"जित्थे बाबा पैर धरे पूजा आसन थापन सोया "
यह यात्रा है सिक्खों के प्रथम गुरू श्री गुरू नानक देव जी की चरण छो प्रापत 3 धार्मिक स्थलों के दर्शन की।
भूमिका:-बहुत सालों से पूरे परिवार की कामना थी कि गुरूद्वारा "नानक मत्ता साहिब और रीठा साहिब " जाया जाए। एक-दो बार जाने की योजना भी बनी परन्तु जाया नहीं गया। 2019 में गर्मी की छुटियों अर्थात जून में जाने का सोचा, रेलगाड़ी की बुकिंग देखी गई कोई सीट न होने के कारण बस से रामपुर तक और वहा से टैक्सी करवा कर नानक मत्ता साहिब जाने का सोचा। सोचते-2 अंतिम निर्णय यह हुआ कि अपनी कार से जाते है, यहाँ मन किया रुक गए। रास्ता तो सच में बहुत लंबा था। कहते है जब जूनून हो तो रास्ते भी छोटे लगते है। मेरी अब तक की सबसे लंबी सड़क यात्रा थी। यह यात्रा श्रद्धा, सब्र, प्रकृति दर्शन का सुमेल है।
इस यात्रा की रुप- रेखा:-
• यात्रा अवधि : 6 जून 2019 से 10 जून 2019
• प्रात : पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश, उतराखण्ड
• कुल दूरी : करीब 1850 किलोमीटर
• दर्शनीय स्थल : काशीपुर, नानक मत्ता, रीठा साहिब, मुक्ततेशवर, नौकुचियाताल, भीमताल।
इस यात्रा को मैंने 3 अंशों में विभाजित किया है।
अंश पहला:- बाघा पुराना से काशीपुर तक का सफर
पंजाब के मोगा जिले के कसबे बाघा पुराना से 6 जून की सुबह हम चल पड़े काशीपुर की ओर। पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश को पार करके , कभी बाला श्री के समोसे खाते तो कभी ढाबे पर खाना ऐसा करते -2 हम रात के 8 बजे तक लगभग 570 कि:मी: की दूरी तह करके काशीपुर पहुंच गए। इस रास्ते के बारे में कुछ पंक्तियाँ:
कही दूर खेतों में लहराती फसलें
तो कही पर टहलती मानवी नसलें
कही तेज़ बारिश,बादलों का शोर
तो कही कडकती धूप का जोर
कभी हाई -वे , कभी रास्ता उजाड़
तो कभी बड़े शहरों की भीड़- भाड़
काशीपुर: उतराखण्ड के ऊधम सिंह नगर जिले में स्थित कमाऊ का तीसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है जो रेल मार्ग अथवा सड़क मार्ग द्वारा विभिन्न शहरों जैसे बरेली (135 कि: मी:) , मुरादाबाद (51 कि:मी:) नैनीताल (90 कि:मी:), रामपुर(67 कि:मी:), गाजियाबाद (197कि:मी:) दिल्ली (236 कि:मी:) आदि से जुडा हुआ है। यहाँ पर इतिहासिक गुरूद्वारा ननकाणा साहिब है,वही पर हम रात को रुके। चलिए अब गुरूद्वारा साहिब का इतिहास भी जान लेते है।
संगमरमर से बना यह गुरुद्वारा महान संत सिखों के प्रथम गुरु व महान समाज सुधारक श्री गुरु नानक देव से जुड़ी एक महान व अद्भुत घटना के लिए देश के कोने-कोने में चर्चित हैं। सिख धर्म ग्रंथों के अनुसार गुरुनानक देव जी ने 1514 में अपनी तीसरी उदासी शुरू की। इस दौरान उन्होंने अपने साथियों भाई बाला जी व भाई मरदाना जी के साथ जब उत्तराखंड के काशीपुर में एक इमली के पेड़ के नीचे आसन लगाया तो उन्होंने देखा कि काशीपुर के लोग जीवन यापन की आवश्यक सामग्री व् सामान को बैलगाड़ी व घोडा गाड़ियों में लादकर अपने परिजनों सहित नगर को छोड़ कर जा रहे है। गुरु जी के पूछने पर नगर वासियों ने दुखित ह्रदय से बताया नगर के पास से बहने वाली नदी स्वर्ण भद्रा में हर साल बाढ़ आने से जान माल का बहुत नुकसान हो जाता है कही से कोई मदद नहीं मिलती। इसलिए नगर छोड़ कर जाने को मजबूर है। नगरवासियों की करुणामयी पुकार सुन गुरु जी ने उन्हें अकाल पुरख के सुमिरन की ताकत का भरोसा देते हुए नगर छोड़कर न जाने की प्रेरणा दी। इस दौरान गुरुनानक देव ने पास से ही एक ढेला( मिटटी का टुकड़ा ) उठाकर विकराल रूप से बह रही नदी में फेंका। जिसके बाद नदी का विकराल रूप शांत पड़ गया। उसके बाद इस नदी को ढेला नदी के रूप में पहचान मिली। जो श्री ननकाना साहिब गुरुद्वारा से 500 मीटर की दूरी पर आज भी शांत भाव से बह रही है।
हर वर्ग के लोग देश के कोने-कोने से यहां मत्था टेकने आते हैं और प्रसाद ग्रहण कर अपनी मुरादें मांगने आते हैं। प्रत्येक अमावस्या को यहां पर मेला लगता है। इस दिन दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु यहां आकर पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं।गुरुद्वारा कमेटी आज जहां कई स्कूल व कॉलेज भी संचालित कर रही है तो वही बाहर से आने वाले राहगीरों के लिए रात्रि विश्राम गृह की व्यवस्था भी हैं।
श्री गुरुनानक देव का देवभूमि से गहरा जुड़ाव रहा है। उन्होंने कई स्थानों पर पैदल यात्रा कर " किरत करो, नाम जपो, वंड छको " यानि नाम जपें, मेहनत करें और बांटकर खाएं का उपदेश दिया।
यहा आ कर मन को शांति तथा रूह को सुकून मिलता है।रात गुरूद्वारा ननकाणा साहिब में गुजारने के बाद सुबह हम नानक मत्ता साहिब के लिए चल पड़े।
बाकी अगले अंश में।
धन्यवाद।