सिक्किम एक सुंदर जगह है, जहाँ जाना सब ट्रैवलर्स का ख्वाब होता है। सिक्किम एक बार पहले भी घूम चुका हूँ लेकिन बहुत दिनों से एक तमन्ना थी की सिक्किम जा के इंडिया का सब से फेमस ट्रेक गोचला करना है और दुनियाँ के 3rd highest summit कंचनजंगा को बिल्कुल करीब से देखना है। दिल में यही तमन्ना ले के हम दो, मैं और राजीव जांगिड़ सर चल पड़े जोरहाट, आसाम से अपनी मंजिल युकसोम सिक्किम की ओर। 3 मई को जोरहाट से न्यू जलपाईगुड़ी की ट्रेन पकड़ के 4 मई की सुबह सुबह 4 बजे हम लोग पहुँच गए। जैसे ही स्टेशन से बाहर निकले तो हमको पता लग गया की वहाँ से युकसोम जाना उतना आसान नहीं जितना हम सोच रहे थे। सोचा तो ये था की 2 बजे तक युकसोम पहुच जाएँगे और वहाँ जाते ही एक पॉटर कर के जल्दी से गोचला ट्रेक का पर्मिट बना लेंगे और अगले दिन सुबह 4 बजे से ही अपना ट्रेक शुरू कर देंगे, लेकिन हम जैसा सोचते है वैसा होता कम ही है। न्यू जलपाईगुड़ी में पता चला कि हमको युकसोम के लिए सीधी गाड़ी नहीं मिलेगी। पहले जोरथांग जाना होगा, वहाँ से युकसोम की गाड़ी मिलेगी।
तो देर किस बात की थी, हमने जोरथांग की टैक्सी पकड़ी और 9 बजे तक हम जोरथांग थे। जब जोरथांग पहुँचे तो पता चला युकसोम की टैक्सी 12 बजे चलेगी अब तो ये ही लग रहा था कि शायद कल हम लोग अपना ट्रेक भी स्टार्ट ना कर पाएँ। चलो जैसे तैसे 4 बजे तक हम लोग युकसोम पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर सब से पहले हमने ढूँढना शुरू किया एक पॉटर। हम 2 लोग थे और हमारे पास टोटल 4 बैग थे। 2 बैग तो भारी थे जिसमें गैस स्टोव और खाने पीने के समान के साथ टेंट और कुछ सामान था, बाकी 2 थोड़ा हल्के थे। पहले तो हमको कोई पोटर मिला ही नहीं, एक दो मिले तो वो ₹1500 पर डे के हिसाब से पैसा मांग रहे थे। उसके बाद हम लोग एक ट्रेकिंग कंपनी के पास गये लेकिन वहाँ भी बात न बनी। जैसे ही हम वहाँ से थोड़ा दूर एक दुकान में गए तो एक पोटर शराब के नशे में दिखा पास खड़े आदमी ने उस से बात कर के उसको ₹500 पर डे के हिसाब से हमारे लिए सेट कर दिया। उसको देख के हम दोनों को उस पे भरोसा कम ही लग रहा था। हम उसको अपने साथ होमस्टे मे ले गये जहाँ हम रुके हुए थे और उसको अपना सामान दिखा के बोला कि ये जो भारी वाले 2 बैग दिख रहे हैं तुमको ये दोनों ले जाने है बाकी हम दोनों ले जा लेंगे। बैग देख के वो बोला सर ये तो बहुत भारी है हमने उसको बोला की हम तुझे ₹600 पर डे देंगे और जीतने भी दिन में ट्रेक करेंगे उस से एक दिन एक्सट्रा के पैसे देंगे।
