कहीं जाने की संभावना नहीं थी हाल ही में कई ट्रिप हो चुके थे, ना बचत खाता अनुमति दे रहा था ना घर। पर अचानक सिक्किम का ख़्याल आया और जाने को दिल कर गया। मनीष भैया को मैंने बोला मुझे भी चलना है उनका पहले से प्लान था पर ना तो जगह समय दिन टिकट कुछ भी पक्का नहीं था।
07-03-20 की रात हमलोग ने सिक्किम के लिए एक रफ प्लान बनाने के उद्देश से सारे चीजों पर विचार विमर्श किये और तय हुआ कि कल सुबह ही निकलते हैं। जलपाईगुड़ी या सिलीगुड़ी ट्रेन से यात्रा करना था पर सब कोशिश करने के बाद भी टिकट नहीं हो पाया।
सुबह उठते ही मनीष भैया का कॉल आया हमलोग कार से चलेंगे। मैंने कुछ नहीं बोला गूगल मैप खोल कर रूट और सभी चीज को समझने लगा और फिर कुछ घर काम को निपटा कर पापा के पास गए, अब तक घर पर बात नहीं हुई थी हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि क्या बोले कैसे बोले। और जाने का दिल मे बवंडर भी था।
मैं - पापा हम सिक्किम जा रहे।
पापा झुंझला के बोले तुम्हारा दिमाग ठीक है ना...
मै - पापा 2-3 दिन मे आ जाएंगे।
पापा - कही नहीं जाना है।
मै कुछ नहीं बोला नहाने चले गए और फिर मनीष भैया को कॉल कर के घर आने को कहा। मुझे पता था कि उनके घर आने पर जाने मिल जाएगा।
बज चुका था 1 और हमे 2 बजे तक निकालना था, अब तक मेरा बैग पैक नहीं हुआ था। जल्दी जल्दी 20 मिनट मे बैग पैक कर मैं तैयार हो गया। भैया घर पहुंचे चाय नास्ता करते हुए उन्होंने पापा से बात किया और पापा उनके जिम्मेदारी लेने पे मान गए।
अब क्या था बस सिक्किम पहुंचने की जल्दी
जल्दबाज़ी मे हमलोग निकले और मानगो के करीब याद आया कि मेरा तो जैकट छूट गया। फिर रोहित को कॉल कर के जैकट मंगवाए और सवारी चल दी। पटमदा होते हुए बड़ा बाजार बंगाल मे प्रवेश कर गए पुरुलिया पार करते करते 6 बज चुका था। दोपहर भोजन ना करने के वजह से भूख बहोत तेज लगी थी पर शाम हो चुका था चाय नास्ता करते हुए भैया ने पूछा मेरा जैकट? अरे यार मैंने वो भी छोड़ दिया। रांची से उनका बैग आया था जिसमें उनका समान था। अपने कपड़े भर लिय, पर भैया का जैकट ध्यान से ही उतर गया। अब इतना आगे निकल चुके थे कि वापस जा नहीं सकते थे। भैया ने बोला छोडो देखा जाएगा।
नास्ता कर के चल पड़े। भैया पीछे बैठ कर बाबा का प्रसाद ले रहे मै आगे के सीट पे । और 90s के गाने बज रहे कार अपने रफ्तार पे चले जा रही। अचानक रोड ब्लॉक मिल गया रात के 11 बजे अनजान इलाके मे रास्ता बंद। कुछ देर खड़े रहने पे लोकल मिले उन्होंने गांव के अंदरुनी भाग के और से रास्ता बताया। पर इतनी रात किसी पे भरोसा करना बेवकूफ़ी था। कार घुमा के वापस के ओर जाने लगे और दूसरे रास्ते से जाने का फैसला किया। दाहिने की ओर से एक और रास्ता जाता था जो आगे उस रास्ते पे मिलता था। उस रास्ते मे कुछ दूर जाने के बाद एक ढाबा पर रुक कर हल्का खाना खाए और आगे की जानकारी भी मिल गई।
हमे सबसे पहले भागलपुर पहुचना था वहाँ दो लोग हमारे इन्तेज़ार मे थे। 2 बजे भागलपुर पहुंचे और भाइयों को उनके गोडाउन के बाहर से कॉल किए उस रात दोनों अपने गोडाउन मे ही सो गए थे सुविधा के लिए।
दरवाजा खुला और अंदर आने को भाई ने बोला।
हमने ड्राइवर से पूछा अगर सोना हो तो 2 घंटे यहां सो लो फिर चलेंगे, उसने बोला नहीं खींच देंगे ( मतलब चलाएंगे रुकेंगे नहीं ) दोनों ने अपना समान डिक्की मे डाला और सवारी फिर चल पडी। अब भी सिलीगुड़ी की दूरी काफी थी। आगे हमने चाय पिया जो मेरी पहली बिहार की चाय रही। आपको सुन कर शायद हैरानी हो पर बिहार की धरती पर ये मेरा पहला कदम था।
सभी पीछे बात कर रहे थे मै आगे 90s के गाने बजा रहा था और ड्राइवर अपने धुन मे मस्त गाड़ी चाला रहा था। कुछ देर बाद पीछे बैठे सभी लोग सो गए। 5 बजते ही आसमाँ मे हल्के हल्के उजाले आने लगे। सभी लोगों की नींद टूट चुकी थी। वैसे भी सफर मे नींद किस्तों मे होती है।
उजाले के साथ हल्की लालिमा और धीरे धीरे गहरी होती जा रही थी। मैंने गाड़ी रुकवाया सभी उतरे कुछ तस्वीरें लिए और वो बिहार की खूबसूरत सुबह ठंड के साथ जेहन में हमेशा के लिए बस गया। आगे चाय नास्ता कर के चलते रहे और तकरीबन 11 बजे सिलीगुड़ी पहुच गये............
बने रहे...........पूरा सफरनामा किस्तों मे आयेगा
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