BY NEHA
मैंने एक ख्वाब देखा था, एक सुबह उठूं तो चारों ओर बर्फ की चादर बिछी हो। सबकुछ सफेद हो और इसी पल सूरज हौले से बाहर आकर इस चांदी सरीखे सपने को सोने का बना दे। शायद यह दुआ बड़े ही दिल से मांगी गई थी, तभी तो पूरी हो पाई। गोमुख से लौटकर हम लाल बाबा के आश्रम में रातभर रुके थे। थकावट के मारे इस कदर नींद आई कि पता ही नहीं चला कि बाहर रातभर बर्फ गिरी है। सुबह आंखें खुलीं तो अंकित सबको उठा रहा था, बाहर देखो चारों तरफ बर्फ है। हम झटपट उठे, बाहर आए तो पहाड़ों से लेकर घाटी तक सफेद चादर बिछी थी। यहां तक कि रात को बाहर हाथ धोने के लिए रखा पानी भी जम गया था। एक चिड़िया उस पानी में चोंच मार रही थी, लेकिन बार-बार उसकी चोंच बर्फ से टकरा जा रही थी। बाहर उतारे गए जूतों में भी बर्फ जम गई थी। वो तो भला हो, किसी ने मेरे जूते बरामदे में रख दिए थे। अभिषेक के जूतों में बर्फ पड़ी थी और अंकित के ट्रेकिंग वाले जूते, जो विशेषकर ट्रिप से पहले खरीदे गए थे, ठंड में अकड़ गए थे। वैसे अकड़ तो हम लोग भी रहे थे। हाथ बाहर निकालने में कंपकंपी हो रही थी, जूते पहनना तो किसी महाभारत से कम न था। अंकित जूतों को लेकर अलग परेशान था, उसके दोनों जूतों का रंग अलग-अलग हो गया था। इस ठंड के बीच गर्मागर्म चाय की घूंट ने शरीर को सहारा दिया। हां, यहां की चाय स्पेशल थी, क्यूंकि वो चायपत्ती के बजाय किसी पहाड़ी पत्ते का इस्तेमाल कर रहे थे। जिससे चाय का रंग भी आ रहा था और एक खास स्वाद भी। खैर, हमारे गाइड रावतजी अबतक सो रहे थे तो तय हुआ कि आसपास टहलकर आया जाए। तो हम निकल पड़े भागरथी की ओर…
आश्रम की छत पर जमी बर्फ से जो पानी टपक रहा था, वह जम गया था। हम आश्रम के पीछे की ओर चल दिए। अभिषेक वहां तस्वीरें उतारने लगा। पहाड़ के उस पार से एक स्वर्णिम रोशनी आ रही थी, जल्द ही सूर्यदेव दर्शन देने वाले थे। कुछ लोग भागीरथी की ओर जा रहे थे। पास ही पड़े कुर्सी-मेज पर करीब दो फुट तक बर्फ जम चुकी थी। आसपास कुछ लोग सेल्फी ले रहे थे और हमें रास्ते में मिले कुछ जाने-पहचाने चेहरे भी नजर आए, जिसमें एक विदेशी ग्रुप भी था। तभी सामने से एक लड़का तौलिया लपेटे भागीरथी की ओर दौड़ कर भागा। वह ऐसे ही घूमने निकल पड़ा था और शायद उसके पास पैसे भी नहीं थे, वह रातभर पुलिस चौकी में सोया था। सामने से एक नेपाली मूल का लड़का दोनों हाथों में बाल्टी लिए गुजरा। आश्रम का सारा पानी जम चुका था, इसलिए भागीरथी से पानी लाया जा रहा था। भागीरथी के किनारे भी सफेद थे, बस बीच से बहती एक पतली सी धारा नजर आ रही थी। आठ बज चुके थे, अब हमें वापस लौटने की जल्दी थी। हम वापस लौटे और रावतजी को ढूंढ़ने लगे ताकि जल्द से जल्द गंगोत्री लौटा जा सके। हमें आज ही हर्षिल निकलना था, विजेंद्र जी और उनकी पत्नी कमलेश मैम जो ट्रेक पर हमारे साथ नहीं आए थे, गंगोत्री में हमारा इंतजार कर रहे थे। सामने संतों का एक ग्रुप गंगोत्री वापसी को तैयार था, वहीं विदेशी ग्रुप भी गोमुख जाने की तैयारी कर रहा था। आखिरकार रावतजी उठकर आए, हमने सामान समेटा और वापसी की यात्रा शुरू कर दी।
