आजकल तो वर्क ट्रिप्स में फसी रहती हूँ, किसी तरह समय निकल कर एक आध जगह देख आती हूँ पर एक ज़माना वो भी था कि सफर पर जाने से पहले सोचना नहीं पड़ता था। मंज़िल दिमाग में होना भी ज़रूरी नहीं था, बस जूनून था सड़क पर उतर जाने का। जब मैं अहमदाबाद से अपनी मास्टर्स की पढ़ाई कर रही थी तब 2016 में सेमेस्टर खत्म होने के बाद एक रात हम बैठकर जनवरी की ठण्ड में चाय की चुस्कियां मार रहे थे। किसी ने मज़ाक में बोला कि जैसलमेर जाने में सिर्फ आठ घंटे लगते हैं। सुबह के 3 बजे थे और छुट्टियां भी शुरू होगयी थी। सबने एक दूसरे की तरफ देखा और सुबह 8 बजे तक बैग पैक करने को बोलै। आठ बजे इसीलिए क्यूंकि मेस का नाष्ता नहीं छोड़ना चाहते थे मेरे कंजूस दोस्त। तो फिर क्या था हम 8 बजे मिले और अपनी दोस्त की काली सैंट्रो में बैठकल निकल पड़े। सी न जी पर चलने का बहोत फायदा था, हमारा खर्चा काफी हद तक काम होगया था। मज़े की बात तो यह है कि हम दो लड़कियाँ और एक लड़के का अनोखा ही ग्रुप था। बेचारा धीरज हमारे लिए बहुत कुछ करता और बदले में हम भी उसे नयी लड़कियों से मिलवा देते थे। वो भी क्या मस्ती भरे दिन थे।
550 किलोमीटर का यह सफर हुआ अहमदाबाद में जो एक सूखा राज्य है मतलब यहाँ शाराब नहीं मिलती। हमें सबसे ज़्यादा ख़ुशी तो बॉर्डर से चिल्ड बीयर उठाने के बाद हुई। दिल्ली के लोगों को वैसे भी ठेके देखने कि आदत है जो मुझे अहमदाबाद में बिलकुल नहीं दिखते थे। बीयर पीते हुए और गुनगुनाते हुए हम करीबन 10 घंटों में जैसलमेर के करीब पहुँच गए। ठण्ड बड़े जा रही थी और ढलती हुई शाम शहर को एक सोने कि चादर से छुपा रही थी।
हमारा पहला स्टॉप था सैम डून्स जहाँ हमारा रात को कैम्प बुक था। कैम्प जैसलमेर से करीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर लगता है। मकसद है थार के रेगिस्तान में तारों के बीचों बीच एक दिल दहला देने वाला अनुभव जो आपको कहीं और नहीं मिल सकता। और यह कैम्प सिर्फ नवंबर से फरवरी ही आपको दिख पायेगा क्योंकि गर्मी बहोत ज़्यादा हो जाती है यहाँ। आपको काफी सारे फोर्नर्स भी मिलेंगे यहाँ। यहाँ कैम्प में आपको टेंट की सुविधा मिलेगी, राजस्थानी नाच गाने का कार्यक्रम होगा और आप ऊँट की सवारी भी कर सकते हो।
वैसे अगर आपको थार रेगिस्तान के बीचों बीच पहुंचना है तो आपको 2 से 3 किलोमीटर और आगे जाना होगा। वहीँ आप समझ पाओगे के रेगिस्तान की मिट्टी का रंग कैसे पीले से सोने में बदल जाता है। आपका शरीर इस विशाल रेगिस्तान में बिंदु के बराबर भी नहीं है, इसीलिए अपने अहम को भी उतना ही छोटा रखिये। थार में जाने के लिए आपको जीप किराए पर लेनी पड़ती है और इस सफारी का मज़ा लिए बिना आप वापिस आने का सोचना भी मत। यह जीप ड्राइवर रेगिस्तान के रॉकस्टार से काम नहीं, दुनिया के सारे मज़े एक तरफ और थार में जीप सफारी के मज़े एक तरफ। और अगर आप रेगिस्तान में आ ही गए हैं तो फिरसे यहाँ पर ऊँट की सवारी करना। यहाँ के अकेलेपन में जो मज़ा है वो कैम्प की सवारी में नहीं।
जैसा की मैंने बताया सुबह उठकर हमने सबसे पहले रेगिस्तान में जीप सफारी के मज़े लिए। फिर वक़्त आगया था शहर की तरफ चलने का। सबसे पहले तो हम पहुंचे जैसलमेर किले पर। सुबह पीला तो शाम तो सुनेहरा लगने लगता है। क्या आर्किटेक्चर है किले का, मंत्रमुग्ध थे सब लोग। वहाँ पहुँचकर हमने एक गाइड ले लिए जिसने हमें जमकर कहानियां सुनाई और किले के बारे में बताया, मैं यह नहीं कह रही कि सार कहानियां सच होंगी पर सुनने में काफी मज़ा आता है। मैं आपको भी राय दूंगी कि वहाँ जाकर गाइड ज़रूर लें। इतना बड़ा किला था कि अंदर गाओं का गाओं बसा हुआ था। राजस्थान की परंपरागत पोशाक भी यहां आसानी से मिल जाएँगी।
किले की छत से क्या नज़ारा दिखता है शहर का और पुरानी हवेली भी बहुत खूबसूरत दिखती है। हवेली को अब एक म्यूजियम में तब्दील कर दिया है जहाँ लोग आकर पुरानी चीज़ों को देखकर राजस्थान के बीते हुए कल को याद कर सकते हैं। अगर आप शॉपिंग करने का सोच रहे हैं तो मोल भाव के लिए तैयार रहना क्योंकि यहाँ के दूकान वाले 100 200 बढ़ाकर ही बोलने वाले है। हम दोनों लड़कियों ने इतना मोल भाव किया कि धीरज बेचारा परेशान होगया। पर यही बातें तो याद रह जाती है। आज कॉलेज खत्म हुए ३ साल से ज़्यादा होगये हैं पर यह जैसलमेर का ट्रिप मेरे ज़हन में एक दम साफ़ बसा हुआ है। समय निकल कर जाइये जैसलमेर, मज़े की गॅरंटी मैं लेती हूँ। और त्रिपोटो पर अपने ट्रिप के बारे में लिखना मत भूलियेगा।