धर्मशाला कांगड़ा घाटी में स्थित एक ऐसा शहर है जो बौद्ध और तिब्बती संस्कृति का मुख्य केंद्र माना जाता है। धर्मशाला बर्फ से ढ़की धौलाधर पर्वतमाला का शानदार नज़ारा अपने में समेटे हुए हैं। यहाँ हम आपको बताएँगे कि इस जादुई शहर में आप कैसे 4 दिन बिताकर नए-नए अनुभवों के साथ लौट सकते हैं।
अपने दिन की शुरुआत नोर्बुलिंगका इंस्टीट्यूट से करें। इस केंद्र का निर्माण तिब्बती कला और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए किया गया था। शहर के बीचों बीच, धर्मशाला से महज 20 मिनट की दूरी पर स्थित नोर्बुलिंगका इंस्टीट्यूट एक स्वर्ग के समान है। इसे देख कर ऐसा लगता है जैसे किसी अलग ही दुनिया में आ गए हैं। सुंदर मैनीक्योर से सजाए गए इसके दरवाजे समेत इंस्टीट्यूट तिब्बती कला, रंगीन प्रेयर फ्लैग्स से पटे हुए हैं। यहाँ आप लकड़ी की नक्काशी कार्यशाला, बुनाई कार्यशाला और थांगका पेंटिंग कार्यशाला को देख सकते हैं। इस इंस्टीट्यूट के अंदर एक बहुत ही शांत मंदिर है, जहाँ पहुँचते ही आप तुरंत ध्यान की अवस्था में चले जाएँगे। पर्यटक यहाँ नोरलिंग गेस्ट हाउस में ₹3000 की लागत पर रह सकते हैं और यहाँ के रेस्तरां में खाना भी खा सकते हैं।
पूरे दिन घूमने के बाद जब आप थकान महसूस करेंगे तो आराम के लिए ब्लॉसम विलेज रिज़ॉर्ट में जा सकते हैं। पूरे धर्मशाला में केवल यहीं 24x7 छत पर बार और रेस्तरां की सुविधा है। ज्यादातर वीकेंड पर यहाँ संगीतमय कार्यक्रम होते हैं। अगर आप वीकेंड पर वहाँ जा रहे हैं तो इसका लुत्फ ज़रूर उठाएँ। ब्लॉसम विलेज रिजॉर्ट में आप भोजन और बार का भरपूर आनंद लें।
इसके बाद आप नोर्बुलिंगका इंस्टीट्यूट से 10 मिनट की दूरी पर स्थित ग्युतो मठ में जा सकते हैं। इस विशाल मठ से धौलाधर पर्वतमाला का आकर्षक दृश्य दिखता है। यहाँ के भिक्षुओं को तांत्रिक बौद्ध धर्म का अभ्यास कराया जाता है। मठ परिसर के अंदर स्थित ये मंदिर अपनी विशाल बुद्ध प्रतिमा के लिए बहुत प्रसिद्ध है जिसे देखने दुनिया भर के पर्यटक आते हैं।
अब दोपहर का खाना खाने के बाद आप थोड़ी झपकी लेकर फिर बाकी दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए तैयार हो जाएँ।
धर्मशाला से 24 कि.मी. की दूरी पर स्थित राजसी कांगड़ा किले तक जाने के लिए आप टैक्सी ले सकते हैं। कांगड़ा का किला भारत का सबसे पुराना किला है। आठ मंजिला इमारत की यह संरचना भूकंप में नष्ट होने से पहले सबसे बड़ा किला था। इसके प्रवेश द्वारा पर आप ऑडियो गाइड के साथ पहुँचें और किले के चारों तरफ घूमें और यहाँ हुई लड़ाई और विजय की कहानियों को सुनें। इस किले को 54 बार घेरा गया था। जिसकी शुरुआत मोहम्मद गज़नवी से हुई थी। फिर अलेक्जेंडर द ग्रेट, जहांगीर और अंत में अंग्रेज आए थे। किले को भारत के सबसे पुराने मां अंबिका मंदिर के लिए भी जाना जाता है।
