मध्य प्रदेश अपनी बेपनाह सुंदरता और प्राचीन इतिहास के लिए जाना जाता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी देखने के लिए काफ़ी कुछ है।
भोपाल को झीलों का शहर कहा जाता है। बड़ी संख्या में लोग भोपाल में घूमने के लिए आते हैं। अगर आप भोपाल को अच्छे से घूमना चाहते हैं तो आपके पास 3 दिन का समय तो होना ही चाहिए।
भोपाल में कैसे घूमें, कहां जाएँ और क्या खाएँ? अगर आपको इन चीजों में दिक़्क़त हो रही है तो हम आपकी इस समस्या का समाधान कर देते हैं। भोपाल को अच्छे से कैसे एक्सप्लोर किया जा सकता है? इसकी पूरी जानकारी हम आपको दे देते हैं।
भोपाल का इतिहास
भोपाल की स्थापना 11वीं शताब्दी में परमार राजा भोज ने की थी। उस समय भोपाल राज्य की राजधानी धार थी। पहले भोपाल का भोजपाल हुआ करता था।
परमार राजाओं के अस्त के बाद भोपाल को कई बार लूटा गया। बाद में 1720 में अफ़ग़ान योद्धा दोस्त मोहम्मद खान ने भोपाल की स्थापना की। 1818 में भोपाल एक रियासत में तब्दील हो गया।
1819 से लेकर 1926 तक भोपाल की बागडोर चार बेगमों ने सँभाली।
भोपाल को बेगमों का शहर भी कहा जाता है। इसके बाद 1949 तक भोपाल रियासत की बागडोर हमीदुल्लाह खान ने सँभाली।
आज़ादी के बाद भोपाल रियासत का विलय भारत में हो गया। वर्तमान में भोपाल मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी है।
दिन 1
भोपाल पहुंचे
सबसे पहले आपको भोपाल पहुँचना होगा। इसके लिए आपके पास ट्रेन, फ़्लाइट और बस जैसे साधन हैं। भोपाल के आसपास के शहरों से भोपाल जाने के लिए आपको बस मिल जाएगी।
आप ख़ुद की गाड़ी से भी भोपाल आ सकते हैं। आपको देश के हर हिस्से से भोपाल के लिए ट्रेन आराम से मिल जाएगी।
वहीं अगर आप फ़्लाइट से आने का प्लान बना रहे हैं तो दिल्ली से भोपाल के लिए कई फ्लाइट्स चलती हैं।
कहां ठहरें?
भोपाल पहुँचने के बाद आपको सबसे पहले रूकने का ठिकाना खोजना होगा। भोपाल में आपको कई सारे होटल मिल जाएँगे।
यहाँ पर आपको लग्ज़री और बजट वाले होटल आराम से मिल जाएँगे। आपके अपने बजट के हिसाब से होटल ले सकते हैं।
होटल में कुछ देर आराम कीजिए और फिर तैयार होकर भोपाल शहर को एक्सप्लोर करने के लिए निकल पड़िए।
बड़ा तालाब
भोपाल को झीलों का शहर कहा जाता है तो बड़ा तालाब से घूमने की शुरूआत कर डालिए। इसे स्थानीय रूप से भोजताल और ऊपरी झील के नाम से भी जाना जाता है।
ये झील भारत की सबसे पुरानी मानव निर्मित झील है। कहा जाता है कि इस झील का निर्माण राजा भोज ने करवाया था।
इस झील को देखने का समय सुबह 6 बजे से रात 7 बजे तक का है। बड़ा तालाब के पास वन विहार राष्ट्रीय उद्यान है जिसको आप देख सकते हैं। यहाँ पर आपको कई जानवर देखने को मिल जाएँगे।
शौकत महल
भोपाल में शौक़त महल काफ़ी ऐतिहासिक और शानदार जगह है। शौक़त महल अपनी इस्लामी वास्तुकला, एशियाई और पश्चिमी स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है।
शौक़त महल को सिकंदर बेगम के शासनकाल में बनवाया गया था। इस इमारत की जटिल नक्काशी इस जगह में चार चांद लगा देते हैं।
महल के निकट ही भव्य सदर मंजिल भी बनी हुई है। कहा जाता है कि भोपाल के शासक इस मंजिल का इस्तेमाल पब्लिक हॉल के रूप में करते थे।
मोती मस्जिद
भोपाल में कई सारी मस्जिद हैं उन्हीं में से एक है, मोती मस्जिद। मोती मस्जिद का निर्माण 1862 में सिकंदर जहान बेगम ने करवाया था।
मोती मस्जिद का आकार छोड़ दिया जाए तो ये मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद के समान ही है। शुद्ध सफ़ेद संगमरमर से बनी इस मस्जिद को पर्ल मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है।
मोती मस्जिद में एक भव्य आँगन है। जिसकी खिड़कियों से आप सुंदर-सुंदर नज़ारे देख सकते हैं। भोपाल जाएँ तो मोती मस्जिद को देखना ना भूलें।
क्या खाएँ?
