सौराष्ट्र गुजरात का एक भाग है जो गुजरात में है| सौर का अर्थ होता है सूर्य और राष्ट्र का अर्थ होता है देश या भाग | सौराष्ट्र का अर्थ है सूर्य का देश | ऐसा माना जाता है कि किसी समय में इस भाग में कुल 12 सूर्य मंदिर हुआ करते थे| राजकोट, जामनगर, द्वारका, पोरबंदर, सोमनाथ, जूनागढ़, भावनगर आदि सौराष्ट्र में आते है| सौराष्ट्र में टूरिस्ट द्वारका और सोमनाथ घूम कर वापस चले जाते हैं लेकिन आज आस पोस्ट में हम सौराष्ट्र में देखने लायक जगहों के बारे में बात करेंगे|
#सौराष्ट्र_का_प्रवेशद्वार_राजकोट
राजकोट गुजरात के सौराष्ट्र में प्रदेश का चौथा बड़ा शहर है| राजकोट को सौराष्ट्र का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है| राजकोट शहर अजी और नयारी नामक दो नदियों के किनारे बसा हुआ है| राजकोट को जडेजा राजपूतों ने सौराष्ट्र की राजधानी के रूप में 1612 ईसवीं में बसाया था| राजकोट ब्रिटिश राज में पश्चिम भारतीय सटेट का हैडकवाटर रह चुका है| 1870 ईसवीं में अंग्रेजों ने राजकुमार कालेज शुरू किया जिसमें सौराष्ट्र के राज घरानों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे| महात्मा गॉंधी का भी राजकोट शहर के साथ गहरा नाता रहा है| गांधी जी के बचपन का घर और सकूल अभी भी राजकोट शहर में मौजूद है| राजकोट गुजरात का इंडस्ट्रियल हब है| इसके साथ राजकोट में घुमक्कड़ी के लिए भी बहुत सारी जगहें है जहाँ आप घूम सकते हो| मैं भी राजकोट के पास एक होमियोपैथिक कालेज में पिछले तीन साल से एक टीचर के रूप में काम कर रहा हूँ| मुझे भी अक्सर राजकोट शहर को घूमने और देखने का मौका मिलता रहता है|
महात्मा गांधी मयूजियिम राजकोट
यह एक सकूल था जहाँ महात्मा गांधी ने शिक्षा ग्रहण की है| यह सौराष्ट्र का उस समय में पहला अंग्रेजी सकूल था| इस सकूल में महात्मा गांधी ने 1880 से लेकर 1887 ईसवीं तक पढ़ाई की है| 1971 ईसवीं में इसका नाम महात्मा गांधी विद्यालय रख दिया गया| इस सकूल में 39 कमरे थे और दो मंजिला सकूल है| इन कमरों को अब महात्मा गांधी से संबंधित गैलरियों में तब्दील कर दिया है| इस मयूजियिम में गांधी जी के जीवन से संबंधित घटनाओं और उनकी शिक्षा को प्रदर्शित किया गया है| महात्मा गांधी मयूजियिम में प्रवेश करने के लिए आपको 25 रुपये की टिकट खरीदनी होगी| मयूजियिम सुबह 10 बजे से लेकर शाम को 7 बजे तक खुला रहता है| शाम को 7 बजे से लेकर 7.20 बजे तक लाईट एंड साऊड शो भी दिखाया जाता है| जब भी राजकोट आए तो इस जगह पर जरुर जाना|
काबा गांधी नो डेलो
राजकोट में महात्मा गांधी से संबंधित दूसरी जगह है काबा गांधी नो डेलो | यह महात्मा गांधी के बचपन में राजकोट में उनका घर था| महात्मा गांधी के पिता जी उत्तम चंद गांधी राजकोट के दीवान थे| यह उनका घर था| गुजराती भाषा में डेला या डेलो का अर्थ होता है घर | इस घर का निर्माण 1880-81 ईसवीं में हुआ था| इस घर में महात्मा गांधी से संबंधित वस्तुओं से लेकर तस्वीरें आदि रखी हुई है| इस जगह में प्रवेश के लिए फ्री एंट्री है| आप यहाँ सुबह 9 बजे से लेकर शाम के 6 बजे तक इस जगह को देख सकते हो|
