कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर इटली के पोम्पेई को पछाड़कर दुनिया का आठवां अजूबा बन गया है। 800 वर्ष पुराने इस मंदिर का निर्माण राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने करवाया था। अंकोर वाट मूल रूप से हिंदू धर्म के भगवान विष्णु को समर्पित था, लेकिन बाद में यह बदल कर एक बौद्ध मंदिर बन गया। यह दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है। यह करीब 500 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। विश्व के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर का नाम अंकोरवाट है। हैरानी की बात ये है कि, सबसे बड़ा हिंदू मंदिर भारत में नहीं बल्कि दूसरे देश कंबोडिया में स्थित है। इस देश में भारत की संस्कृति से संबंधित कई प्राचीन स्मारक भी हैं। बता दें कि, अंकोरवाट मंदिर का निर्माण कम्बुज के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने कराया था और यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।
402 एकड़ जमीं में फैले अंकोरवाट का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। इतना ही नहीं मंदिर की मंत्रमुग्ध कर देने वाली तस्वीर कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज पर भी है।
मिकांग नदी के किनारे बसे अंकोरवाट मंदिर को टाइम्स ने दुनिया की पांच आश्चर्यजनक स्थलों में शामिल किया था। साथ ही, विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही 1992 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत में भी शामिल किया।
इस मंदिर की सबसे खूबसूरत खासियत ये है की इस मंदिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत की कहानियां लिखी हुई हैं साथ ही असुरों और देवताओं के अमृत मंथन का भी उल्लेख है।
ऐसा लगता है की विभिन्न आकृतियों वाले सरोवरों के खंडहर आज भी निर्माणकर्ता की प्रशंसा कर रहे हों। मंदिर नगर के ठीक बीचोबीच शिव का एक विशाल मंदिर है जिसके तीन भाग हैं। प्रत्येक भाग में एक ऊंचा शिखर है। इस ऊंचे शिखरों के चारों ओर अनेक छोटे-छोटे शिखर बने हैं जिनकी संख्या लगभग 50 के आसपास हैं। मंदिर की विशालता और निर्माण कला आश्चर्यजनक है उसकी जितनी तारीफ की जाये कम है।
अंकोरवाट मंदिर में सूर्योदय
अंगकोर वाट के सबसे प्रतिष्ठित अनुभवों में से एक इसकी राजसी मीनारों पर सूर्योदय देखना है। जैसे ही सुबह होती है, मंदिर गुलाबी, नारंगी और सोने के रंगों से सराबोर हो जाता है, जिससे एक मनमोहक दृश्य बनता है।
अपने स्थापत्य वैभव के अलावा, अंगकोर वाट का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। मंदिर एक सक्रिय धार्मिक स्थल बना हुआ है, जो बौद्ध भिक्षुओं और भक्तों को आकर्षित करता है, जो अपनी श्रद्धा अर्पित करने और प्रार्थना और ध्यान में संलग्न होने के लिए आते हैं। प्राचीन समय में इस मंदिर का नाम 'यशोधरपुर' था। बताया जाता है कि इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53 ई॰) के शासनकाल में हुआ था।
मंदिर का वास्तुशिल्प
1. हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में परिवर्तन मंदिर की दीवारों पर सजी जटिल नक्काशी में स्पष्ट है, जिसमें हिंदू और बौद्ध पौराणिक कथाओं के दृश्य दर्शाए गए है।
2. केंद्रीय मंदिर परिसर में पांच कमल के आकार के टावर हैं जो माउंट मेरु का प्रतिनिधित्व करते हैं।
3. माउंट मेरु हिंदू और बौद्ध मान्यताओं के अनुसार देवताओं का निवास है।
4. अंकोरवाट की दीवारों पर सजी जटिल नक्काशी प्राचीन दृश्य विश्वकोश की तरह हैं, जो हिंदू महाकाव्यों, ऐतिहासिक घटनाओं और खमेर लोगों के दैनिक जीवन के दृश्यों को दर्शाती है।
6. इन नक्काशी से कारीगरों के कौशल और शिल्प कौशल के ज्ञान का पता चलता है।
कैसे पड़ा इस मंदिर का यह नाम
अंगकोर वाट का शाब्दिक अर्थ है 'मंदिरों का शहर'। 15वीं सदी में अंगकोर खमेर साम्राज्य की राजधानी थी। 'अंगकोर वाट' नाम संस्कृत शब्द 'नागारा' जिसका अर्थ है 'राजधानी' और खमेर शब्द 'वाट' जिसका अर्थ है मंदिर, से मिलकर बना है।
कंबोडिया एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जहां प्रति वर्ष 6 मिलियन से अधिक पर्यटक आते हैं। यह देश अंगकोर वाट, रॉयल पैलेस और किलिंग फील्ड्स सहित कई विश्व प्रसिद्ध आकर्षणों का घर है। कंबोडिया अपने कई राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के साथ, इकोटूरिज्म के लिए भी एक लोकप्रिय गंतव्य है।