जब आप किले के टॉप पर पहुँचेंगे तो यहाँ से आप अविश्वसनीय सुंदर ऑस्ट्रेलियन घाटी को देख सकते हैं। एक तरफ नदी और दूसरी तरफ हरे-भरे घास के मैदान के बीच स्थित इस घाटी की सैर करना सुखद अनुभव देगा।
यह किचन मुख्य चौराहे पर स्थित एक ऐसा रेस्तरां है जहाँ स्वादिष्ट तिब्बती और भारतीय भोजन मिलता है। यहाँ के मोमोज़ और थुकपा जिसे खाने के बाद आप वापस इस रेस्तरां में खाने के लिए आएँगे।
यहाँ आप तिब्बती इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स में आप तिब्बती शरणार्थियों के साथ बातचीत कर उनकी सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं जिसमें आपको पता चलेगा कि उनकी सांस्कृतिक विरासत चीन के हाथों में कैसे आ गई। चीनी आक्रमण से पहले के तिब्बती जीवन को यहाँ बनें संग्रहालय में देख सकते हैं। मुख्य रूप से तिब्बती इतिहास की जानकारी पाने को उत्सुक लोगों को यहाँ ज़रूर जाना चाहिए।
मुख्य बाज़ार स्थित एक छोटा सा कैफे वोसर बेकरी जाएँ जहाँ बेहतरीन काफी मिलती है। वहीं डिनर के लिए इलिटेराटी कैफे जा सकते हैं।
रात के वक्त आप मैक्लोडगंज के होटल भागसू में ठहरने का प्लान बना सकते हैं जहाँ प्रति रात कमरे की लागत ₹1600 आएगी। यहाँ कई सारे हॉस्टल, महिला हॉस्टल और गेस्ट हाउस भी हैं।
यहाँ के बाद आप धरमकोट के मॉर्गन्स प्लेस में स्वादिष्ट पिज्जा खाने के बाद धर्मशाला वापस आ सकते हैं।
आप चाहें तो त्रियुंड में कैंप लगाकर रात गुज़ार सकते हैं और फिर अगली सुबह धर्मशाला लौट जाएँ।
अगली सुबह हम मैक्लोडगंज शहर के लिए निकल पड़े। पर्यटकों के बीच ये शहर दलाई लामा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर मैक्लोडगंज शहर के बिल्कुल बीच में स्थित है और ये जगह आपका इस शहर में पहला स्टॉप होना चाहिए। मैक्लोडगंज में बहुत सारे भिक्षुक भी रहते हैं। ये मंदिर बहुत ही महत्वपूर्ण मंदिर है। इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको इश्वरीय एहसास होगा।
टेंपल रोड मार्केट के बीच में स्थित कालचक्र मंदिर का दर्शन करें। फिर इस मार्केट से स्मृति चिह्न, तिब्बती कटलरी, कोरियाई नूडल्स समेत बहुत सारे कीमती आभूषण भी खरीद सकते हैं। इसके बाद दोपहर का भोजन करें।
तीसरे दिन सुबह त्रियुंड ट्रेक के लिए निकलें। पहले तो आप कार से गोलू मंदिर पहुँचेंगे और फिर यहाँ से 3 घंटे की पैदल यात्रा शुरू होती है। धर्मशाला के मैजिकल दृश्यों वाले त्रियुंड के चट्टानी इलाकों से गुज़रते हुए आपको एकदम एहसास नहीं होगा कि आप कितना पैदल चले हैं। 2 घंटे की यात्रा के बाद आप टॉप पर पहुँच जाएँगे। त्रियुंड के खूबसूरत नज़ारे बहुद ही आनंददायी है। यहाँ आप कुछ घंटे बिताकर त्रियुंड के मनोरम दृश्यों में डूब जाएँगे। दोपहर 3 बजे तक यहाँ से निकलें।
सनसेट कैफे