अजी डैम
राजकोट शहर से बाहर अजी नदी के ऊपर अजी डैम बना हुआ है| जिसके पास खूबसूरत गार्डन, बच्चों के लिए पार्क और फूड कोर्ट आदि बना हुआ है| मानसून के समय में अजी डैम से गिरता हुआ पानी जबरदस्त दिखाई देता है| आप अपनी फैमिली के साथ कुदरत की गोद में एक शाम अजी डैम घूम कर बिता सकते हो|
वाटसन मयुजियिम
इस मयुजियिम का निर्माण 1888 ईसवीं में किया गया| यह गुजरात के पुराने मयुजियिम में से एक है| इस मयुजियिम को जौन वाटसन की याद में बनाया गया जो काठीयावाड़ के ब्रिटिश काल में प्रबंधक थे| ईतिहास, कला आदि में वाटसन काफी दिलचस्पी रखते थे| इस मयुजियिम में आप सौराष्ट्र के कल्चर को देख सकते हो| इस मयुजियिम में आप सिक्के, ईतिहास से संबंधित वस्तुओं आदि के साथ सौराष्ट्र के कबीले के कपड़े और उनकी जीवन शैली को देख सकते हो| इसके साथ इस मयुजियिम में विकटोरिया रानी का बुत भी देख सकते हो|
इस मयुजियिम को देखने के लिए आपको 5 रुपये की टिकट लेनी होगी| सुबह 9 बजे से लेकर शाम के 6 बजे तक आप जगह को देख सकते हो| फोटोग्राफी के लिए आपको 100 रुपये देने पड़ेगे|
जामनगर
दोस्तों जामनगर गुजरात का एक खूबसूरत रियासती शहर हैं जहां आपको राजाओं के बनाए हुए बहुत सारे विरासती सथल मिलेंगे उसमें से एक है जामनगर का लाखोटा पैलेस क्षमयुजियिम जो लाखोटा झील के अंदर बना हुआ है। यह खूबसूरत पैलेस भी हैं और ईतिहासिक चीजों से भरा हुआ मयुजियिम भी। जब आप लाखोटा झील पहुंचोगे तो आपको टिकट कांउटर से 25 रुपये की टिकट लेकर अंदर प्रवेश करना होगा। झील पर बने हुए पुल पर चलकर आप एक खूबसूरत महल की तरह दिखाई देते लाखोटा पैलेस मयुजियिम के बाहरी दरवाजे पर पहुंचोगे। यहां पर एक कर्मचारी आपकी टिकट चैक करेगा और फिर आप इस खूबसूरत पैलेस को निहारोगे लेकिन लाखोटा पैलेस के अंदर आप वीडियो या फोटोग्राफी नहीं कर सकते। मैंने जो तसवीरें खींची है वह सारी लाखोटा पैलेस के बाहर से खींची गई है। दोस्तों अभी तक जामनगर को टूरिस्ट मैप पर वह जगह नहीं मिली जिसका जामनगर हकदार है। जामनगर को सौराष्ट्र का पैरिस भी कहा जाता है यहां की विरासती जगहों की वजह से। लाखोटा पैलेस कभी जामनगर के राजाओं का रहने का सथल हुआ करता था। इस खूबसूरत पैलेस की सुंदरता आपको मंत्रमुंग्ध कर देगी। कुछ सीढियों को चढ़कर आप पैलेस के खुले बरामदे में पहुंच जायोगे। यहां अलग अलग गैलरियों में बहुत कीमती सामान रखा गया है।
पेंटिंग गैलरी - इस गैलरी में जामनगर रियासत से संबंधित खूबसूरत पेंटिंग को रखा गया है ।
लाईब्रेरी- पैलेस में एक छोटी सी लाईब्रेरी है जहां हिसटरी, कलचर आदि की किताबें रखी हुई है।
फोटोग्राफ गैलरी - इस गैलरी में जामनगर रियासत से संबंधित राजाओं की अलग अलग जगहों की खूबसूरत फोटोज को संभाल कर रखा गया है।
