अपनी 26 हजार किलोमीटर की भारत यात्रा के बारे में बात करते हुए तरुण कहते हैं “आज हमारी यात्रा को खत्म हुए, तक़रीबन एक महीना गुजर गया है। लेकिन एक दिन भी ऐसा नहीं बीतता, जब परिवार में हमारी इस यात्रा (Road Trip) से जुड़ी बातें नहीं होती हैं।”
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तरुण, फिलहाल कोविड मरीजों के लिए स्वयंसेवी के तौर पर काम कर रहे हैं, लेकिन अपनी यात्रा के बारे में बात करते हुए वह काफी उत्साह से बताते हैं, “ऐसे हालातों में भी जब मैं अपनी आँखे बंद करता हूँ, तो मैं खुद को तमिलनाडु के किसी मंदिर में बैठा हुआ पाता हूँ।”
दिल्ली के रहने वाले, 36 वर्षीय तरुण कुमार बंसल एक व्यवसायी हैं। वह अपनी पत्नी सुनैना (35) और दो बेटियों त्रिजा (7) और शुभदा (5) के साथ, 50 देशों की यात्रा कर चुके हैं। लेकिन, उनके मन में हमेशा भारत के अनदेखे हिस्सों में घूमने की चाह थी। उनकी पत्नी भी मंदिरों और पौराणिक कथाओं में काफी दिलचस्पी रखती हैं।
तरुण बताते हैं, “हम 3 अक्टूबर को मात्र तीन हफ्तों की छुट्टियों के लिए राजस्थान गए थे। हमने अपनी यात्रा (Road Trip) राजस्थान के एक गांव से शुरू की थी। हमने जैसलमेर के कई छोटे-बड़े मंदिरों के इतिहास के बारे में जाना।” वह कहते हैं, “ये सारी जानकारियां मुझे काफी रोचक लगी। साथ ही, गाँव के लोगों का हमारे प्रति व्यवहार, मेरे दिल को छू गया। तभी हमने अपनी इस यात्रा (Road Trip) को और आगे बढ़ाने का फैसला किया।” वह कहते हैं कि भारत के ग्रामीण इलाके वाकई बहुत खूबसूरत हैं। अगर इन्हें पर्यटकों के नजरिये से विकसित किया जाए, तो वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार जरूर आएगा।
अपनी छह महीने की कार यात्रा में, वे 300 से अधिक गावों में घूमे। वहीं, उन्होंने देशभर के 500 से ज्यादा मंदिरों के दर्शन किये। उन्होंने राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश सहित 15 राज्यों की यात्रा (Road Trip) की।
मंदिरों का इतिहास
तरुण बताते हैं, “हमने अपनी यात्रा (Road Trip) से पहले काफी रिसर्च की थी। हमने भगवान राम के वनवास रूट को फॉलो किया। हालांकि, हम उन सारी जगहों पर नहीं जा सके, जहां-जहां राम जी गए थे।” उन्होंने अपनी यात्रा के सात हफ़्ते तमिलनाडु और केरल में बिताए। वह बताते हैं, “हमने तमिलनाडु स्थित ‘दिव्य देसम’ के भी दर्शन किये। दिव्य देसम, भगवान विष्णु के 108 मंदिर हैं। जिनमें से 105 मंदिर भारत के विभिन्न राज्यों में स्थित हैं। तमिलनाडु में दिव्य देसम के 84 मंदिर हैं। हमने उन सभी 84 मंदिरों के दर्शन किये और उनका इतिहास भी जाना।” तरुण इसे अपनी एक उपलब्धि के रूप में देखते हैं।
वह कहते हैं, “मुझे यात्रा के दौरान, स्थानीय लोगों ने और यहां तक कि मंदिर के पुजारियों ने भी, दिव्य देसम को और गहराई से जानने में मदद की।” उन्होंने दक्षिण भारत के प्रख्यात मुरुगन मंदिरों के साथ-साथ, मदुरई के मीनाक्षी मंदिर के भी दर्शन किये। तरुण अपने दक्षिण भारत दौरे के बारे में बात करते हुए कहते हैं, “पहले मैं वहां की भाषा को लेकर थोड़ा डरा हुआ था, लेकिन भाषा का ज्ञान न होते हुए भी, वहां के लोगों ने हमारी बहुत मदद की।” इसके साथ ही, उन्होंने तेलंगाना के वेमूलवाडा (Vemulawada) के प्रसिद्ध मंदिर के भी दर्शन किये।
यात्रा के दौरान चुनौतियां
तरुण बताते हैं कि जब उनकी बड़ी बेटी मात्र दो महीने की थी, तब से वह परिवार के साथ ऐसी लम्बी यात्राएँ करते आ रहे हैं। उन्होंने सबसे पहली बार, सात हजार किलोमीटर की यात्रा की थी। उस यात्रा के दौरान, उन्होंने भारत के सभी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन किए थे। वह बताते हैं, “पिछले साल बच्चों की स्कूलिंग ऑनलाइन चल रही थी, वहीं मैं भी घर से ही काम कर रहा था। लॉकडाउन के बाद जैसे ही जीवन सामान्य हुआ, हमने इस यात्रा (Road Trip) की योजना बनाई।”
