अष्टविनायक दर्शन: वीकेंड के दो दिनों में कीजिए महाराष्ट्र के 8 धाम की यात्रा

Tripoto
27th Jul 2023
Photo of अष्टविनायक दर्शन: वीकेंड के दो दिनों में कीजिए महाराष्ट्र के 8 धाम की यात्रा by रोशन सास्तिक

गणपति बप्पा मोरया। मंगल मूर्ति मोरया। आर्टिकल की शुरुआत इस जयकारे के साथ इसलिए की जा रही है क्योंकि इसके जरिए हम आपके साथ भगवान गणपति के अष्टविनायक मंदिरों के दर्शन करने के लिए जरूरी जानकारी और इससे जुड़ी कहानियों को साझा करने वाले हैं। अष्टविनायक का शाब्दिक अर्थ होता है- आठ विनायक यानी भगवान गणपति जी के सभी आठ स्वरूप। इन सभी आठ स्वरूप वाले मंदिरों की लोकप्रियता का असल कारण इनमें मौजूद भगवान गणपति के मूर्ति का स्वयंभू होना है। स्वयंभू यानी ऐसी मूर्तियां जिन्हें किसी व्यक्ति ने स्थापित नहीं किया बल्कि वो अपने आप उस स्थान पर प्रकट हुईं। तो आज हम जानेंगे कि कैसे शनिवार और रविवार की 2 छुट्टियों का इस्तेमाल कर हम भगवान गणपति के 8 जागृत स्वरूपों का दर्शन कर सकते हैं। अब क्योंकि अष्टविनायक के ज्यादातर मंदिर पुणे और इसके आसपास के इलाकों में स्थित है। इसलिए अपनी यात्रा को पुणे से शुरू करना सही होगा।

हिन्दू धर्म में तीर्थ यात्रा का अपना एक अलग महत्व है। महाराष्ट्र के लोगों के लिए भी अष्टविनायक दर्शन की आध्यात्मिक अहमियत बहुत ज्यादा है। गणपति बप्पा के सभी 8 स्वरूपों के दर्शन का शास्त्रों के अनुसार अपना एक विशेष क्रम हैं। अष्टविनायक दर्शन की यात्रा मोरेगांव, पुणे स्थित मयूरेश्वर मंदिर से शुरू होकर अन्य सात अष्टविनायक के दर्शन के बाद इसी मंदिर पर आकर खत्म होती हैं। लेकिन समय की कमी को देखते हुए हम शास्त्रों में वर्णित क्रम अनुसार दर्शन नहीं कर पाएंगे।

Photo of Pune, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

इसलिए इस यात्रा में पहले दिन हम मोरेगांव के मयूरेश्वर विनायक मंदिर, सिद्धटेक के सिद्धिविनायक विनायक मंदिर, थेऊर के चिंतामणि विनायक मंदिर, रंजनगांव के श्री महागणपति मंदिर और ओझर के विघ्नेश्वर विनायक मंदिर के दर्शन करेंगे। फिर दूसरे दिन लेण्याद्री के गिरिजात्मज विनायक मंदिर, महाड़ के वरदविनायक मंदिर, पाली के बल्लालेश्वर विनायक मंदिर की यात्रा के साथ आठ धाम की यात्रा पूरी कर लेंगे। इन सभी आठ स्थानों पर भगवान गणपति की मूर्तियों प्रकट होने के पीछे कहानी है। हम अपनी इस यात्रा के दौरान इन कहानियों से भी होकर गुजरेंगे।

जैसा कि हमने बताया अष्टविनायक यात्रा का महाराष्ट्र में बेहद महत्व है। इसलिए एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक पहुंचने के लिए जरूरी कनेक्टिविटी काफी अच्छी है। लोग अपनी जेब और सुविधानुसार निजी वाहन, रेंटेड टैक्सी, प्राइवेट बस या फिर नियमित अंतराल पर चलने वाली राज्य परिवहन की बस का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त अगर आप एकदम निश्चिंत होकर अष्टविनायक दर्शन करना चाहते हैं, तो फिर इससे जुड़े अनगिनत टूर पैकेज में से अपने लिए भी कोई एक चुन सकते हैं। तो चलिए अगले दो दिनों में भगवान गणपति के आठ स्वयंभू मंदिरों के दर्शन के लिए करीब 550 किमी की लंबी यात्रा पर निकलते हैं।