हमने थाने में जा के पर्मिशन ले ली लेकिन जब तक हम वो पर्मिशन ले के कंचनजंगा नेशनल पार्क के ऑफिस पहुँचे तो वो ऑफिस बंद हो चुका था। लोकल्स से पता चला अब ऑफिस अगले दिन 7 बजे खुलेगा। मतलब ये था की हम लोग 7 बजे से पहले अपना ट्रेक शुरू नहीं कर सकते, फिर लोकल्स से पता चला कि ट्रेक बहुत लम्बा है और कठिन भी है। हमने कुछ लोगों को बताया की हम ये ट्रेक 3 दिन में करने की सोच रहे हैं, सब बोले ये कम से कम 8 दिन का ट्रेक है 3 दिन में तो हो ही नहीं सकता तो मैंने बोला कोई नहीं 4 दिन में कर लेंगे अगर 3 दिन में नहीं हो पाया तो। हमारा होमस्टे का मालिक भी बोला 4 दिन में नहीं हो सकता ये ट्रेक, पॉटर भी ये ही बोला ये 8 दिन का ट्रेक है, जो भी मिल रहा था डिमोटिवेट कर रहा था।
अगले दिन ऑफिस वाला भी ये ही बोला की ये 8 दिन का है तो हमने उस से बोला भाई तू 8 दिन के ही पैसे काट ले हम चाहे 4 दिन में ट्रेक करें या 8 दिन में। परमिशन का सब काम करा के 5 मई को हम लोग सुबह 8 बजे सारा सामान ले के युकसोम से निकल लिए। आज ट्रेक का पहला दिन था तो सोचा था कि आज जितना हो सकता है उतना ज्यादा ट्रेक कर लेंगे क्योंकि मौसम का कोई भरोसा नहीं है। मौसम सुबह सुबह बहुत खराब था, लग रहा था बारिश आएगी जल्दी ही।लेकिन जब हमलोगों ने ट्रेक स्टार्ट किया तब मौसम खुल गया था जो हमारे लिए अच्छी खबर थी। करीब 1 km चलने के बाद हमारा बेवड़ा पॉटर बोला बैग बहुत भारी हो रहे हैं, मैं नहीं ले जा पाऊँगा। उस समय तो वो पॉटर ही हमको बोझ लग रहा था। ऐसा लग रहा था की ये जान बूझ के हमारे ट्रेक को लंबा खींचना चाहता है। फिर हमने एक काम किया अपने 2 छोटे बैग को एक बनाया जो राजीव सर ने पकड़ लिया और पॉटर का एक बैग मैंने ले लिया। फिर हम जोश के साथ आगे बढ़ने लगे।
बहुत जल्द ही हम उस ट्रेक की पहली कैंप साइट सचेन पहुँच गए। वहाँ से जंगल होते हुए हम 3rd पुल पहुँच गये जहां से Tsokha के खड़ी चडाई थी करीब 5 km की। सब से आगे मैं, फिर राजीव सर, फिर सब से लास्ट में हमारा पॉटर। मैं जल्दी जल्दी चलने लगा मुझे पता था की अगर हमको ये ट्रेक जल्दी करना है तो मुझे सब से आगे तेजी से चलना होगा बाकी तो सब मेरे पीछे पीछे आ ही जाएँगे। 2 बजे मैं Tsokha में था। Tskoka पहुँचते ही मौसम बहुत खराब हो गया। मैं वहाँ ही एक ढाबे में बैठ गया और राजीव सर का इंतज़ार करने लगा। कुछ समय बाद ऊपर से एक ग्रुप आया जो TTH का था उस ग्रुप की एक लड़की से बात करने पे पता चला की लास्ट 5 दिन से कोई भी गोचाला व्यू पाइंट तक नहीं जा पाया है, बारिश बहुत ज्यादा हो रही थी लास्ट 4,5 दिनो से। उनका ग्रुप भी समिति लेक से वापस आ गया था. ट्रेक से पहले कुछ वेदर apps पे नजर फेरने से पता चला था की अगले 2 दिन मतलब सोमवार और मंगलवार को मौसम थोड़ा साफ रहेगा और फिर कुछ दिन के लिए मौसम खराब ही रहेगा मतलब ये था अगर अगले 2 दिन में गोचाला तक पहुच गए तो ठीक वरना फिर मुश्किल हो जाएगी. 