तेज़ी से भागती मुंबई में घर ढूंढना ज़िंदगी के किसी इम्तिहान से कम नहीं है। अगर आपने कभी ये कोशिश की है, तो ज़रूर मेरी बात पर हामी भर के मुस्कुरा रहे होंगे। खैर, मैंने भी अपने दोस्तों के साथ, 2 महीने तक रोज़, अपनी ज़िंदगी के कई घंटे एक घर की तलाश में बर्बाद किए थे। बर्बाद इसलिए कि मेहनत तो पानी में गई ही, घर भी नहीं मिला और पैसे भी डूब गए। और इससे बड़ी टेंशन थी कि हमें 2 हफ्ते बाद अपना घर खाली करना था।
इस सपनों के शहर ने हमारे सपने तो चूर कर दिए थे और ऐसे कि हम में कोई न कोई हर दिन 2-4 आंसू तो बहा दी देता था। लेकिन इस शहर का ‘द शो मस्ट गो ऑन ’ वाला जस्बा अब हम में भी समा गया था। बस यूँ ही एक रात मरीन ड्राइव पर लहरों की आवाज़ और ठंडी हवा के बीच जब हम सैर करने निकले, तो ख्याल दिमाग में आया, ‘लोनावला चलें क्या?’
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ठिकाना नहीं, लोनावला तो है!
मेरे इस ख्याल को जब मैंने अपने चारों दोस्तों में बांटा, तो पहली बार में तो सब ने मुझे गुस्से से देखा, फिर तानेबाज़ी शुरू हूई, “यहाँ रहने को घर नहीं है, तुझे लोनावला घूमना है? ” लेकिन मैं भी दलीलें देनें में किसी वकील से कम नहीं। “मुंबई में इतना वक्त बिताने के बाद भी अगर लोनावला नहीं देखा, तो शर्मनाक है! क्या पता लोनावला से हम गुडलक ही साथ ले आएँ!” ये, वो और ना जाने क्या-क्या बोलने के बाद जब सब मान गए तो हमारी दौड़ लगी एक गाड़ी बुक करने की। आखिर लोनावला जाने का असली मज़ा तो रोड ट्रिप में ही है।
सफर की शुरुआत, गानों के साथ
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शुक्रवार रात को ही खाने पीने का छोटा सामान, ढेर सारे गानों से भरी पेनड्राइव को लेकर हम तैयार थे अपनी रोड ट्रिप के लिए। सुबह घड़ी में 6 बजते ही कंधों पर बैग टांगा और बैठ गए गाड़ी में। मैंने तो पहले ही फ्रंट सीट पर धावा बोल दिया, आखिर अपने पसंदीदा गाने जो बजाने थे। मुंबई से वाशी होते हुए हमारी गाड़ी मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर चल दी। क्योंकि जुलाई का महीना था, तो मॉनसून की हल्की शुरूआत हो चुकी थी। चारों तरफ हरियाली नज़र आ रही थी, और ठंडी हवा, मौसम के साथ हमारी परेशानियों को भी शांत कर रही थी। गाड़ी में चलते ‘सुहाना सफर और ये मौसम हसीं’ गाने ने तो समां ही बांध दिया। हम सब भी अपनी बेसुरी आवाज़ में पूरे जोर- शोर के साथ गा रहे थे। साथ में भागते हरे पेड़ और खाली सड़क पर दौड़ती हमारी कार! वाह! क्या सफर है।
लोनावला नहर और भूशी डैम
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करीब 1 घंटे बाद हम पहुँचे लोनावला झील के पास। शांत पानी, एक छोटा सा लकड़ी का पुल और चारों तरफ फैले हरे पहाड़ी मैदान। ये सीन किसी वॉलपेपर से कम नहीं लग रहा था। क्योंकि हमे आगे ज्यादा वक्त बिताना था, तो हम यहाँ कुछ ही देर रुके। फिर कुछ दूर पर जाकर हमारी टोली एक झरने पर जाकर रुकी। ऊपर पहाड़ों से गिरता ठंडा पानी और नीचे नाचते, गाते और नहाते लोग। यहाँ पर छाई मस्ती देखकर हमें पता चल गया था कि क्यों लोनावला मुंबई के लोगों का फेवरेट पिकनिक और रोड ट्रिप स्पॉट क्यों हैं। मस्ती के मूड में हमने भी झरने के नीचे थोड़ी उछल-कूद की और फिर गरमा-गरम मसालेदार भुट्टा लेकर चल दिए! कहाँ? पहाड़ पर चड़ने।
