राम नवमी के बाद पूरे देश में दशहरे का त्योहार मनाया जाएगा. आमतौर पर दशहरे को रावण दहन के रूप में ही जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं भारत में ऐसी कई जगह हैं ऐसी ही हम 5 जगहों के बारे बताने जा रहे हैं जहां रावण को जलाने की बजाए उसकी पूजा की जाती है. यहां रावण की पूजा क्यों होती है इसकी वजह भी आपको बताते हैं.
1राजस्थान के जोधपुर में भी रावण का मंदिर है. यहां के कुछ समाज विशेष के लोग रावण का पूजन करते हैं और खुद को रावण का वंशज मानते हैं. यही कारण है कि यहां लोग दशहरे के अवसर पर रावण का दहन करने की बजाए रावण की पूजा करते हैं
2 दिल्ली-एनसीआर के अंतर्गत आनेवाले ग्रेटर नोयडा क्षेत्र में बिसरख नाम का गांव है। इस गांव को रावण का जन्म स्थान माना जाता है। इस गांव में रावण का एक ऐसा मंदिर भी है, जिसमें 42 फिट ऊंचे शिवलिंग और 5.5 फिट ऊंचे रावण के स्टेच्यू के दर्शन किए जा सकते हैं। यहां रावण को महाब्रह्म का स्थान प्राप्त है और दशहरे पर “महाब्रह्म” के लिए शोक मनाने की परंपरा है। बिसरख गांव में रामलीला या रावण दहन नहीं किया जाता। यहां के लोग दशहरा नहीं मनाते, जिस दिन राम द्वारा रावण को मार दिया गया था। जानकारी के अनुसार, वर्तमान समय में बिसरख गांव में करीब 882 घर हैं और यह उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में स्थित है। गांव का नाम विश्रवा से लिया गया है। विश्रवा रावण के पिता थे। इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने एक शिवलिंग की स्थापना के लिए मंदिर बनाया था। यह शिवलिंग उन्हें जंगल में प्राप्त हुआ था।
3 कहा जाता है कि मंदसौर का असली नाम दशपुर था और यह रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था. ऐसे में मंदसौर रावण का ससुराल हुआ. इसलिए यहां दामाद के सम्मान की परंपरा के कारण रावण के पुतले का दहन करने की बजाय उसकी पूजा की जाती है.
4 कांगड़ा जिले के इस कस्बे में रावण की पूजा की जाती है. मान्यता है कि रावण ने यहां पर भगवान शिव की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे मोक्ष का वरदान दिया था. यहां के लोगों की ये भी मान्यता है कि अगर उन्होंने रावण का दहन किया तो उनकी मौत हो सकती है. इस भय के कारण भी लोग रावण के दहन नहीं करते हैं बल्कि पूजा करते हैं. बैजनाथ धाम यही स्थित है!
5 अमरावती के गढ़चिरौली नामक स्थान पर आदिवासी समुदाय द्वारा रावण का पूजन होता है. कहा जाता है कि यह समुदाय रावण और उसके पुत्र को अपना देवता मानते हैं.