यह बर्फ में ट्रेकिंग का हमारा पहला अनुभव था। अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत थी, क्यूंकि बर्फ पिघलने के कारण फिसलन भरी हो चली थी। हम ऊपर रास्ते तक गए और घाटी में भोजवासा को फिर से देखा और तमाम यादों को एकबार फिर दिल में समेट लिया। हमने चलना शुरू किया तो गाइड ने पैर जमाकर चलने की सलाह दी, क्यूंकि फिसलने पर सीधे खाई में जाने का खतरा था। हम बर्फ पर पैरों के निशान छोड़ते जा रहे थे। सारा दर्द पलभर के लिए गायब हो गया था, बस खुशी थी और उस पल के होने का एहसास था। अभिषेक खुशी में गा रहा था, अंकित और चंद्रप्रकाश की कमेंट्री शुरू थी। हरियाणे वाले भैया और रावतजी हमेशी की तरह आगे-आगे चल रहे थे। करीब एक फुट बर्फ के बीच से हम गुजर रहे थे, ऊपर पहाड़ भी सफेद थे और नीचे भागीरथी भी। सच में, क्या शानदार नजारा था। सूर्य भी चढ़ चुका था और दूसरी ओर जहां सूर्य की रोशनी पड़ रही थी, वहां सब कुछ सोने सा चमक रहा था। स्लाइडिंग जोन भी हमने पार कर लिया, बस पहले पांव जमाकर टोह लेने की जरूरत थी, क्यूंकि रास्ता तो अब बचा ही नहीं था, रास्ता तो हम बना रहे थे। धीरे-धीरे बर्फ कम होती जा रही थी। कहीं-कहीं बर्फ पिघलने की वजह से रास्ता और ज्यादा फिसलन भरा हो चला था। अब दूर से चीड़वासा नजर आने लगा था।
हम चीड़वासा पहुंचे तो चीड़ के पत्तों से बर्फ को झड़ते देखा। बर्फ का अतिरिक्त भार पत्तों से सहन नहीं हो रहा था और बर्फ गिरने का सिलसिला जारी था। कई बार तो हमपर भी बर्फ गिर गई। चीड़वासा चौकी पर कुछ देर तक रुके। वहां कुछ कुर्सियां पड़ी थी, सामने नीचे किसी ने टेंट में रात गुजारी थी और अब वो टेंट खोल रहे थे। वहां हमें चाय मिल गई, ठंड में चाय से बढ़कर और कुछ नहीं होता, वो गर्माहट खुद में समेट लेने का जरिया होता है। चाय पीकर हमने सफर फिर शुरू किया, रास्तेभर लोग हमें मिल रहे थे। धीरे-धीरे मौसम खराब होने लगा, चारों तरफ अंधेरा छाने लगा। हम फिर भी बढ़ते गए, कुछ दूर आगे बढ़ने के बाद बर्फ की फुहारें पड़नी शुरू हो गई थीं। फारेस्ट चेक पोस्ट से करीब दो किमी पहले तेज बर्फ पड़ने लगी। हम वहां एक यात्री शेड में रुक गए। गंगोत्री पहुंचने की भी जल्दी थी। चूंकि मोबाइल पर सिग्नल आने लगे थे तो हमने विजेंद्र जी को बता दिया कि हम फारेस्ट चेक पोस्ट के पास ही हैं और तेज बर्फबारी हो रही है। गंगोत्री में बारिश हो रही थी। हम वहीं रुक थे, इसी बीच सब बर्फ में जाकर मजा लेने लगे, लाइव स्नोफाल हम पहली बार देख रहे थे। सच में इस यात्रा ने एक साथ नजाने कितने सपने पूरे कर दिए थे। हम खुशी में झूम रहे थे, गा रहे थे, तस्वीरें ले रहे थे। करीब आधे घंटे वहां रुकने के बाद भी बर्फबारी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। आखिर में हमने निकलने का निर्णय लिया, फारेस्ट रेस्ट हाउस पहुंचते-पहुंचते बर्फ बूंदों में बदल गए। हमने वहां से सिक्योरिटी मनी ली और गंगोत्री निकल पड़े। कुछ दूर चलते ही गंगोत्री मंदिर नजर आने लगा था। तय हुआ कि रावतजी रेस्ट हाउस आएंगे हमारे रेनकोट लेकर और वहीं हम फोटो एक्सचेंज करेंगे। हमने रास्ते से ही एक शार्टकट लिया और गंगोत्री पहुंच गए। अब बस मैगी की तलब हो रही थी, बारिश तेज होती जा रही थी और हम भीग चुके थे, कुछ ही देर में हमें हर्षिल पहुंचना था। बस यहीं तक थी गोमुख यात्रा, तमाम यादों को समेटे हम वापसी की तैयारी कर रहे थे। शायद फिर कभी जाने को मिले, तो पुरानी यादों को फिर से जीने का मौका मिलेगा।
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