#मेरी_गिरनार_पर्वत_यात्रा
#माता_अंबा_मंदिर_से_दत्रातरेय_मंदिर_तक
नमस्कार दोस्तों
पवित्र गिरनार पर्वत यात्रा के दूसरे भाग में आपका सवागत हैं। पिछले भाग मैं भवनाथ तालेटी से माता अंबा जी के मंदिर तक गिरनार रोपवे से सुबह 7 बजे ही पहुंच गया था। इस भाग में हम माता अंबा जी के मंदिर से गुजरात के सबसे ऊंचे सथान दत्रातरेय मंदिर तक की पैदल यात्रा करेंगे। माता अंबा जी के मंदिर में दर्शन करके मैं अपनी यात्रा की अगली मंजिल की ओर बढ़ने लगा। नवरात्रि की वजह से माता अंबा जी का मंदिर की फूलों से खूबसूरत सजावट की हुई थी जो बहुत सुंदर लग रही थी। माता अंबा जी मंदिर से आगे एक छोटी पहाड़ी पर गोरखनाथ जी का मंदिर आता है , फिर गोरखनाथ मंदिर से तीखी उतराई हैं जहां नीचे जाकर दो सवागती गेट आते है । बाएं तरफ वाले गेट से रास्ता ऊपर की तरफ तीखी चढ़ाई से गुरु दत्रातरेय मंदिर की ओर चला जाता हैं और दाएं तरफ एक रास्ता नीचे की तरफ कुमंडल कुंड की तरफ चला जाता है।
गिरनार पर्वत पर आप रोपवे से माता अंबा जी मंदिर तक पहुंच सकते हो। वहां से आगे आप पैदल चल कर निम्नलिखित जगहों के दर्शन कर सकते है।
1. गोरखनाथ मंदिर
2. दत्रातरेय मंदिर
3. कुमंडल कुंड
माता अंबा जी मंदिर में आगे पैदल बढ़ने लगा , मंदिर के पीछे एक छोटा सा बाजार बना हुआ है जहां पर प्रसाद , खाने पीने और चाय आदि की छोटी छोटी दुकानें बनी हुई हैं लेकिन सुबह सिर्फ 7 बजे जल्दी समय होने के कारण अभी जयादातर दुकानें बंद थी। कुछ रास्ता समतल चलने के बाद कयोंकि माता अंबा जी मंदिर 800 मीटर की एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है तो आप वहां से आगे कुछ कदम उसी पहाड़ी पर पैदल चलते हैं। फिर आगे जाकर सीढियां शुरू हो जाती हैं । जो सामने दिख रही पहाड़ी तक चलती हैं जहां उस पहाड़ी के शिखर पर गुरु गोरखनाथ जी का शानदार मंदिर बना हुआ है। अब सीढियों के दोनों तरफ के नजारे खूबसूरत दिखाई देते हैं। दूर दूर दिखाई देते तक हरे भरे पहाड़ और जंगल आपका मन मोह लेते हैं। धीरे धीरे सीढियों को चढ़ते हुए मैं पहाड़ी के शिखर पर बने हुए गुरु गोरखनाथ जी के भव्य मंदिर पर पहुंच जाता हूँ। कुछ समय यहां बैठ कर सांस लेता हूँ और फिर गोरखनाथ मंदिर के दर्शन करता हूँ। यहां पर कहा जाता है गुरु गोरखनाथ जी ने तपस्या की थी । गुरु गोरखनाथ जी के चरण पादुका बनी हुई हैं। गोरखनाथ मंदिर से गुरु शिखर जहां पर गुरु दत्रातरेय जी का मंदिर बना हुआ है के आलौकिक दर्शन होते है। वहीं से मैंने दत्रातरेय मंदिर पहाड़ी की खूबसूरत फोटो खींची और एक यात्री को मेरी फोटो खींचने के लिए कहा जिसे उसने मान लिया । अब आगे तीखी उतराई थी , सीढियां नीचे की ओर उतर रही थी । गर्मी ने भी बुरा हाल कर दिया था । मैं भी दूसरे यात्रियों के साथ सीढियों से नीचे उतर रहा था। खाली हाथ होने का फायदा मुझे अब मिल रहा था , बैग को होटल में रखना सही साबित हुआ । मैं धीरे धीरे सीढियां उतर कर उस जगह पर पहुंच गया जहां पर दो सवागती गेट बने हुए हैं। बाएं तरफ गेट का रास्ता आपको गुरु दत्रातरेय