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11 बज रहे थे और हमलोग सिलीगुड़ी पहुँच कर दार्जिलिंग मोड़ पर खड़े थे। राज भैया हमें लेने आ चुके थे अपनी वैगनर से। राज पूरा नाम राजकुमार मनीष भैया के मित्र जो कि सिक्किम में टैक्सी सर्विस देते हैं। जिंदादिल, खुशमिजाज इंसान अपने से ज्यादा अपनी टैक्सी से मोहब्बत करते हैं। ये आपको उनके टैक्सी मे बैठने के बाद पता चलेगा। राज भैया ने हमरा वेलकम किया। हमलोग जिस गाड़ी से आए थे उसे सिलीगुड़ी से वापस भेज दिया क्योंकि पहाड़ी रस्तों में चला पाना हर किसी के बस की बात नहीं और रास्ते का ज्ञान ना हो तो बहुत मुस्किल।
अब तक हमने ये पक्का नहीं किया था कि जाना कहाँ है। लाचेन, लाछुंग, युंमथांग की सोच रखा थे पर राज भैया ने बताया वो अभी बंद है, भारी बर्फबारी के चलते परमिट मिलेगा नहीं। हम लोगों को बहुत भीड़ वाले जगह जाना नहीं था। राज भैया के अनुसार हमलोग वेस्ट सिक्किम के एक स्थान ओखरे के लिए निकल पड़े जो कि सिलीगुड़ी से 5 घंटे की दूरी पर था। जहाँ 3 दिन पहले काफी बर्फबारी हुई थी पर अभी है ये पक्का ना था। पर हमे शांत और पृथक जगह की तलाश थी जिसके लिए वेस्ट सिक्किम हमारे हिसाब से सही जगह था।ये सब बातें राज भैया और हमारे बीच चल रही थी और उनकी टैक्सी अपने रफ्तार में चलती जा रही थी। कुछ देर के बाद पहाड़ की चढ़ाई शुरू हो गई, गोल गोल घूम घूम कर हम ऊपर की ओर जाते जा रहे थे, जितने ऊपर जा रहें मंज़र उतना ही खूबसूरत।
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कुछ घंटों बाद हमलोग जोरथांग पहुँचे जो कि वेस्ट बंगाल के सरहदी क्षेत्र के पास सिक्किम में पड़ता है। तीस्ता नदी के बगल में बसा छोटा शहर है। यहाँ ही राज भैया का घर है। गाड़ी में बैठे बैठे 21-22 घंटे हो चुके थे, मेरा सिर भारी हो गया था। मैंने बोला थोड़ा रुक के चलते हैं, मुझे बाल बनवाने थे। मै और शुभम भाई सलून गए और सर की मालिश भी करवा लिए तब जा कर थोड़ा हल्का लगा।
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जोरथांग से ओखरे अब भी 3 घंटे का रास्ता था। पहाड़ों मे दूरी कम होती है पर समय ज्यादा लगता है, घुमावदार और संकरे रास्तों के वजह से।
राज भैया भोजपुरी गानों के शौकिन। तेज आवाज़ में गाने के साथ तेज चलती गाड़ी और ठंडी हवा कभी कभी तो आगे कुछ ऩजर ही नहीं आता फिर वो डायलॉग याद आ जाता (और ये मैं आसमान की ऊँचाइयों मे चारों तरफ कोहरा ही कोहरा???? ) नज़ारों के साथ डर मुफ्त में मिल रहा था। गहरी घाटी घुमावदार रोड उसपर 60-70km की स्पीड में ड्राइविंग, भाई लोग सच कह रहा हूँ फाइनल डेस्टिनेशन का खयाल बार बार दिमाग में आ रहा था।
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चलते चलते 4 बजे ओखरे अपने होमस्टे पर पहुँच गए। कार से उतरते ही सिक्किम अपना एहसास दिलाने लगा। सभी काँप रहे थे और अपने हाँथों को आपस में रगड़ रहे थे। हमारा वेलकम काली चाय और पॉपकॉर्न के साथ हुआ। चाय पी कर थोड़ा अच्छा लगा और सभी रूम की चाबी ले कर ऊपर पहली मंजिल पर चले गये।
25 घंटे के सफर के बाद इतने थक चुके थे कि बिस्तर मिलते ही पसर गए। सभी को सोना था पर कंबल ओढ़ते ही समझ आ गया कि मुश्किल है। बिस्तर और कंबल इतना ठंडा की मानो बर्फ की चादर हो। फिर भी कोशिश कर के सोये पर ठंड के कारण नींद बहुत हल्की पडी। नींद खुली तो 7 बज रहे थे. फिर से चाय और वाय-वाय नूडल्स जो कि थाइलैंड और नेपाल का उत्पाद है पहाड़ों में काफी पसंद किया जाता है, वो शाम के नाश्ते के रूप मे मिला।
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खा कर कुछ बात चीत चल रही थी फिर हमने बोन फायर के लिए नीचे बैठे हमारे सेवा में लगे भाई जी को बोला। कुछ समय बाद नीचे गए ठंड अपना कहर ढा रही थी और आग थोड़ी राहत दे रही थीऔर तो और राहत फतेह अली खान के बजते गाने महौल को रंगीन बना रहे थे। हम सभी मस्ती में थे , शुभम भाई नाच रहे थे। इसी बीच एक बिल्ली हमारे पास आ कर बैठ गई शायद उसे ठंड ज्यादा लग रही थी, आदि भाई ने उसे थोड़ा प्यार किया और गोद में ले कर उसे ठंड से बचाने की कोशिश करने लगा। जानवर प्यार की भाषा समझते हैं।
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अंदर से आवाज़ आई 10 बज गए.. सर खाना तैयार है। सभी खाना खाए और सीधे रूम पे चले गए। कल के प्लान का कुछ पता नहीं था। ये पता था पहले सोना है और कब नींद आई पता भी ना चला....
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