देश की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक राजधानी बनारस को एक और नया विश्व प्रसिद्ध कीर्तिमान स्थापित का सौभाग्य प्राप्त हो गया है। प्रिय घुमक्कड़ों जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बनारस दुनिया का एकमात्र जीवित शहर है, यानी कि जब आज के विकसित देशों में शहरों के पदचिन्ह और छाप नहीं थे उस समय भी बनारस एक जीवंत शहर के रूप में अपने परम वैभव के साथ विद्यमान था। बनारस स्वयं देवाधिदेव महादेव के द्वारा बसाया हुआ शहर है। ऐसी मान्यता है कि बनारस भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है। बनारस वह जगह है जहां आनंदरूपी रूपी रस सर्वत्र विद्यमान है फिर चाहे उसका संबंध लौकिक जीवन से हो या पारलौकिक जीवन से। इसीलिए इसका नाम बनारस पड़ा है। रस ही रस है यहां चारों दिशाओं में।
बनारस की अपनी एक अलग घड़ी है। आज की भाग-दौड़ व सरपट दौड़ लगाने वाली ज़िंदगी से बिल्कुल अलग---क्योंकि इस भागम-भाग वाली ज़िंदगी का पड़ाव या ठहराव कब और कहां होगा इसका किसी को तनिक भी भान नहीं है। यहां का समय भाग-दौड़ की ज़िंदगी वाली समय से बिल्कुल अलग अलमस्त और अल्हड़ स्वभाव का बड़ा क्यूट सा है। यहां समय दशाश्वमेध घाट पर गंगा स्नान करता है फिर अस्सी घाट पर भांग खाए पड़ा रहता है तो दूसरी ओर मणिकर्णिका घाट पर इस क्षणभंगुर जीवन की धूं-धूं कर जलती चिताओं से उठने वाली आग की लपटें मानों यह संदेश दे रही हैं कि जीवन में राम नाम ही परम सत्य है।
मणिकर्णिका घाट पर इन जलती चिताओं को देखकर हर प्राणी को यह अहसास हो जाता है कि इस क्षणभंगुर जीवन का अंतिम पड़ाव महज एक मुट्ठी भर राख के सिवाय और कुछ भी नहीं है। सबकी गति अंत में यही होनी है फिर चाहे वो राजा हो या रंक।
साथियों वैसे तो बनारस बहुत सारी चीजों के लिए प्रसिद्ध है। देश के प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंगों में एक मुख्य ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ स्वयं बनारस में विराजमान हैं। बनारस अपने घाटों, तंग गलियों, खान-पान, वेशभूषा, अल्हड़ स्वभाव, हंसी-ठिठोली, मौज-मस्ती, गंगा आरती, माँ गंगा, मठ-मंदिरों व बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आदि चीजों के लिए प्रसिद्ध है किंतु आज मैं आपको काशी के बगियाँ में चार-चांद लगाने वाले विश्व के सबसे बड़े मेडिटेशन सेंटर (साधना केंद्र) स्वर्वेद महामंदिर धाम से अवगत कराने जा रहा हूँ।
बनारस शहर से लगभग 14km दूर गाजीपुर रोड़ पर निर्माणाधीन स्वर्वेद महामंदिर धाम भारत का ही नहीं अपितु दुनिया का सबसे बड़ा मेडिटेशन सेंटर (साधना केंद्र) है। इसका निर्माण विहंगम योग संस्थान द्वारा करवाया जा रहा है।
स्वर्वेद महामंदिर धाम का संकल्प व निर्माण :-
स्वर्वेद महामंदिर धाम का निर्माण सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज द्वारा स्थापित विहंगम योग संस्थान द्वारा करवाया जा रहा है। सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के पकड़ी नाम गांव में प्रसिद्ध श्रृंगी ऋषि के कुल, सेंगर वंश में हुआ था। महर्षि सद्गुरु सदाफल देव जी लगातार 17 वर्षों तक विभिन्न आध्यात्मिक जगहों जैसे वृत्तिकूट धाम बलिया, प्रयागराज की गुहा व शून्य शिखर आश्रम हिमालय में तपस्या करते रहे जिसके फलस्वरूप जो भी उनको आध्यात्मिक अनुभूति व ज्ञान अर्जित हुआ उससे इन्होंने हिमालय की कंदराओं में बैठ कर स्वर्वेद नामक महाग्रंथ की रचना कर दिया।
स्वर्वेद महामंदिर धाम सद्गुरु सदाफल देव जी द्वारा रचित महाग्रंथ स्वर्वेद को ही समर्पित हैं। इस महाग्रंथ में सद्गुरु ने सृष्टि से लेकर प्रलय तक के रहस्यों का बड़ा ही सुंदर और सहज ढंग से वर्णन किया है। इस महामंदिर धाम के पीछे जो संकल्प है वह विश्व में आध्यात्मिक शांति स्थापित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। लोग यहां आकर ध्यान साधना करते हुए अपने जीवन के परम लक्ष्य, त्रिताप दुःख से निवृत्ति व आवागमन के चक्कर से मुक्ति को प्राप्त करें जिससे उनका लौकिक और पारलौकिक दोनों ही जीवन समृद्ध व उन्नत बनें।
स्वर्वेद महामंदिर धाम में आकर्षण का केंद्र :-