Day-1

मयूरेश्वर मंदिर, मोरेगांव

Photo of Mayureshwar Ganpati Mandir Morgaon, Morgaon, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

गणपति बप्पा का पहला स्वयंभू मंदिर पुणे शहर से करीब 70 किमी दूर मोरेगांव में स्थित है। मयूरेश्वर मंदिर के चार प्रवेशद्वार है। इन्हें सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग का प्रतीक माना जाता है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर आपको छह फीट लंबे मूषक महाराज और गणपति के सामने मुख किए बड़े से नंदी बैठे मिल जाएंगे। यह एक मात्र ऐसा गणेश मंदिर है जहां गणपति जी की मूर्ति के सामने नंदी बैठे हुए हैं। मंदिर में बप्पा तीन आंखों और चार भुजाओं के साथ मोर पर सवार हैं। बप्पा की सूंड बाईं ओर मुड़ी हुई है और उनके साथ नागराज भी विराजमान है। मान्यता है कि इसी स्थान पर गणपति जी ने मोर पर सवार होकर सिंदुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। इसलिए इस मंदिर में प्रकट हुए भगवान गणपति के इस स्वरूप को मयूरेश्वर कहा जाता है।

सिद्धिविनायक मंदिर, सिद्धटेक

Photo of Siddhivinayak Mandir, State Maharashtra, Siddhatek, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

मयूरेश्वर मंदिर से करीब दो घंटे का सफर तय कर हम अपनी यात्रा के दूसरे पड़ाव पर पहुंच जाएंगे। मयूरेश्वर मंदिर से करीब 60 किमी दूर यह मंदिर भीमा नदी के किनारे पर स्थित है। सिद्धिविनायक मंदिर में भक्तों को बप्पा के तीन फीट ऊंचे और ढाई फीट चौड़े स्वयंभू मूर्ति के दर्शन होते हैं। यहां बप्पा की मूर्ति का मुख उत्तर दिशा में है और उनकी सूंड दाहिनी ओर है। अष्टविनायकों में से यहीं एक स्वरूप है जहां गणपति की सूंड दाहिनी ओर है। इस मंदिर की परिक्रमा कर सिद्धि प्राप्त करने की मान्यता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने भी इसी स्थान पर सिद्धि हासिल कर मधु और कैटभ नाम के राक्षसों का वध किया था। मंदिर की परिक्रमा करने के लिए आपको पहाड़ की पांच किमी लंबी यात्रा करनी होती है।

चिंतामणि विनायक मंदिर, थेऊर

Photo of Shree Chintamani Vinayaka Temple Theur, Theur Road, Theur, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

सिद्धेश्वर मंदिर से करीब 80 किमी की दूरी पर हमारा तीसरा पड़ाव यानी चिंतामणि मंदिर मौजूद है। इसके मुला-मुथा और भीमा नदी के संगम पास स्थित होने से पर्यटन की दृष्टि से भी यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान गणपति का मुख पूर्व दिशा की ओर है। चिंतामणि मंदिर में भगवान की आंखे बहुमूल्य रत्नों से जड़ित है। इसका मुख्य प्रवेशद्वार उत्तर दिशा की ओर है, जो इसे मुला-मुथा नदी के ओर जाने वाले मार्ग से जोड़ता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी स्थान पर भगवान गणपति ने गणराजा का वध कर अपने भक्त ऋषि कपिला को उनका चिंतामणि लौटाया था। लेकिन ऋषि कपिला ने चिंतामणि की बजाय भगवान को चुना। और उन्होंने चिंतामणि को भगवान गणपति के गले में डाल दी। उसके बाद से ही इस स्थान पर भगवान चिंतामणि स्वरूप में मौजूद है।

श्री महागणपति मंदिर, रंजनगांव

Photo of Shree Mahaganapati Ranjangaon, Ranjangaon, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको चिंतामणि विनायक मंदिर से करीब 40 किमी का सफर तय करना होता है। इस पूर्वमुखी मंदिर को कुछ इस तरह बनाया गया है कि सूर्य की किरणें सीधे दक्षिणयान की मूर्ति पर पड़ती है। मंदिर में गणपति बप्पा कमल के फूल की गोद में विराजमान है। भक्तों की मान्यता के अनुसार इस मूर्ति के नीचे एक और मूर्ति है। जिसकी 10 सूंड और 20 भुजाएं हैं। इस मूर्ति को महोत्कट कहा जाता है। हालांकि, इस बात के कोई पुख़्ता साक्ष्य नहीं है कि सच में ऐसी कोई मूर्ति है भी या नहीं। आपको बता दे कि गणेशोत्सव के दौरान रंजनगांव में कोई अपने घर में गणपति की मूर्ति की स्थापना नहीं करता है। इसलिए गणेशोत्सव के दौरान समूचा गांव मंदिर में ही आकर पूजा-अर्चना करता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने दैत्यराज त्रिपुरासुर का वध करने के लिए पहले गणेश जी की पूजा की और इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया।