जी के मंदिर तक तीखी चढाई के साथ लेकर जाता हैं । दाएं तरफ गेट का रास्ता आपको नीचे उतराई के साथ कुमंडल कुंड की तरफ ले जाता है। यहां पर कुछ समय सांस लेकर मैंने सोचा पहले चढाई वाले रास्ते पर जाता हूँ। गुरु दत्रातरेय जी के मंदिर की ओर तीखी चढाई वाले रास्ते पर ऊंची ऊंची सीढियों को मैंने चढ़ना शुरू कर दिया। चढाई का आखिरी भाग काफी ऊंचा हैं और तीखी सीधी चढ़ाई हैं। धीरे धीरे चढ़ते हुए मैं आखिरकार गुरु दत्रातरेय मंदिर तक पहुंच गया। यह जगह गुजरात का समुद्र तट से सबसे ऊंचा पुवाईट हैं जिसकी ऊंचाई तकरीबन 1100 मीटर हैं । गुरु दत्रातरेय जी का मंदिर का आकार झौंपड़ी नुमा बना हुआ हैं। इसका आकार मन मोह लेता हैं। मंदिर के बाहर जूते उतार कर मैंने दत्रातरेय जी के मंदिर में प्रवेश किया । मंदिर के अंदर गुरू दत्रातरेय जी की सफेद रंग की तीनमुखी मूर्ति बनी हुई हैं जो गुरु दत्रातरेय जी ब्रह्मा विष्णु और शिव रुप को प्रदर्शित करती हैं। इससे पहले मैंने महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में माहुर गढ़ और राजस्थान के माऊंट आबू में गुरु शिखर में गुरु दत्रातरेय जी के दर्शन किए हैं। राजस्थान और गुजरात के समुद्र तल से सबसे ऊंचे सथान पर गुरु दत्रातरेय जी का मंदिर बना हुआ है।
राजस्थान का सबसे ऊंचा सथान गुरु शिखर हैं जो माऊंट आबू के पास हैं वहां पर भी गुरु दत्रातरेय जी का मंदिर बना हुआ है। गुजरात का समुद्र तल से सबसे ऊंचा सथान गुरु दत्रातरेय जी मंदिर गिरनार में हैं। इस मंदिर में गुरु दत्रातरेय जी के चरण पादुका भी बनी हुई हैं। मंदिर के अंदिर फोटोग्राफी करना मना है। दर्शन करने के बाद मैंने बाहर आकर नीचे उतरना शुरू कर दिया। अब सीढियों से उतरता हुआ दुबारा फिर सवागती गेट पर पहुंच गया जहां से गुरु दत्रातरेय जी और कुमंडल कुंड का रास्ता कटता हैं। सुबह का चाय और बिस्किट के बिना कुछ भी नहीं खाया था और भूख भी बहुत लगी थी। इस यात्रा पर आपको कुमंडल कुंड पर लंगर मिलता है। जल्दी ही सीढियों को उतर कर मैं कुमंडल कुंड मंदिर के द्वार पर पहुंच गया। मंदिर के अंदर गुरु दत्रातरेय जी का धूना बना हुआ है जिसकी फोटोग्राफी करना मना हैं। दत्रातरेय मंदिर में दत्रा जी के चरण पादुका और कुमंडल कुंड में उनका धूना हैं। दर्शन करने के बाद मैंने वहां चल रहे लंगर को छका । लंगर में खमण ढोकला , मीठी बूंदी और चाय का गिलास मिला । लंगर छक कर शरीर में जान आ गई कयोंकि सुबह से कुछ खाया नहीं था। लंगर छक कर मैं सीढियों को चढ़ते हुए दुबारा गोरखनाथ मंदिर पहुंच गया । वहां कुछ समय सांस लेकर फोटोशूट करके फिर अंबा जी मंदिर की ओर बढ़ने लगा। गोरखनाथ जी के मंदिर से सीढियों को उतरकर मैं जल्दी ही माता अंबा जी पहुंच गया। सुबह जो चायपानी वाली दुकानें बंद थी अब खुल चुकी थी । अंबा जी मंदिर के आसपास अब काफी चहलपहल थी। अंबा जी रोपवे में बैठकर मैं नीचे भवनाथ तालेटी आ गया। जहां से आटो लेकर मैं जूनागढ़ की ओर चला गया । इस तरह मेरी गुजरात के पवित्र गिरनार पर्वत की यात्रा समाप्त हुई ।
धन्यवाद।