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अभी तक आपने जोधपुर में बिताये हमारे पहले दिन के बारे में पढ़ा। दूसरे दिन शाम को हमारी वापसी की टिकट मंडोर एक्सप्रेस से ही थी। ट्रेन जोधपुर से शाम 7:30 पर दिल्ली के लिए चलती है। यानि अगले दिन भी हमारे पास घूमने के लिए लगभग पूरा ही दिन था।
आज के दिन का मुख्य एजेंडा उम्मेद भवन पैलेस जाना, जिप्सी रेस्टोरेंट में लंच और चौधरी नमकीन के मिर्ची बड़े खाना था।
दिन की शुरुआत आराम से ही हुई। वैसे भी जोधपुर की चहल पहल 10 बजे के बाद ही शुरू होती है। होटल रूम के टैरिफ में ब्रेकफास्ट शामिल था इसलिए हम होटल के रेस्टोरेंट में हल्का सा नाश्ता कर आये। 11 बजे चेकआउट कर अपना लगेज होटल के क्लॉकरूम में ही छोड़ दिया।
पहला स्टॉप चौधरी नमकीन था। चौधरी नमकीन सरदारपुरा में स्थित है। यह दुकान अपने मिर्ची बड़े के लिए काफी प्रसिद्द है। गरमा गरम करारा चटपटा मिर्ची बड़ा दो ब्रेड स्लाइसेस के बीच में रख कर खाया जाता है। बहुत से लोग बिना ब्रेड के भी खाते हैं। यहाँ के मिर्ची बड़े के लिए ख़ास हरी मिर्च इस्तेमाल होती है और इसे मसाला भरने से पहले थोड़ी देर हलके गरम पानी में भी डाल कर रखते हैं। इस से मिर्च का तीखापन कुछ कम हो जाता है। साथ ही इनकी इमरती भी बहुत बढ़िया होती है। हमारा दिन का दूसरा नाश्ता यही हुआ। दोनों ही चीजें टेस्ट की गयीं। वाकई कोई जवाब नहीं था। अगर जोधपुर आना हो तो यहाँ जरूर आना चाहिए। चौधरी नमकीन वालों ने बताया कि बहुत से लोग उनके यहाँ से मिर्ची बड़े पैक करा कर बाहर भी ले जाते हैं।
यहाँ से चले तो उम्मेद भवन पैलेस पहुंचे। उम्मेद भवन का निर्माण महाराजा उम्मेद सिंह जी ने करवाया था। बताया जाता है कि जब मारवाड़ (आज का जोधपुर) में अकाल पड़ा तो लोग खानेपीने के लिए परेशान हो गए। ऐसे में महाराज ने अपनी प्रजा को रोजगार देने के लिए इस महल का निर्माण शुरू करवाया। इस महल को बनाने में 15 वर्ष से ज्यादा का समय लगा और ये सन 1943 में बनकर तैयार हुआ। यह महल भी एक ऊंची पहाड़ी पर है। आज भी महाराज गज सिंह जी, जो मारवाड़ के पूर्व शाही परिवार के वंशज है, और उनका परिवार इस महल के एक भाग में रहते हैं। महल के एक बड़े भाग में उम्मेद भवन पैलेस होटल बना दिया गया है, जो देश के सबसे रॉयल होटलों में से एक है। महल के एक भाग में एक संग्रहालय है। साथ ही साथ यहाँ बहुत सी विंटेज गाड़ियों भी हैं।
जब हम महल पहुंचे तो लगभग 12 बजे का समय हो गया था। काफी संख्या में टूरिस्ट्स महल के संग्रहालय को देखने आये हुए थे। संग्रहालय में शाही परिवार से जुडी बहुत से वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया था। महल का स्टाफ हर आने वाले विजिटर का स्वागत कर रहे थे और संग्रहालय के मुख्य आकर्षणों के बारे में बता रहे थे। पूरा संग्रहालय देखने में ज्यादा समय नहीं लगा। महल बहुत ही शानदार और भव्य बना है। सैंड स्टोन से बना महल धूप में और भी सुनहरा लग रहा था। मैंने कुछ समय पहले जैसलमेर की यात्रा की थी। जैसलमेर का किला भी इसी सैंड स्टोन का बना है और इस किले को सोने का किला भी कहा जाता है। उम्मेद भवन पैलेस भी बिलकुल इसी तरह लग रहा था।
महल के मुख्य दरवाजे से जोधपुर एयरपोर्ट दिख रहा था। यह एयरपोर्ट भारतीय वायुसेना के एयरबेस पर बना है इसलिए वहां बहुत से लड़ाकू विमान भी दिख रहे थे। महल पहाड़ी की ऊँचाई पर है इसलिए एयरपोर्ट के अंदर पूरा व्यू देख सकते थे। जोधपुर एयरबेस से बहुत से लड़ाकू विमान उड़ान भर रहे थे। शायद ये अपने प्रैक्टिस फ्लाइट्स के लिए जा रहे थे।
मुख्य महल से बाहर आ कर विंटेज गाड़ियों की पार्किंग बनी है। यहाँ बहुत से गाड़ियां और बग्घियां थीं। खास तौर पर अमिताभ बच्चन की फिल्म अकेला में इस्तेमाल हुई रामप्यारी भी थी। रामप्यारी यानि पीले रंग की विंटेज कार जिसपर फिल्म का गाना "रामप्यारी" फिल्माया गया था।
हमारा अगला पड़ाव सर्किट हाउस के पास नेशनल हैंडलूम था। वैसे तो हम कल नयी सड़क वाले नेशनल हैंडलूम शोरूम हो आये थे, लेकिन रात को जब विपुल जी से बात हुई तो उन्होंने बताया कि सर्किट हाउस वाला शोरूम सबसे बड़ा है। इसलिए हमने सोचा कि हमें यहाँ भी जाना चाहिए । विपुल जी बिलकुल सही थे। ये ब्रांच बहुत ही बड़ी थी। वैसे तो यहाँ भी चाइना मेटेरियल भरा हुआ था लेकिन राजस्थान हस्तकारी की भी बहुत से चीजे थीं। खास तौर पर लकड़ी और पत्थर से बनी हुई बहुत से चीजें थीं। यहाँ पर कपड़ों की भी ज्यादा वैरायटी थी। दाम भी ठीक ही थे। हमने कुछ कपडे, हेंडीक्राफ्ट की चीजें और कुछ और चीजें खरीद ली । शोरूम के ग्राउंड फ्लोर पर एक छोटा सा फ़ूड कोर्ट भी था जिसमें कुल्फी, जूस और स्नैक्स आइटम थे। अगर शॉपिंग करते करते भूख लगे तो वहीँ कुछ खा पी लो और फिर से शॉपिंग में जुट जाओ !!