त्रियुंड पहाड़ी के बाद आप जंगल में स्थित एक छोटे और अनोखे सनसेट कैफे में जा सकते हैं। यहाँ आप सूर्यास्त के शानदार नज़ारों के साथ आसमान के रंगीन ड्रामा को भी देख सकते हैं। जिसके लिए धर्मशाला बहुत ज्यादा मशहूर है। यहाँ आप 1 ग्लास ताजे जूस का आनंद ले सकते हैं।
इस दिन सुबह आप मसरूर में 8वीं शताब्दी में बने मसरूर मंदिर या रॉक-कट टेंपल में जाएँ। ब्यास नदी के पास स्थित ये मंदिर हिंदू धर्म के शिव, विष्णु, देवी और सौरा परंपराओं को ही समर्पित है। अगर आप मूर्ति पूजा के लिए उत्साही नहीं हैं तो भी आप यहाँ ज़रूर जाएँ क्योंकि मंदिर की वास्तुकला आपको खुश कर देगी। यह मसरूर मंदिर धर्मशाला से 44 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, जहाँ जाने में करीब 1.5 घंटा समय लगता है।
दोपहर के भोजन के लिए आपको टैक्सी से नड्डी तक जाना होगा। यहाँ खाने के लिए बहुत सारे रेस्तरां मौजूद हैं। इस दिन आपका धर्मशाला में आखिरी दिन है तो ऐसे में धर्मशाला की सुंदरता को पूरा करने के लिए नड्डी से बेहतर और कोई जगह हो ही नहीं सकती। यहाँ आप गाँव में घूमने के बाद नड्डी के नीचे स्थित प्राचीन झरनों को देखने जाएँ।
शाम 6 बजे तक मैक्लोडगंज पहुँचे और अपने घर वापस आने के लिए तैयार हो जाएँ।
यात्रा के लिए सही समय
धर्मशाला जाने के लिए मॉनसून के अलावा बाकी सभी समय बेहतर हैं। अप्रैल महीने में यहाँ की हवा से पूरे पहाड़ का रंग लाल हो जाता है। गर्मियों में ज्यादातर शाम के वक्त हल्की बारिश होती है। वहीं सर्दियों में नीला आसमान रात के वक्त मानों तारों का कंबल लपेटे रहता है।
यहाँ ठहरें
इस रिजॉर्ट में ठहरने पर आपको सुबह उठते ही नदी की लहरों की आवाज़ सुनने और बर्फ से ढ़की पर्वतमाला को देखने का अच्छा अनुभव होगा। कमरों में गाँव जैसा अनुभव और खूबसूरत बाहरी दृश्यों को देखते हुए भोजन करना बहुत ही खुशनुमा होता है। इस शानदार रिजॉर्ट में तमाम सुविधाएँ उपलब्ध है।
कैसे पहुँचे
फ्लाइट द्वारा: धर्मशाला का सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा कांगड़ा एयरपोर्ट है। धर्मशाला से 15 कि.मी. दूर गग्गल में यह एयरपोर्ट बहुत छोटा है। यहाँ से रोजाना इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, दिल्ली से कांगड़ा एयरपोर्ट के लिए स्पाइसजेट और एयर इंडिया की उड़ान सेवा है।
सड़क द्वारा: नई दिल्ली से धर्मशाला करीब 10 घंटे की यात्रा है। आप दिल्ली-मुरथल-सोनीपत-पानीपत-करनाल-अंबाला-आनंदपुर साहिब-नांगल-ऊना-कांगड़ा-धर्मशाला रूट से जा सकते हैं।
ट्रेन द्वारा: पठानकोट धर्मशाला का सबसे नज़दीकी स्टेशन है। धर्मशाला से 82 कि.मी. दूर पठानकोट स्टेशन जाने में 2.5 घंटा समय लगता है।
बेहद कम समय की ये यात्रा एक बेहतरीन अनुभव देने वाली साबित हो सकती है। आप भी अपनी यात्राओं के अनुभव यहाँ जरूर शेयर करें।
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