विघ्नेश्वर मंदिर, ओझर

Photo of Shree Vighnahar Ganapati Mandir Ozar, Ozar, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

श्री महागणपति मंदिर से करीब 70 किमी की दूरी पर स्थित विघ्नेश्वर मंदिर पुणे जिले के जुन्नर तालुका के ओझर इलाके के अंतर्गत आता है। कुकड़ी नदी के किनारे मौजूद इस मंदिर के प्रवेशद्वार पर चार द्वारपाल हैं। इनमें से पहले और चौथे द्वारपाल के हाथ में शिव लिंग है। सभी अष्टविनायक मंदिरों में से यही एक मात्र मंदिर है जिसके सुनहरा गुबंद और शिखर है। इसके अलावा मंदिर परिसर में मौजूद एक दीपमाला (पत्थर का स्तंभ) भी यहां के आकर्षण का अहम केंद्र है। यहां भगवान गणपति को उनकी दो पत्नियों सिद्धि (आध्यात्मिक शक्ति) और रिद्धि (समृद्धि) के साथ चित्रित किया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि-मुनियों के यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षस को भगवान गणपति ने युद्ध में हराया था। और इस घटना को इतिहास में दर्ज करने के लिए ऋषि-मुनियों ने ही ओझर में विघ्नेश्वर मंदिर की स्थापना की।

पहले दिन की अष्टविनायक यात्रा को हम यही पर विराम देंगे। एक दिन में पांच अष्टविनायक मंदिर के दर्शन और इसके लिए करीब 320 किमी का सफर तय करने के बाद हम मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से थक जाएंगे। इसलिए ओझर में विघ्नेश्वर स्वरूप के रात्रि की आरती के बाद महाप्रसाद ग्रहण कर आराम करने लिए भक्त निवास चले जाएंगे। आपको बता दें कि हर अष्टविनायक मंदिर के पास आपको ठहरने के लिए भक्त निवास मिल जाएगा। यहां आप महज 500 से 700 रुपए में कमरा लेकर एक रात ठहर सकते हैं। वैसे अगर आप चाहे तो आसपास निजी होटल्स और रिसॉर्ट्स की भी भरमार है।

Day-2

गिरिजात्मज मंदिर, लेण्याद्री

Photo of Girijatmaj Lenyadri Ganapati Ashtavinayak, Golegaon, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

दूसरे दिन सुबह तड़के उठकर हम विघ्नेश्वर मंदिर को अलविदा कह देंगे। और यहां से करीब 15 किमी का सफर तय कर हम एकमात्र ऐसे अष्टविनायक मंदिर के प्रांगण में पहुंच जाएंगे जो पहाड़ो पर स्थित है। जी हां, लेण्याद्री में स्थिर गिरिजात्मक मंदिर पहाड़ पर स्थित 18 बौद्ध गुफाओं में से गुफा नंबर 8 में मौजूद है। इस गुफा हो गणेश गुफा भी कहा जाता है। इस मंदिर को इस तरह बनाया गया है कि जब तक आसमान में सूर्य नजर आता है, तब थ मंदिर के हर एक कोने में रोशनी फैली रहती है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको 307 सीढ़िया चढ़नी पड़ेंगी। गिरिजात्मक दरअसल गिरिजा और आत्मज इन दो शब्दों के मेल से बना है। गिरिजा माता पार्वती का दूसरा नाम है और आत्मज का अर्थ होता है पुत्र। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लेण्याद्री पर्वत पर तपस्या कर रही देवी सती से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने मैल से एक मूर्ति बनाई। और फिट भगवान गणपति इस मैल की मूर्ति में प्रवेश कर गए। जिसके बाद वह देवी सती के सामने 6 भुजाओं और 3 आंखों वाले बच्चे के रूप में प्रकट हो गए।