1 hr बाद 3 बजे राजीव सर भी पहुच चुके थे. अब बारिश भी शुरू हो गयी थी ठंडा भी बहुत था तो हम लोगो ने टेंट न लगा के वहां पे ही 400 रुपए मे एक कमरा ले लिया और खा पी के वहां ही रात में सो गये. 6 मई समय 0420 सुबह. राजीवजांगिड़ भाई उठ जा अब. मै - सर में तो उठा ही हूँ अपना शेरपा कहाँ है उसको उठा के आता हूँ मै सर बाहर देखो क्या व्यू है माउंट पंडिम दिखायी दे रहा है कैमरा निकालो. जैसे सुबह हम चाहते थे ये वैसी ही सुबह थी मौसम बिल्कुल खिला हुआ था. जल्दी से सुबह के सारे काम निपटाके नास्त कर के हम लोग आज के सफर के लिए तैयार हो गये. हम लोग पहले से ही सोच चुके थे की हम दज़ोंग्री वापसी मे जाएंगे हमारा पहला मकसद है गोचाला पास जाना वापसी में हम दज़ोंग्री चले जाएंगे अगर मौसम ने साथ दिया क्यूकि दज़ोंग्री जाने का फायदा तब ही है जब मौसम साफ हो. मौसम का भी अनुमान हम लोगो को था की मौसम आज और कल दिन तक ही साफ रहेगा. इसमें हम या तो दज़ोंग्री टॉप देख ले या गोचाला पास का व्यू पॉइंट. हमने गोचाला जाना ही उचित समझा. Tshoka से हम लोग 0645 पे निकल गये. रास्ता बुरांश के फूलो से भरा हुआ था. वैसे तो बुरांश के फूलो का मौसम कुछ दिन पहले ही चला गया था फिर भी उस समय भी रास्ते में बहुत बुरांश लगे हुए थे. बुरांश के फूलों का रंग थोड़ा लाल से गुलाबी हो गया था. वो बहुत घना जंगल था वहाँ धूप मुश्किल से ही आ पाती थी शायद इस लिए ही वहां देर तक बुरांश के फूल देखने को मिल गए. 9 बजे हम पेदांग पहुच गए जहां से एक रास्ता जाता था दज़ोंग्री की ओर और दूसरा रास्ता जाता था कोक्चुरंग की ओर. हम लोग ने कुछ समय वहां ही बिताया और फिर अपने संगा शेरपा के आते ही हम लोग चल दिए कोक्चुरंग के रास्ते में. जितना हमने सोचा था कोक्चुरंग उस से काफी दूर था वहाँ पहुचते पहुचते हमको 12 बज गये. वहां पे कुछ समय रुकने के बाद हम चल दिए थांगशींग की ओर करीब 1 बजे हम थांगशींग जो की 12894 फिट पे था वहाँ थे. थांगशींग पहुचते पहुंचते मौसम भी बदल गया था. चारो ओर बादल ही बादल आ गए थे मौसम काफी ठंडा हो गया था. वहां पे बनी दुकान के अंदर जा के हम लोगो ने एक एक चाय पी और कुछ देर बकैती की. वहां पे रेडिओ पे नेपाली चैनल पकड़ रहा था और बहुत अच्छे अच्छे नेपाली गाने आ रहे थे. कुछ समय नेपाली गानो का मजा लेने के बाद हम चल दिए अपनी आज की मंजिल लामूऩेय की ओर. 0330 पे हम लोग लामूऩेय (13693फीट) मे थे. हमारे लिए लामूऩेय में सब से अच्छी खबर ये थी की वहां पे किचन के लिए जो हट थी वो खाली थी जिसको हमने 200 रुपये किराया दे के थांगशींग मे ही बूक कर लिया था. हट की हालत थोड़ी खराब थी. छत और हट की दीवारों के बीच बहुत गैप था जिस से बहुत हवा आ रही थी. अगर हम टेंट लगाते तो शायद वहां के मौसम के हिसाब से हमको टेंट