पुरातत्व विभाग गैलरी - इस ईतिहासिक गैलरी में 9 वीं शताब्दी से लेकर 19 वीं शताब्दी तक की देवी देवताओं की पत्थर की मूर्तियों को संभाल कर रखा है। हर मूर्ति पर उसका नाम, कहाँ से मिली, कौन सी सदी की मूर्ति है आदि लिखा हुआ है। यह मूर्तियों को पैलेस के बरामदे में हर कोने में सजा कर रखा गया है।
इसके ईलावा भी राजाओं से संबंधित सिक्के, फोटोज, पेपर , हथियार आदि रखे हुए हैं।
पैलेस के बरामदे में व्हेल मछली के बड़े पिंजर को शीशे में जड़कर रखा है। मैंने भी अपनी जिंदगी में पहली बार व्हेल मछली के पिंजर को देखा जो इस पैलेस और.मयुजियिम को देखने के लिए आकर्षित करता है लेकिन इन चीजों की आप तसवीरें नहीं खींच सकते। लाखोटा पैलेस की ईमारत भी बहुत दिलकश लगती हैं। इसकी सुंदरता और भव्यता आपका मन मोह लेगी । जब भी जामनगर जाए तो लाखोटा पैलेस मयुजियिम देखने जरूर जाना।द्वारका गुजरात में भारत के चार धामों और सप्तपुरियों में से एक है|
द्वारका गुजरात में भारत के चार धामों और सप्तपुरियों में से एक है| द्वारका भारत का पश्चिम भाग का धाम है | उत्तर भाग का धाम बद्रीनाथ, दक्षिण का रामेश्वरम और पूर्व भाग का पुरी है
द्वारका के दो भाग है गोमती द्वारका और बेट द्वारका | गोमती द्वारका की गिनती चार धामों में होती है| बेट द्वारका को पुरी कहते हैं| द्वारका भगवान कृष्ण की नगरी है उन्होंने यहाँ पर राज्य किया है | भगवान कृष्ण को द्वारकाधीश भी कहा जाता है
अगर आप द्वारका नगरी को घूमने आते हैं तो आपको निम्नलिखित पांच जगहों पर जरुर जाईये|
1. द्वारकाधीश मंदिर- यह द्वारका का प्रमुख मंदिर है इसे जगत मंदिर भी कहा जाता है| यह मंदिर सात मंजिला है और 30 मीटर ऊँचा है| इसमें भगवान कृष्ण की मूर्ति प्रतिष्ठित है जो एक मीटर से भी ऊंची है और बहुत मनोहारी है| यह मंदिर तकरीबन 2500 साल पुराना है| वर्तमान मंदिर को राजा जगत सिंह राठौर ने बनाया है इसीलिए इसको जगत मंदिर कहा जाता है| मंदिर के प्रांगण में शंकराचार्य मठ भी स्थित है| कला की दृष्टि से यह मंदिर बहुत शानदार है |
2. वेट द्वारका- यह जगह द्वारका से 30 किलोमीटर दूर समुद्र में एक छोटे से द्वीप के रूप में है| वेट द्वारका में श्री कृष्ण का महल बना हुआ है जिसमें अनेक देवी देवताओं के मंदिर दर्शनीय है| यहाँ पर सोने की द्वारका के नाम पर एक खूबसूरत मंदिर बना हुआ है जिसमें भगवान कृष्ण की जिंदगी चित्रों के रूप में दर्शाया गया है| इसके अलावा वेट द्वारका में सिख धर्म के पांच प्यारों में से एक भाई मोहकम सिंह का गुरुदारा भी बना हुआ है| इस जगह पर ही भाई मोहकम सिंह का जन्म हुआ था| वेट द्वारका जाने के लिए आपको उखा नामक कस्बे से नाव पकड़ कर जाना होगा|
3. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग - इस जगह का नाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में आता है| यहाँ पर नागेश्वर नाम का खूबसूरत मंदिर बना हुआ है जिसका वर्तमान निर्माण भजन गायक कैसेट निर्माता गुलशन कुमार जी ने करवाया था| यहाँ पर भगवान शिव को नाग रुप और माता पार्वती को नागिन रुप में पूजा जाता है| मंदिर के पास ही सवा सौ फीट ऊंची भगवान शिव की विशाल मूर्ति बनी हुई है| द्वारका से आप वेट द्वारका यात्रा के समय इस जगह की यात्रा भी जरूर करें|
4. गोपी तालाब - नागेश्वर मंदिर से तकरीबन तीन किलोमीटर की दूरी पर गोपी तालाब नाम का पवित्र स्थान है जहाँ पर एक छोटा सा कच्चा तालाब बना हुआ है| इस तालाब की मिट्टी पीले रंग की है जिसे गोपी चंदन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है|
यहाँ पर गोपीनाथ का मंदिर भी बना हुआ है जिसकी मूर्ति बहुत प्राचीन है | ऐसा कहा जाता है गोपी तालाब में भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ स्नान किया था|
5. शिवराजपुर बीच - यह खूबसूरत बीच अरब सागर के किनारे है जिसका नाम गुजरात की सबसे खूबसूरत बीचों के रूप में लिया जाता है| यह बीच वाकई बहुत दिलकश है | यह एक प्राईवेट बीच है जिसके अंदर प्रवेश के लिए आपको 30 रुपये देने होगे | शिवराजपुर बीच बहुत साफ सुथरी और सुंदर है| आप इस बीच पर बेट द्वारका को घूमते हुए वापसी में शाम को आ सकते हो| सूर्य अस्त का नजारा शिवराजपुर बीच में अद्भुत दिखाई देता है| इसके अलावा आप बीच में वाटर सपोर्टस का आनंद भी ले सकते हो|
कैसे पहुंचे - द्वारका सड़क मार्ग द्वारा गुजरात के सभी शहरों से जुड़ा हुआ है| अहमदाबाद से इसकी दूरी 450 किमी, राजकोट से 225 किमी है | रेलवे मार्ग से भी द्वारका भारत के अलग अलग शहरों से सीधी रेल से जुड़ा हुआ है| आपको द्वारका में रहने के लिए अनेक होटल, गेस्टहाउस और धर्मशालाएँ आदि मिल जाऐगे|
जूनागढ़ गुजरात के प्राचीन शहरों में से एक है| जूना का अर्थ होता है पुराना और गढ़ - किला| अगर आप को हैरीटेज से प्रेम है तो एक बार जूनागढ़ घूमने जरूर आना चाहिए| जूनागढ़ में आपको सब कुछ मिलेगा पैलेस, महल, मंदिर, पहाड़, गुफाएं, मकबरा, मयूजियिम, चिड़ियाघर आदि| इसके साथ आप जूनागढ़ के पास गुजरात के सबसे ऊंचे पहाड़ गिरनार पर्वत की भी यात्रा कर सकते हो| जूनागढ़ में अशोक शिलालेख, किला, बौद्ध गुफाएं आदि ईतिहासिक जगहों पर भी जा सकते हैं| आज हम बात करते हैं जूनागढ़ में घुमक्कड़ कया देख सकते हैं|
जूनागढ़ मयूजियिम
दोस्तों गुजरात का जूनागढ़ शहर बहुत ही ईतिहासिक , धार्मिक महत्व वाला शहर हैं कयोंकि यहां से ही गिरनार पर्वत को रास्ता जाता हैं। जूनागढ़ में आप मयूजियिम , चिड़ियाघर, अशोक शिलालेख , नवाब के मकबरा , शानदार किला और बौद्ध धर्म से बनी हुई गुफाएं आदि देख सकते हो । कुल मिला कर टूरिस्टों के लिए फुल पैकेज शहर हैं जूनागढ़।
#जूनागढ_राज्य
