घुमक्कड़ी भी एक लत है। यह समय के साथ बढ़ती ही जाती है। फिर ऐसा भी होता है कि आप इसे और लोगों में फ़ैलाने लगते हैं।
हमारी ये दोनों ही यात्रायें अपनी गाड़ी से हुईं। अब बच्चों की अगली फरमाइश ट्रेन में सफर करने की थी। इस बीच उन को एक बार रेलवे स्टेशन भी ले जाना हुआ। मेरे मम्मी पापा अहमदाबाद जा रहे थे और मैं उनको नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन छोड़ने गया। दोनों शैतान जिद कर हमारे साथ स्टेशन चले गए। अपने दादा दादी से पहले खुद ट्रेन में चढ़ कर बैठ गए और ट्रेन के रवाना होने के समय पर मुश्किल से नीचे उतरे।
इसके बाद इनकी फरमाइश कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ गयी। आखिर मौका देख हमने जयपुर का प्रोग्राम बना लिया।
ट्रेन की टिकटें बुक हुई। होटल में भी बुकिंग करा ली गयी। अपने अपने स्कूल और ऑफिस से छुट्टियां भी ले ली गयीं। अब लगभग रोज ही इस ट्रिप का प्लान बनता। कभी चेयर कार तो कभी स्लीपर क्लास के बारे में सवाल पूछे जाते। कभी AC और नॉन AC डिब्बों का अंतर बताना पड़ता। और कभी ट्रेन में मिलने वाले खाने की चर्चा होती ।
यानि बच्चों का उत्साह और उत्सुकता दोनों ही बढ़ रहे थे।
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![Photo of जयपुर की सैर: भाग 1... 1/6 by प्रवेश गोस्वामी](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/1242197/TripDocument/1544541108_2.jpg)
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![Photo of जयपुर की सैर: भाग 1... 3/6 by प्रवेश गोस्वामी](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/1242197/TripDocument/1544541111_3.jpg)
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![Photo of जयपुर की सैर: भाग 1... 6/6 by प्रवेश गोस्वामी](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/1242197/TripDocument/1544541112_4a.jpg)