उन्होंने बताया कि वे सुबह काफी जल्दी ही होटल से निकलते थे। साथ ही, उन्होंने अपने साथ एक इलेक्ट्रिक कुकर रखा था, जिसमें वे खिचड़ी, दलिया और चावल जैसी कुछ चीजें, सुबह ही बनाकर पैक कर लेते थे। तरुण कहते हैं, “जब आप बच्चों के साथ यात्रा करते हैं, तो उनके खाने-पीने का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इसलिए, हमने खाना बनाने का समान अपने साथ रखा था। हमारे दो बड़े बैगों में राशन और रसोई का सामान ही था।”
यात्रा के दौरान दोनों बच्चें अपनी ऑनलाइन क्लासेज भी अटेंड करते थे। तरुण ने बताया कि वे किसी सार्वजानिक जगह जैसे- पार्क, मंदिर या किसी होटल के पास रुकते थे, ताकि नेटवर्क सही मिले और बच्चे क्लास भी अटेंड कर सकें। इस बीच, तरुण भी अपने ऑफिस का काम करते थे। वहीं, उनकी पत्नी यात्रा (Road Trip) के दौरान, दिन भर कहाँ-कैसे व्यवस्था करनी है, उनकी योजनायें तैयार करती थीं।
तरुण बताते हैं कि इतने लम्बे सफर में बच्चों का मनोरंजन करना भी बहुत जरूरी है। इसलिए वह यात्रा के दौरान, बच्चों के साथ कई तरह के खेल खेलते थे। कभी वे बच्चों को पास से गुजरती गाड़ियों को गिनने को कहते, तो कभी उन्हें अपनी आँखे सात मिनिट तक बंद करने को कहते, जो पहले आँख खोलता वो हार जाता।
उन्हें कई लोगों ने कहा कि पत्नी और दो बेटियों के साथ, इतनी लम्बी यात्रा करना सुरक्षित नहीं है। लेकिन तरुण बताते हैं, “यात्रा के दौरान हमें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कभी हमें होटल मिलने में दिक्कत आयी, तो कभी भाषा न आने के कारण कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन, हमें कभी सुरक्षा से जुड़ी कोई दिक्कत नहीं हुई।”
सफ़र से जुडी यादें
15 राज्यों की यात्रा के दौरान, उन्होंने कई स्मारक, संग्रहालय, रेगिस्तान, समुद्र तट, झरने और मंदिर देखे। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उन्होंने कई राष्ट्रीय उद्यान देखें। वहीं, कर्नाटक की मशहूर होयसल वास्तुकला के इतिहास के बारे में जाना। तरुण बताते हैं, “हमने ज्यादातर समय गावों में गुज़ारा।” वे कच्छ के एक गांव हुड़का में सात दिन रहे। हुड़का गांव के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया, “इस गांव को पूरी तरह से पर्यटकों के लिए विकसित किया गया है। गांव से कोई शहर में कमाने नहीं जाता। वहां के लोग गांव में जितना कमाते हैं, उसी में खुश रहते हैं।”
तरुण कहते हैं, “लॉकडाउन के बाद जब हम ऐसे छोटे-छोटे गावों में गए, तो वहां के लोग हमें देख कर काफी उत्साहित हुए। वे बड़े रोचक तरीके से हमें अपनी संस्कृति और कला के बारे में बताते थे।” अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने कई अलग-अलग व्यंजनों का लुत्फ़ भी उठाया। वह कहते हैं, “भारत के हर कोने में कुछ ऐसा खास है, जो आपको खुश कर देता है।”
तरुण बताते हैं, तमिलनाडु के विशेष व्यंजन, सापड़ का स्वाद आज भी उनके परिवार को याद है। उनके बच्चों ने गांव में देखा कि खेतों में धान की रोपाई तथा फसल की कटाई कैसे की जाती है। वह कहते हैं कि उनके बच्चे आज चावल की कई किस्मों के बारे में भी जान गए हैं। तरुण कहते हैं, “बच्चे जो भी स्कूल में पढ़ते रहे, उन्हें व्यवहारिक ज्ञान यात्रा के दौरान मिला। बच्चों ने देश के राज्यों, विभिन्न जानवरों, पक्षियों, नदियों और परिवहन के बारे में कई नयी बातें जानी, जिसे वे किताबों में पढ़ते थे।”
तरुण का कहना है कि पर्यटन के ज़रिये, देश के ग्रामीण इलाकों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। जब भी हम यात्रा के लिए कोई योजना बनाते हैं, तो हमारा ध्यान उस राज्य या शहर के प्रख्यात स्थलों पर ही जाता है। जबकि देश में ऐसे कई इलाके हैं, जिनका व्यवसायिक रूप से विकास नहीं हुआ है। और यही इन इलाकों की विशेषता भी है।
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