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दिन में धूप की गरमाहट, रात में सर्द हवा की ठंडक, एहसास दिला रही थी कि हम रजवाड़ों के राज्य में हैं। घरों के बाहर दीवारों पर लिखा खम्मा खणी 'अतिथि देवों भवः' की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है, बाज़ारों में हाथ से बनें सामानों का भंडार था, जो बता रहा था कि आधुनिकता के दौर में भी हस्तशिल्प का दौर ज़िंदा है। सड़कों पर राजस्थानी साड़ी या पोशाक पहनें कई औरतें मिल जाएँगी, जो मानों हमें बता रहीं हो कि अपनी संस्कृति के क़रीब कैसे रहा जाता है। दाल- बाटी चूरमा और केर सांगरी की सब्ज़ी हमें कह रही थी कि देखो हमारे स्वाद में भी कितनी विभिन्नता है।
अब आप ये समझ ही गए हैं कि हम राजस्थान के किसी शहर में हैं, पर ये नहीं पता कहाँ, तो मैं आपको बता दूँ कि हम उस शहर में हैं जहाँ के कई घर और इमारतें नीले रंग की हैं। जी हाँ, सही पहचाना आपने, मैं बात कर रही हूँ ब्लू सिटी यानि जोधपुर की!
कई दिनों की लंबी चर्चा और जद्दोजहद के बाद दो दिन जोधपुर और दो दिन जैसलमेर जाना तय हुआ। लेकिन इस ब्लॉग में सिर्फ जोधुपर की बात करूँगी। इस ट्रिप पर हम कुल 6 लोग थे। हमें जोधपुर की नई सड़क पर सस्ते दाम पर दो रातों के लिए होटल मिल गया।
दूसरी तरफ जैसलमेर की रेगिस्तान कैंपिंग दुनियाभर में मशहूर है। हमने सहारा ट्रैवल्स की ऑफ बीट कैंपिंग चुनी जो सबसे सस्ती और एडवेंचर्स थी। इसका रेट ₹1650 प्रति व्यक्ति है। अगर आप जाना चाहें तो सहारा ट्रेवल्स के फे़सबुक पेज़ से संपर्क कर सकते हैं, हम होटल और कैंपिंग दिल्ली से ही बुक करके गए थे।
अब शुरुआत होती है यात्रा के असली सफर की
दिल्ली से जोधपुर करीब 600 कि.मी. दूर है। हमने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से रात 9.20 वाली ट्रेन पकड़ी। ट्रेन ने सुबह 9 बजे जोधपुर जंक्शन उतार दिया।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ जोधपुर रेलवे स्टेशन भारत का दूसरा सबसे साफ सुथरा स्टेशन है। होटल पहुँच कर सब तैयार हुए और फिर निकल पड़े जोधपुर के सबसे मशहूर मेहरानगढ़ किले की तरफ।
मेहरानगढ़ किला- इस किले का इतिहास 500 साल पुराना है। ये एक पहाड़ी पर 150 मीटर की ऊँचाई पर बना है। इस शानदार किले की नींव तात्कालीन राजा राव जोधा ने 1459 में डाली थी जिसे महाराजा जसवंत सिंह ने (1638-73) पूरा करवाया। इस किले से ब्लू सिटी यानि पूरे जोधपुर का नज़ारा देखने को मिलता है,वहाँ मौजूद एक गाइड ने हमें बताया कि इस किले की एक चोटी से भारत-पाकिस्तान सीमा दिखती है लेकिन हमें ऐसा कुछ दिखा नहीं। किले की एक दीवार पर युद्ध के दौरान तोप के गोले से पड़े निशान हमें दिखाई दिए। ये किला इतना बड़ा है कि इसे पूरा घूमने में 2-3 घंटे का समय लग जाएगा।
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हम मेहरानगढ़ किले को देखने के लिए 12 बजे होटल से निकले थे, अब 4 बज चुके थे,भूख बहुत तेज लगी थी। जोधपुर की नई सड़क में एक रेस्ट्रोरेंट में खाना खाया। फिर निकल पड़े कायलाना झील की ओर।
