शिमला- हर उत्तर भारतीय का प्यारा हिल स्टेशन जो एक कोड वर्ड बन चुका है। सुहाना मौसम अर्थात शिमला। इसका एक प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा व्यवस्थित तरीके से इसका बसाया जाना भी है।
दिल्ली से यात्रा के लिए कालका तक की शताब्दी और वहाँ से शिमला तक की टॉय ट्रेन। एक महीने पहले लेने से आसानी से सीट मिल गई थी और होटल की सर्च ट्रिवागो ने आसान कर दी। मॉल रोड पर हमें ₹1700/- में रूम मिल गया था। हालांकि होटल बुकिंग के समय कुछ होम स्टे काफी सस्ता और खूबसूरत लोकेशन में मिल रहा था।
महीने पहले ली गई बुकिंग के बाद आखिरी वक्त में ऐसा लगा कि प्लान कैंसल करना पड़ेगा पर निकल पड़ी थी बोझिल मन लिए। दिल्ली में सुबह 7:50 में शताब्दी में बैठते हुए थोड़ा हल्का महसूस हुआ। हम 11:50 में कालका पहुँचे तो मौसम सुहाना हो चुका था। रेलवे के भोजनालय में सस्ता मगर ठीक ठाक खाना मिल गया। अगर आप फुल मील लेना चाहते हैं तो यहीं ले लें , टॉय ट्रेन में चलते हुए हल्के-फुल्के स्नैक्स ही मिलेंगे।टॉय ट्रेन में बैठने के एक घंटे बाद के नज़ारों ने मन ऐसा मोहा कि दिल्ली की सारी परेशानियाँ मानो यहीं छूट गई । धर्मवीर भारती के उपन्यास 'सूरज का सातवां घोड़ा' का वो भाग याद आने लगता जहाँ लिली अपने प्रेमी का साथ छूटने से दुखी तो है पर प्रकृति का सान्निध्य उसके तात्कालिक मनोभाव को प्रफुल्लित कर देता है। इसीलिए कहते हैं कि जब मन बोझिल हो तो बैकपैक कर निकल जाएँ। यात्रा, प्रकृति का सान्निध्य , नए लोगों से मिलना इससे बड़ा मन का चिकित्सक कोई नहीं।
टॉय ट्रेन से जो चीज सबसे अद्भुत लगी वो था पूरा सोलन का नज़ारा। ट्रेन में राजस्थान के एक छोटे शहर की बड़ी फैमिली भी ट्रिप पर थी जिनसे बातचीत कर और नमकीन खाकर बेहद अच्छा लगा। हालांकि शुरू में मैंने कहा कि मैं बिहार से हूँ और बातों बातों में उन्हें पता चला कि कई सालों से गुड़गाँव में रह रही हूँ तो उनके वार्तालाप में आया परिवर्तन नज़र आ रहा था। ट्रैवेलिंग हमें ये सब जानने का मौका देती है।
शिमला पहुँचते पहुँचते 8:30 बज गए और होटल दस बजे।
दूसरे दिन हमें कुफरी जाना था , चूंकि हमारे पास एक दिन का ही वक्त था और मैं ज्यादा से ज्यादा देखना चाह रही थी कुफरी में फागु गाँव, स्टेप फार्मिंग देखने के लिए कुछ दूरी उबड़-खाबड़ रास्तों पर घोड़े पर तय करना था जो पहले तो खतरनाक पर बाद में रोमांचक लगा। घोड़ों का प्रशिक्षण और अभ्यास देख हैरानी हुई। अंदर सेब का बागान (हालांकि सेब हरे थे अभी) और टपरी की चाय। कुफरी में 5 घंटे कैसे बीते पता ही नहीं चला। वहाँ से जाखू मंदिर और फिर मॉल रोड। इस बीच बारिश हो गई थी और तापमान 10-11 डिग्री हो गया । मॉल रोड का समां कुछ अलग ही हो गया और सबसे मज़ेदार वहाँ छोटा सा राजस्थानी फूड एक्जीबिशन चल रहा था। जोधपुर के मिर्ची पकोड़े और बीकानेर की जलेबी खाते खाते होटल पहुँच गए।
सिर्फ एक दिन की यात्रा में ही एक बेहतरीन अनुभव और तरोताजा मन लेकर लौटी। चुंकि मुझे घूमना बहुत ज्यादा पसंद है पर कम जा पाती हूँ तो सभी ट्रैवलर के लिए एक सलाह - अगर ट्रैवल एंजाय करना हो तो ग्रुप में जाएँ और अगर अपना शौक पूरा करना हो/जगह एक्सप्लोर करना हो तो अकेले जाएँ।
हैप्पी ट्रैवलिंग....