मे ज्यादा ठंडा भी लगता और टेंट को समेटने में टाइम भी बहुत लग जाता. हमारे शेरपा से हमको पता चला की वहां से कुछ दूर पे ही एक और ग्रुप रुका हुआ है जो मॉर्निंग मे 2 बजे निकलेगा हम भी जल्दी जल्दी खाना खा के सो गये. हम लोगो ने 2.30 का अलार्म रख लिया था ताकि हम 3 बजे तक वहां से निकल जाए और आगे जा के उस ग्रुप को पकड़ ले. रात भर चैन से सो नहीं पाए हम लोग. नींद आई ही नहीं पूरी रात करवट बदल के ही गुजरी. ये शायद हाई अल्टिटुड के कारण था. सारे लोग दज़ोंग्री मे एक दिन रुकते है बदलते हुए मौसम और ऊंचाईयों में अपने शरीर को ढालने के लिए लेकिन हमने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं. पहले ही दिन 5700 फीट से हम लोग 9650 फीट पे आ गये और दूसरे ही दिन 13693 फीट पे. हल्का हल्का सर दर्द भी था. मौसम का भी डर था पता नहीं बाहर मौसम कैसा होगा. अलार्म तो 2.30 का रखा था लेकिन हम 2.15 पर ही उठ गये थे. हमारा शेरपा ठंड से मरा जा रहा था उसके पास ओढ़ने को बस एक कंबल था और एक और कंबल वो ऊपर कैंप से जुगाड़ कर के ले आया था पता नहीं कैसा शेरपा था वो भी रोज का आना जाना था उसका इस ट्रेक पे फिर भी अपना कोई भी समान उसके पास नहीं था. उसको ठंड से मरता देख हमने अपने दोनों स्लीपिंग बैग उसके ऊपर डाल दिए और उस से बोला भाई तू सोते रह आराम से हम लोग गोचाला पास हो के आते हैं. वो बोला ठीक है आप जाओ. आज का दिन हमारे पूरे ट्रेक का सब से हार्ड होने वाला है ये तो पता था हमको. एक एक चाय बनायी और चाय पी के हम वहां से 2.50 पे निकल लिए अपनी फ़ाइनल डेस्टिनेशन गोचाला की ओर. भगवान हमारे साथ था आज का मौसम बहुत ज्यादा साफ था आसमान में तारे नजर आ रहे थे. कहीं भी एक बादल नजर नहीं आ रहा था. वहां से गोचाला व्यू पाइंट 5 km था सनराइज टाइम था 0445 मतलब हमारे पास करीब 2 hr थे 5 km चलने के लिए . अपने अपने हेड टार्च ऑन कर के हम दोनों चल दिए. करीब 1 km चलने के बाद मुझे कुछ आवाज सुनाई दी माउंट पंडिम की ओर से जो ठीक हमारे दाहिनी दिशा में ऊपर की ओर था. मै बोला राजीव सर एवलांच आ रहा है राजीव सर मुझ से थोड़ा दूर थे उन्होने मेरी बात सुनी नहीं और जोर से चिल्लाने का मेरा कोई इरादा न था. कुछ समय बाद एवेलांच की आवाज बंद हो गयी. जब राजीव सर मेरे पास आ गये तो मैंने बोला सर वो एवेलांच था वो बोले मुझे लगा कोई एयरक्राफ्ट जा रहा है. मुझे हंसी आ गयी. मैंने बोला यहां मेरी डर से सुखी जा रही थी और आप जहाज उड़ा रहे थे वाह. थोड़ा आगे चल के हमको वो ग्रुप भी मिल गया जो हमसे पहले लामूऩेय से चला था. उस ग्रुप की एक लड़की की तबीयत खराब हो गयी थी जिसको उस ग्रुप का एक सदस्य वापस लामूऩेय छोड़ने जा रहा था. चलो भगवान की दुआ से हम दोनों की तबीयत ठीक थी