कुछ दिन पहले मुझे भी जूनागढ़ घूमने का मौका मिला जूनागढ़ गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में आता हैं । भारत की आजादी से पहले सौराष्ट्र में कुल 222 राजाओं की छोटी बड़ी रियासतें थी जिसमें जूनागढ़ भी अमीर और बहुत महत्वपूर्ण रियासत थी । जूनागढ़ पर नवाबों ने राज्य किया। 1748 ईसवीं से लेकर 1947 ईसवीं तक तकरीबन 8 नवाबों ने जूनागढ़ पर राज्य किया। जूनागढ़ राज्य की अपनी रेलवे लाईन और अपना एयरबेस था केशोद नामक शहर में । जूनागढ़ के नवाब जूनागढ़ सटेट में अपना दरबार या कचहरी लगाते थे जिसे दरबार हाल या कचहरी कहा जाता था । 1947 ईसवीं को जूनागढ़ के आखिरी नवाब महाबतखान (तीसरे) भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए तो जूनागढ़ रियासत भारत में शामिल हो गई। राजकोट के रीजनल कमिश्नर ने 9 नवंबर 1947 ईसवीं को भारतीय सरकार के आदेश के अनुसार जूनागढ़ रियासत की सभी ईमारतों , वस्तुओं को सरकार ने अपने हाथ में ले लिया। दरबार हाल को 1964 ईसवीं में एक मयूजियिम में तब्दील करके मयूजियिम डिपार्टमेंट को सौंप दिया गया। पुरानी बिल्डिंग की रीपेयर करके इसको अच्छे तरीक़े से संभाला गया। दरबार हाल मयूजियिम के अलग अलग भागों में पिक्चर गैलरी , कपड़ें , गहनों, हथियारों आदि को रखा गया। फिर 26 जून 1977 ईसवीं को इस मयूजियिम को आम जनता के लिए खोल दिया गया। दरबार हाल मयूजियिम हिसटरी के सटूडैंटों, टूरिस्टों आदि में बहुत दिलचस्प जगह बन चुकी हैं जो भी जूनागढ़ यात्रा करता हैं। इस दरबार हाल मयूजियिम को अब जूनागढ़ मयूजियिम का नाम भी दिया गया है।
मयूजियिम खुलने का समय ः 10.00 बजे सुबह से 1.15 बजे दोपहर तक
फिर दुबारा 2.45 बजे दोपहर से 6.00 बजे शाम तक
मयूजियिम की टिकट ः मयूजियिम देखने की टिकट मात्र 5 रुपये हैं ।
अगर आप अंदर कैमरे या मोबाइल से फोटोज खींचना चाहते हो तो आपको 100 रुपये देने होगे।
वीडियो बनाने के लिए 500 रुपये
मयूजियिम हर बुधवार , दूसरे और चौथे शनिवार और पब्लिक छुट्टी वाले दिन बंद रहता हैं।
दोस्तों मुझे तो मयूजियिम देखने बहुत पसंद हैं कयोंकि इस में आपको उस जगह राज्य की हिसटरी , भूगोल , कलचर आदि को देखने का मौका मिल जाता हैं। यह तसवीरें जूनागढ़ मयूजियिम की बाहर की बिल्डिंग की हैं अगले भाग में जूनागढ़ मयूजियिम के अंदर की तस्वीरें और वस्तुओं की जानकारी दूंगा। यह मयूजियिम जूनागढ़ बस स्टैंड से आधा किमी की दूरी पर सरदार बाग क्षेत्र में हैं। जूनागढ़ जाए तो इसे जरूर देखना।
अशोक शिलालेख
जूनागढ़ गुजरात
जूनागढ़ शहर में बहुत कुछ है देखने के लिए इससे पहले मैं जूनागढ़ मयूजियिम के बारे में लिख चुका हूँ। आज बात करुंगा जूनागढ़ शहर के बहुत ऐतिहासिक सथल अशोक के शिलालेख की । शिला का मतलब होता हैं पत्थर या चट्टान । शिलालेख - किसी पत्थर या चट्टान पर लिखी हुई लिखावट को कहा जाता हैं। गिरनार पर्वत की यात्रा करने के बाद मैं भवनाथ तालेटी से शेयर आटो में बैठकर 20 रुपये में जूनागढ़ शहर के सोनापुरी ईलाके में मौजूद अशोक शिलालेख मयूजियिम के बाहर पहुंच गया।
