अहमदाबाद में बहुत सारी ऐसी ऐतिहासिक जगह है जो अद्धभुत निकाशकारी को दरसाने के साथ-2 धार्मिक महत्व भी रखती है।
ऐसी ही एक जगह है- "हथींसिंग जैन मंदिर"
चलिए जानते है इसके बारे में।
3.हथींसिंग जैन मंदिर:- जैसा नाम से ही पता चलता है, यह जैन मंदिर है जो 15 वें जैन तीर्थंकर धर्मनाथ को समर्पित है। हम सब को पता ही है कि जैन धर्म के 24 तीर्थकर हुए है। भगवान महावीर जैन 24 वें तीर्थकर थे जिन को समर्पित दिलवाडा जैन मंदिर माऊट आबू में स्थित है।
इस जैन मंदिर को अहमदाबाद के एक व्यवसायी शेठ हथिसिंग के द्वारा दान 10 लाख रूपयों की लागत से बनाया गया है। इसका निर्माण 1848 ई. र्पू. हुआ था। इसे सफेद पत्थर से बनवाया गया है जो सलत समुदाय के लिए एक उत्कृष्ट शिल्प कौशल का नमूना है। शेठ हथींसिंग की आयु केवल 49 वर्ष होने के कारण इस मंदिर को पूरा उनकी धर्मपत्नी ने आपनी करवाया था। आज भी हथींसिंग पर टरसट इस मंदिर की देखभाल को बखूबी निभा रहा है। समय-समय पर निर्माण कार्य आवश्यकतानुसार किया जाता है।
यह मंदिर दिल्ली गेट के काफी करीब है। इस मंदिर में एक मंडप, स्तंभ के साथ गुंबद और सुंदर नक्काशी वाले 12 खंभे है। मुख्य मंदिर ,जो दो मंजिला अतिअंत सुंदर मंदिर है ,पूर्व में स्थित है और जैन तीर्थकरों के कुल 52 श्राइन ( पूजा करने वाली जगह) है। श्राइन के मुख्य द्वार के सामने कीर्ति स्तंभ/महावीर स्तंभ बना हुआ है जो कि सम्मान का स्तंभ है व 78 मीटर ऊचा है,यह राजस्थान के चित्तौड़ स्तंभ से मिलता है। इस पर की गई नक्काशी मुगल डिजाइन से काफी मिलती जुलती है। इन्हे देखने के बाद मंदिर में प्रवेश होता है।
अगली जगह है -राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी से संबंधित साबरमती आश्रम जो साबरमती नदी के कंधे पर बना बहुत सुंदर आश्रम है।
महात्मा गाँधी के बारे में आप सभी जानते ही होगे, कैसे अहिंसावादी की नीति पर चलते हुए अंदोलन करते-2 आजादी की जंग लड़ी। साबरमती आश्रम से उनका क्या रिश्ता था?यह जान लेते है।
4.साबरमती आश्रम:- यह आश्रम अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के किनारे स्थित है। सत्याग्रह आश्रम की स्थापना सन् 1915 में अहमदाबाद के कोचरब नामक स्थान में महात्मा गांधी द्वारा हुई थी। सन् 1917 में यह आश्रम साबरमती नदी के किनारे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित हुआ और तब से साबरमती आश्रम कहलाने लगा।
साबरमती आश्रम में रहते हुए महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 ई. को आश्रम के अन्य 78 व्यक्तियों के साथ नमक कानून भंग करने के लिए ऐतिहासिक दांडी यात्रा की। इसके बाद गांधी जी भारत के स्वतंत्र होने तक यहाँ लौटकर नहीं आए। दांडी मार्च जिसे नमक मार्च, दांडी सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है,अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के विरुद्ध किया गया था,जिस में साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गाँव दांडी तक पैदल यात्रा 12 मारच 1930 से 06 अप्रैल 1930 तक 24 दिनों में दांडी पहुंच कर नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून को भंग किया गया था। भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय नमक उत्पादन और विक्रय के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगा दिया था और नमक जीवन के लिए जरूरी चीज होने के कारण भारतवासियों को इस कानून से मुक्त करने और अपना अधिकार दिलवाने हेतु ये अंदोलन किया गया था। कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियाँ खाई थी परंतु पीछे नहीं मुड़े थे।इस आंदोलन में कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया,जैसे राज गोपालचारी,पंडित नहेरू, आदि। इस आन्दोलन नें संपूर्ण देश में अंग्रेजो के खिलाफ व्यापक जनसंघर्ष को जन्म दिया था।
यह आश्रम बहुत रमणीक और शांत जगह है। एक संग्रहालय भी बना हुआ है। बहुत अच्छी कुटिया भी बनी हुई है। चरखा भी देखने को मिल जाता है। पेड़-पौधे, साबरमती का दृश्य सब मिल कर आश्रम को चार चाँद लगा देते है।
यह थी अहमदाबाद की कुछ अच्छी देखने लायक जगह।
अहमदाबाद कैसे जाए: अहमदाबाद हवाई मार्ग, रेलवे मार्ग और सड़क मार्ग से देश के बाकी भागों से जुड़ा हुआ है। किसी भी मार्ग से जाया जा सकता है।
धन्यवाद