लकड़ी से बना 500 साल पुराना राजमहल जो शहर तबाह होने के बावजूद बचा रहा

Tripoto
16th Jun 2023
Photo of लकड़ी से बना 500 साल पुराना राजमहल जो शहर तबाह होने के बावजूद बचा रहा by रोशन सास्तिक

जब वी मेट मूवी देखी है? देखी ही होगी। तो फिर वो गाना भी याद ही होगा- ये इश्क़ हाए... बैठे बिठाए... जन्नत दिखाए... अब अपनी बुद्धि पर बल देकर याद कीजिए कि उस गाने में आपको एक बेहद खूबसूरत महल भी नजर आया होगा। जी हां, तो आज हम उस मनमोहक महल की ही कहानी बताने जा रहे हैं।

तो बात बरसों पुरानी है। यही कोई 550 साल पुरानी। हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थल मनाली शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर नग्गर इलाके में एक राजमहल का निर्माण कराया जाता है। 1460 में राजा सिद्ध सिंह ने शाही परिवार के रहने के लिए जब नग्गर महल का निर्माण कराया तब इसके लिए सिर्फ देवदार की लकड़ियों, पत्थर और मिट्टी का इस्तेमाल किया गया। इसे बनाते वक्त 'काठ-कुनी' कला के तहत ना तो लोहे का उपयोग किया गया और ना ही पूरे महल में लकड़ियों को जोड़ने के लिए एक कील तक ठोंकी गई। इसके बावजूद यह नग्गर महल आज भी पूरी शानोशौकत के साथ खड़ा है।

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ऐसा नहीं है कि इस नग्गर महल के लिए चीजे हमेशा से सही ही रही हो। साल 1905 में एक भूकंप आता है और हिमाचल प्रदेश से लेकर लाहौर तक तबाही का मंजर पसर जाता है। कांगड़ घाटी में आए इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर करीब 7.8 मापी जाती है। इस भूकंप में करीब 20 हजार लोगों के साथ साथ 50 हजार जानवर भी अपनी जान गवां बैठते हैं। इतना ही नहीं तो भूकंप प्रभावित क्षेत्र के ज्यादातर ऐतिहासिक इमारत मलबे के ढेर में तब्दील हो जाते हैं। लेकिन आपको यह जानकारी हैरानी होगी कि इतने भारी भयंकर भूकंप को झेलने के बावजूद नग्गर राजमहल अपनी शॉक-ऑब्ज़र्वर वास्तुकला के बलबूते अपनी जगह पर जस का तस खड़ा रहने में कामयाब रहता है।

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इस राजमहल से जुड़ी दिलचस्प कहानियों का सिलसिला बस यहीं खत्म नहीं होता, बल्कि ये तो शुरुआत मात्र है। जी हां, आप यह जानकर हैरत में पड़ जाएंगे कि नग्गर राजमहल जिसे शाही परिवार ने अपने रहने के लिए बनाया था, उसे राजा ज्ञान सिंह ने साल 1846 में सिर्फ एक बंदूक के बदले में बेच दिया। दरअसल, भारत को गुलाम बनाने के क्रम में अंग्रेजों ने साल कांगड़ा और कुल्लू घाटी पर स्थापित सिखों को हटाकर अपना राज कायम कर दिया। इसके घटना के बाद राजा ज्ञान सिंह ने नग्गर महल एक अंग्रेज अफसर को सिर्फ एक बंदूक के बदले बेच दिया। उस अंग्रेज अफसर में काठ-कुनी कला से बने नग्गर महल में काफी बदलाव किए और इसमें यूरोपीय वास्तुकला का टच भी जोड़ दिया।

