" जित्थे जाए बहे मेरा सतगुरु सो याव सुहावा राम राजे "
अंश दूसरा
7 जून 2019
नानक मत्ता साहिब और रीठा साहिब
7 जून सुबह को हम काशीपुर से नानक मत्ता साहिब के लिए चल पड़े जो 106 कि:मी: दूर है।
नानकमत्ता गुरुद्वारा उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में है जो कि सिखों का पवित्र व ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। यहाँ हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है। नानकसागर बाँध गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब के पास ही है इसलिये इसे नानक सागर के नाम से भी जाना जाता है। गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब के नाम से ही इस जगह का नाम नानकमत्ता पड़ा। गुरुद्वारे का निर्माण सरयू नदी पर किया गया है।
नानकमत्ता का इतिहास:
नानकमत्ता का पुराना नाम सिद्धमत्ता है। सिखों के प्रथम गुरू नानकदेव जी अपनी कैलाश यात्रा के दौरान यहाँ रुके थे और बाद में सिखों के छठे गुरू हरगोविन्द साहिब भी यहाँ आये।
गुरू नानकदेव जी सन 1514 में अपनी तीसरी उदासी के समय रीठा साहिब से चलकर भाई मरदाना जी के साथ यहाँ रुके थे। उन दिनों यहाँ जंगल हुआ करते थे और गुरू गोरक्षनाथ के शिष्यों का निवास था। गुरु शिष्य और गुरुकुल के चलन के कारण योगियों ने यहाँ गढ़ स्थापित किया हुआ था जिसका नाम गोरखमत्ता था। कहा जाता है कि यहाँ एक पीपल का सूखा वृक्ष था। जब नानक देव यहाँ रुके तो उन्होंने इसी पीपल के पेड़ के नीचे अपना आसन जमा लिया। गुरू जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया। यह सब देख कर रात के समय योगियों ने अपनी योग शक्ति के द्वारा आंधी तूफान और बरसात शुरू कर दी।तेज तूफान और आँधी की वजह से पीपल का वृक्ष हवा में ऊपर को उठने लगा, यह देखकर गुरू नानकदेव जी ने इस पीपल के वृक्ष पर अपना पंजा लगा दिया जिसके कारण वृक्ष वहीं पर रुक गया। आज भी इस वृक्ष की जड़ें जमीन से 10-12 फीट ऊपर देखी जा सकती हैं। वर्तमान समय में इसे पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है।
गुरूनानक जी के यहाँ से चले जाने के बाद सिद्धों ने इस पीपल के पेड़ में आग लगा दी और पेड़ को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया। उस समय बाबा अलमस्त जी यहाँ के सेवादार थे। उन्हें भी सिद्धों ने मार-पीटकर भगा दिया। सिक्खों के छठे गुरू हरगोविन्द साहिब को जब इस घटना की जानकारी मिली तब वे यहाँ आये और केसर के छींटे मार कर इस पीपल के वृक्ष को पुनः हरा-भरा कर दिया। आज भी इस पीपल के हरेक पत्ते पर केसर के पीले निशान पाये जाते हैं। गुरुद्वारे के अंदर एक सरोवर है, जिसमें अनेक श्रद्धालु स्नान करते है और फिर गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। कहते हैं गुरुनानक देव का आशीर्वाद सब श्रद्धालुओं को मिलता है और कोई भी यहां से खाली नहीं लौटता।