बिल्कुल. कुछ समय बाद समिति लेक भी आ गयी अंधेरा होने के कारण साफ साफ कुछ दिखायी नहीं दे रहा था बस हमारे शेरपा की बात याद थी मुझे की समिति से राइट साइड चले जाना रास्ता मिल जाएगा आगे का. जैसे जैसे उजाला होता चला गया खूबसूरत नजारे आँखो के ठीक समाने दिखायी देने लगे. मेरे पैर तो अब जोर जोर से चलने लगे. मै चल कम रहा था भाग ज्यादा रहा था. फोटो लेते हुए मै जल्दी जल्दी चलने लगा 0430 पे मै गोचाला व्यू पाइंट पहुच चुका था चारो ओर ऊंचे ऊंचे पर्वत मन तो कर रहा था अभी इन पर्वत पे चड़ जाऊ और दुनियाँ को इनके ऊपर से देखूँ. बहुत सुन्दर नजारा था वो. इतने पास से इतने बड़े बड़े बर्फ से ढके पहाड़ मै पहली बार देख रहा था. भारत में गोचाला ही एक मात्र ऐसा ट्रेक है जहाँ से आप इतने बड़े बड़े पहाड़ बिल्कुल पास से देख सकते हो माउंट पंडिम जो 6691 मीटर ऊंचा है वो तो नीचे से ऊपर पूरा दिखायी दे रहा था वहाँ से. दुनियाँ का 3 नंबर का सब से ऊंचा माउंट कंचनजंगा बिल्कुल सामने दिखायी दे रहा था. उसके साथ ही कबरू नॉर्थ, कबरू साउथ, कबरू डोम और रथोंग ये सारी चोटियां बिल्कुल आंखो के सामने दिखायी दे रही थी. कबरू नॉर्थ और कबरू साउथ जिनकी हाइट करीब 7400 मीटर है और रथोंग जो 6678 मीटर बिल्कुल साफ दिख रही थी वहां से. वहां रह के ऐसा लग रहा था मानो मै स्वर्ग के द्वार मे आके खड़ा हो गया हूँ. कुछ समय बाद बाकी लोग भी आ गये. सुबह की पहली किरण ने कंचनजंगा को छू लिया था ये नजारा ट्रेक का सब से खूबसूरत नजारा था. ये मूवमेंट कैप्चर करने के लिए 0430 से ही गोप्रो सेट कर दिया था जो अब अपना काम कर रहा था. ठंड बहुत थी वहां पे टेंपरेचर भी माइनस मे ही होगा. 1 घंटा वहां रुकने के बाद हम वापस नीचे की ओर चल दिए अब समिति लेक भी बहुत सुन्दर दिखायी दे रही थी. नीला पानी बिल्कुल शांत था उसमे हिमालया का प्रतिबिम्ब बिल्कुल साफ दिखायी दे रहा था. 8 बजे हम वापस अपनी लाउमऩेय वाली हट थे हमारा शेरपा अभी भी सो रहा था. जल्दी से राजीव सर ने अपने और शेरपा के लिए चावल बनाए और रेडी टू इट चने बनाए. उस दिन मंगलवार था तो मेरा तो उपवास था. लेकिन वो चने मे कुछ प्रोब्लेम थी इस लिए वो अच्छे नहीं हो रहे थे वो दोनों भी खाना खा नहीं पाए पूरा खाना फैकना पड़ गया. मतलब ये था की हम तीनो खाली पेट थे. राजीव सर ने सोचा थानसिंग मे एक दुकान है वहाँ नाश्ता कर लेंगे जल्दी से सामान समेट के हम लोग चल दिए थानसिंग की ओर जब थानसिंग पहुचे तो वो दुकान भी बंद थी. शेरपा से बोला मैगी खाएगा तो स्टोव निकाल के मैगी बना देते हैं वो बोला नहीं साहब मै तो भात और दाल सब्जी ही खाता हूँ. कोक्चुरंग में मिलेगा वहां ही चलते है. जब हम कोक्चुरंग पहुचे वहां भी कोई नहीं था. बेचारा हमारा शेरपा बहुत ही