भारतीय सेना द्वारा निर्मित देश के 8 युद्ध स्मारक! सभी देश वासियों को एक बार जरूर देखने चाहिए

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'भारतीय सेना'- इन दो शब्दों को सुनते ही, उनके बलिदान और कृतज्ञता के प्रति सम्मान में हमारा सिर झुक जाता है। ये भारतीय सेना की बहादुरी है कि हम रोज रात अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं। हमारी आजादी से लेकर अबतक, भारतीय सेना घुसपैठियों, आतंकवादियों और अन्य बाहरी हमलों का मजबूती से सामना करती आई है।

स्वतंत्र होने के बाद से, हमने देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए अपने बहादुर सैनिकों का सर्वोच्च बलिदान दिया है। देश में जगह जगह पर बनाए गए युद्ध स्मारकों का उद्देश्य उन बहादुर जवानों को याद करना है जो देश की रक्षा करने में शहीद हो गए हैं। अब तक, भारतीय सेना ने भारत में विभिन्न स्थानों पर 18 युद्ध स्मारकों का निर्माण किया है।

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लेह में भारतीय सेना का हॉल ऑफ फेम, श्रेय: विक्की चौहान

आज हम आपको उनमें से 8 के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें आपको अपने जीवन में हमारे सैनिकों के प्रति अपना आभार प्रकट करने के लिए एक बार जरूर जाना चाहिए।

1. तवांग युद्ध स्मारक

तवांग मेमोरियल को स्थानीय क्षेत्र से नामग्याल चोर्टेन के नाम से जाना जाता है। ये 40 फीट ऊंचा युद्ध स्मारक तवांग शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इस स्मारक को बौद्ध वास्तुकला और सांस्कृतिक तत्वों का उपयोग करके डिजाइन किया गया है, जिसमें प्रेयर व्हील और फ्लैग, रंगीन सर्पेंट, ड्रेगन और बौद्ध धर्म से जुड़ी अन्य चीजें शामिल हैं।

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तवांग युद्ध स्मारक

ये स्मारक सेना के 2,420 जवानों की स्मृति में बनाया गया था, जिन्होंने 1962 में चीन-भारत युद्ध के दौरान कामेंग जिले में अपने प्राणों की आहुति दी थी। शांत और सुरम्य वातावरण में बने इस स्मारक के मैदान से आसपास का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। यहाँ से बर्फ से ढके पहाड़ों का नजारा भी दिखाई देता है। स्तूप के चारों ओर राष्ट्रीय ध्वज, सेना ध्वज, वायु सेना ध्वज के साथ-साथ युद्ध में लड़ने वाली 27 अन्य रेजिमेंटों के झंडे सहित कई झंडे शान से लहराते हैं।

कैसे पहुँचें?

गुवाहाटी से तवांग आसानी से पहुँचा जा सकता है। ये स्मारक गुवाहाटी से लगभग 520 किमी. दूर है। तवांग पहुँचने के लिए आपको सेला दर्रा पार करना होगा। बीच में आप भालुकपोंग, दिरांग या बोमडिला में ठहर सकते हैं। ये स्मारक मुख्य शहर के बहुत नजदीक है इसलिए तवांग पहुँचने के बाद आपको कोई परेशानी नहीं होगी। साथ ही आप यहाँ का लाइट एंड साउंड शो भी एन्जॉय कर सकते हैं।

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तवांग युद्ध स्मारक

2. कारगिल युद्ध स्मारक

श्रीनगर-लेह हाईवे पर स्थित कारगिल स्मारक, भारतीय सेना के उन सैनिकों और अधिकारियों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने 1999 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इस स्मारक की दीवार को बनाने में गुलाबी बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है जिसमें एक पीतल की प्लेट लगाई गई है। इस प्लेट पर ऑपरेशन विजय के दौरान शहीद हुए सैनिकों के नाम लिखे गए हैं।

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कारगिल युद्ध स्मारक, श्रेय: रिफ़्लेक्शन बाइ प्राजक्ता

