
राजस्थान के राजपूत राजे कला प्रेमी होने के साथ साथ युद्ध कला में भी निपुण थे। भवन उसारी में अवल दर्जे की छाप छोड़ी है भारत के इतिहास में ।
गुलाबी शहर जयपुर एक लोक प्रिय टूरिस्ट जगह है। बहुत सारे लोग इसे देखने आते है, और सभी लोग हवा महल देखे बिना नहीं जाते। क्यों की हवा महल है ही इतना सुंदर और कलात्मक जिसे कोई भी देखे भी नही रह सकता। शहर के बीच होने के कारण जाना भी आसान है। साथ में हवा महल के आस पास मार्किट है, टूरिस्ट शॉपिंग भी कर लेते है, घूम भी लेते है, इतिहास को भी जान लेते है, सभी कार्य हो जाते है।
चलिए आज का हमारा ब्लॉग हवा महल के नाम।
इस ब्लॉग में हवा महल की बहुत सारी विशेष बातें जानेगे, इस का इतिहास क्या है? वो सब आप को यह ब्लॉग पड़ने के बाद पता चल जाएगा।


इतिहास
स्वाई जै सिंह ने 1727 ई में जयपुर शहर की स्थापना की थी। जंतर मंतर सवाई जै सिंह द्वारा ही बनाया गया था।
1799 ई में सवाई प्रताप सिंह ने हवा महल की स्थापना की थी।
आप के मन में आ रहा होगा यह सवाई क्या है?
सवाई मुगलों के समय राजस्थान के राजों को मुगल राजों द्वारा उपाधि दी गई थी, जिसके बाद सभी राजे अपने नाम से पहले सवाई लगाने लगे।
सवाई प्रताप सिंह कृष्ण जी के भगत और एक उच्च कोटि के कवि थे। सवाई प्रताप सिंह के दरबार में 27 विद्वानों का ग्रुप भी था। सवाई प्रताप सिंह ने बहुत सारी कविताए लिखी, ग्रत्थ भी लिखा था। संगीत का शौक भी था।
सरचना
हवा महल की सरचना कृष्ण जी के मुकट जैसी है। सवाई प्रताप सिंह कृष्ण जी के बहुत बड़े भगत थे। इस लिए हवा महल अपर से पतला है नीचे जाते जाते हवा महिला चौड़ा होता जाता है। इस का नक्शा कारीगर लाल चंद ने बनाया था। यह महल झुनझूनू के खेत्री महल जैसा है।
इस महल की सरचना कृष्ण जी के मुकट जैसी है। उपर से पतला है , नीचे से चौड़ा। सवाई प्रताप सिंह कृष्ण जी के बहुत बड़े भगत थे, इस लिए हवा महल को श्री कृष्ण जी के मुकट जैसा बनाया गया। इस में संगमरमर और रोहरीरु की लकड़ी का इस्तमाल हुआ है।




हवा महल क्यों बनाया गया?
राजस्थान में परदा प्रथा का काफी चलन था। औरतों को घूघट में रहना पड़ता था, चाहे वो रानी हो जा दासी सभी औरतें घर में ही रहती थी। ऐसे में रानियों के मनोरंजन के लिए हवा महल बनाया गया था। शहर में बहुत सारे समागम हुआ करते थे, ऐसे में हवा महल की खिड़कियों से रानियों वह समागम देख सकती थी। इस महल में आकाश पाताल जाली लगी है जिस से बाहर नीचे का दृश्य साफ दिखाई देता है, मगर बाहर नीचे से कोई नहीं देख सकता।
लगभग 400 रानियों और दासियों के लिए यह महल बनाया गया था जिस में 365 खिड़कीयां है 953 के लगभग झोरोखे है।
दूसरा कारण राजस्थान की गर्मी है। गर्मी की निजात पाने के लिए राजे हवा महल में आते है। अरावली पर्वत श्रेणी के बीच में है इस लिए खिड़कियों से बहुत हवा आती है।





अब जानते है हवा महल की कुछ विशेष बातों के बारे में
1. इस महल को सवाई प्रताप सिंह ने 1799 ई में बनाया था।
2. सवाई प्रताप सिंह कृष्ण जी के भगत थे इस लिए यह महल कृष्ण जी के मुकट जैसा है।
3. इस महल की 5 मंजिले है।
4. इस महल में 953 झरोखे है और 365 खिड़कियां है।
5. यह महल 400 रानियों और दासियों के लिए बनाया गया था।
6. इस महल में रानियों के लिए रैंप बनाया गया था, क्यों कि उनकी वेशभूषा बहुत भारी होती थी, चलने में कठिनाई होने की वजह से उन्हें व्हील चेयर पर बैठा कर दासी ले कर जाती थी।
7. हवा महल में आकाश पताली जाली लगी है जिस से बाहर देखा जा सकता है मगर बाहर से कोई भीतर नहीं देख सकता।
8. हवा महल में राजों पर फूल फेंकने के लिए ऊंची जगह भी बनी है।
9.हवा महल में सवाई प्रताप सिंह की वेशभूषा भी है, साथ में पुरातीन मूर्तियां भी है जिस में सरस्वती देवी की , संगीत के साजों को दर्शाती मूर्ति और भी बहुत सारी प्राचीन मूर्ति देखने को मिल जाएगी। यह मूर्तियां बिहार मंदिर के भीतर देखी जा सकती है।
10. इस में सबसे पहले चंदर पोल देखने को मिलेगा जहां चांद की रोशनी सबसे ज्यादा आती है। फिर होली महल आता है जहां पर होली खेली जाती थी।
11. हवा महल के प्रताप मंदिर के दरवाजों पर कुदरती रंगों से चित्रकारी की गई है, रोहेरुरु की लकड़ी जो बहुत हल्की होती है इसका इस्तेमाल किया गया है।
12. हवा महल के लिए जो हरे शीशे इस्तिमाल हुए है वो बल्जियम से लाए गए थे।
13. हवा महल की सबसे उपर वाली मंजिल से शहर का अद्भुत नज़ारा दिखता है। अरावली पर्वत के पहाड़ दिखते है।
14. रात को पूरा हवा महल जगमगा उठता है।






























कैसे जाएं
हवा महल जाने के लिए आप को जयपुर जाना पड़े गा। जयपुर देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है सड़क मार्ग , हवाई मार्ग और रेल मार्ग से आप जा सकते हो।
जयपुर दिल्ली से 308 किलोमीटर की दूरी पर है। जोधपुर से 3340किलोमीटर की दूरी पर है।
*एंट्री फीस:हवा महल देखने के लिए भारतीयों के लिए एंट्री फीस 50 रुपए है।
धन्यवाद।


