हर वो सफ़र बेकार है, जिसे पूरा करके कोई तजुर्बा हासिल न हो। कोई कहानी न लिख सको आप, कोई क़िस्सा आपके अल्फ़ाज़ों से न फूटे।
एक अलहदा ज़िन्दगी की तलाश में, जहाँ पर बस मूलभूत ज़रूरत की चीज़ें हों और सामने हो खुला आसमान, खेतों से उगते हुए फल सब्ज़ियाँ, पंछियों की चहचहाहट और आप। दुनिया बस इतनी सी ही है, बाक़ी सब शोशेबाज़ी है।
उस असली दुनिया में जाने का मौक़ा कम से कम एक बार ज़रूर करें, जिससे एहसास हो अपने होने का। फूलों की महक का आनन्द लें, नंगे पाँव घरों की मुंडेर पर मटरगश्ती करें। अपनी ज़िन्दगी का एक दिन तो असली दुनिया में जिएँ।
ये 8 होमस्टे आपको इसी असली दुनिया से रूबरू कराते हैं। नीलेश मिसरा की आवाज़ में, वो दुनिया, जहाँ आप मिलते हैं ख़ुद से।
एक परंपरागत कुमाऊँ अंदाज़ का बना घर, जो महकता है प्रकृति की ताज़गी से। बाहरी दुनिया से बिल्कुल अछूता यह होमस्टे कुमाऊँ पहाड़ियों के कनरखा गाँव में पड़ता है। खेती और किसानी करके यहाँ के लोग अपना पेट पालते हैं। समुद्र तल से 5,000 फ़ीट ऊपर इस होमस्टे तक काठगोदाम से महज़ दो घंटे का सफ़र कर पहुँच सकते हैं। साफ़ हवा, स्वच्छ पानी, ताज़े फल और सब्ज़ियाँ; ये सारी चीज़ें तोहफ़ा हैं कुदरत का, जो हमको हर दिन मिलना चाहिए। देवदार के जंगलों में ट्रेकिंग करने की इच्छा पूरी करते हैं लोग यहाँ पर।
इन जंगलों में आपको सांभर, पहाड़ी बकरी, भौंकने वाले हिरण और क़िस्मत बढ़िया हुई तो तेंदुआ भी, देखने मिल सकते हैं। पंछी दर्शन के लिए अनुकूल इस जगह पर घूमने का प्लान कभी बर्बाद नहीं होगा।
राजस्थान में जब गर्मी अपने लब्बो-लुआब पर होती है, तो यहाँ के जैसलमेर से 50 किमी0 दूर मिट्टी की ये झोपड़ी मॉनसून सा सुकून देती है। एक देसी गाँव वाली ज़िन्दगी का स्वाद क्या होता है, यहाँ पर चखने के बाद ही पता चलता है। खाने से लेकर पहनने तक राजस्थान की रंगत यहाँ की आब-ओ-हवा में यूँ घुल जाती है कि कुछ ही पलों में आप भी इसके दीवाने हो जाते हैं। ऊँट की सफ़ारी का अनुभव पहली बार खुरी में हो तो इससे बढ़िया बात और क्या होगी।
शिलॉन्ग से 3 घंटे की ड्राइविंग और लो मैं आ पहुँचा हरे जंगलों से भरे और बादलों के घर मेघालय में। प्राकृतिक बाँस का बना यह होमस्टे मॉलिननोंग में पड़ता है, जहाँ पर खासी समुदाय और उनकी जीवन शैली का बड़ा प्रभाव है। उनके ही कारण इसे एशिया के सबसे साफ़ गाँव होने का ख़िताब हासिल है।
प्रकृति के क़रीब दो पल, आकर्षक जड़ों वाला ब्रिज और अनगिनत झरने, स्वर्ग ऐसा ही तो होता है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर बनी डॉकी झील का नाम तो आप सबने सुना होगा। भारत की सबसे साफ़ झील यहीं पर है। उम्नगोत नदी में बोटिंग करने का मज़ा तो सबको पता ही है।
मॉनसून का सीज़न और उसके बाद की सर्दियाँ, यहाँ आने का सबसे बढ़िया समय है। हरे हरे पहाड़ों को क़रीब से देखने, उनके साथ घूमने का मौक़ा छोड़ना नहीं चाहिए।
ठेठ गढ़वाली समुदाय का ये गाँव रैथल, जो अपनी शान्ति और सुकून के लिए बहुत जाना जाता है। शान्ति और सुकून इसलिए भी यहाँ ज़्यादा है, क्योंकि फ़िज़ूल की चीज़ें नहीं हैं यहाँ पर। न तो टीवी है, और न ही मोबाइल। दिन भर इनसे चिपके चिपके अपना जीवन कितना बर्बाद किया है, युवा पीढ़ी को पता है। यहाँ पर ये सब नहीं होने से शान्ति और सुकून है।