1998-1999 की सर्दियों में, पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके लेह और कारगिल को श्रीनगर से जोड़ने वाली सड़कों पर कब्जा कर लिया था। इसके साथ ही पाकिस्तानी सेना ने राष्ट्रीय राजमार्ग के अलावा ऊंचाई पर स्थित अन्य जगहों पर भी अपनी दावेदारी पेश की थी। जवाब में, भारतीय सेना ने क्षेत्र को फिर से लेने के लिए मई 1999 में ऑपरेशन विजय शुरू किया। कई राउंड की लड़ाई के बाद भारतीय सेना को जीत हासिल हुई। हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस स्मारक का निर्माण भारतीय सेना ने नवंबर 2014 में किया था।

इस स्मारक पर लगभग 15 किलो के वजन वाला विशाल भारतीय ध्वज फहराता है जो इसकी शान को दोगुना कर देता है। ये ध्वज सेना के जवानों द्वारा किए गए बलिदान की कई अनकही कहानियों का साक्षी है। यदि आप लेह लद्दाख क्षेत्र की यात्रा कर रहे हैं, तो कारगिल युद्ध स्मारक की यात्रा अवश्य करें।

कैसे पहुँचें?

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कारगिल युद्ध स्मारक, श्रेय: फजल

यदि आप श्रीनगर की ओर से लेह आ रहे हैं तो कारगिल युद्ध स्मारक आपके रास्ते में पड़ेगा। उसके बाद, आप लेह जा सकते हैं। ये स्मारक कारगिल से 55 किमी. और श्रीनगर से 160 किमी. की दूरी पर स्थित है।

3. दार्जिलिंग युद्ध स्मारक

दार्जिलिंग युद्ध स्मारक दार्जिलिंग में बतासिया लूप उद्यान के बीच में है। ये दार्जिलिंग क्षेत्र के गोरखा सैनिकों के सेवा भाव के सम्मान के रूप में बनाया गया है, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के बाद विभिन्न अभियानों और युद्धों में देश की रक्षा के लिए अपना जीवन का त्याग दिया था।

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दार्जिलिंग युद्ध स्मारक, श्रेय: शुवंकर सरकार।

गोरखा रेजिमेंट शुरू से ही भारतीय सेना में एक मजबूत ताकत रही है। दार्जिलिंग की पहाड़ियों से कई गोरखा सैनिक राष्ट्र की सेवा करते हैं। भारत की स्वतंत्रता के बाद युद्ध और अभियानों में 75 से अधिक सैनिक शहीद हुए हैं।

युद्ध स्मारक का निर्माण और इसका उद्घाटन 18 अप्रैल 1995 को हुआ था। स्मारक में एक बड़ा, उठा हुआ मंच है जो अंडे के आकार जैसा है। ये मंच 37 फीट लंबा और 24 फीट चौड़ा है। बीच में एक 30 फीट ऊँचा त्रिकोणीय आकार का ग्रेनाइट स्मारक है जिसके नीचे रोल ऑफ़ ऑनर है। रोल ऑफ़ ऑनर में तारीखों के साथ मरने वालों के नाम लिखे गए हैं। बतासिया लूप में फैले पूरे युद्ध स्मारक क्षेत्र में लगभग 50,000 वर्ग फुट है। इस पूरे क्षेत्र में सुंदर बगीचे जिनमें फूल, झाड़ियाँ और चारों ओर पेड़ हैं।

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दार्जिलिंग युद्ध स्मारक, श्रेय: सुवेदिता सुभाष

कैसे पहुँचें?

दार्जिलिंग युद्ध स्मारक मुख्य शहर से केवल 5 किमी. दूर है और बतासिया लूप के अंदर स्थित है। यदि आप कार या टैक्सी लेते हैं, तो दार्जिलिंग शहर से युद्ध स्मारक तक पहुँचने में लगभग 20 मिनट लगते हैं। आप दार्जिलिंग से घूम तक टॉय ट्रेन की सवारी भी कर सकते हैं जो सुबह और दोपहर दोनों समय दार्जिलिंग स्टेशन से निकलती है। टॉय ट्रेन बतासिया लूप में 10 मिनट के लिए रुकती है।

4. लोंगेवाला स्मारक

लोंगेवाला जैसलमेर के पश्चिमी भाग में स्थित थार रेगिस्तान का एक सीमावर्ती शहर है। ये पाकिस्तानी सीमा के बहुत करीब है। लोंगेवाला की लड़ाई, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी क्षेत्र में पहली बड़ी गतिविधियों में से थी, जो लोंगेवाला की भारतीय सीमा चौकी पर पाकिस्तानी सेना और भारतीय रक्षकों के बीच लड़ी गई थी।