कायलाना झील- ये जोधपुर की सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध झील है और जोधपुर से करीब 10 कि.मी. दूर है। यहाँ पहुंचते हमें दूर-दूर तक पानी और पहाड़ी देखाई दे रहे थे। ये झील एक पिकनिक स्पॉट है, जोधपुर में शाम बितानी है तो ये एक अच्छा ऑप्शन है। यहाँआप बोटिंग कर सकते हैं और झील किनारे चुपचाप अपने साथ बैठ भी सकते हैं। यहाँ दो तरह की बोटिंग होती है स्लो और फास्ट स्पीड जिसका टिकट ₹100 और ₹200 है। साथ ही बाहर खाने पीने के भी कुछ स्टॉल्स मिल जाएँगे।
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झील किनारे की सैर और बोटिंग बाद ऑटो लेकर हम डिनर करने नई सड़क आए और फिर होटल चले गए।
दूसरे दिन सुबह होटल में ब्रेकफ़ास्ट करने के बाद हम निकल पड़े उम्मेद पैलेस की तरफ, लेकिन बीच में माखनिया लस्सी पीने के लिए जनता स्वीट्स रेस्टोरेंट रुके। लस्सी बेहद स्वादिष्ठ थी, जनता स्वीट्स खाने के लिहाज़ से जोधपुर का बेस्ट रेस्टोरेट है। इसके बारे में आगे बताऊंगी। यहाँ से फिर उम्मेद पैलेस के लिए ऑटो लिया, लेकिन वहाँ जाकर पता चलाकि प्रिंस के जन्मदिन के कारण उम्मेद पैलेस दर्शकों के लिए दिन के लिए बंद है। इस तरह उम्मेद पैलेस का दीदार नहीं कर पाए।
उम्मेद पैलेस- ये वही पैलेस है जहाँ प्रियंका चोपड़ा और निक जोनास की शादी हुई थी। महाराजा उम्मेद सिंह ने इस पैलेस को 1929 में बनवाया था। इसके एक हिस्से को हेरिटेज होटल और एक हिस्से को म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया। इस पैलेस में एक रात गुज़ारने की कीमत लाखों में है। ये भारत के लग्जरी होटलों में से एक है,अब जो खुद नहीं देखा उसकी क्या ही गुणगान करें।
इसके बाद हमने जसवंत थड़ा के लिए ऑटो लिया।
जसवंत थड़ा- ये एक शाही स्मारक है जो तात्कालीन शासक जसवंत थड़ा के बेटे ने उनकी याद में बनवाया था। जसवंत थड़ा को मेवाड़ का ताज महल कहा जाता है क्योंकि ये सफेद संगमरमर से बना है। इसलिए इस स्मारक को देखने के लिए पर्यटकों में एक खास दिलचस्पी होती है। स्मारक के पास एक झील है जो इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देती है। पहाड़ी पर बना होने के कारण यहाँ से जोधपुर का व्यू भी बहुत प्यारा दिखता है
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यहाँ मिलेगा जोधपुर का सबसे बेहतरीन खाना
अब दोपहर के तीन बज चुके थे। लंच करने के लिए हम फिर से जनता स्वीट्स रेस्टोरेंट आए। यहाँ हम 6 लोगों ने भरपूर खाना खाया, छोले भटूरे, इडली, डोसा, पनीर चाउमीन, मनचूरियन एंड राइस, बिल तकरीबन ₹800 आया था। कहने का मतलब ये है कि अगर आप जोधपुर जाएँ तो जनता स्वीट्स का खाना एक बार ज़रूर खाएँ क्योंकि स्वाद और बजट के मामले में ये सबसे बढ़िया ऑप्शन है।
दिल्ली से हूँ इसलिए स्ट्रीट फूड की शौकीन हूं, जब भी कहीं जाती हूँ तो वहाँ दिल्ली जैसा स्ट्रीट फूड नहीं मिलता लेकिन जोधपुर का स्ट्रीट फूड मुझे पसंद आया। यहाँ आपको बजट में वेज, नॉन-वेज और राजस्थानी खाना आसानी से मिल जाएगा लेकिन अगर आप किसी अच्छे रेस्टोरेंट में बैठकर क्वालिटी खाना खाना है तो आप जनता स्वीट्स रेस्टोरेंट ज़रूर जाएँ।