यह मंदिर रात की रोशनी व बिजली की सजावट के बाद जयपुर के हवामहल जैसा दिखता है। स्वर्वेद महामंदिर का निर्माण सफ़ेद मार्बल व गुलाबी मकराना पत्थर से किया जा रहा है। 7 मंजिला के इस मंदिर के प्रथम 5 तल की दीवारों पर स्वर्वेद महाग्रंथ के 3137 दोहे के साथ ही वेद की ऋचाएं, उपनिषद व गीता के ब्रह्म विद्यापरक श्लोक, माइस की चौपाइयां व कबीर वाणी भी उत्कीर्ण किये जाएंगे। 6-7वें तल पर 2 ऑडिटोरियम होंगे। इसके अलावा इस मंदिर में आत्मा-परमात्मा, ऋषि संस्कृति, विश्व को भारत की देन योग, आयुर्वेद, शून्य समेत आदि झांकिया भी होंगी। सभी मंजिलों पर सद्गुरु सदाफल देव जी की साधना की मुद्रा में प्रतिमा लगाई गई है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर गज समूह, ऋषिकाएँ व साधक की मूर्तियां लगी हैं।
यह मंदिर वास्तुशिल्प का अद्भुत एवं अनोखा उदाहरण है। मंदिर में सद्गुरु सदाफल देव जी की 113 फ़ीट ऊंची प्रतिमा भी लगी है जो बहुत ही दिव्य और आकर्षक है।
यह मंदिर मानव मात्र के सर्वांगीण विकास व विश्व शांति के लिए समर्पित है।
इस मंदिर में विशेष सुविधाएं इस प्रकार हैं
1- 20000 साधकों के लिए ध्यान केंद्र
2- सद्गुरु सदाफल विद्यापीठ (गुरुकुलम)
3- वृद्धाश्रम
4- प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र
5- आयुर्वेद हॉस्पिटल
6- गौशाला
7- योग अध्ययन व रिसर्च सेंटर
8- गेस्ट हाउस (आश्रम)
इस मंदिर का निर्माण 18 साल से चल रहा है और 2024 तक यह बनकर तैयार हो जाएगा उसी के साथ यह मानव सेवा को समर्पित कर दिया जाएगा।
स्वर्वेद महामंदिर धाम कैसे पहुंचे :-
स्वर्वेद महामंदिर धाम बनारस व बौद्ध धर्म के प्राचीन धर्म स्थल सारनाथ के बीच में स्थित है। यह मंदिर बनारस शहर से 15km दूर गाजीपुर रोड़ पर स्थित है। आप यहां रेल मार्ग से आते हैं तो बनारस रेलवे स्टेशन उतरना होगा। हवाई मार्ग से आते हैं तो बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतरना होगा फिर वहां से आपको टैक्सी या बस द्वारा आना होगा। सड़क मार्ग से आएंगे तो बनारस व सारनाथ दोनों बस स्टैंड से आप आ सकते हैं सारनाथ बस स्टैंड 8 km दूर है तो बनारस बस स्टैंड 15 km दूर।
घुमक्कड़ों की दुनिया में एक कहावत प्रचलित है कि बनारस नहीं देखा तो क्या ख़ाक घुमक्कड़ी किया यानी कि बिना बनारस का भ्रमण किए घुमक्कड़ी अधूरा माना जाता है। अतः दुनिया के घुमक्कड़ों जब भी समय मिले अपना बैकपैक उठाओ और बनारस का दीदार करने निकल पड़ो। यहां की मिट्टी में एक अलग ख़ुशबू है, यहां की आबो-हवा में एक अलग प्रकार का नशा है। यहां के घाटों पर एक अलग प्रकार का आकर्षण व प्रेम है जैसे यहां के घाट आपसे कह रहे हों कि तुम यहीं का हो जाओ यहीं अपना आशियाना बना लो नहीं तो दुनिया की उहा-पोह में तुम कहीं खो जाओगे।
यहां के घाटों पर बैठकर आप मां गंगा के कल-कल बहते जल-प्रवाह की आवाज को सुनते हुए बाहरी दुनिया से कटकर कब आप अपनी आंतरिक दुनिया में प्रवेश कर जाएंगे यह आपको पता ही नहीं चलेगा। यहां के घाटों पर बैठे हुए मंदिरों में बजने वाले घंटों के टन-टन की आवाज हवा के झोकों से छनकर जब आपके कान के पर्दों से टकराएगी तो आप सहसा चौंक जाएंगे मानो नींद से जग गए हों और खुद से सवाल कर बैठेंगे कि आख़िर इसी मधुर ध्वनि की तो खोज में मैं कब से विचलित व बेचैन था। और अगर आपका ये सब करने का भी जी न करे तो कसम से एक बार आप बनारस की तंग गलियों में खोकर आ जाइए। बनारस की गलियों में जब आप एक बार भटक कर आएंगे तो पाएंगे मानो जैसे ये गलियां आपसे कह रही हों कि आप अपने जीवन के लक्ष्य के पड़ाव से विमुख होकर इन गलियों की भांति कहीं खो सा गए हैं। जिधर से भी निकलने का प्रयास कर रहे हैं मानो घूम-फिर कर फिर उसी गली में पहुंच जा रहे हैं। अपने अस्तित्व और स्व (आत्मसाक्षात्कार) की खोज से जैसे कोसों दूर चले गए हैं। मंजिल दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा है। दोस्तों मेरी बात पर यकीन न करो और खुद ही बनारस घूम आओ आपको यह सब वहां पहुंचने पर स्वयं अनुभूत हो जाएगा, बनारस की अमिट छाप आपके दिलों-दिमाग पर ऐसा असर करेगा कि आप दशकों तक इसे भूला न पाएंगे।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा मुझे कमेंट बॉक्स में अपना सुझाव जरूर भेजें।