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लोंगेवाला युद्ध स्मारक, श्रेय: शिल्पी और मिथुन

इस युद्ध स्मारक से जुड़ा संग्रहालय, युद्ध में इस्तेमाल किए गए गोला-बारूद और सैनिकों की वर्दी को प्रदर्शित करता है। दीवारों पर उन शहीदों के नाम और चित्र भी हैं, जिन्होंने निडर होकर देश की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी थी। संग्रहालय में जंग से जुड़ी ऐसी तमाम चीजें हैं जो देखने लायक हैं। संग्रहालय के प्रमुख आकर्षणों में से एक हंगर एयरक्राफ्ट है जिसको दुश्मन के टैंकों को मार गिराने में महारथ हासिल थी।

ऑडियो-विजुअल रूम भारत के युद्ध नायकों और उनके योगदान के बारे में कई कहानियाँ भी बताता है। लड़ाकू जेट, बंदूकें, विभिन्न हथियार और सेना द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरण भी संग्रहालय में रखे गए हैं।

कैसे पहुँचें?

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लोंगेवाला युद्ध स्मारक, श्रेय: शिल्पी और मिथुन

यदि आप रामगढ़ होते हुए लोंगेवाला युद्ध स्मारक आना चाहते हैं, तो ये जगह जैसलमेर से लगभग 124 किमी. दूर है। लोंगेवाला युद्ध स्मारक के साथ आपको तनोट माता मंदिर के दर्शन भी अवश्य करने चाहिए। बेहतर होगा कि आप पहले रामगढ़ होते हुए तनोट जाएँ और फिर साढेवाला होते हुए लोंगेवाला आएँ। इसके बाद आप रामगढ़ होते हुए जैसलमेर लौट सकते हैं।

5. राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, पुणे

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राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, श्रेय: चिन्मय26

पुणे छावनी में ये युद्ध स्मारक स्वतंत्रता के बाद हुए युद्ध के शहीदों को समर्पित है। पुणे का ये युद्ध स्मारक दक्षिण एशिया का एकमात्र ऐसा युद्ध स्मारक है जिसे नागरिकों के योगदान से बनाया गया है। स्मारक का अनावरण 15 अगस्त 1998 को किया गया था और साथ ही इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया था। कारगिल युद्ध में इस्तेमाल किया गया एक मिग-23BN भी स्मारक में प्रदर्शित है।

गोवा की आजादी और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सेवा देने वाले अब सेवामुक्त युद्धपोत आईएनएस त्रिशूल की प्रतिकृति भी प्रदर्शित की गई है। स्मारक में संगमरमर पर खुदे हुए महाराष्ट्र की थल सेना, नौसेना और वायु सेना के स्वतंत्रता के बाद के शहीदों के नाम को दर्शाया गया है।

संग्रहालय में गोवा, जूनागढ़ और हैदराबाद के भारत संघ में जुड़ने का समय, 1965 युद्ध, 1971 युद्ध और 1987 में श्रीलंका में हुआ अंतर्राष्ट्रीय शांति सेना मिशन जैसे कार्यों को दर्शाया गया है।

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राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में प्रदर्शित मिग 23, श्रेय: मयंक431

कैसे पहुँचें?

यदि आप पुणे आने का मन बना रहे हैं तो ये युद्ध स्मारक देखने योग्य जगह है। आपको घोरपडी डाकघर की ओर जाने वाली तमाम बसें मिल जाएंगी। डाकघर से ये जगह केवल 6 मिनट की पैदल दूरी पर है।

6. वालोंग युद्ध स्मारक

वालोंग अरुणाचल प्रदेश की एक छोटी सी छावनी है। देश की इस सबसे पूर्वी घाटी में 1962 के भारत-चीन संघर्ष के दौरान "वालोंग की लड़ाई" के रूप में जानी जाने वाली सबसे भयावह लड़ाई देखी गई थी। वालोंग युद्ध स्मारक 1962 में वालोंग की भीषण लड़ाई की याद दिलाता है, जब भारतीय सेना की 11वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड ने अपने से अधिक संख्या में हमला करने आए चीनी घुसपठियों के झुंड पर विजय हासिल की थी।

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वालोंग युद्ध स्मारक

कैसे पहुँचें?