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कहाँ करें शॉपिंग-
इसके बाद हम नई सड़क बाज़ार घूमें। यहाँ हस्तशिल्प, कपड़े, मसाले और ज्वैलरी समेत हर तरह का सामान मिल जाएगा। जोधपुर की नई सड़क ने मुझे दिल्ली के चांदनी चौक की याद दिला दी थी लेकिन यहाँ एक ऐसी खास चीज़ है जो दिल्ली में उतनी सस्ती नहीं मिलेगी, वो है लेदर। अगर आप लेदर के शौकीन हैं तो खरीदारी के लिए ये बाजार सबसे बढ़िया है। दिल्ली में जो स्लिंग बैग ₹1000-₹1500 तक का मिलता है, वो मैंने यहाँ से ₹350 का खरीदा। साथ ही आप अपनी पसंद के बूट्स, जैकेट, बैग वगैरह बनवा सकते हैं, लेकिन उसके लिए कम से कम 7 दिन का समय देना होता है। जिस दुकान से मैंने बैग लिया था वो सामान पार्सल भी करते हैं। अगर आप घर बैठे लैदर का कुछ सामान सस्ते में खरीदना चाहते है तो नीचे दिए नंबर पर संपर्क कर सकते है।
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इसके अलावा मोची मार्केट से तरह-तरह के फुटवियर या फिर बूट्स खरीद सकते हैं। सदर बाजार और क्लॉक मार्केट से भी शोपिंग कर सकते हैं।
बाजार में घूमते-घूमते करीब 7 बज चुके थे। जब हम गए थे तब जोधपुर थियेटर फेस्टिवल चल रहा था। हम लोग 8 बजे का शो देखकर आए। मेरे भाई-बहन तो जनता स्वीट्स के फैन हो चुके थे इसलिए उन्होंने एक बार फिर वहाँ से कुछ खाने की ज़िद की। जोधपुर का मशहूर मिर्ची वड़ा और मावा कचौड़ी खाई। मावा कचौड़ी इतनी स्वादिष्ठ थी कि वापिस दिल्ली के लिए पैक भी करा ली।बाहर कुछ छोटी दुकानों पर भी खाया था लेकिन वहाँ जनता स्वीट्स रेस्टोरेंट जैसा स्वाद नहीं था।
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अब खाते-पीते, घूमते-घामते काफी देर हो चुकी थी। एक दुकान से कढ़ाई वाला दूध पिया और फिर होटल आ गए। अगली सुबह जैसलमेर के लिए निकलना था।
कहाँ ठहरें
होटल लेने के लिए नई सड़क सबसे अच्छी जगह है। ये शहर के बीचों-बीच है और यहाँ से मेहरानगढ़ किला काफ़ी नज़दीक है। साथ ही खाने-पीने और शॉपिंग करने के लिए होटल से ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ेगा। आप होटल ऑनलाइन बुक कर सकते हैं या फिर अपने बजट के मुताबिक़ यहाँ जाकर होटल चुन सकते हैं।
2 हज़ार में कैसे घूमें जोधपुर-
- अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो यहाँ से कई ट्रेन सीधे जोधपुर के लिए मिल जाएँगी। सिल्पर का टिकट ₹350 तक है तो आप सिल्पर से जाइए और सुबह 8-9 बजे जोधपुर पहुँच जाएँगे।
- घूमने के लिए लोकल ऑटो या शेयरिंग ऑटो की मदद लें
- नई सड़क के पास होटल लेंगे तो आने जाने का खर्चा बचेगा
- ज़्यादा महंगी जगह से शॉपिंग ना करें
- बजट के हिसाब से रेस्टोरेंट का चुनाव करें
फिलहाल इस ब्लॉग में बस इतना ही। जैसलमेर की दिलचस्प कहानी अगले ब्लॉग में।
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