। 28 जुलाई 2016: मिशन लद्दाख आल इज वेल! यह क्या! यह तो उस सुपरहिट फिल्म थ्री इडियट्स का सबसे प्रसिद्द संवाद है। लेकिन आज मैं इस फिल्म की चर्चा यहाँ इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि इस फिल्म के बहुत सारे दृश्य लद्दाख में फिल्माए गए हैं। आपको वो स्कूल जरुर याद होगा जहाँ पुनसुख वांगडू (आमिर खान) बच्चों को पढ़ाते हुए नजर आते हैं, बिलकुल अलग तरीके से, दूसरी ओर फिल्म के अंतिम भाग में आप पेंगोंग का नजारा देखते हैं।
ALL IZZ WELL !
लेह से पेंगोंग की ओर जाते वक़्त रास्ते में शे नामक गाँव में एक स्कूल है- द्रुक वाइट लोटस स्कूल या द्रुक पदमा कारपो स्कूल। पेंगोंग का जिस वक़्त कार्यक्रम बन रहा था, उस वक़्त तो इस स्कूल का बिलकुल ध्यान न था, लेकिन इतना जरुर पता था की लद्दाख में वो कोई "थ्री इडियट्स" वाला स्कूल भी है। मात्र एक फिल्म ने इस स्कूल को इतना प्रसिद्द बना डाला है की लोग इसका असली नाम ही भूल कर इसे आज "रेंचो स्कूल " के नाम से जानते हैं। स्कूल भी कोई अधिक पुराना नहीं, मुश्किल से बारह-पंद्रह वर्ष ही हुए होंगे।
लेह से पेंगोंग का रास्ता भी लेह-मनाली हाईवे जैसा ही कठिन है, रेंचो स्कूल तक का रास्ता भी कोई कम न था। परिणामस्वरूप लेह से इस स्कूल तक मात्र पंद्रह-बीस किमी तक जाने में ही एक-डेढ़ घंटे का समय लग जाता है। भंयकर पथरीले रास्ते किनारे एक सुदूर इलाके के गाँव में ऐसा अनोखा स्कूल देखना मेरे लिए, बल्कि सभी साथियों के काफी कौतुहल भरा विषय था।
हिचकोले खाते हुए दूर से हमें एक अकेला काफी बड़ा सा भवन दिखाई पड़ा, इलाका सन्नाटेदार होने के कारण कोई दूसरा मकान नहीं दिख रहा था। कुछ ही देर बाद सड़क के बांयी ओर एक रास्ता हमें रेंचो कैफ़े की तरफ ले गयी। इस चर्चित स्कूल को देखने आने वाले कोई हम अकेले न थे, छोटे से बनाये हुए पार्किंग में पहले से ही कुछ बाइक और कार खड़े थे।
स्कूल परिसर के बाहर एक बोर्ड लगी हुई है, जिससे हमें स्कूल का असली नाम "द्रुक पदमा कारपो स्कूल " पता चलता है। स्कूल में आने-जाने के लिए पर्यटकों का निर्धारित समय सुबह नौ से शाम छह बजे तक है। एक अतिअनुशासित संस्थान की गरिमा बरक़रार रखने हेतु यहाँ किसी भी प्रकार की गन्दगी फैलाना, फोटोग्राफी करना, खाना-पीना आदि प्रतिबंधित है। स्कूली बच्चों के फोटो खींचना तो विशेष तौर पर मना है।
आगे बढ़ते के बाद एक नीले रंग के बोर्ड पर लिखा था "Welcome to Rancho Cafe! All izz well! बस हमें तो इसी बोर्ड का ही इंतज़ार था, तुरंत ही सेल्फी और ग्रुप फोटो का एक लम्बा सिलसिला चल पड़ा। कुछ लोगों ने तो थ्री इडियट्स मूवी अपने मोबाइल में सेव की हुई थी और मौका मिलते ही मूवी चालू करके वास्तविक स्कूल से दृश्यों की तुलना करने में जुट गये। कुछ ने कैफ़े में बैठकर कॉफ़ी का मजा लिया। पहले तो मैंने इस कैफ़े को ही स्कूल समझ लिया था, पर यह स्कूल का एक कॉफ़ी शॉप था, कार्यालय भी कैफ़े के बगल में जबकि स्कूल के क्लासरूम और हॉस्टल आगे की ओर थे।