वालोंग का निकटतम हवाई अड्डा डिब्रूगढ़ है और निकटतम रेलवे स्टेशन तिनसुकिया है। दोनों वालोंग से करीब 350 किमी. दूर हैं। ये सफर गाड़ी से तय करने में लगभग 10 घंटे लग सकते हैं इसलिए हिस्सों में यात्रा करना बेहतर रहेगा। पहले दिन आप डिब्रूगढ़ या तिनसुकिया से तेज़ू पहुँच सकते हैं और अगले दिन वालोंग के लिए आगे निकल सकते हैं।

7. रेजांग ला युद्ध स्मारक

रेजांग ला वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर एक पहाड़ी दर्रा है जो भारतीय प्रशासित लद्दाख और चीनी-नियंत्रित, लेकिन भारतीय स्पैंगगुर झील बेसिन को विभाजित करता है। ये दर्रा समुद्र तल से 5199 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

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रेजांग ला युद्ध स्मारक

1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान, रेजांग ला 13 कुमाऊँ की चार्ली 'सी' कंपनी के अंतिम स्टैंड का स्थल था, जिसमें 124 अहीर शामिल थे। कंपनी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह ने किया था, जिनको बाद में अपनी वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था। वॉर मेमोरियल उन बहादुर सैनिकों की याद में बनाया गया है।

कैसे पहुँचें?

रेजांग ला वॉर मेमोरियल चुशुल से हनले के रास्ते में स्थित है। हानले लेह से लगभग 255 किमी. दूर है। लेह से हनले पहुँचने के दो रास्ते हैं। पहला रास्ता चुमाथांग से होकर गुजरता है। दूसरा मार्ग चांगथांग घाटी से होकर गुजरता है। कौन सा रास्ता चुनना है ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप केवल हानले जाना चाहते हैं या पैंगोंग त्सो और त्सो मोरीरी को भी अपनी लिस्ट में शामिल करना चाहते हैं।

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रेजांग ला वॉर मेमोरियल, श्रेय: भाटी राजवंश

8. विक्टरी युद्ध स्मारक

विक्टरी युद्ध स्मारक को पहले क्यूपिड्स बाॅ के नाम से जाना जाता था। चेन्नई शहर की सीमा पर स्थित ये युद्ध स्मारक बेहद खूबसूरत है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मित्र देशों की सेनाओं की जीत का जश्न मनाने के लिए विजय युद्ध स्मारक का निर्माण किया गया था। बाद में ये मद्रास प्रेसीडेंसी के उन लोगों की याद में युद्ध स्मारक बन गया जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ते हुए अपने प्राणों की बलि चढ़ा दी थी।

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विक्टरी युद्ध स्मारक, श्रेय: प्लेन मैड

आज, ये 1948 के कश्मीर आक्रमण, चीन के साथ 1962 के युद्ध और भारत-पाकिस्तान युद्ध के साथ-साथ उपरोक्त युद्धों के स्मारक के रूप में जाना जाता है। विक्टरी युद्ध स्मारक चेन्नई के प्रमुख आकर्षणों में से एक है और इतिहास प्रेमियों और शोध छात्रों के लिए एक आदर्श स्थान है। आज भी इस स्मारक को देखने और उपरोक्त युद्धों के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले सभी शहीदों को नमन करने आते हैं।

कैसे पहुँचें?

विक्टरी युद्ध स्मारक मरीना बीच की शुरुआत में आइलैंड ग्राउंड के पास बीच रोड पर स्थित है। यदि आप चेन्नई की मरीना बीच पर जा रहे हों, तो अपने देश को बचाने के लिए अपनी जान गंवाने वाले सैनिकों को सलाम करने के लिए विजय युद्ध स्मारक पर जाना न भूलें।

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विक्टरी युद्ध स्मारक, श्रेय: वेंकटेश श्रीराम

इनके अलावा, भारत के विभिन्न राज्यों में कई और युद्ध स्मारक भी हैं। हम उनकी सेवा और बलिदान का कर्ज तो नहीं चुका सकते लेकिन हम इन युद्ध स्मारकों पर जाकर उनके प्रति अपना सम्मान और प्यार दिखा सकते हैं। जय हिन्द!

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