राजस्थान : श्री बाबा रामदेव मंदिर
[[ 23-08-2017 ]]
बाबा रामदेव जी का मंदिर पोखरण से लगभग 12 किमी की दूरी पर रामदेवरा नामक एक गांव में स्थित है। रामदेव जी, राजस्थान के हिंदूओं के एक आराध्य, की समाधि मंदिर में स्थित है। ऐसा माना जाता है। कि 14 वीं सदी के संत, रामदेव जी असाधारण शक्तियों के मालिक थे, जिसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी। उन्होनें अपना पूरा जीवन गरीबों और पिछड़े वर्गों की सेवा में समर्पित कर दिया था। वर्तमान में, देश के कई सामाजिक समूहों उनकी अपने इष्ट देव के रूप में पूजा करते हैं।
मंदिर की वर्तमान इमारत 1931 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा उस स्थान पर बनवाई गई है। जहां रामदेव जी नें अपने नश्वर शरीर को त्यागा था।
वैसे तो हर समय मेरा दिल रामदेवरा जाने का करता है। परन्तु मेलें में जाने कि बात ही कुछ अलग है। इस समय मंदिर कि छठा ही निराली होती है। पुरे रामदेवरा को दुल्हन कि सजाया जाता है। लाखों लोगों इस समय रामदेवरा में बाबा के दर्शन करने आते हैं। जिससे काफी भीड़ रहती है। हर जगह बाबा के जयकारों से गूंज रही होती है। विश्वभर में प्रसिद्ध जैसलमेर के पोकरण में लगने वाला रामदेवरा मेला भादौ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया पर लगता है। इस तिथि को बाबा का जन्म अवतरण दिवस माना जाता है।
राजस्थान से बाहर भी कई राज्यों से साथ ही कई विदेश में रहने वाले भारत मूल के श्रद्धालु भी बाबा के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं। हमने भी बाबा के अवतरण दिवस पर दर्शन करने की सोची जिसे हम बाबा कि दूज के दर्शन कहते हैं। आज सुबह हम 5.00 बजे उठे और सीधा पहुंचे राम सरोवर वहां स्नान करा और दर्शन कि लाईन में लग गए। तब तक तकरीबन 5.45 बजे चुके थे। लाईन काफी लम्बी थी। भक्त जोर जोर से जयकारे लग रहे थे। जय बाबा की, जय बाबा की , भक्ति रस में डूबे हुए हमें पता ही नहीं चला कि कब 8.00 धंटे बीत गए।
जल्द ही मंदिर का मुख्य द्वार आ गया। अंदर जा कर देखा कि पहले मंदिर काफी छोटा था अब मंदिर काफी विस्तार कर दिया है।बड़े बड़े पंखे लगा रखे थे।
और पुरा मंदिर बाबा के जयकारों से गूंज रहा था। बाबा रामदेव जी राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं। बाबा का अवतरण वि. सं. 1409 को भाद्रपद शुक्ल दूज के दिन तोमर वंशीय राजपूत तथा रुणीचा के शासक अजमल जी के घर हुआ। उनकी माता का नाम मैणादे था। उन्होंने पूरा जीवन शोषित, गरीब और पिछड़े लोगों के बीच बिताया तथा रूढिय़ों एवं छुआछूत का विरोध किया। भक्त उन्हें प्यार से रामपीर या राम सा पीर भी कहते हैं। बाबा को श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है। बहुत से श्रद्धालु भाद्र माह की दशमी यानी रामदेव जयंती पर रामदेवरा में लगने वाले सालाना मेले में अवश्य पहुंचना चाहते हैं। यह मेला एक महीने से अधिक चलता है।
लोक कथाओं के अनुसार बाबा के पिता अजमल और माता मीनल ने द्वारिका के मंदिर में प्रार्थना कर प्रभु से उन जैसी संतान प्राप्ति की कामना की थी। कहा जाता है कि जब रामदेव जी के चमत्कारों की चर्चा चारों ओर होने लगी तो मक्का (सऊदी अरब) से पांच पीर उनकी परीक्षा लेने आए। वे उनकी परख करना चाहते थे कि रामदेव के बारे में जो कहा जा रहा है वह सच है या झूठ। बाबा ने उनका आदर-सत्कार किया। जब भोजन के समय एक पीर ने कहा, हम अपना कटोरा मक्का में ही भूल आए हैं। उनके बिना हम आपका भोजन ग्रहण नहीं कर सकते। इसके बाद सभी पीरों ने कहा कि वे भी अपने ही कटोरों में भोजन करना पसंद करेंगे।
बाबा रामदेव जी ने कहा, अतिथि सत्कार हमारी परम्परा है। हम आपको निराश नहीं करेंगे। अपने कटोरों में भोजन ग्रहण करने की आपकी इच्छा पूरी होगी। यह कह कर बाबा ने वे सभी कटोरे रुणीचा में ही प्रकट कर दिए जो पांचों पीर मक्का में इस्तेमाल करते थे। यह देखकर पीरों ने भी बाबा की शक्ति को प्रणाम किया और उन्होंने बाबा को ‘पीरों के पीर’ की उपाधि दी। जल्द ही हम दर्शन कर के बहर आ गये।
हम काफी देर तक मेलें में धूम फिर चल दिया बस स्टैंड कि तरह जोधपुर जाने के लिए पहले हमारा प्रोग्राम था कि रामदेवरा से ही हम बस से माउंट आबू पहुंचे परन्तु वहां बस कि व्यवस्था नहीं था इसलिए हम जोधपुर चल दिया। जोधपुर आते आते 11.30 बजे चुके थे जगह जगह बाबा रामदेव जी के जागरण हो रहें थे। जोधपुर पहुंचे के हमने भगत कि कोठी रेलवे स्टेशन के लिए ओटो कर लिया क्योंकि वहीं से हमें माउंट आबू कि ट्रेन मिलती। स्टेशन काफी साफ सुथरा था और काफी शांत भी है हमारी ट्रेन सुबह 5.55 की थीं सो हमें काफी समय वहीं बिताना था।