स्कूल के कार्यालय में कुछ शिक्षिकाएं थीं, जिन्होंने हमारा बहुत स्वागत किया और उसी कार्यालय में बैठाकर स्कूल के बारे लगभग आधे घंटे का परिचय दिया। बाहर से स्कूल का परिसर अनोखा था ही, अंदर भी किसी अन्य स्कूल से काफी अलग था। दीवारों और दरवाजों पर जो कुछ भी लिखा या कहा गया था, सब एक से बढकर एक थे। इस कमरे के दीवारों पर थ्री इडियट्स के शूटिंग के बहुत सारे तस्वीरें टंगी हुई थी। एक फोटो में आमिर खान थे, और वो इसी कमरे के अन्दर का दृश्य था। शिक्षिका ने स्कूल के विभिन्न विभागों, कार्यकलापों आदि के बारे विस्तार से बताया। स्कूल में सुदूर इलाकों के बच्चों का विशेष ध्यान रखा जाता है, कोशिश की जाती है की दूर-दराज के गरीब बच्चे को प्रवेश मिलने में वरीयता मिले। यह एक पूर्णतः आवासीय विद्यालय है जहाँ रहना-खाना बिलकुल मुफ्त है। 2010 में, यानि थ्री इडियट्स के रिलीज होने के अगले ही वर्ष किसी प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने के बाद इसे फिर से आमिर खान और राजकुमार हिरानी की मदद से पुनर्जीवित किया गया था। मनाही के बावजूद भी एक बार इस कक्षा का विडियो बनाने की कोशिश की, पर तुरंत मना कर दिया गया।
लद्दाख की सुन्दरता के साथ स्कूल का भवन भी एक लद्दाखी आभास देता है! बीबीसी लन्दन द्वारा भी साल 2016 में इसे पूरे परिसर में सिर्फ एक ही स्थान पर फोटोग्राफी की इजाजत है जिसे दुनिया के सबसे सुन्दर स्कूलों में से एक का खिताब दिया जा चूका है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्कूल ने एक से बढ़कर एक अवार्ड जीते हैं जिनकी लिस्ट बहुत लंबी है। स्कूल की एक खासियत ये भी है की यह सौर उर्जा से संचालित है और इस कारण पर्यावरण सुरक्षा सम्बन्धी पुरस्कार भी मिलते रहे हैं। सूसू पॉइंट कहा जाता है। आप समझ ही गए होंगे की ऐसा नाम क्यों पड़ा! यह पॉइंट स्कूल के बिलकुल आखिरी छोर पर है और परिचय कक्षा समाप्त होने के बाद हम उसी ओर बढ़ रहे थे।
स्कूल कार्यालय से पांच मिनट की पैदल दूरी पर स्कूल के क्लासरूम और हॉस्टल थे। रास्ते के बांयी ओर नरोपा फोतांग नाम का एक बौद्ध मठ है। कुछ बच्चे नजर आने लगे, पर हमने उनकी कोई फोटो नहीं ली। स्कूल के दिवार बड़े-बड़े पत्थरों से बने हुए थे और उनका रंग भी लद्दाख के पहाड़ों की भांति ही भूरा था। सचमुच यह दुनिया के सबसे सुन्दर स्कूलों में से एक है! ऐसी वीरान सी जगह पर दूर-दूर से बच्चों का पढने के लिए आना बहुत ही आश्चर्यजनक है। लद्दाख की गोद में सच में यह एक हीरा ही है। दिलचस्प बात यह भी की हॉस्टल के कमरों के नाम भी हिमालय के विभिन्न दर्रों के नाम पर रखे गए हैं जैसे की जोजिला हाउस, रोहतांग हाउस, खार्दुन्गला हाउस आदि।
आखिरी छोर पर सूसू पॉइंट आ गया। थ्री इडियट्स में अपने देखा ही होगा की जब चतुर रामालिंगम (ओमी वैद्द) इस दीवार पर सूसू करते पकडे जाते हैं, तो बच्चे ऊपर की खिड़की से जलता हुआ बिजली का बल्ब नीचे की ओर गिरा देते है, उसके बाद क्या होता है आप जानते ही है! सूसू वाले दृश्य में जिस बच्चे को दिखाया गया था वो बच्चा इसी स्कूल का छात्र है और अभी भी यहीं पढ़ रहा है। दिवार पर अभी उसी दृश्य की पेंटिंग बनी हुई है। अब नियमतः स्कूल का एकमात्र फोटोग्राफी पॉइंट यही था, तो फोटो लेने की भी जबरदस्त होड़ मची थी। सभी सेल्फी के बजाय सूसू वाले पोज पर ही फोटो खिंचवाने लगे!
दुनिया के इस अनोखे स्कुल की कुछ झलकियाँ-
नारोपा फोतांग (Naropa Fotang)
सूसू पॉइंट