भारत के पंजाब राज का श्री मुक्तसर साहिब जिला बहुतों एत्थासिक जिला है, जिसे मुक्तसर (Muktsar) भी बुलाया जाता है। यह ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान है।
श्री मुक्तसर साहिब की जगह पर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने मुगलों के विरूद्ध 1705 ई. में आखिरी लड़ाई लडी थी। इस लड़ाई के दौरान गुरू जी के चालीस शिष्य शहीद हो गए थे। गुरू जी के इन चालीस शिष्यों को चालीस मुक्तों के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम मुक्तसर रखा गया।
मुक्तसर साहिब का पहला नाम खिदराने की ढाब था। ढाब का अर्थ होता है पानी। आनंदपुर साहिब का किला छोड़ने के पश्चात सिक्खों के दशवे गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी चमकौर साहिब से मच्छीवारे होते हुए खिदराने की ढाब पहुंचे थे, यहां पर पानी का श्रोत पास होने के कारण गुरु गोबिंद सिंह जी ने यही पर तम्बू लगा लिए थे।
गुरुद्वारा श्री तंबू साहिब :- गुरुद्वारा श्री तंबू साहिब इसी परिसर में स्थित है। सिंह यहां ठहरे हुए थे। उन्होंने अपने कपड़े झाडिय़ों के ऊपर इस प्रकार बिछाए थे कि वे तंबू की तरह लग रहे हों। जो उन्हें बड़ी सेना का आंकड़ा देगा।
इसी जगह पर आज गुरुद्वारा तम्बू साहिब शशोभित है। यह गुरुद्वारा साहिब थोड़ा ऊंचा बना हुआ है। थोड़ी सी सीढियों को चढ़ कर जाना पढ़ता है। आगे आप को निशान साहिब दिखे गा। फिर आप को 2 दरबार साहिब दिखेंगे एक तम्बू साहिब का, और दूसरा माई भागो का। माई भागो जिनका पूरा नाम भाग कौर था माई भागो ने खिदराने की जंग में बेमिसाल बहादुरी दिखाई थी।
गुरूद्वारा श्री टूटी गण्डी साहिब।
यह गुरुद्वारा साहिब मुक्तसर शहर में स्थित है। आनंदपुर के किले में 40 सिखों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का साथ यह कहकर छोड़ दिया था कि न आप हमारे गुरु हैं और न हम आपके सिक्ख हैं। यह 40 सिक्ख गुरु जी को बेधावा देकर वापिस अपने घर आ गए,वहाँ पत्नियों ने उन्हें ताने मारे और उन्हें गुरु साहिब के पास वापस जाने के लिए मजबूर किया।
माता भाग कौर जी (माई भागो जी) से प्रेरणा लेकर यह 40 सिख गुरु साहिब की तलाश में खिदराने पहुंचे। तब तक मुस्लिम सेना भी यहां पहुंच गई। सिखों और मुगल सेना के बीच लड़ाई हुई। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने पहाड़ी की चोटी (गुरुद्वारा श्री टिब्बी साहिब) पर बैठकर दुश्मन पर तीर चला कर लड़ाई का नेतृत्व किया।
इन 40 सिखों में से दो को छोड़कर सभी सिखों शहीद हो गए। गुरु साहिब जी ने भाई महा सिंह का सिर अपनी गोद में लिया और उनसे उनकी अंतिम इच्छा पूछी, तब भाई साहब ने गुरु साहिब से बेधावा पत्र को फाड़ने के लिए कहा। गुरु साहिब ने तुरंत इसे फाड़ दिया। भाई महा सिंह जी ने गुरु साहिब की गोद में अंतिम सांस ली। माई भाग कौर जी भी गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
गुरु साहिब के आशीर्वाद से बाद में ठीक हो गए।माता भाग कौर जी ने अंत तक गुरु साहिब की सेवा की।
इन 40सिखों को पूरी दुनिया में दैनिक अरदास में याद किया जाता है। गुरु साहिब ने उनके और उनके सिखों के बीच गाँठ बाँध दी, इसलिए गुरुद्वारा साहिब का नाम टूटी गण्डी साहिब रखा गया।
सरोवर और लंगर हाल
गुरद्वारों के बीच में गुरुद्वारा साहिब का पवित्र सरोवर है। मकर संक्रांति के दिन जहां बहुत सारे श्रद्धालु एशनान् करने आते है। काफी बढ़ा मेला लगता है।
कहते है मकर सक्रांति के समय मुक्तसर साहिब के सरोवर में एशनान करने से सभी दुखों से छुटकारा मिल जाता है।
अटूट लंगर आयोजित होते है।
लंगर हाल में आप कभी भी लंगर छक सकते हो।
म्यूजियम
मुक्तसर साहिब में बहुत बड़ा म्यूज़ियम है। यहां पर सिक्ख इतिहास से संबंधित बहुत सारी जानकारी मिल जाती है। बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
वन साहिब
वन एक वृश का नाम है जो काफी घना होता है। मुक्तसर साहिब में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के समय का वन मूजुद है । इस वन के साथ गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना घोड़ा बांधा था ।
गुरुद्वारा साहिब का बाज़ार
मुक्तसर साहिब गुरुद्वारा साहिब में प्रवेश करने से पहले आप को एक बाज़ार दिखेगा। यहां पर आप हल्की खरीददारी कर सकते हो। बच्चों के लिए खिलौने ले सकते हो । खाने के लिए टाफी मिल जाती है।
कैसे जाएं
मुक्तसर साहिब आप रेल सड़क किसी भी मार्ग से आसानी से जा सकते हो।
मुक्तसर साहिब मोगा गंगानगर हाईवे पर है। मोगा से इसकी दूरी लगभग 80 किलोमीटर है। बठिंडा से 54 किलोमीटर है।
पंजाब और भारत के बहुत सारे शहरों से मुक्तसर साहिब के लिए रेल गाड़ी है।
मुक्तसर साहिब से निकट एयरपोर्ट अमृसर का है जो 180 किलोमीटर की दूरी पर है।
चंडीगढ़ एयरपोर्ट किलोमीटर की दूरी पर है।