नानकमत्ता साहिब के दर्शन के लिये पूरे साल में कभी भी जाया जा सकता है क्योंकि यहाँ का मौसम हमेशा अनुकूल ही रहता है पर यदि दिवाली के अवसर पर यहाँ जाया जाये तो उसका एक अलग ही आकर्षण होता है क्योंकि उस समय यहाँ हफ्ते भर मेला लगता है और देश भर से हजारों श्रद्धालु दीपावली मेले का आनन्द लेने के लिये यहाँ पहुँचते हैं और दर्शन करते हैं।
यह गुरुद्वारा बेहद शांत और साफ है। इसके अंदर जाते ही मन बिल्कुल शांत हो जाता है क्योंकि किसी भी तरह का शोरगुल या सामान बेचने वालों का हंगामा या पूजा करवाने वालों की फौज खड़ी नहीं मिलती है।
अगर कुछ होता है तो वो है गुरुद्वारे के अंदर लय में गाई जाने वाली गुरुबानी की धुन जिसे देर तक बैठ कर सुने बगैर वापस आने का मन नहीं होता
।
गुरूद्वारा साहिब के दर्शन करने के बाद हम नानक सागर देखने गए। पास ही बाऊली साहिब है उसके दर्शन किए।
फिर हम रीठा साहिब के लिए चल पड़े जो करीब 120 कि:मी: के करीब है। एक रास्ता तो NH-9 से है जो थोड़ा लंबा है, हम ने लिंक सड़क का रास्ता लिया सोचा जल्दी पहुंच जाएंगे, शुरू में सड़क अच्छी थी 5 -6 कि:मी: तक, बाद में सड़क का नाम निशान नहीं था। जैसे-तैसे चलते रहे। सुनसान रास्ता था। तभी कुछ पंजाबी चाय पीते दिखे , हौसला हुआ कोई तो है इस रास्ते पर।कहते है पंजाबी जहा जाते है वहा पंजाब बना लेते है। हम ने भी थोड़ी चाय पी और आगे के चल पड़े। 60 कि:मी: की दूरी के लिए करीब 3 घंटे लग गए।
रीठा साहिब गुरुद्वारा नीचे होने के कारण बहुत सावधानी से छोटी सी सड़क से उतरना पड़ा। अब जानते है रीठा साहिब के बारे में
उत्तराखंड के चम्पावत से करीब 72 कि:मी: दूर लधिया और रतिया के संगम में स्थित रीठा साहिब गुरुद्वारा सिखों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। माना जाता है कि यहां सिखों के प्रथम गुरु नानक देव अपने शिष्य मरदाना के संग तीसरी उदासी के वक्त पहुंचे,इस दौरान उन्होंने कड़वे रीठे को मिठास देकर इस स्थान को प्रमुख तीर्थ स्थल में बदल दिया था।
इस दौरान उनकी मुलाकात सिद्ध मंडली के महंत गुरु गोरखनाथ के शिष्य ढेरनाथ से हुई। गुरुनानक और ढेरनाथ के संवाद के बीच शिष्य मरदाना को भूख लगी। जब भोजन न मिला तो निराश शिष्य गुरुनानक देव के पास पहुंचा। गुरु नानक देव ने शिष्य को सामने रीठे के पेड़ को छूकर फल खाने का आदेश दिया। रीठा कड़वा होता है यह जानकर मरदाना ने गुरु के आदेश का पालन करते हुए जैसे ही रीठे को खाया, वह मीठा हो गया।तबसे इस स्थान का नाम रीठा साहिब पड़ गया। यहां श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में मीठा रीठा बांटा जाता है। मई-जून में लगने वाले जोड़ मेले में सबसे ज्यादा श्रद्धालु रीठा साहिब गुरुद्वारे में पहुंचते हैं।आस्था के इस केंद्र रीठा साहिब में श्री गुरुनानक देव के चमत्कार से कड़वा रीठा भी मीठा हो गया था। कुछ ऐसी थी गुरु नानकदेव जी की महिमा कि उनके छूने मात्र से कड़वा रीठा मीठा हो गया।
हम ने रीठा साहिब गुरुद्वारा में कमरा लिया, आराम करके लंगर छका तथा माथा टेका। लधिया और रतिया नदियों का संगम देखा। मीठे रीठे का प्रसाद लिया।
बाकी अंतिम अंश में।
धन्यवाद