हेमकुंड और फूलो की घाटी ट्रेक. कुछ भी असंभव नहीं . जो सोच सकते है, वो कर सकते है, और वो भी सोच सकते है जो आज तक नहीं किया। कुछ ऐसा ही था हम लोगो का वो ट्रेक जो सोचा था वो हुआ नहीं और जो हुआ वो तो सोचा ही नहीं था. ये सब हुआ घंगारिया जो कि समुद्र तल से करीब 10500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. सोचा ये था कि एक दिन घंगारिया मे रुकना है वहां से अगले दिन हेमकुंड साहिब जाना है. रात को फिर घाघरिया मे रुक के अगले दिन फूलो की घाटी जा के वापस घाघरिया रुकना है अगर ज्यादा समय होगा हमारे पास तो गोविंदघाट तक चले जाना है. हुआ क्या 😬😬😬 एक दिन में ही घाघरिया से हेमकुंड, वापस घाघरिया फिर ठीक उस ही दिन घाघरिया से फूलो की घाटी, वापस घाघरिया फिर गोविंद घाट, फिर रात मे ही गोपेश्वर 😪😪😪😪. अब बताता हूँ ये सब हुआ कैसे. चलो शुरू करते हैं. Once upon a time अरे सॉरी सॉरी 🤣🤣🤣🤣🤣. चलो अब सही से बताता हूँ. 2017 का अगस्त का महीना था. जुलाई या अगस्त का महीना हो तो मेरे दिमाग मै सब से पहले जो ट्रेक आता है वो है फूलो की घाटी का ट्रेक. ये ही वो सब से सही समय होता है जब फूलो की घाटी खुली रहती है और उसमें सब से ज्यादा किस्म के फूल रहते हैं. छुट्टी पे था और ससुराल में था. आप को बता दूँ मेरा ससुराल गोपेश्वर मे है. गोपेश्वर भी बहुत सुंदर जगह है मेरी नजरो मे तो गोपेश्वर गढ़वाल क्षेत्र में ट्रेकिंग का गड है. यहाँ से तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर, केदारनाथ, फूलो की घाटी, हेमकुंड साहिब, नंदीकुंड, देवरिया ताल, काकभूसण्डी ताल का ट्रेक किया जा सकता है. तो गोपेश्वर मे रह के मै कोई ट्रेक न करू ऐसा मै कैसे होने दे सकता था. प्लान तो पहले से ही था मेरा और राजीव जांगिड़ का जब से हम रूपकुंड गए थे तब से ही की अगस्त में फूलो की घाटी का ट्रेक करना है. प्लान के मुताबिक राजीव सर गोपेश्वर आ गये और इस बार उनके साथ थे बिल्कुल नये ट्रेक्कर. हमारा 19 साल का युवा ट्रेक्कर Sagar Chaudhary और Anuj Chaudhary 17 अगस्त को हम लोग अपनी कार से निकल चले एक और ट्रेक की ओर. हम लोग गोविंदघाट शाम को 4 बजे के बाद पहुचे. जब हम गोविंदघाट पहुचे तो हमको पता चला कि हम लोग शाम को 4 बजे के बाद गोविंदघाट से आगे नहीं ट्रेक कर सकते है. गोविंदघाट से आगे का रास्ता जंगल वाला था. जहाँ जंगली जानवरो का बहुत खतरा था और बहुत दूर तक रुकने की भी कोई जगह नहीं थी. फिर पहले तो हमने ये सोचा की चलो आज रात यहाँ ही किसी होटल मे बितायी जाये और सुबह होते ही घाघरिया जो की गोविंदघाट से 5 km रोड और वहाँ से 13 का पैदल ट्रेक है चल दिया जाये. फिर अचानक ही मन में खयाल आया कि क्यू ना बद्रीनाथ चल दिया जाये. राजीव सर को ये बात बतायी तो वो बोले चलो चलते हैं. हम चल दिए बद्रीनाथ धाम की ओर