अन्नू भाई चला चकराता ...पम्म...पम्म...पम्म (भाग- 1)

Tripoto

आज अपना पहला यात्रा अनुभव आप लोगे से साझा करने जा रहा हूँ हिंदी लिखे हुए वैसे भी अरसा हो गया! इस ब्लॉग को शुरू करने से पहले याद भी नहीं पड़ता की अंतिम बार कब हिंदी में लिखा होगा! नौकरी के झमेले और आज कल की जिंदगी हो ही ऐसी गयी है....चलिए खैर मेरे हिंदी लेखन में होने वाली गलतियों/त्रुटियों पर आप सब से पहली और अंतिम बार क्षमा माग लेता हूँ ....आशा है आप सब मेरा उत्साहवर्धन कर त्रुटियों पर ध्यान न दे यात्रा अनुभवों का मजा लेंगे!!

2011 दिवाली से कुछ दिन पहले मेरे खासम ख़ास दोस्त अनुज उर्फ़ अन्नू का फोन आया जॉब के कारण वो आज कल बंगलौर में रहता है ! अन्नू को हम यार दोस्त कीड़ा भी कहते है आप लोग समझ ही गए होंगे के कीड़ा मतलब....बोला भाई इस बार दिवाली की छुट्टियों में घर आऊंगा तो कही घुमने चलेंगे! हमारी घुमक्कड़ी की वजह से हम वैसे ही बदनाम रहते है सो उसे भी मैं ही याद आया , बोला प्रोग्राम ऐसा हो के बस हमेशा याद रहे, एक दम एडवेंचर से भरपूर! चलो खैर काफी कुछ दिन विचार विमर्श के बाद आखिर हमारे कहे अनुसार प्रोग्राम बना मेरे सबसे पसंदीदा प्रदेश उत्तराखंड में चकराता और लाखामंडल का, साथ में हमारे एक छोटे भाई साहब(मौसेरे भाई ) प्रवीण भी तैयार हो लिए, इन दिनों उनकी भी घुमक्कड़ अन्तरात्मा जागने लगी थी! समय की बाध्यता को देखते हुए दो रातें और दिन दिन का प्रोग्राम बना , क्यूंकि भाई साहब की बंगलौर वापसी तय थी और हमारी भी ऑफिस की मज़बूरी ......सो सोचा भैया दूज वाले दिन तडके तड़क निकल शाम 3-4 बजे तक चकराता पहुचेगे बाकी बाद में देखेंगे .....

आखिर कार हंसी ख़ुशी दिवाली मनाकर मैं और प्रवीण दोनों लोग भैया दूज के दिन सुबह सुबह गाजियाबाद से चल दिए! हमारे कीड़े भाई साहब को यमुनानगर से हमे मिलना था और भैया दूज के कारण हमे शामली अपनी बहन के यहाँ से होकर जाना था! सो यह निश्चित हुआ के वो हमे सहारनपुर से आगे छुटमलपुर मिलेंगे! क्यूंकि वो बस से आने वाला था और हम अपने शवरले बीट कार से निकल पड़े! भाई साहब क्या बताये बहन जी के युपी के रास्तो का हाल ........जिनकी मेहरबानी की बदोलत यात्रा में पहले से लेट हो गए , दोपहर लघभग ढाई बजे हम छुटमलपुर पहुंचे, साल भर बाद अपने कीड़े भाई से गले मिलने का मजा ही अलग था!

यहाँ से हमने देहरादून -मसूरी होते हुए चकराता जाना था यहाँ से चकराता जाना काफी सरल है. जाने के दो तरीके हैं, एक देहरादून से मसूरी और यमुना ब्रिज (155kms) होते हुए एक दम पहाड़ी रास्ता और दूसरा एक पारंपरिक रास्ता देहरादून से विकासनगर और कलसी (130kms) होते हुए जो की कम पहाड़ी है लेकिन हम भी पुरे पक्के खिलाडी बन (वैसे भी अब तो तीनो ही वाहन चालक थे ) मसूरी वाला रास्ता चुन लिया!

लेकिन किसी ने कहा है समय बड़ा बलवान हम देहरादूँन पहुचने वाले थे ही लगभग 10-12 किलोमीटर पहले हम जाम में फंस गए! रास्ता थोडा पहाड़ी था, सोचा हो गया होगा कुछ .....लेकिन भाई साहब 10-15 मिनट बाद हमारे अनुज भाई का कीड़ा जाग गया, बोला कुछ ज्यादा ही समय लग रहां है देख कर आता हु क्या बात है , वो चला गया! मैं और प्रवीण अपना गाने सुनने में मस्त हो गए जब काफी देर बाद भी अनुज नहीं आया तो मैं उसे देखने के बहाने पैदल ही चल पड़ा भाई साह्ह्हह्ह्ह्ब ...................क्या लम्बा जाम था लगभग दो किलोमीटर आगे जाकर देखता क्या हूँ के सड़क में बीचो बीच एक एल पी जी गैस सिलेंडर का ट्रक उलट गया था पहाड़ी रोड होने की वजह न आ सकते थे न जा सकते थे...लकिन हिन्दुस्तानी मोटरसाइकिल वाले कहीं रुकते है उनकी तो शान में फर्क आ जाता.....घुसे चले जा रहे थे ...........

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