होली एक ऐसा खुशनुमा और अनूठा त्यौहार है जिसने लगभग हम सभी के बचपन में अनेकों खुशियों भरे किस्से जोड़े हैं। रंग-बिरंगे बालों के साथ पुरे शरीर पर तरह-तरह के रंगों को लगाए हुए और साथ में चेहरे पर कुछ पक्के रंगों के साथ सिल्वर कलर से एक दूसरे के चेहरे पर कलाकारी दिखाना और ऐसी शक्ल जिसमें पहचान भी मुश्किल हो उसी के साथ बच्चों की पूरी टोली लेकर छोटे-बड़े सभी पर अपनी रंगीन पानी से भरी पिचकारी से अटैक करना, ऐसी कई अनूठी यादों की एक याद आज भी आपके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान ला देती होगी। हालाँकि आजकल खास तौर पर बड़े शहरों की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में होली जैसा खुशनुमा त्यौहार भी नाम का ही रह गया है और इसी के साथ त्यौहार से जो खुशियां हमारे जीवन में शामिल हुआ करती थीं वो भी बेहद कम हो चुकी हैं।
हालाँकि आज भी ऐसे कई छोटे-बड़े शहर हैं जहाँ होली बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। साथ ही ऐसे भी कुछ स्थान हैं जहाँ होली अपने एक खास अंदाज़ में बनायीं जाती है। आज हम हमारे इस लेख में आपको हिमाचल प्रदेश की एक प्राकृतिक खूबसूरती से भरी सुरम्य घाटी की बेहद अनूठी होली के बारे में बताने जा रहे हैं। तो चलिए शुरू करते हैं...
सांगला फागुली उत्सव
सांगला घाटी हिमाचल प्रदेश की सबसे खूबसूरत घाटियों में से एक है जहाँ आप सुकून से जीवन को उसकी अपनी गति से चलते हुए देखने का आनंद ले सकते हैं। सांगला घाटी हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में समुद्रतल से लगभग 2700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अपनी अद्भुत प्राकृतिक खूबसूरती और सेब के बागानों के लिए मशहूर सांगला घाटी में होली वास्तव में चार दिन के फागुली महोत्सव का हिस्सा है। इन्हीं चार दिनों में तीसरे दिन होली मनाई जाती है। इन चार दिनों में पहले दिन भुने हुए जो के आटे और छाछ से एक बेहद स्वादिष्ट पकवान तैयार किया जाता है जिसे टोटू नाम से जाना जाता है और बाद में इस स्वादिष्ट व्यंजन को प्रसाद के रूप में बाँट दिया जाता है। होली के दिन यहाँ के लोगों का जोश और उत्साह देखते ही बनता है। फिर फागुली में तेल के दीपक जलाये जाते हैं जैसे आम तौर पर दिवाली के दिन जलाये जाते हैं और इसीलिए आप सांगला घाटी के इस फागुली महोत्सव को होली और दिवाली का एक अनूठा मिश्रण भी मान सकते हैं।
सांगला में होली उत्सव
सांगला की होली एक पूर्ण रूप से जीवंत और आनंदमय उत्सव है जो इस रंगों के त्यौहार में एक अनूठा हिस्सा जोड़ता है। अपने सांस्कृतिक महत्त्व के साथ ही यहाँ के लोगों का अनूठा उत्साह यहाँ आये सभी पर्यटकों को भी एक सुन्दर और यादगार अनुभव देता है। यहाँ पर्यटक होली का न सिर्फ रंगो के साथ बल्कि पारम्परिक संगीत और नृत्य के साथ एक बेहद अनोखा रूप देखते हैं और इसके साथ यहाँ के स्थानीय स्वादिष्ट व्यंजन और होली में दिवाली का अनुभव भी सभी पर्यटकों के लिए कभी न भुला देने वाला अनुभव बन जाता है।