जूनागढ़ शहर में अशोक का बनाया हुआ बहुत विशाल शिलालेख हैं जिसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने बहुत बढिय़ा मयूजियिम बना कर संभाल कर रखा हुआ हैं। अशोक शिलालेख जूनागढ़ से गिरनार पर्वत की तरफ जाने वाले रोड़ पर ही बना हुआ है। मैंने 5 रुपये की टिकट लेकर कुछ सीढियों को चढ़ कर सफेद रंग की एक ईमारत में प्रवेश किया। इसी सफेद रंग की ईमारत में एक बहुत विशाल चट्टान हैं जिस पर अशोक सम्राट ने पाली भाषा में जो ब्रहमी लिपी में लिखी जाती हैं में शिलालेख लिखा हैं। यह चट्टान बहुत बड़ी हैं और तकरीबन 2400 साल पहले इस पर अशोक सम्राट द्वारा शिलालेख बनाया गया। इससे एक तो यह बात सिद्ध हो जाती हैं कि उस समय सौराष्ट्र तक अशोक का राज्य था। दूसरा जब सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया तो बहुत सारी शिक्षाओं का प्रचार किया। जिसके लिए अशोक ने बहुत सारे शिलालेख आदि बनाए और बौद्ध सतूप भी बनवाए। इस शिलालेख में सम्राट अशोक ने 14 आदेश लिखे हैं जैसे दया करना, औरत और जानवर के साथ जुल्म नहीं करना। गरीब की मदद करना आदि। यह पूरी चट्टान शिलालेख से भरी हुई हैं। मुझे पाली भाषा नहीं आती लेकिन कहते हैं पत्थर पर लकीर जैसी बात मतलब पत्थर पर लिखा हुआ कभी मिटता नहीं वह बात यहां अशोक के शिलालेख में देखने को मिलेगी 2400 साल पहले शिलालेख पर लिखा हुआ आज तक नहीं मिटा। आओ कभी जूनागढ़ इस ईतिहासिक शिलालेख को देखने के लिए।
#गिरनार_पर्वत
यह तसवीर जो आप देख रहे हो , गुजरात के जूनागढ़ जिले में पवित्र गिरनार पर्वत पर गुजरात के सबसे ऊंचे सथान दत्रातरेय मंदिर की हैं। इस जगह की ऊंचाई तकरीबन 1100 मीटर हैं। बहुत सारे श्रद्धालु हर साल गिरनार पर्वत की यात्रा करते हैं। गिरनार पर्वत सदियों से साधु संतों की तपोभूमि रहा हैं। धार्मिक महत्व के साथ साथ गिरनार पर्वत का प्राकृतिक सौंदर्य भी लाजवाब हैं। जब आप पैदल गिरनार पर्वत की चढ़ाई चढ़ते हो तो आप को कुदरत के खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं जैसे हरे भरे पहाड़, दूर दूर तक उड़ते हुए बादल और ठंडी हवा के झोंके आदि । मुझे भी 10 अकटूबर 2021 को गुजरात के गिरनार पर्वत की यात्रा करने का मौका मिला। इस तसवीर को मैंने सुबह सुबह माता अंबा जी मंदिर से आगे गोरखनाथ मंदिर से गुरु दत्रातरेय मंदिर की जाते समय खींचा था। अभी गिरनार में माता अंबा जी मंदिर तक रोपवे बन गया है। आपको अपनी गिरनार यात्रा के लिए गुजरात के शहर जूनागढ़ पहुंचना होगा । वहां से भवनाथ तालेटी जहां से आप पैदल या रोपवे से माता अंबा जी मंदिर पहुंच सकते हो। फिर गोरखनाथ मंदिर, कुमंडल कुंड आदि जगहों के दर्शन करते हुए आप गुजरात के सबसे ऊंचे सथल गुरू दत्रातरेय जी के मंदिर तक जा सकते हो। अगर आप पैदल चलोगे तो आपको भवनाथ तालेटी से गुरू दत्रातरेय मंदिर तक 9,999 सीढियां चढ़नी होगी यानि 10,000 सीढियों से एक सीढी कम । तो देर किस बात की अपनी यात्रा लिस्ट में गिरनार पर्वत यात्रा का नाम भी लिख लीजिए ।
