बन गया है। इस सांस्कृतिक विविधता को सम्मानित करने के लिए, बिहार में हमेशा से विभिन्न त्योहारों औए कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। पाँच दिनों की लंबी छठ पूजा से लेकर बुद्ध पूर्णिमा और महामस्तकाभिषेक महोत्सव तक, बिहार का हर नुक्कड़ और कोना जीवंतता से भरा रहता है। चूंकि राज्य में गंगा बहती है, इसलिए दिनभर संतों और तीर्थयात्रियों से लदे विभिन्न घाट भी देखे जा सकते हैं। विभिन्न शिवालयों, मठों, मंदिरों और मस्जिदों में प्रार्थनाएँ, इस राज्य को विविध संस्कृति और परंपरा का केंद्र बनाती हैं। सरल शब्दों में, बिहार में सुबह की शुरुआत मंदिरों के भजनों से होती है, दोपहर को भिक्षुओं के दर्शन होते हैं और शामें कुरान की आनंदमयी ध्वनियों के साथ होती हैं। संस्कृति और परंपरा कई लोगों के लिए "होने का तरीका" हो सकता है, लेकिन बिहार के लिए, यह "जीने का तरीका" है।
7. हेरिटेज वॉक
यदि आप इस बारे में सोच रहे हैं कि बिहार आपकी बकेट लिस्ट में क्यों होना चाहिए, तो इसका एक कारण यह भी है कि यहाँ कई हेरिटेज वॉक होती हैं। "पाटलिपुत्र" का समृद्ध राज्य, बिहार अभी भी असंख्य स्थलों से भरा हुआ है जो बेहद महत्वपूर्ण हैं। नालंदा से राजगीर और बोधगया से वैशाली और विक्रमशिला तक, विभिन्न प्रसिद्ध शहर हैं जो पर्यटकों को नाटकीय रास्तों से चलते हुए विरासत स्थलों को देखने का मौका देते हैं। नालंदा, दुनिया के सबसे पुराने बसे हुए स्थानों में से एक होने के नाते, अब प्राचीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों के विभिन्न खंडहरों का घर है। अशोक स्तंभ, बराबर गुफाएँ, नालंदा विश्वविद्यालय, महाबोधि वृक्ष, और अन्य स्थल वास्तव में आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे। हेरिटेज वॉक से आपको बिहार देखने का नया दृष्टिकोण मिलेगा और आपको स्थानीय लोगों के रहने के तरीके की एक संक्षिप्त झलक भी मिलेगी।
8. आर्ट और क्राफ्ट
बिहार में कला और शिल्प के विकास का पता पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में लगाया जा सकता है, जब पेंटब्रश, पिगमेंटेड रंग और यहाँ तक कि रंग बोर्ड भी मौजूद नहीं थे। यह स्पष्ट है कि बिहार भारत में चित्रों का पहला घर रहा है। तब से लेकर अबतक बिहार ने अपनी शिल्प संस्कृति में एक बड़ी छलांग लगाई है। हस्तशिल्प से लेकर मधुबनी पेंटिंग तक और ब्लॉक पेंटिंग से लेकर बावन बुटी तक, यहाँ किए जाने वाले शिल्प की विविधता वास्तव में बहुत बड़ी है। बिहार के हर शहर की अपनी विशिष्ट कला है औए इन विभिन्न कला प्रक्रियाओं के साथ, मिथिला की "मधुबनी कला" सभी के बीच सबसे लोकप्रिय बन गई है। बिहार में हस्तनिर्मित वस्तुओं की विविधता वास्तव में बहुत बड़ी है। मधुबनी के अलावा, बिहार में पाए जाने वाले अन्य प्रसिद्ध शिल्प और कला तकनीकों में सुजानी शिल्प-नवजात शिशुओं के लिए बनाई गई एक नरम सामग्री, पिपली और काशीद - कपड़े पर सजावटी सुईवर्क, और सिक्की शिल्प - "सिक्की घास" से बनी वस्तुएँ शामिल हैं।
9. योगा
योग और बिहार का रिश्ता सदियों पुराना है। सदियों पुराने योग विद्यालयों के साथ, बिहार शुरू से योग के लिए पर्यटकों के बीच लोकप्रिय रहा है। योग दुनिया का एकमात्र स्वास्थ्य अभ्यास है जो कभी भी किसी भी जीवित प्राणी के लिए घातक साबित नहीं हुआ है। मुंगेर, बिहार में योग का केंद्र होने के नाते पहला स्थान था जहाँ श्री सत्यानंद सरस्वती ने इस अभ्यास से जुड़ाव महसूस किया और विभिन्न "आसनों" के माध्यम से मानव चेतना के उन्नयन की दिशा में काम किया। वर्तमान में, इस विशिष्ट स्थान पर और इसके आसपास कई अलग-अलग योग विद्यालय खोले गए हैं, जहाँ सभी योग प्रेमी विभिन्न प्रशिक्षण और कक्षाओं के दौरान प्रकृति के साथ-साथ अपने शरीर के साथ जुड़ सकते हैं।
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