वरदविनायक मंदिर, महाड़

Photo of Varadvinayak Ganesh Mandir, Sector 25, Pradhikaran, Nigdi, Pimpri-Chinchwad, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

गिरिजात्मज मंदिर से निकलने के बाद हमें करीब 150 किमी का लंबा सफर तय करना होगा। यानी करीब 3-4 घंटे के सफर के बाद हम महाड़ स्थित वरदविनायक मंदिर पहुंच पाएंगे। भगवान गणपति के इस स्वरूप की मूर्ति पहली बार झील में डूबी हुई मिली थी। मूर्ति की स्थिति बहुत खराब हो गई थी इसलिए उसे पानी में विसर्जित कर दिया गया। और उसके बदले एक नई मूर्ति स्थापित कर दी गई। लेकिन फिर कुछ लोगों आपत्ति दर्ज करते हुए मामले को कोर्ट में लेकर चले गए। इसके बाद से यहां दो मूर्तियां मौजूद है। एक कोर के अंदर है और दूसरी कोर के बाहर। एक मूर्ति सिंदुरा से ढंकी हुई है और उसकी सूंड बाईं ओर है। वहीं दूसरी मूर्ति संगमरमर से बनी हुई है और उसकी सूंड दाईं तरफ है। यह एकमात्र अष्टविनायक मंदिर है जहां भक्त स्वयं जाकर भगवान को मिठाई का भोग लगा सकते हैं। कहा जाता है कि यह नंदादीप 1892 से लगातार जल रहा है। मंदिर के चारों ओर 4 हाथियों की मूर्तियाँ हैं। मंदिर का हॉल 80 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है और शिखर 25 फीट ऊंचा और सुनहरा है। मंदिर के चारों ओर 4 हाथियों की मूर्तियां बनी हुईं हैं। कहा जाता है कि मंदिर में मौजूद एक नंदा दीप 1892 से लगातार जल रहा है। किवदंतियों की माने तो इंद्र पुत्र गृस्तमदा ने भगवान गणेश से प्राथना कर उन्हें इलाके में स्थायी रूप से रहने के लिए कहा। साथ ही उन्होंने भगवान से जंगल को आशीर्वाद देने और यहां आकर प्राथना करने वालों की मनोकामना पूरी करने का भी आग्रह किया।

बल्लालेश्वर मंदिर, पाली

Photo of Ballaleshwar temple market, Pali, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

दूसरे दिन जारी अष्टविनायक यात्रा की इस कड़ी में हमारा आखिरी पड़ाव पाली स्थित बल्लालेश्वर मंदिर होगा। वरदविनायक मंदिर से करीब 40 किमी की दूरी पर मौजूद बल्लालेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जो भक्त बल्लालेश्वर के नाम पर जाना जाता है। इस मंदिर में 3 फीट की ऊंची बल्लालेश्वर की मूर्ति पत्थर के एक सिंहासन पर स्थित है। मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा ब्राह्मण के पोशाक में विराजमान है। पत्थर से बने इस मंदिर का आकार 'श्री' अक्षर के जैसा नजर आता है। इसका निर्माण कुछ इस तरह किया गया है कि सर्दियों के मौसम में दक्षिणायन के दौरान सूर्य की किरणें सीधे मूर्ति पर पड़ती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बल्लालेश्वर नामक एक बालक भगवान गणेश का इतना बड़ा भक्त था कि इससे परेशान होकर उसके पिता ने पहले उसकी बुरी तरह पिटाई की और फिर उसे जंगल में छोड़ दिया। जंगल में भक्त बल्लालेश्वर पूरी श्रद्धा से भगवान गणपति का नाम जपने लगा। नतीजत गणेश जी ने प्रसन्न होकर बल्लालेश्वर से वरदान मांगने को कहा। बल्लालेश्वर ने भगवान से पाली में ही बस जाने का आग्रह किया। भक्त की बात का मान रखते हुए भगवान अगले ही पल वहीं मूर्ति रूप में स्थापित हो गए।

इस तरह हम सिर्फ दो दिन में ही गणपति भगवान के आठ अष्टविनायक स्वरूप का दर्शन कर पाने का सौभाग्य प्राप्त कर लेंगे। वैसे तो भगवान से हमारा रिश्ता इच्छापूर्ति के स्वार्थ का नहीं होना चाहिए। लेकिन बप्पा इतने दयालू हैं कि आपकी इस यात्रा से खुश होकर आपकी मनोकामना जरूर पूरी कर देंगे।

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