अगली सुबह आँख खुली तो बारिश बंद हो चुकी थी, लेकिन सड़कें गीली थीं। इसका मतलब कल रात काफी बारिश हुई थी। लेकिन अहमदाबाद की सड़कों पर न तो पानी जमा था न ही आम जनजीवन पर कुछ खास असर था। आसमान में अभी भी काले बादल छाये हुए थे और दिन में भी बारिश होने का अंदेशा था। लेकिन मुझे कोई चिंता नहीं थी क्योंकि मेरा अधिकतर कार्य कल ही ख़त्म हो चुका था और आज सिर्फ एक कस्टमर को मिलना था। वैसे भी मेरी वापसी की ट्रैन शाम 6 बजे के पास थी।
मैं फटाफट तैयार हुआ और होटल के रेस्टोरेंट में नाश्ते के लिए पहुंचा। वही सभी चीजें रूटीन की थीं और कोई भी खास स्थानीय व्यंजन नहीं था। इसलिए मन नहीं माना। होटल से बाहर आ कर एक सड़क पकड़ी और चल दिए कुछ गुजरती व्यंजन खाने।
थोड़ा आगे जाते ही सैंडविच और दाबेली की दुकान दिखी। सैंडविच को छोड़ा और 1 बटर दाबेली का आर्डर किया। दाबेली में एक पाव के अंदर दाल और उबले आलू का मसाला, तली हुई करारी मूंगफली, चटपटी चटनी और कुछ मसाले होते हैं। स्वाद और फ्लेवर्स से भरपूर यह व्यंजन लहसुन और हरी मिर्च की चटनी के साथ परोसा गया।
साथ में छोटे छोटे कप में गरम मसाला चाय। तो भला एक से मन कैसे भरता। पहला bite लेते ही दूसरी दाबेली का आर्डर भी कर दिया।
नाश्ता इतना मसाले दार और चटपटा था कि कुछ मीठा खाये बिना रहा नहीं गया और जलेबी भी आर्डर कर दी। नाश्ता ख़त्म कर के वापस होटल की तरफ चल दिया।
किसी शहर के असली रंग देखने हो तो आपको पैदल ही घूमना चाहिए वो भी किसी निश्चित प्लान के बिना।
होटल पहुँच कर सामान पैक किया, चेकआउट किया और निकल पड़ा अपनी काम पर। आज एक बार फिर नवरंगपुरा ही जाना था। कस्टमर के ऑफिस पहुंचा तो उन्होंने वही छोटे कप वाली चाय आर्डर की, जो कम होने के बाद भी इतनी पर्याप्त होती है की मन भर जाता है। इस मीटिंग से निकला तो 12.30 हो चुके थे और मेरी ट्रैन के समय में 5 घंटे से भी ज्यादा का समय बचा था। भूख भी कुछ ख़ास नहीं लगी थी। टैक्सी ड्राइवर को पूछा की कहाँ समय बिताया जाये तो वो बोला कि क्या आप किसी मॉल में जाना चाहोगे। मेरे मना करने पर वो बोला कि या तो गाँधी आश्रम ले चलूँ या फिर नेशनल हैंडलूम, क्योंकि दोनों ही जगह यहाँ से पास हैं। गाँधी आश्रम तो खैर मेरा देखा हुआ था इसलिए उनको नेशनल हैंडलूम चलने के लिए बोला। 10 मिनट में हम नेशनल हैंडलूम के बाहर खड़े थे। अंदर जाने पर मुझे काफी निराशा हुई। नेशनल हैंडलूम वैसे तो हथकरघा और लघु उद्योगों के कांसेप्ट को बढ़ावा देने के लिए बनाये गए थे लेकिन आजकल ये एक चाइना बाजार का परिष्कृत रूप ही रह गए हैं। 4 मंजिला हैंडलूम में स्थानीय कारीगरी को सीमित स्थान ही मिला था। बाकि स्पेस चीन से आयातित सामानों से ही भरा पड़ा था। वही प्लास्टिक के kitchenware, डिज़ाइनर डिनर सेट्स, तरह तरह के खिलोने और काफी कुछ। पूरा स्टोर अच्छी तरह छानने के बाद भी कुछ ऐसा नहीं मिला जो दिल्ली में न मिलता हो, इसलिए बिना कुछ लिए ही वापस हो लिए।
