#लिटल_रण_आफ_कच्छ_यात्रा
#लिटल_रण_की_सफारी
#भाग_2
दोस्तों पिछले भाग में जिंजूवाड़ा गांव शाम चार बजे तक पहुंच गया था। कैंप साईट के मालिक मोहिंदर सिंग जी मेरे मित्र हैं उन्होंने मेरा जोरदार सवागत करते हुए मुझे कौफी पिलाई और फिर हम लिटल रण आफ कच्छ की सवारी के लिए निकल पड़े। सबसे पहले जिंजूवाड़ा गांव में एक ईतिहासिक दरवाजे को देखा जिसको गुजरात के सोलंकी वंश के राजाओं ने बनाया हैं। यह दरवाजा देखने में बहुत खूबसूरत है और बहुत लाजवाब मीनाकारी की गई हैं। फिर हम थोड़ी देर बाद लिटल रण आफ कच्छ मे प्रवेश कर गए। मैरून रंग की उपन गाड़ी में बैठ कर मै अपने गाईड के साथ लिटल रण आफ कच्छ की सफारी का मजा ले रहा था। रण में प्रवेश करते ही उबड़ खाबड़ जमीन दिखाई देने लगी। गाईड ने बताया लिटल रण आफ कच्छ में 5000 से जयादा गुड़खर ( जंगली गधे) पाए जाते है, यह घोड़े और गधे के बीच का एक प्राणी हैं। गुड़खर 70 किमी की रफ्तार से दौड़ते हैं। यह रण में पाई जाने वाली नमकीन झाड़ियों को खाते है। मुझे भी दूर से घूमते हुए गुड़खर दिखाई दिए। इसके ईलावा रण में बहुत सारे पंछी भी मिलते हैं । गुड़खर देखने के बाद हम रण में और आगे बढ़ गए। अब हर तरफ सन्नाटा था , उज़ाड जमीन न कोई पानी का निशान, न कोई बनस्पति सिर्फ टूटी हुई जमीन दिखाई दे रही थी। सनसैट होने वाला था मैंने गाड़ी रुकवा कर कुछ समय तक लिटल रण आफ कच्छ में डूबते हुए सूरज का नजारा लिया । कुछ कदम चल कर कुदरत की बनाई हुई इस अद्भुत जगह का आनंद लिया। यहां न कोई शोर था , न रौला , बस दूर दूर तक फैला हुआ सन्नाटा था, जो इस वातावरण को बहुत रोमांचक बना रहा था। लिटल रण आफ कच्छ तकरीबन 5000 किमी क्षेत्र में गुजरात के कच्छ, मोरबी, सुरेंद्र नगर , पाटन आदि जिलों में फैला हुआ है। मैंने यह सफारी 850 रुपये में शाम चार बजे से साढे़ सात तक की वह भी अकेले ही उपन गाड़ी मे गाईड के साथ। अगले भाग में सफारी के अन्य नजारों के बारे में लिखूंगा ।
धन्यवाद ।