जैसे ही गोविंदघाट से मुश्किल से 1 km चले थे तो पता चला की लैंडस्लाइड हो रहा है रास्ते में. रास्ता बहुत खतरनाक हो रखा है. हल्की बारिश हो रही थी और वहां पे सड़क भी कच्ची थी जिस से पूरी रोड मै बहुत ज्यादा किचड़ हो रखा था और रोड के ऊपर पहाड़ की ओर से पत्थर भी रोड पर गिर रहे थे. पुलिस वाले वहां से एक एक कर के वाहन को छोड रहे थे और छोड़ने से पहले ये अनुदेश दे रहे थे की गाड़ी की गति कम मत करना तेज़ी से निकल जाना नहीं तो गाड़ी फँस सकती है. जैसे ही हम गाडी ले के चले तो जो हमारे चालक साहब थे वो थे अनुज जो पहली बार पहाड़ मे गाड़ी चला रहे थे. लेकिन भाई के इरादो और होशलो मे कोई कमी नहीं थी. भाई से पूछा तो भाई बोला निकाल लूँगा टेंशन न लो. भाई ने गाड़ी चलाई, भाई गाड़ी तो न निकाल पाया लेकिन गाड़ी से हमको निकालने मे कामयाब जरूर हो गया. मतलब गाड़ी बीच मे अटक गयी थी हम लोग गाड़ी से बाहर निकल कर गाड़ी को धक्का लगाने में लगे हुए थे. ऊपर से बड़े बड़े पत्थर गिरने का डर गाड़ी किचड़ में और नीचे खायी जहाँ अलकनंदा अपने रौद्र रूप में बह रही थी. बहुत डर लग रहा था उस समय. वो तो भला हो उन पुलिस वालों का जिन्होने मिल के वहां से हमारी गाड़ी निकलवा दी. डरावना मंजर था बहुत अनुज भाई भी बहुत डर चुका था. जैस तैसे हम लोग बद्रीनाथ पहुचे. रात में वहां ही होटल मे रुके सुबह सुबह तप्त कुंड में नहा के 🙏🙏🙏 बद्री विशाल जी के दर्शन किए. बद्रीनाथ से जब हम वापस गोविंदघाट के लिए आए तो पता चला रास्ता बंद है जो कुछ कुछ समय बाद खुलेगा तो बात ये थी कि हमारे पास समय था माना जो की भारत का अंतिम गाँव है वो देखने का. समय जाया ना करते हुए हम पहुँच गये माना जो की बद्रीनाथ से 3 km की दूरी पर था. वहाँ भीम पुल देखा और सब लोगो की तरह भारत की अंतिम चाय की दुकान मे चाय पी. वहां से निकल के वापस पहुच गये गोविंदघाट. इस बार राजीव सर ने बहुत असानी से गाड़ी उस डरावनी जगह से निकाल दी थी. करीब 12 बजे हम लोग वहां से घंगरिया के लिए चल दिए और शाम को सही समय पे घाघरिया पहुच गये. घाघरिया मे हमने एक होटल लिया और रात का खाना खा के हम लोग बाते कर रहे थे. बात बात में राजीव सर ने बोला कि मेरे पास पैसे खतम हो गये है और एटीएम से भी मै निकाल नहीं पाया अब तू पैसे देना सब जगह. मैने अपनी जेब टटोली तो देखा मेरे पास भी ज्यादा पैसे नहीं थे. फिर हमने अपने दोनों नये ट्रेकर्स से बोला लड़को अब तुम ही पैसे दे देना. वो दोनों ने पहले हम दोनों को बहुत आश्चर्यजनक रूप से देखा और फिर बोले भैया हम लोगो ने भी एटीएम से पैसे नहीं निकाले हम लोगो के पास भी ज्यादा पैसे नहीं हैं. तब हमको लगा आज तो लग गयी हम लोगो की होटल में पता किया की कोई paytm ही कर ले अब इतनी ऊंचाई पे तो हमको एटीएम मिलता नहीं सोचा पेटीएम ही हो जाए लेकिन जब