बाहर आ कर ड्राइवर को बुलाया और गाड़ी में बैठ गए। तभी ड्राइवर का यक्ष प्रश्न आया, "अब कहाँ चलना है?" इस प्रश्न का जवाब तो मेरे पास भी नहीं था। खैर भूख लग आयी थी और स्वाति स्नैक्स पर लंच कर प्रोग्राम था। तो वही चल पड़े जो की सिर्फ 5 मिनट की दूरी पर था। स्वाति स्नैक्स अहमदाबाद का काफी प्रसिद्द और लोक प्रिय रेस्टोरेंट है जो भिन्न प्रकार के गुजरती व्यंजनों के साथ अन्य भारतीय व्यंजन भी परोसते हैं। स्वाति स्नैक्स पहुँच कर मेनू देखा तो खिचड़ी पर आँख रुक गयी। दो दिन से अलग अलग गुजरती डिशेस खा कर वैसे भी कुछ हल्का खाने का मन था और शाम के बाद ट्रैन में ही बैठे रहना था तो खिचड़ी ही सही लगी। वेटर को खिचड़ी का बोला तो उन्होंने बताया की साथ में देसी मक्खन, लहसुन की चटनी और कढ़ी मिलेगी। इस से बढ़कर क्या हो सकता था। खाना वास्तव में बेहद ही स्वादिष्ट था और सर्विस बहुत ही फ़ास्ट थी। हालाँकि कीमत ज्यादा थी लेकिन कभी कभार के लिए तो खा ही सकते हैं। पूरा रेस्टॉरणट खचाखच भरा था और औसतन 3 से 4 लोग बाहर इंतजार भी कर रहे थे। खाना खा कर और बिल चूका कर बाहर आये तो देखा की आसमान साफ था और गर्मी हो गयी थी।
ड्राइवर को बुलाया तो वही प्रश्न फिर सामने पाया कि अब कहाँ। मैंने ड्राइवर को स्थिति से अवगत कराया कि भैया किसी तरह 5 तो बजाने ही हैं। ड्राइवर ने सुझाव दिया की अगर टाइम ही पास करना है तो साबरमती स्टेशन के पास Dmart स्टोर हैं वही चलते हैं। बात सही लगी तो उसी तरफ ही चल पड़े। जब Dmart पहुंचे तो 4 बज चुके थे यानि अभी भी 1 घंटा बचा था। अंदर काफी भीड़ थी। पूरा स्टोर छान कर और घर के लिए कुछ गुजरती नमकीन खरीद कर वापस बाहर निकला तो देखा की अभी तो सिर्फ 4:30 ही हुए हैं। अब अपना और ड्राइवर का ज्यादा टाइम वेस्ट न करते हुए स्टेशन जाने का ही निर्णय किया। जब तक स्टेशन पहुंचे तब तक मौसम एक बार फिर करवट बदल चुका था। एक बार फिर बादल घिर आये थे। गाड़ी वाली को पैसे और धन्यवाद दे कर विदा किया और प्लेटफार्म पर पहुंचा। कुछ न करने से होने वाली थकान इतनी ज्यादा थी कि चाय पीने के बाद भी नींद जा नहीं रही थी। पलटफोर्म की बेंच पर लगभग एक घंटा बिताने और आसपास की गतिविधियों को देखने के बाद ट्रैन के आने की घोषणा हुई। 5 मिनट बाद ट्रैन प्लेटफार्म पर आ गयी और हम लपक कर अपने कोच में चढ़ गए।
थोड़ी देर में ट्रैन चल पड़ी और साथ ही चल पड़ा यादों का चलचित्र। गुजरात वाकई बहुत भी खूबसूरत प्रान्त हैं और यहाँ के लोग बहुत भले, मिलनसार और हंसमुख हैं। और यहाँ के खाने का तो क्या ही कहना।
कुल मिलकर ये दो दिन बहुत ही अच्छे रहे और समय समाप्त होने के बाद भी मन नहीं भरा। आशा करता हूँ कि आप सभी ने भी मेरे साथ इस यात्रा का आनंद लिया होगा।
अगला पोस्ट आने तक तक सभी का धन्यवाद और नमस्कार........