भोपाल अपनी प्रसिद्ध जगहों के लिए तो जाना ही जाता है, इसके अलावा भोपाल में खाने के लिए भी काफ़ी कुछ है। भोपाल में बढ़िया वेज और नॉन वेज दोनों मिलता है। आप नॉन वेज में कबाब खा सकते हैं। वहीं अगर आप शाकाहारी खाना चाहते हैं तो सूप, सेंडविच और वेज बिरयाली का स्वाद ले सकते हैं।
दिन 2:
साँची
अगले दिन सुबह-सुबह चाय, जलेबी और पोहा का नाश्ता करने के बाद साँची के लिए निकल पड़िए। भोपाल से साँची लगभग 50 किमी. की दूरी पर है।
भोपाल से साँची के लिए कुछ ट्रेनें भी चलती हैं। इसके अलावा आप वाया रोड भी साँची जा सकते हैं। साँची की सबसे फ़ेमस जगह है, साँची स्तूप।
माना जाता है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में उत्पन्न हुई ये इमारत मौर्य राजवंश के महान सम्राट अशोक के शासनकाल में बनाई गई थी और यह देश के सबसे उल्लेखनीय बौद्ध स्मारकों में से एक है। राजा अशोक ने बौद्ध धर्म की पहुंच को फैलाने के लिए पूरे देश में भगवान बुद्ध के नश्वर अवशेषों को पुनर्वितरित करने का कार्य किया।
स्तूप के विशाल गुंबद में एक केंद्रीय तिजोरी है जहां भगवान बुद्ध के अवशेष रखे गए हैं। सांची स्तूप रोजाना सुबह 8:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक खुलता है
उदयगिरी गुफाएं
साँची से कुछ ही दूरी पर एक और देखने लायक़ जगह हैं।
उदयगिरी गुफाएँ साँची से लगभग 13 किमी. और विदिशा से सिर्फ़ 4 किमी. की दूरी पर हैं। उदयगिरि की गुफाएँ 20 गुफाओं से मिलकर बनी एक प्राचीन संरचना है जो हिन्दू और जैन धर्म से संबंधित है। इन 20 गुफाओं में भारत के कुछ प्राचीनतम हिन्दू मन्दिर और चित्र मौजूद हैं। उदयगिरि गुफाएँ में मिले शिलालेख और शोधकर्ताओं के अनुसार उदयगिरि की गुफाएँ का निर्माण गुप्त नरेशों द्वारा 250 से 410 ई. पू के बीच निर्मित करवाई गई थी। आपको भोपाल की यात्रा में इस जगह को भी ज़रूर देखना चाहिए। उदयगिरी गुफा देखने के बाद वापस भोपाल लौट आइए।
संग्रहालय
भोपाल शहर में कई सारे म्यूज़ियम हैं। उनमें से एक है, बिरला संग्रहालय। बिरला संग्रहालय बिड़ला मंदिर परिसर का एक हिस्सा है जिसमें भगवान शिव और देवी पार्वती का पवित्र मंदिर और एक लक्ष्मी-नारायण मंदिर भी है। अरेरा हिल्स में स्थित इस संग्रहालय से आप शहर का मनोरम दृश्य भी देख सकते हैं। बिरला संग्रहालय के अलावा आपको भोपाल में ट्राइबल म्यूज़ियम भी देखना चाहिए। इस संग्रहालय में आप आदिवासी संस्कृति, परंपरा, चित्रों और वास्तुकला को आसानी से समझ सकते हैं। ट्राइबल म्यूज़ियम के परिसर को 6 गैलरियों में विभाजित किया गया है, जो जनजातीय संस्कृति, जीवन, कला और पौराणिक कथाओं को समर्पित है।
दिन 3:
भीमबेटका गुफाएँ
भोपाल यात्रा के तीसरे दिन सुबह-सुबह नाश्ता करने के बाद निकल पड़िए भीमबेटका गुफाएँ देखने के लिए। भोपाल शहर से भीमबेटका गुफाएँ लगभग 45 किमी. की दूरी पर हैं। भीमबेटका गुफाओं को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि गुफाएं 30,000 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के भीम से संबंधित है इसलिए इसका नाम भीमबेटका पड़ा। गुफाओं के भीतर चट्टानों पर कई आकृतियाँ बनी हुई हैं जो उस समय के बारे में थोड़ा बहुत जानने का मौक़ा देती हैं। भीमबेटका गुफाएं वास्तव में अपने आप में कला का एक बेजोड़ नमूना है। भीमबेटका गुफाएँ सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक खुली रहती हैं। कुछ घटों में भीमबेटका को एक्सप्लोर करने के बाद भोपाल लौट आइए।
भोजपुर मंदिर
भोपाल आने के बाद खाना खाइए और निकल पड़िए भोजपुर मंदिर को देखने के लिए। भोपाल से लगभग 32 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में बेतवा नदी के दाहिने ओर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है भोजपुर मंदिर। इस मंदिर को भोजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह एक अपूर्ण मंदिर है और इसके अपूर्ण रहने का कारण कोई नहीं जानता है। इसके अलावा मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी अपने आप में बेहद ख़ास है। कहा जाता है कि पांडव अपने वनवास के दौरान माता कुंती के साथ यहीं आस-पास वनों में निवास कर रहे थे। इस दौरान भीम ने विशाल पत्थरों से ही इस मंदिर का निर्माण किया और शिवलिंग की स्थापना की जिससे माता कुंती बेतवा नदी में स्नान करके भगवान शिव की पूजा कर सकें। ये भी माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक रात में किया गया था।
भोजपुर महादेव मंदिर 106 फुट लंबा और 77 फुट चौड़ा है। मंदिर 17 फुट ऊँचे एक चबूतरे पर निर्मित किया गया है। मंदिर के गर्भगृह की अपूर्ण छत 40 फुट ऊँचे चार स्तंभों पर टिकी हुई है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है गर्भगृह में स्थापित 22 फुट ऊँचा शिवलिंग। ये शिवलिंग दुनिया के विशालतम शिवलिंगों में से एक है। शिवलिंग का व्यास 7.5 फुट है। भोपाल आएँ तो इस मंदिर को देखना ना भूलें। मंदिर को देखने के बाद भोपाल वापस लौट आइए। इस तरह से आपकी 3 दिन की भोपाल यात्रा पूरी हो जाएगी। शाम के समय ट्रेन, बस और फ़्लाइट लेकर अपनी वापसी कर सकते हैं।
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