राजस्थान का नाम आते ही दिमाग में सबसे पहले आती है रेत। रेगिस्तान,तपती धरती और उस पर चमकता वीरों का शौर्य। बड़े-बड़े महल, विशालता लिए हुए किले और दुर्ग। लेकिन इन सब के अलावा राजस्थान का वो पहलू भी जो हरा-भरा दिखाई देता है। आपको ये हिस्सा जरूर दंग कर देगा। राजस्थान का पूर्वी दरवाजा जिसे हम भरतपुर के नाम से जानते हैं। भरतपुर राजस्थान का सातवां सबसे बड़ा शहर है। इस शहर का इतिहास जितना समृद्ध है उतना ही प्राकृतिक वातावरण भी है।
आजादी से पहले भरतपुर एक रियासत थी और मुगलों के समय राज्य था। भरतपुर की नींव राजा सूरजमल ने डाली थी। सूरजमल एक जाट राजा था जिसे जयपुर के राजा जयसिंह ने डीग की रियासत सौंपी थी। अब आते हैं मुद्दे की बात पर भरतपुर में घूमने के लिए बहुत सी जगह हैं। इनमें से एक है लोहागढ़ किला। इस किले की नींव राजा सूरजमल ने डाली थी। इसे अभेद्य किला कहा जाता है मतलब इसे आज तक किसे नहीं जीता। इस किले के अंदर किशोरी महल, भरतपुर पैलेस, बांके बिहारी मंदिर है। यह किला भरतपुर के बिल्कुल बीचोंबीच बनाया है। इस किले के चारों ओर नहर का निर्माण किया गया है जिसे सुजान गंगा के नाम से जाना जाता है। इस किले का निर्माण साल 1733 में किया गया था। इस किले में अंदर जाने के लिए दो गेट हैं पूर्वी गेट जिसे लोहिया गेट के नाम से जाना जाता है और पश्चिमी दरवाजा अष्टधातु गेट के नाम जाता है।
भरतपुर शहर का नाम भगवान राम के भाई के नाम पर रखा गया है। भरतपुर म्यूजियम, लोहागढ़ किले के अंदर ही स्थित है। म्यूजियम का आर्किटेक्चर बेहद ही शानदार है। राजपूताना और मुस्लिम कला की झलक साफ-साफ दिखाई देती है। इस म्यूजियम का पहले उपयोग महल के रूप में किया जाता था। इस म्यूजियम में दरबार हॉल, कमरा खास कचहरी कलां, हमाम आदि हैं। म्यूजियम में हजार साल पुरानी मूर्ति से लेकर 19वीं तक मूर्तियों का संग्रह किया गया है। इसके अलावा हथियार, पेंटिंग, हाउसहोल्ड के सामान का संग्रह है।
भरतपुर म्यूजियम के पास ही है किशोरी महल इस महल का निर्माण सन् 1726 में राजा सूरजमल ने करवाया था। सूरजमल ने इस महल का नाम अपनी पत्नी किशोरी के नाम पर किशोरी महल रखा। यह दो आंगन वाला महल और इसमें लोहे के गार्डर का इस्तेमाल भी किया गया है। जितना सुंदर यह बाहर से दिखाई देता है उतना अंदर से भी सुंदर है।
गंगा महारानी का मंदिर भरतपुर में शहर के बीचोंबीच स्थित है। लोहागढ़ किला के सामने स्थित मंदिर सुंदर और विशालता को लिए हुए है। इस मंदिर का निर्माण जाट राजा बलवंत सिंह ने 1845 AD में शुरू करवाया था। इस मंदिर को तैयार होने में 91 साल लग गए। भरतपुर के पांचवीं पीढ़ी के राजा ब्रजेंद्र सिंह के समय मंदिर बनकर तैयार हुआ।इस मंदिर का निर्माण बंदी पहाड़पुर से लाए गए बादामी पत्थरों से किया गया है। मंदिर पर सुंदर और सूक्ष्म (Micro) कारीगरी की गई है। मंदिर पर स्पष्ट रूप से राजपूत और मुस्लिम शैली की झलक साफ-साफ देखी जा सकती है।
मंदिर परिसर 1.5 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। मंदिर परिसर के चारों कोनों पर बरादरी(Pavillion) हैं। इन बरादरियों की बनावट दो नदियों की संगम की तरह है।मुख्य मंदिर को हम दो भागों में बांट सकते हैं। पहला हॉल(Hall), गर्भगृह के बिल्कुल सामने हॉल स्थित है। इस हॉल में मुस्लिम स्थापत्य कला के साक्ष्य(Evidence) दिख जाते हैं। मेहराब और खंबों पर बारीक कारीगरी का काम। खंबों और दीवार पर बारीक कारीगरी की गई है जिसमें फूल, पत्तियों को दर्शाया गया है। मंदिर का दूसरा भाग गर्भगृह है। गर्भगृह में मां गंगा देवी के साथ-साथ भागीरथी की प्रतिमा स्थापित की गई है।
भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण का एकमात्र(Only) मंदिर भरतपुर में स्थित है। भरतपुर राज्य का राज परिवार लक्ष्मण को अपना इष्ट मानते थे। राजा बलदेव सिंह ने इस मंदिर की नींव रखी और निर्माण पूरा कराने का श्रेय बलवंत सिंह को जाता है। यह मंदिर 1870 ईस्वी में बनकर तैयार हुआ। मंदिर शहर के मुख्य बाजार में ही स्थित है। यहां लक्ष्मण और उनकी पत्नी उर्मिला की अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित की गई है।
मंदिर का मुख्य दरवाजा बहुत सुंदर और भव्य है। इसमें झरोखे के साथ-साथ बारीक कारीगरी भी गई है। इसमें मुस्लिम और राजपूत शैली का मिश्रण आप देख सकते हैं। मंदिर की मुख्य इमारत में भी बारीक कारीगरी को देख सकते हैं। खंबों से लेकर दीवार तक फूल, पत्ती को बादामी बलुआ पत्थर पर उकेरा गया। इसके अलावा ऊंची छत और मेहराबें इसकी सुंदरता को चार चांद लगा देते हैं। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है।
जामा मस्जिद का निर्माण कार्य बलवंत सिंह के समय शुरू हुआ था। इसका निर्माण कार्य ब्रजेंद्र सिंह के समय पूरा हुआ। यानी इस मस्जिद को पूरा होने में 70 साल लग गए। इस मस्जिद का रचना विन्यास दिल्ली की जामा मस्जिद की तरह है। इसका मुख्य दरवाजा बेहद सुंदर और भव्य है। इसे बुलंद दरवाजा भी कई लोग कहते है। इस दरवाजे पर कुरान की आयतों को उकेरा गया है। आयतों के अलावा इस पर बारीक कारीगरी की गई है। मस्जिद की मुख्य इमारत पर तीन गुबंद नजर आते हैं, कई सारी छतरियां और अष्टकोणीय(Octagonal) मीनार दिखाई देती हैं।
भरतपुर में एक जगह है जो ना केवल इंसानों को अपने ओर खींचती है बल्कि विदेशी मेहमानों और पक्षियों को भी आकर्षित करती है। भरतपुर के पूर्व में स्थित है केवलादेव नेशनल पार्क(Keoladev National Park)। केवलादेव नेशनल पार्क कई सारे पक्षियों का घर है जिनमें देसी और विदेशी दोनों शामिल हैं। ठंड के मौसम में विदेशी पक्षी हजारों किमी की दूर को नापते हुए यहां धूप सेंकने आते हैं। यहां का वातावरण विदेशी पक्षियों को रास आता है। इस नेशनल पार्क में साधारण से पक्षी से लेकर सारस क्रेन तक हैं। इसे साल 1976 में केवलादेव पक्षी अभयारण्य के नाम से स्थापित किया गया। इसके बाद साल 1982 में इसे नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया।
केवलादेव नेशनल पार्क पूरी तरह मैनमेड वैटलैंड और इसके प्रबंधन(Management)का काम भी इंसान ही करते हैं। नेशनल पार्क को साल 1981 में रामसर वैटलैंड में शामिल कर लिया। इसके अलावा यह पार्क विश्व विरासत सूची में भी शामिल है। पार्क को साल 1985 में विश्व विरासत साइट(World Heritage Site) का दर्जा दिया गया।
केवलादेव नेशनल पार्क का कुल क्षेत्रफल 29 वर्ग किमी है। जिसमें 366 प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं। इन पक्षियों में पेंटेड स्टॉर्क, एशियन ओपनबिल, मैलार्ड, सॉरस क्रेन, ग्रेट ईगर्ट, यूरेशियन स्पूनबिल,नॉबबिल डक, ऑरिंटेड मैगपाइ रॉबिन, डॉर्टर, इंडियन पीकॉक, इंडियन सॉरस क्रेन, बगुला, बटेर, कौआ, तोता, मैना, बाज, गोरैया, कबूतर, बत्तख आदि शामिल हैं। इनके अलावा यहां कछुआ, जल सांप, मगरमच्छ, नीलगाय, बारहसिंगा, मोनिटर लिजार्ड हैं। पार्क में ढेर सारी रंग-बिरंगी तितली देखने को भी मिलेगी। जो लोग नेचर से प्यार करते हैं उनके लिए यह जगह बेहद शानदार है।
भरतपुर के बोली में ब्रज की झलक सुनाई देती है। भरतपुर ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा मार्ग पर स्थित है। यह शहर राजस्थान का होकर भी नहीं है। इसलिए इस शहर में आकर आप नॉर्थ इंडिया को मिस नहीं करेंगे।
#VinayKushwaha