महल घूम चुके थे, शॉपिंग हो गयी थी। भूख लग रही थी। प्लान में जिप्सी रेस्टोरेंट था तो वहीँ पहुँच गए। जिप्सी रेस्टोरेंट जोधपुर के सबसे अच्छे रेस्टोरेंट्स में से एक है। जोधपुर घूमने आने वाले लोगों की लिस्ट में यहाँ खाना खाना भी होता है। यह सरदारपुरा में C रोड पर पुलिस स्टेशन के पास है। रेस्टोरेंट में राजस्थानी थाली सर्व होती है। जिसमें कुछ व्यंजन गुजरात के भी होते हैं। रेस्टोरेंट में पहुँचते ही स्टाफ ने हमें हमारी टेबल तक पहुँचाया। जैसे ही हम लोग बैठे 2 बड़े बड़े थाल, जिनमें ढेर सारी कटोरियाँ थीं, हमारे सामने रख दिए गए। इसके बाद एक एक कर ढेर से व्यंजन परोसे जाने लगे। 2 चटनियाँ, सलाद, 2 स्नैक्स ( गुजराती फरसाण), 4 सब्जियां जिसमें एक पनीर और दो सब्जियां लोकल राजस्थानी थीं (गट्टे और कैर सांगरी), दाल, कढ़ी, दाल बाटी, 3 तरह की रोटियां, 2 तरह के चावल, 2 मिठाइयां और छाछ थी। शायद एक दो चीजें मैं भूल भी गया हूँ। खाने का मेनू हर दिन और दोनों समय बदलता रहता है।
इतना खाना सामने देख कर वैसे ही चक्कर आ गए। लेकिन जब खाना शुरू किया तो रुका ही नहीं गया। स्टाफ लगातार आ आकर खाने के बारे में पूछता रहा और खाने को refill करने का आग्रह करता रहा। बिलकुल राजस्थानी खातिरदारी हो रही थी।बीच में उनके टीम लीडर ने आकर "खीच" के लिए पूछा। खीच का मतलब बाजरे की खिचड़ी। साथ में घी और गुड़।
खाना इतना टेस्टी था कि ज्यादा खा गए। अब डिनर की भी छुट्टी थी। वैसे भी शाम तो ट्रेन में ही होनी थी। 2 लोगों का खाने का बिल लगभग 600 रुपये आया। रेस्टोरेंट थोड़ा महंगा तो है लेकिन यहाँ कभी कभार तो जाया ही जा सकता है। लेकिन खाना काफी हैवी भी होता है।
हमारा होटल यहाँ से पास ही था। वहां से अपना लगेज लिया और घंटा घर के लिए चल पड़े। घंटाघर से चतुर्भुज के गुलाब जामुन भी तो पैक कराने थे। ट्रेन में अभी भी कुछ समय था। इसलिए घंटाघर के आसपास बाजार में ही घूमते रहे। 6 बजे तो स्टेशन के लिए चल पड़े। रास्ते से रात के खाने के लिए कुछ पैक कराया ( बेटे के लिए ) और स्टेशन पहुँच गए। वहां पहुँच विपुल जी को फ़ोन कर धन्यवाद दिया।
ट्रेन सही समय पर चली और अगले दिन सुबह घर पहुँच गए।
2 दिन का ये छोटा सा ट्रिप बहुत ही बढ़िया रहा। प्रोग्राम रिलैक्स्ड था इसलिए कहीं भी ज्यादा थकान नहीं हुई। कुल खर्च भी बजट के हिसाब से ही रहा। राजस्थान की hospitality का तो वैसे भी कोई जवाब नहीं। शॉपिंग भी अच्छी रही। और राजस्थान के खाने का तो कोई जवाब ही नहीं।
आप देखिये आज के फोटोग्राफ्स।
जल्दी ही मिलते हैं अगले यात्रा वृतांत के साथ। धन्यवाद !!