किस्मत खराब होती है तो ऊंट पे बैठे इंसान को भी कुता काट लेता है और हम लोग वो ही इंसान थे. ना पेटीएम मिला ना एटीएम. अब हमारे पास इतने ही पैसे थे की सुबह होटल वाले को पैसे दे सके और थोड़ा बहुत खाने का सामान ले सके. अब हमने प्लान किया की एक दिन मैं ही दोनों ट्रेक फूलो की घाटी और हेमकुंड साहिब दोनों ही करने हैं और शाम को ही नीचे गोविंदघाट भी पहुंच जाना है. 6 km हेमकुंड जाना 6 km आना 12 km, फिर 3 km फूलो की घाटी जाना 3 km आना 6 km, घाघरिया से गोविंदघाट 13 km, इस तरह से कुल ट्रेक हुआ 31 का. इस से पहले एक दिन में इतना लंबा ट्रेक मैंने किया नहीं था. इसके बाद तो एक दिन में 45-46 km का रुद्रनाथ ट्रेक तो किया. अब हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था अब ये काम तो हमको करना ही था. सुबह 3 बजे उठे और 4 बजे तक हम तैयार थे घाघरिया से हेमकुंड को निकालने के लिए. सब से पहले हम गए गुरुद्वारा घाघरिया वहाँ हमने माथा टेका और वाहे गुरु से प्रार्थना की हमारी यात्रा सही से पूरी हो जाये. वहाँ पे हमने एक एक चाय पी. जैसे ही हम गुरुद्वारे के गेट से निकल रहे थे तो वहां पे खड़े खालसा ने गेट खोलने से इंकार कर दिया ये कह के की 5 बजे से पहले गुरुद्वारा से हेमकुंड जाने की अनुमति नहीं है रास्ते में भालू का खतरा है. एक तो वैसे ही समय कम था ऊपर से 1 घंटा और बर्बाद. चलो बोला न जो सोचा नहीं वो होता है. 5 बजे निकले वहाँ से और 8 बजे हम वाहे गुरु जी के दरबार मै थे. किस्मत हम लोग के साथ थी शायद थोड़ी क्यूकि हमको बद्री विशाल जी के भी दर्शन बहुत अच्छे से हुए थे और वहां की तरह यहाँ भी कोई नहीं था बिल्कुल खाली था दरबार. दर्शन कर के लंगर मै खाना खाया और जल्दी से चल दिए फूलो की घाटी की ओर. वहाँ थोडा मौसम करवट बदल चुका था फूलो की घाटी पहुचते हुए ही बारिश शुरू हो गयी. कुछ समय बारिश होने के बाद बंद हो गयी. हम लोगो ने कुछ अच्छा समय बिताया फूलो की घाटी में. फूलो की घाटी में बादल बहुत अटखेलियां खेल रहे थे. कभी वो पूरी घाटी को ढक लेते तो कभी फूलो को छूते हुए दूसरी ओर निकल जाते बहुत सुंदर था वहाँ का नजारा. करीब 1 घंटा वहाँ बिताने के बाद हम लोग 4 बजे के करीब घाघरिया में थे. वहाँ हमने कुछ समोसे और मिठाई खायी और जल्दी जल्दी चल दिए वहां से गोविंदघाट के लिए. हम सब के सब बहुत थक गये थे बहुत जल्दी जल्दी हम ये ट्रेक कर रहे थे. दोनों युवा ट्रेकर तो ये बोलने लगे की अब कभी भैया के साथ ट्रेक पे नहीं आएंगे. ट्रेक पे तो छोड़ो कभी उत्तराखंड ही नहीं आएंगे. जैसे तैसे वो दोनों चलने को तैयार हुए. हम लोगो को गोविंदघाट पहुचते पहुचते 8 बज गये थे. चलो देर आये दुरुस्त आये. पार्किंग से गाड़ी उठाई और रात को 1030 गाड़ी टेक दी गोपेश्वर. जै बाबा गोपीनाथ. सफर का ही था मै सफर का रहा.