यहाँ पर रहते हुए गढ़वाली वास्तुकला और उनके पारंपरिक जीवन की झलक लेने का मौक़ा नहीं छोड़ना चाहिए। यहाँ का इतिहास भी जानने लायक है। लोक कथाएँ कई बार यहीं से उतर कर किताबों का हिस्सा बन जाती हैं। इसके साथ ही जो सबसे ख़ास है, वो है यहाँ का ज़ायका। एक पहाड़ी खाना कितने प्यार से बनता है, उसकी महक और स्वाद देखकर पता चल जाता है। समुद्रतल से 1,800 मीटर ऊपर रैथल को अपने एडवेंचर के लिए, ट्रेकिंग के लिए या फिर सिर्फ़ ताज़ी हवा और साफ़ पानी के लिए घूमने का प्लान बनाएँ, तो गारंटी है कि ट्रिप शानदार होगा।
केरल की प्राचीन कला और संस्कृति से भरे इस होमस्टे में मॉडर्न रंगत को इस तरह से सजाया गया है, कि कहीं पर भी कम ज़्यादा का एहसास नहीं होता। अलेप्पी से 16 किमी0 दूर मरारी में स्थित है यह होमस्टे, मरारी की समुद्री तटरेखा पर बसे होने के कारण ख़ूब चर्चा में रहता है। साथ ही यहाँ पर कई चीज़ें हैं देखने के लिए, जो ट्रिप को और यादगार बनाती हैं। जैसे यहाँ का पारंपरिक नृत्य अंग्रेज़ों के बनाए सामुदायिक चर्च।
आप कॉफ़ी पीते हुए यहाँ पर कई घूमने की जगहें जा सकते हैं या फिर अपनी पसंदीदा किताब के साथ जगह का आनन्द ले सकते हैं, चुनाव आपको करना है।
हिमालय की ऊँचाइयों पर जाकर हर जगह ख़ूबसूरत हो जाती है और थोड़ी शान्त भी। शान्ति और सुकून से भरे इस गाँव में इंसान के कदमों के निशान कम ही पड़े हैं। पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर चलने वाले इस होमस्टे में आप एक देसी पहाड़ी ज़िन्दगी की ख़्वाहिश के साथ आएँगे, तो सोने पे सुहागा हो जाएगा। चरवाहों के साथ बातचीत कर समय बिताना, वादियों के बेपरवाह रास्तों पर घूमने निकल जाना, यहाँ का असली स्वाद यहीं छिपा है।
कई बार यहाँ के जंगलों में बर्फ़ वाला तेंदुआ, हिमालयी ग्रिफ़न, तिब्बती भेड़िया और इबेक्स भी देखने मिल जाते हैं। और सबसे अच्छी बात, यहाँ पर इतना साफ़ है आसमान, कि आपको पूरी रात चाँद और सितारों की छाँव में गुज़ारनी पड़ेगी। इस समय की कोई क़ीमत नहीं है, ये अनमोल है। यहाँ से काज़ा महज़ 16 किमी0 दूर है, वहाँ भी घूमने का समय निकालकर ज़रूर जाएँ।
पहाड़ों के सामने से उगता हुआ सूरज, बहती हुई नदी, बगल में एक छोटा सा घर। बचपन की आर्ट की शीट पर ऐसी ही दुनिया तो उकेरते थे हम, आज ये हक़ीकत बनके सामने है। गंगटोक से 5-6 घंटे का सफ़र है और आप लाचन के पहाड़ी गाँव में। समुद्रतल से 2750 मीटर ऊपर बसे इस गाँव को बनाया सँवारा है सिक्किमी भूटिया समुदाय ने।
यहाँ का हर निवासी ज़ुमसा का सदस्य है, जो कि यहाँ का लोकल प्रशासनिक सिस्टम है। यहाँ के पारंपरिक जीवन को जीना, उसके साथ ढलना, देसी स्वाद का आनंद उठाना, यहाँ की गुरुडोंगमार झील घूमना। यह गाँव आपको वो सब कुछ देता है, जिसकी तलाश में आप यहाँ तक पहुँचते हैं।
1972 से पहले ये गाँव पाकिस्तान का हिस्सा हुआ करता था। जंग हुई तो ये गाँव खिसक के भारत का हो लिया। एक रिमोट गाँव, जहाँ पर सरहदी तनाव का असर हमेशा रहता है, लेकिन ख़ासियत ये है कि लोग यहाँ के इन सब चीज़ों से तंग नहीं होते। श्योक नदी यहाँ पर बहती है। नुब्रा घाटी के इस ओर से लेकर उस ओऱ बाल्टिस्तान तक जाती है ये नदी।
यहाँ पर पहुँचना भी एक कठिन सफ़र से कम नहीं है, लेकिन यहाँ पर होने के बाद इस सफ़र की थकान बचती नहीं। कई सारी संस्कृतियाँ इसके केन्द्र में बसती है, जो यहाँ के मंदिर मस्जिद तक में देखने मिलेगा। जैसे यहाँ के तुरतुक मस्जिद में स्वास्तिक, बौद्ध धर्म और ईरानी कला के रंग मिलते हैं। यहाँ पर रहने के बाद आपको यहाँ की प्रकृति, तहज़ीब, कला और लोगों से प्यार न हो जाए, तो जो कहना वो हार जाएँगे हम।
तो कौन से होमस्टे में रुकने का प्लान बनाया है आपने, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
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