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इस झरने के पास ही कुछ छोटी पहाड़ियाँ हैं, जहाँ पर 10 मिनट की आसान चढ़ाई कर के आप आस-पास का पूरा नज़ारा ले सकते हैं, लोनावला लेक, भूशी डैम और हरी चादर ओढ़े पठार। क्योंकि मॉनसून का वक्त था, और हमारे यहाँ पहुँचने से पहले थोड़ी बारिश भी हुई थी, तो नज़ारा देखने के लिए बादलों से आँख-मिचोली भी करनी पड़ी, लेकिन एक बार जो हम वहाँ बैठे, तो बस ये खूबसूरती देखकर बैठे ही रह गए। मन तो कर रहा था, मुंबई में एक छोटा सा घर ढूंढने की परेशानी छोड़, इसी टीले पर अपना घर बना लेते हैं। खैर ये तो नहीं हुआ, लेकिन यहाँ सुकून के कुछ पल बिताने के बाद, हमारी अगली मंज़िल यानी टाईगर पॉइंट पर जाने का वक्त ज़रूर हो गया था।
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टाईगर पॉइंट, लायन पायंट
लोनावला पहुँचे या नहीं, इसके लिए कोई बोर्ड ढूंढने की ज़रूरत नहीं है, जैसे ही आपको चारों तरफ मगनलाल चिक्की के बैनर दिखें, समझिए आपकी मंज़िल आ गई। मगनलाल चिक्की अपने चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी, गुड़, मैंगो और कई सारी फ्लेवर वाली चिक्की के लिए पूरे महाराष्ट्र में मशहूर है। हमने भी अपने पसंदीदा फ्लेवर उठाए और ज़ुबान पर लोनावला का स्वाद लेते हुए पहुँच गए टाइगर पाइंट।
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चारों तरफ हरी घास से घिरे पठार, हल्के सफेद बादल, तेल में तड़-तड़ाते पकौड़े और चाय की खूशबू। कुछ ऐसा नज़ारा था टाइगर पॉइंट का। हम कुछ देर तो बस एक-दूसरे के कंधों पर हाथ डाले एक-टक इस नज़ारे को देखते रहे। कुछ तो लोनावला का जादू था और कुछ हमारी दोस्ती का! हम खुशी से मदहोश हो ही रहे थे कि झमाझम बारिश शुरू हो गई। भागते हए हम एक चाय की टपरी पर पहँचे। ये हमारी रोड ट्रिप का बेस्ट पार्ट था।
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बारिश हो और पकौड़े न हों, ऐसा तो रिवाज़ ही नहीं है जी। यहाँ के कॉर्न-चीज़ पकौड़े और चाय का कॉम्बिनेशन, इस ट्रिप का दूसरा सबसे बेस्ट पार्ट था। जैसे ही हमने चाय की चुस्की ली, हमारे पीछे हरे पठार एक गहरी सफेद कोहरे की चादर से ढक गए। बारिश रुकी तो हमारा फोटो सेशन भी शुरू हो गया। करीब 1-1.30 घंटा यहाँ बिताने के बाद हम पास ही बने लायन पॉइंट पर पहुँचे। यहाँ का नज़ारा मुझे टाइगर पाइंट से ज्यादा पसंद आया। हालांकि मेरे दोस्त मेरी इस बात से सहमत नहीं थे। जालियों के बीच से आप दूर हरे पठारों से निकलते झरने को देख सकते हैं और नीचे जा रही घुमाव दार रोड को भी। ये देख कर दिल चाहता है का गाना मेरे दिमाग में तो ज़रूर चल रहा था।
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कुछ देर यहाँ टहलकर, फिर चाय के साथ गप्पे और ठहाके बाँटते हुए हम लोग वापिस मुंबई जाने के लिए शुरू हो गए। थोड़े उदास थे कि फिर से वही घर ढूंढने की कहानी शुरू होने वाली थी, लेकिन इस बार निराश नहीं थे। और तो और हम पूरे रास्ते अपनी हालत का मज़ाक उड़ाते हुए लौट रहे थे। लोनावला हमारे लिए गुड लक लेकर आया ये तो पता नहीं, लेकिन इस सफर ने हमारी दोस्ती में एक नई कहानी ज़रूर जोड़ दी। और हाँ! हमें एक नया घर भी मिल गया!