गुस्सा हो गया बोला अब मै कहीं नहीं जाऊंगा. उसको बोला भाई अब हम दज़ोंग्री नहीं जाएंगे त्शोका जाएँगे और वहां खाना खा के आज ही यूक्सम चले जाएँगे. शेरपा बोला ऐसा नहीं होता है इतना कम समय में ये ट्रेक नहीं होता है. वो बोला मै आज त्शोका मे ही रुक जाऊंगा आपओ जाना है तो जाना. हमने कहा ठीक है तुम चलो तो. राजीव सर तो मान गए थे की आज ही यूक्सूम चल देंगे अब मुझे शेरपा को मनाना था. 0230 पे मै त्शोका पहुच गया था शेरपा को और राजीव सर को आने मे थोड़ा समय लग गया. त्शोका मे भी हमारे शेरपा का पसंदीदा खाना दाल चावल तो था ही नहीं. शेरपा बोला बाकीम मे चलते है वहाँ ही खाएंगे और आज वहां ही रहेंगे कल सुबह यूक्सम के लिए चलेंगे. 4 बजे बाकीम पहुचे बाकीम में भी शेरपा को खाने के लिए चावल नहीं मिले तो उसने मैगी बनाने के लिए बोल दिया. राजीव सर ने भी सुबह से कुछ नहीं खाया था. मै बोला सर यहां रुक के क्या करेंगे कल तो फिर चलना ही पड़ेगा यहां तो नीद भी नहीं आएगी सही से कल यूक्सूम पहुच के हम कहीं जा भी नहीं पाएंगे कल का पूरा दिन बर्बाद हो जाएगा इस से बड़ीया तो आज ही नीचे चलते है चाहे थोड़ा देर भी हो जाएगी तो कोई बात नहीं. यहां तो फोन नेटवर्क भी आता है होम स्टे वाले को फोन कर के कमरा बूक कर देते है चैन से सो जाएंगे और कल सुबह 7 बजे वाली गाड़ी पकड़ के गंगटोक चले जाएंगे. राजीव सर बोले भाई बहुत थकान हो रही है 14 घंटे से लगातार बिना कुछ खाए पिए चल रहे है. मै तो चलने को तैयार हो लेकिन तू इस शेरपा को मना. मै शेरपा को बोला भाई आज 3 दिन में ट्रेक खतम हो जाएगा तब भी तुझे हम 5 दिन का पैसा देंगे और यूक्सूम मे तुझे एक दारू की बॉटल भी दूंगा अब तो चल दे वो बोला नहीं इतना नहीं चला जाता एक दिन में. मै बोला तू तो भाई हम से 10 km कम ही चला है आज और 8 बजे तक सोया भी है वो फिर भी नहीं माना. उसे लगा ये लोग मेरे बिना नहीं जा पाएंगे. उस समय राजीव सर मे पता नहीं कहाँ से जोश आ गया वो बोले पंकज तू ये शेरपा वाला भारी बैग पकड़ ले और एक छोटा बैग पकड़ ले मुझे अपना बड़ा बैग दे दे हम दोनों चलते है सारा सामान ले के शेरपा तू कल आना आराम से तेरे पैसे हम होम स्टे वाले को दे जाएंगे. मैंने सोचा इस से पहले राजीव सर का मूड चेंज हो जाये फटा फट बैग पकड़ के यहां से चलना ही अच्छा है. हम 0415 पे वहां से चल दिए करीब 1 KM चलने के बाद पीछे से हमारा शेरपा भी आ गया बोला सर लाओ बैग दे दो. फिर उसने बैग ले लिया और वो भी चल दिया. रात को 10 बजे हम यूक्सूम पहुचे. बिना कुछ खाये लगातार 19 घंटे का ट्रेक कर के हमने केवल 3 दिन में गोचाला ट्रेक पूरा कर दिया. उस दिन हम लोग 38 km चले. दज़ोंग्री न जाने का भी कोई अफसोस नहीं हुआ क्यू की अगले दिन बारिश हो रही थी. धन्यवाद