भीमकाली मंदिर का सफरनामा
भीमकाली मंदिर जिसे सराहन के नाम से भी जाना जाता है बहुत ही सुंदर, भव्य तथा विशालकाय बर्फ की चोटिया से घिरा हुआ है |
यह मंदिर शिमला से तकरीब 160 किलोमीटर की दूरी पर है आप शिमला बस, कार या फिर ट्रेन से पहुंच सकते हो शिमला से आपको रामपुर बुशहर जो को 125 किलोमीटर की दूरी पर है वहां से होते हुए सराहन पहुंचना है |
भीमकाली सराहन तत्कालीन बुशहर रियासत के राजवंश की कुलदेवी श्री भीमा काली का एक मुख्य मंदिर है किन्नौर तक फैले इस राज्य की राजधानी शोणितपुर थी जो आज सराहन है भगवान शंकर का परम भक्त बुद्धिमान और उदार स्वभाव वाला शोणितपुर का सम्राट बाणासुर भक्त प्रह्लाद के दानवीर पौत्र राजा बलि के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था |
बाणासुर के बाद कामदेव के अवतार तथा श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युमन यहां के राजा बने तब से लेकर रियासती शासन के अंत तक यहां इसी वंश का एक छत्र राज्य रहा इसी राजवंश के महल के भीतर ही भीमकाली मंदिर का निर्माण करवाया गया |
माता भीमकाली के कोटशाली में बने पांच मंजिलों में दो भव्य मंदिर है | श्री भीमकाली को तत्कालीन बुशहर के राजा द्वारा उठाई गई सती की जली देह से कान गिरने की श्रृति कथा है जो इस स्थान को इक्यावन शक्तिपीठो से जोड़ती है वर्तमान में नए भवन की सबसे ऊपरी मंजिल में आदि शक्ति देवी कन्या रूप में पूजित हैं तथा ठीक उसके नीचे की मंजिल में सती माता का शिव विवाहिता हिमालय पुत्री पार्वती का रूप दिखाया गया है |
अद्भुत पहाड़ी वास्तुशिल्प में बने दो घनाकार भवनों के मुख्य काष्ठशिल्प में कारीगरों का हुनर दिखाई पड़ता है |
मंदिर परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह पाताल भैरव के तीन अन्य महत्वपूर्ण मंदिर है तथा इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है |