भारत की धरती में कई ऐसे राज दफन हैं जो कई वर्षों या कहें सदियों बाद आज भी उसी तरह ताजा और अनसुलझे हैं जितने पहले कभी हुआ करते थे। ये रहस्य कुछ ऐसे हैं जिन्हें जितना सुलझाने की कोशिश होती है ये उतना ही उलझते जाते हैं।
ऐसा ही एक राज राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गांव में भी दफन है। यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा है। एक ऐसा गांव जो रातों ही रात में वीरान हो गया और सदियों से लोग आजतक नहीं समझ पाए कि आखिर इस गांव के वीरान होने का राज क्या था। पर यहाँ के लोगों का मत और उनकी कहानी अलग ही थी।
कुलधरा गांव के वीरान होने को लेकर एक अजीबोगरीब रहस्य है। दरअसल, कुलधरा की कहानी शुरू हुई थी आज से करीब 200 साल पहले, जब कुलधरा, खंडहर नहीं था बल्कि आसपास के 84 गांव पालीवाल ब्राह्मणों से आबाद हुआ करते थे।
लेकिन फिर जैसे कुलधरा को किसी की बुरी नजर लग गई, वो शख्स था रियासत का दीवान सालम सिंह। अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी गंदी नजर गांव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी थी। दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा।
दीवान और गांववालों की ये लड़ाई अब एक कुंवारी लड़की के सम्मान की भी थी और गांव के आत्मसम्मान की भी। गांव की चौपाल पर पालीवाल ब्राह्मणों की बैठक हुई और 5000 से ज्यादा परिवारों ने अपने सम्मान के लिए रियासत छोड़ने का फैसला ले लिया। कहा जाता है कि निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे। अगली शाम कुलधरा कुछ यूं वीरान हुआ, कि आज परिंदे भी उस गांव की सरहदों में दाखिल नहीं होते।
कहते हैं गांव छोड़ते वक्त उन ब्राह्मणों ने इस जगह को श्राप दिया था। आपको बता दें कि बदलते वक्त के साथ 82 गांव तो दोबारा बन गए, लेकिन दो गांव कुलधरा और खाभा तमाम कोशिशों के बाद भी आजतक आबाद नहीं हुए हैं। ये गांव अब भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं जिसे दिन की रोशनी में सैलानियों के लिए रोज खोल दिया जाता है।
कहा जाता है कि यह गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में है। टूरिस्ट प्लेस में बदल चुके कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है। उन्हें वहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है। बाजार के चहल-पहल की आवाजें आती हैं, महिलाओं के बात करने और उनकी चूड़ियों और पायलों की आवाज हमेशा ही आती रहती है। प्रशासन ने इस गांव की सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है, जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते हैं लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहीं करता है।
कुलधरा गांव में एक मंदिर है जो आज भी श्राप से मुक्त है। एक बावड़ी भी है जो उस दौर में पीने के पानी का जरिया था। एक खामोश गलियारे में उतरती कुछ सीढ़ियां भी हैं, कहते हैं शाम ढलने के बाद अक्सर यहां कुछ आवाजें सुनाई देती हैं। लोग मानते हैं कि वो आवाज 18वीं सदी का वो दर्द है, जिनसे पालीवाल ब्राह्मण गुजरे थे। गांव के कुछ मकान हैं, जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है। दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं।
इतिहासकारों के मुताबिक पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी संपत्ति जिसमें भारी मात्रा में सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात थे, उसे जमीन के अंदर दबा रखा था। यही वजह है कि जो कोई भी यहां आता है वह जगह-जगह खुदाई करने लग जाता है। इस उम्मीद से कि शायद वह सोना उनके हाथ लग जाए। यह गांव आज भी जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है।