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जैसा कि शुरू में बताया गया कि नग्गर राजमहल का निर्माण साल 1460 में राजा सिद्ध सिंह ने पहाड़ी वास्तुकला काठ-कुनी के तहत कराया। लेकिन 1846 में जब इसे एक अंग्रेज के हवाले सौंप दिया गया, तब से ही इसके वास्तुकला में यूरोपीय फ्लेवर जोड़ने की शुरुआत हो गई। ब्यास घाटी पर करीब 1800 मीटर ऊंचाई पर स्थित नग्गर महल में एक भव्य केंद्रीय प्रांगण है और हर जगह उत्तम लकड़ी की नक्काशी है। लेकिन समय के साथ जब इस महल पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ तो अतिरिक्त सीढ़ियां, फायरप्लेस और चिमनी को जोड़ा गया। लेकिन ऐसे कितने ही बदलावों के बावजूद नग्गर महल अपने मूल को जिंदा रखने में आज भी कामयाब है। यही कारण है कि आज भी यहां आने वाले पर्यटकों की नजरें महल की धनुषाकार बालकनियों से सफेद बर्फ की चादर से ढंकी पहाड़ की चोटियों और ब्यास घाटी का नजारा देखते थकती नहीं।

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कहानी आगे बढ़ती है और अंग्रेज अफसर नग्गर महल को ब्रिटिश हुकूमत के हवाले कर देता है। इसके बाद साल 1947 तक ब्रिटिश हुकूमत ने नग्गर महल को कोर्ट रूम के तौर पर इस्तेमाल किया। फिर जब भारत आजाद हुआ तब नग्गर महल को भारत सरकार अपने अधीन कर लेती हैं। समय बीतने के साथ इलाके में पयर्टन को बढ़ावा और राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से साल 1978 के बाद यहां आने वाले पर्यटकों को नग्गर महल किराए पर दिया जाने लगा। अभी कुछ साल पहले ही राज्य के पर्यावरण विभाग ने नग्गर महल को बतौर हेरिटेज होटल के रूप में विकसित कर दिया है।

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मनाली शहर शहर से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित होने और सड़क मार्ग के कनेक्टेड होने के चलते पर्यटक नग्गर महल तक बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं। आप यहां तक पहुंचने के लिए नियमित अंतराल पर चलने वाली प्राइवेट, HRTC की बस या फिर अपनी सुविधानुसार टैक्सी के जरिए आ सकते हैं। महज 15 रुपए का टिकट खरीद सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक इस राजमहल का चप्पा-चप्पा गघुमा जा सकता हैं। वैसे जब आप यहां घूमने आए तो कम से कम एक पूरे दिन का समय निकालकर आए। क्योंकि नग्गर महल देखने के अलावा आप यहां ट्रेकिंग और फिशिंग भी कर सकते हैं। इतना ही नहीं तो आपको यहां एक सुप्रसिद्ध रशियन कलाकार निकोलस रोरिक का आर्ट म्यूजियम भी देखने को मिल जाएगा। कला के जानकार और कद्रदान लोगों के लिए यह सोने पर सुहागा वाली बात साबित होती है। वैसे यहां आने के लिए आप जब भी प्लान बनाए तो कोशिश कीजिएगा कि गर्मियों के दिनों में ही यहां आना हो। क्योंकि तब यहां का मौसम बहुत ज्यादा सुहावना होता है। ठंड के दिनों में तो यहां घूमना छोड़िए आदमी का सर्वाइवल तक मुश्किल हो जाता है।

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बात बॉलीवुड से भले शुरू हुई हो लेकिन हम इसका अंत भगवान का नाम लेकर ही करेंगे। जी हां, कहने का भाव यह है कि आप जब नग्गर महल देखने आए तब इसके आसपास स्थित कई ऐसे धार्मिक स्थल भी है जहां जाकर आप अपने और अपने परिवार के लिए ईश्वर का ढेर सारा प्यार बटोर सकते हैं। आप इस क्रम में जगतिपट्ट मंदिर, चामुंडा भगति मंदिर, त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, गौरी शंकर मंदिर के दर्शन कर पहाड़ों में सैर करते वक्त अपने अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।

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