
रेल और हादसों का नाता बहुत पुराना रहा है। लेकिन कुछ रेल हादसे इतने भीषण हुए कि उनके भेंट चढ़ गई जिंदगियों के भयावह आंकड़ो के चलते वह आज भी भुलाए नहीं भूलते। ऐसा ही एक खौफनाक रेल हादसा 6 जून 1981 यानि आज से ठीक 37 साल पहले हुआ था। जिसे याद करने पर आज भी उससे प्रभावित होने वालों की रूह कांप जाती है। जी हां, वह देश का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा था जिसमें सरकार के अनुसार सैकड़ों लोग तो गैर सरकारी संगठनों के अनुसार हजारों लोग काल के गाल में समा गए थे।
6 जून 1981 का वह काला दिन जब मानसी से सहरसा की ओर जा रहे यात्रियों से खचाखच भरी नौ डिब्बों की ट्रेन पटरी का साथ छोड़ते हुए अपने सात डिब्बों के हजारों यात्रियों को अपने संग लेकर खतरे के निशान से ऊपर बह रही बागमती नदी में जल विलीन हो जाती है। इस घटना के दो कारण बताए जाते हैं। पहले कारण के अनुसार घटना वाले दिन देर शाम जब मानसी से सहरसा ट्रेन जा रही थी। तो इसी दौरान पुल पर एक भैंस आ गया था। उस भैंसे को बचाने के चक्कर ने ड्राइवर ने ब्रेक मारा लेकिन बारिश होने की वजह से पटरियों पर फिसलन के चलते गाड़ी पटरी से उतर गई और उसके सात डिब्बे बागमती नदी में डूब गए।
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जबकि दूसरा आंकलन यह कहता है कि गाड़ी के पुल पर पहुँचने से पहले जोरदार आंधी और बारिश शुरू हो गई थी। बारिश की बूंदे जब खिड़कियों के अंदर आने लगी तो अंदर बैठे यात्रियों ने ट्रेन की खिड़कियों को बंद कर दिया। ट्रेन की खिड़कियों के बंद होने के चलते तूफानी हवा एक ओर से दूसरी ओर नहीं जा पा रही थी। जिसके चलते ट्रेन के एक हिस्से पर हवा का दबाव इतना ज्यादा बढ़ गया कि ट्रेन के 7 डब्बे पटरी से पलटकर उफनती नदी में जा गिरे।
हादसे के लिए जिम्मेदार उपर्युक्त दोनों संभावित कारणों में से दूसरे वाले कारण को बाद में ज्यादा सटीक माना गया।
जिस वक्त यह हादसा हुआ था उस वक्त ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी थी। दरअसल उस समय शादियों का जबरदस्त मौसम चल रहा था। जिसके चलते ट्रेन की स्थिति ऐसी थी कि ट्रेन का कोना-कोना यात्रियों से भरा हुआ था। इतनी ज्यादा भीड़ होने के बावजूद जैसे-तैसे ट्रेन का सुरक्षित सफर जारी रहता है। लेकिन बागमती नदी के पूल से गुजरने से पहले मौसम ने एकाएक अपना रौद्र रूप धारण कर लिया। पहले तेज आंधी चली और फिर उसके बाद जोरदार बारिश का दौर शुरू हुआ। लोग बताते हैं कि उस समय नदी के आसपास हवाएं इतनी तेज थी कि वह किसी छोटे बच्चें को आसानी से हवा में उड़ा ले जाए।
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यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन जब बागमती नदी के पूल से होकर गुजर रही थी तब तेज आंधियों और जोरदार बारिश के डर से सभी यात्री गाड़ी के दरवाजों और खिड़कियों को बंद कर लेते हैं। लेकिन उनका यही कदम उनके लिए आत्मघाती साबित होता है। दरवाजों और खिड़कियों के बंद होने के चलते ट्रेन पर हवा का एकतरफा दबाव बनता है। जिसके चलते ट्रेन के सात डब्बे रौद्र रूप धारण कर चुकी बागमती नदी में समा जाते हैं। ट्रेन के नदी में समाते ही ट्रेन में सफर कर रहे सैकड़ों लोग पलभर में मौत के मुँह में समा जाते हैं। इस हादसे ने किसी से किसी का भाई छीन लिया, किसी का बेटा, किसी का पति, किसी की बहन, किसी की माँ तो किसी का पूरा परिवार ही इस हादसे की भेंट चढ़ गया।
