कोलकाता शहर अपने विरासतों के लिए जाना जाता है। यहाँ सैलानी इतिहास की परतों को खोलने, उनसे दो-चार होने आते हैं। इतना ही नहीं, ये शहर अपने में भारत की संस्कृति को समेटे हुए उनमें नई जान फूंकते नजर आता है। हुगली नदी तट पर बसा कोलकाता कभी देश की राजधानी हुआ करता था तो आज इसकी जिंदादिली के कारण इसे 'सिटी ऑफ़ जॉय' के रूप में जाना जाता है।
अमूमन यहाँ संस्कृति प्रेमी पुराने खंडहरों, भवनों के जरिए इतिहास टटोलने, उनकी जड़ों को खोजने आते हैं। उन जड़ों को खोजते भले ही मुश्किलें आती हों लेकिन यहाँ मौजूद एक बरगद का पेड़ उन्हें ज़रूर चकमा दे जाता है! जिसकी असल जड़ों का पता लगाना किसी के लिए बेहद कठिन और रोमांचकारी है। एक पेड़ में अनगिनत जड़ें हैं तो वहीं ये इतने दूर में फैला है कि अपने आप में एक जंगल है।
जी हांँ हम बात कर रहे हैं 'ग्रेट बनयन ट्री' की जो कि कोलकाता के पास ही हावड़ा के शिवपुर में आचार्य जगदीश चंद्र बोस बोटानिकल गार्डन में बड़े शान से खड़ा है। यूँ तो 270 एकड़ में फैले इस गार्डन में 12,000 से ज्यादा तरह के पेड़-पौधे मौजूद हैं लेकिन विशाल बरगद का पेड़ सबको हैरत में डालता है और मुख्य आकर्षण के रूप में ज़हन में बैठ जाता है। कहें तो बोटानिकल गार्डन की पहचान ही इस पेड़ से बन चुकी है।
इस बरगद में क्या है खास?
जानकारी है कि ये वटवृक्ष विश्व का सबसे बड़ा बरगद का पेड़ है। टूरिस्ट खासकर इसी पेड़ को देखने गार्डन तक खींचे आते हैं। पहली दफा देखने पर जान पड़ता है कि एक से दिखने वाले कई पेड़ों के जंगल में आएँ हैं लेकिन आपको जल्द पता चल जाता है कि असल में जिसे जड़ समझने की भूल करते हैं वो बरगद की जटाएँ और अतिरिक्त तना हैं।
बताया जाता है कि ये बरगद का पेड़ वहाँ गार्डन बनने से 15-20 साल पहले से मौजूद है। इस हिसाब से इसकी उम्र 250 साल से ज्यादा की है। आचार्य जगदीश चंद्र बोस बॉटनिकल गार्डन साल 1787 में स्थापित किया गया था। जानकर हैरानी होगी कि इस विशाल पेड़ की 3,372 से अधिक जटाएँ जड़ का रूप ले चुकी हैं। जाहिर है ऐसे में किसी को भी कन्फ्यूजन हो सकता है।
कई तूफानों को झेल चुका ये पेड़ पक्षियों की 87 अलग-अलग प्रजातियों के लिए निवास स्थान भी है। फिलहाल इस पेड़ का फैलाव लगभग 18.918 वर्ग मीटर में है। लिहाज़ा इसके नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हैं। ये ख़ास पेड़ बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया का प्रतीक चिह्न है तो वहीं डाक विभाग ने 1987 में इस पर डाक टिकट भी जारी कर रखा है।
जान लें कि इस विशाल पेड़ के नीचे लगभग 10,000 लोग एक साथ खड़े हो सकते हैं। बताया जाता है कि प्राकृतिक आपदाओं के अलावे इसे प्रदूषण से नुकसान पहुँच रहा है। इसकी देख-रेख के लिए 13 एक्सपर्ट लोगों को नियुक्त किया गया है जो कि इसका ख्याल रखते हैं।
गार्डन में और क्या है ख़ास?
विशाल वटवृक्ष के अलावे यहाँ हज़ारों प्रजाति के पेड़ और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। इनमें 1,400 विदेशी प्रजातियों के भी पेड़ तथा कई प्रकार की जड़ी-बूटियाँ मौजूद हैं। इन पेड़ों की देखभाल के लिए 25 डिवीज़न, कांच के घर, ग्रीनहाउस तथा संरक्षक की व्यवस्था की गई है। पेड़ों की कई दुर्लभ प्रजातियों को नेपाल, मलेशिया, जावा, ब्राजील, सुमात्रा आदि जगहों से लाकर यहाँ संरक्षित किया गया है। गार्डन में अजीब-अजीब पेड़ों के अलावे सैलानियों के नौकाविहार की भी व्यवस्था है। साथ ही गार्डन की लाइब्रेरी में पेड़-पौधों के जुड़ी किताबें मिलती हैं।
गार्डन बनने के पीछे की कहानी
गार्डन की स्थापना ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य अधिकारी कर्नल अलेक्जेंडर किड ने की थी। इस गार्डन के निर्माण के पीछे व्यावसायिक उद्देश्य था। वे यहाँ देशभर से ऐसे पौधों को यहाँ लाना चाहते थे जिनका व्यापारिक महत्व हो। सर जॉर्ज किंग ने इसका डिज़ाइन किया तो वनस्पति विज्ञानी विलियम रोक्सबर्ग ने बगीचे के अधीक्षक के रूप में सेवा देते हुए इसे संवारा। 25 जून 2009 को महान वैज्ञानिक आचार्य जगदीश चंद्र बोस के नाम पर इसका नामकरण हुआ।
कब जाएँ यहाँ?
बोटानिकल गार्डन की यात्रा का सबसे मुफीद समय अक्टूबर से मार्च का होता है। आप धूप सेंकते बिना थके प्रकृति के चमत्कारों को यहाँ देख सकते हैं। जानकारी के लिए बता दूँ कि गार्डन में प्लास्टिक और स्मोकिंग बैन है। आप खाने-पीने के सामान बगीचे में नहीं ले जा सकते हैं। कैंपस में एक जगह पर खरीद के लिए खाने-पीने का सामान उपलब्ध है।
विशाल गार्डन को पैदल घूमते हुए देखना मुश्किल है। आप गेट से छह सीट वाली कार ले सकते हैं ताकि सभी जगह घूम सकें। ड्राइवर आपको विभिन्न जगहों पर रोकते हुए ले जाएगा और साथ ही पौधों के बारे में जानकारी देगा।
कैसे पहुँचें बोटानिकल गार्डन
कोलकाता शहर के लगभग सभी जगहों से यहाँ टैक्सी या कैब से पहुँचा जा सकता है। बोटानिकल गार्डन जानेवाली बसों को पकड़ सकते हैं। बोटानिकल गार्डन शहर के पश्चिम की ओर हावड़ा में हुगली नदी के किनारे स्थित है। शालीमार रेलवे स्टेशन गार्डन के सबसे करीब है लेकिन हावड़ा स्टेशन से बस और टैक्सी लेना ही सही होगा क्योंकि ट्रेन कनेक्टिविटी उतनी नहीं है।
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