होली के दिन यहाँ सभी लोग अनेक तरह के रंगों में तो रंगे रहते ही हैं साथ ही सभी लोग होली समारोह का हिस्सा बनने के लिए यहाँ के प्राचीन और मुख्य नाग मंदिर में इकठ्ठा होते हैं। पुरुष रामायण के पात्रों की तरह वस्त्र पहनते हैं और ढोल और तुरह की धुनों के साथ परेड एक गाँव से दूसरे गांव की तरफ आगे बढ़ती है। परेड के दौरान पुरुष जो की रामायण के पात्रों में हैं रामायण के युद्ध के दृश्यों का प्रदर्शन करते हैं और साथ ही महिलाएं एक घेरा बनाकर स्थानीय नृत्य करती हैं। परेड में शामिल सभी लोग स्थानीय अनाज से बनी रोटी और स्वादिष्ट सब्जी को खाने के लिए यहाँ बने विश्राम स्थल पर रुकते हैं।
आपको बता दें कि यहाँ सिर्फ रंगो से ही नहीं बल्कि बर्फ से भी होली खेली जाती है और उसके साथ ढोल की शानदार आवाज़ में नाचते-गाते लोग और रंगों से खेलते बच्चों की मस्ती इस घाटी को एक अलग ही रूप दे देती हैं जिसका पहला अनुभव भी जीवन भर आपकी यादों में बस जायेगा।
होली मनाने के बाद सांगला में घूमने योग्य स्थान
सांगला में फागुली महोत्सव और खास तौर पर होली को एक अनूठे रूप में मनाने के बाद भी आप चाहें तो सांगला घाटी की खूबसूरत वादियों में कुछ और दिन बिता सकते हैं। यहाँ घूमने और ट्रैकिंग के लिए भी अनेक सुन्दर और सुरम्य स्थान हैं जहाँ आप जा सकते हैं। इनमें से कुछ हम आपको इस लेख में बताते हैं:
बेरिंग नाग मंदिर
जैसा की हमने आपको बताया कि यह सांगला का एक बेहद प्राचीन और मुख्य मंदिर है जो कि भगवान जगस (भगवान शिव का एक स्वरुप) को समर्पित है। सांगला में आपको इस मंदिर में जरूर जाना चाहिए।
छितकुल
हिंदुस्तान का आखिरी ढाबे के साथ आपने सोशल मीडिया में कई फोटोज में हिमाचल की एक बेहद खूबसूरत जगह को देखा होगा। क्या आपको पता है कि वह आखिरी ढाबा सांगला से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित छितकुल नाम कि जगह पर है। यहाँ के अनोखे पहाड़ों, घास के मैदानों, सुन्दर बगीचों, और जंगल के बीच स्थित इस ढाबे पर खाये राजमा चावल या मोमोस का स्वाद आप जीवन भर नहीं भूलने वाले।
कामरु किला
ऊपर बताई जगहों से हटकर अगर आप सांगला घाटी के प्राचीन कलात्मक विरासत की झलक पाना चाहते हैं तो आप कामरु किले को देखने जरूर जाएँ। बालकनी में लकड़ी पर की गयी शानदार नक्काशी घाटी की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है और आज कामाख्या देवी को समर्पित है। सांगला से करीब 2 किलोमीटर दूर स्थित कामरु किले को भी आप अपनी सांगला यात्रा में जरूर शामिल करें।
सांगला कैसे पहुंचे?
सांगला पहुँचने के लिए आप अगर हवाई या फिर रेल मार्ग से आना चाहते हैं तो आप पहले हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला पहुँच सकते हैं। जिसके लिए आपको भारत के लगभग सभी मुख्य शहरों से फ्लाइट और ट्रेन की सुविधा मिल जाएगी। फिर वहां से आसानी से आपको बस और टैक्सी की सुविधा सांगला जाने के लिए मिल जाएगी। शिमला से सांगला के लिए नियमित बसें भी चलती हैं और इसके अलावा शिमला से करीब 230 किलोमीटर दूर स्थित सांगला घाटी आप टैक्सी बुक करके भी आसानी से करीब 7-8 घंटे में पहुँच सकते हैं।
तो इसी के साथ हमने इस लेख में आपको मैदानी इलाकों से कुछ हटकर हिमाचल की इस सुन्दर घाटी की अनूठी होली के बारे के बताने की कोशिश की है। इससे जुड़ी जितनी भी जानकारी हमारे पास थी हमने आपसे इस लेख के माध्यम से साझा करने की कोशिश की है। अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इस आर्टिकल को लाइक जरूर करें और साथ ही ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए आप हमें फॉलो भी कर सकते हैं।
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