416 डाउन पैसेंजर ट्रेन उस दिन यात्रियों के अशुभ साबित हुआ और वह हादसा भारत के इतिहास के सबसे बड़ी रेल दुर्घटना में शुमार हो गया। इस घटना के बाद तत्कालीन रेलमंत्री केदारनाथ पांडे ने घटनास्थल का दौरा किया। घटना के बाद रेलवे द्वारा बड़े पैमाने पर राहत व बचाव कार्य चलाया तो गया लेकिन यह दुर्घटना इतनी भयानक थी कि इसमें मारे जाने वालों का कभी कोई सही और सटीक आंकड़ा नहीं मिल पाया। क्योंकि सरकारी आंकड़े जहां मौत की संख्या सैकड़ो में बताते रहे तो वहीं मौतों का अनाधिकृत आंकड़ा हजारों का था।
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घटनास्थल से नजदीक रहने वालें कई ग्रामीणों ने बताया कि बागमती रेल हादसे में मरने वालों की संख्या हजारो में थी। ग्रामीणों के अनुसार नदी से शव मिलने का कारवां इतना लंबा था कि बागमती नदी के किनारे कई हफ्तों तक लाशें जलती रही थी। आपको बता दें कि यह हादसा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी रेल दुर्घटना में शामिल है। इससे भयंकर रेल हादसा हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में 2004 में हुआ था। जब सुनामी की तेज लहरों में ओसियन क्वीन एक्सप्रेस विलीन हो गयी थी। उस हादसे में तो सत्रह सौ से अधिक लोगों की जान चली गई थी।
बागमती नदी हादसे में मारे गए लोगों की संख्या का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दुर्घटना के बाद नदी से शव इतनी ज्यादा संख्या में निकले थे कि प्रशासन ने कुछ दिनों के लिए पुल संख्या 51 के आसपास के ग्रामीणों को बागमती के पानी को पीने से बचने की सलाह दी थी। सिर्फ ग्रामीण ही नहीं तो उनके पशुओ को भी बागमती का पानी ना पिलाने की सलाह दी गई थी। घटनास्थल के आसपास रहने वाले ग्रामीणों के अनुसार नदी से इतनी लाशें बरामद की गई कि घटना के बाद लगभग एक महीने तक लगातार चिताएं जलती रही।
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6 जून 1981 को हुई इस भयंकर रेल दुर्घटना में सैकड़ो लोगों की मौत तो हुई ही थी, लेकिन इसके बाद जो हुआ उसने मानवता को भी मौत के घाट उतार दिया। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस हादसे से जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर नदी किनारे पहुंचे। उनके साथ स्थानीय ग्रामीणों ने लूटपाट जैसी घटना को अंजाम दिया। इतना ही नहीं तो हादसे में बचे कुछ यात्रियों ने यहां तक आरोप लगाया कि हादसे में मौत के मुँह से बचकर आई महिलाओं की अस्मिता को तार-तार करने के प्रयास जैसी विभीत्स घटना को भी कुछ स्थानीय लोगो द्वारा अंजाम दिया गया। कही सुनी है कि बाद में जब पुलिस ने बंगलिया, हरदिया और बल्कुंडा गांवों में छापेमारी की तो कई घरों से सूटकेस, गहने व लूट के अन्य सामान मिले थे। इससे यात्रियों द्वारा लगाए गए इल्जामों की सत्यता को बल मिला था। हालाँकि वर्तमान में ज्यादातर स्थानीय ग्रामीण ऐसी बातों को कोरी बकवास बताते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी है जो दबी जुबान में यात्रियों द्वारा लगाए गए आरोपों को कबूलते भी हैं।
- रोशन सस्तिक