सोमनाथ मंदिर - सोमनाथ मंदिर का नाम भगवान शिव के 12 ज्योतिलिंगो में आता है| यह मंदिर सौराष्ट्र के सबसे महत्वपूर्ण मंदिर में एक है| सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए पूरे भारत से टूरिस्ट आते हैं| यह मंदिर समुद्र के किनारे पर बना हुआ है| सोमनाथ का ईतिहास बहुत पुराना है| इस मंदिर के ऊपर बहुत बार आक्रमण हुआ लेकिन यह मंदिर दुबारा फिर बना | जब भी सौराष्ट्र का प्रोग्राम बने तो इस जगह को जरूर दर्शन करने जाना|
माधवपुर बीच जितनी खूबसूरत है उतनी खतरनाक भी है| यह बीच नहाने के लिए या समुद्र में आगे जाकर खेलने के लिए सही नहीं है कयोंकि यहाँ काफी गहरा पानी है| आप दूर से ही इसकी खूबसूरती को निहार सकते हो खासकर अगर आपको तैरना नहीं आता हो तो | माधवपुर बीच पर उच्च जवार आने की वजह से तैराकी के लिए यह बीच जयादा सुरक्षित नहीं है| माधवपुर बीच में रेतीली मीटी के साथ समुद्र का किनारा काफी लम्बा है| मैंने काफी दूर तक इस किनारे के साथ चल कर समुद्र की आती जाती लहरों का आनंद लिया| माधवपुर बीच पर मुझे काफी सारे ऊठ दिखाई दिए जिनकों बहुत खूबसूरत तरीके से सजाया गया था| वहाँ एक दस बारह साल की लड़की थी जो ऊठ के सवारी के बोल रही थी 100 रुपये में| फिर मैंने ऊठ की सवारी की उस लड़की ने ऊठ के साथ मुझे माधवपुर बीच का एक गेड़ा लगा दिया| उसने ऊठ सवारी के साथ मेरी कुछ यादगार तस्वीरें भी खींच दी| आखिर में मैं हाईवे के पास बने ठेले के पास बैठ गया| जहाँ मैंने नारीयल पानी पिया| इसके बाद मैं पैदल ही कछुआ हैचरी साईट देखने के लिए चल पड़ा| गुजरात वन विभाग की मदद से माधवपुर में कछुआ हैचरी साईट विकसित की गई है| जिसमें कछुए के संरक्षण के लिए काम किया जाता है| थोड़ी देर बाद मैं कछुआ हैचरी साईट के गेट पर पहुँच गया| गेट को पार करके मैं अंदर चला गया| वहाँ मैंने अधिकारियों से कछुए के बारे में बात की | उन अधिकारियों ने बताया यहाँ पर गरीन सागर कछुए और ओलीव कछुए का संरक्षण किया जाता है| जब मौसम अनुकूल होता है तो बहुत सारे कछुए अंडे देने के लिए सागर तट के पास आते हैं| यहाँ पर उन अंडों और छोटे कछुए का पालन पोषण किया जाता है| जब वह थोड़े बड़े हो जाते हैं तो वापस समुद्र में भेज दिया जाता है| जब मैं वहाँ गया था तो अप्रैल का महीना था उस समय वहाँ पर कछुए नहीं थे| अगर आप सर्दियों में माधवपुर जाओगे तो आपको इस कछुआ हैचरी साईट में कछुए दिखाई देगे| खैर मुझे यहाँ कछुए के बारे में काफी जानकारी मिली| इससे पहले मैंने बाली इंडोनेशिया में टर्टल आईलैंड पर बहुत सारे कछुए देखे थे| जहाँ गाईड ने उनके बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी थी| माधवपुर बीच पर तीन चार घंटे बिताने के बाद मैं माधवपुर गाँव की ओर चल पड़ा|