अमूमन मैं इतना घर पर रहता नहीं जितना इस बार रह चुका था। बस तो फिर क्या था बना लिया बाहर निकलने का प्लान।इस बार मैंने पूरा राजस्थान घूमने का प्लान बनाया।समय बहुत लगने वाला था इसका मुझे पता था लेकिन मैंने बहुत कुछ पढ़ा था इस धरती के बारे में उत्सुकता हुई इस धरा को करीब से जानने की।
मैंने बस पकड़ी और पहुँच गया जयपुर। जी हाँ, गुलाबी नगरी जयपुर, राजस्थान का खूबसूरत और प्यारा शहर। मैंने हॉस्टल बुक किया और पहुँच गया। लंबे समय के लिए रुकने हेतु होटल से बेहतर होता है हॉस्टल में रुकना। रात को मैंने आराम किया और खाना बाहर से ही मँगाया।हॉस्टल में आपको किचन फैसिलिटी भी मिलती है आप चाहो तो अपने लिए कुछ हल्का फुल्का पका भी सकते हो।
खाना खाया और में सो गया।
मैं यहाँ किसी हॉस्टल का नाम नहीं लूँगा क्योंकि ये कोई प्रोमोशन ब्लॉग नहीं है।इसके लिए मुझे खेद है।
मै सिंधी कैंप बस स्टैंड के पास रुका हुआ था। ये वो जगह है जहाँ से जयपुर की सारी प्राइम लोकेशन नज़दीक पड़ती है।
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रात को लेट तक सोने की आदत की वजह से मेरी नींद थोड़ा लेट ही खुलती है। 10 बजे थे तब मेरी नींद खुली। नाश्ता करने के बाद सबसे पहले में पहुँचा जयपुर की सबसे खूबसूरत जगहों मै से एक आमेर फोर्ट। आमेर फोर्ट के पास ही है "जलमहल " अगर आपने "शुद्ध देसी रोमांस" फिल्म जो के जयपुर में ही फिल्माई गई है देखी हो तो आपको ज़रूर याद होगा।
आमेर का कस्बा मूल रूप से स्थानीय मीणाओं द्वारा बसाया गया था, जिस पर कालांतर में कछवाहा राजपूत मान सिंह प्रथम ने राज किया व इस दुर्ग का निर्माण करवाया। यह दुर्ग व महल अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिए भी जाना जाता है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है।
यह महल कछवाहा राजपूत महाराजाओं एवं उनके परिवारों का निवास स्थान हुआ करता था।
अब आमेर का नाम कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक अद्भुत कहानी है।
यहाँ के अधिकांश लोग इसका मूल अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के राजा विष्णुभक्त भक्त अम्बरीष के नाम से जोड़ते हैं। इनकी मान्यता अनुसार अम्बरीष ने दीन-दुखियों की सहायता हेतु अपने राज्य के भण्डार खोल रखे थे। इससे राज्य में सब तरफ़ सुख और शांति तो थी परन्तु राज्य के भण्डार दिन पर दिन खाली होते गए। उनके पिता राजा नाभाग के पूछने पर अम्बरीश ने उत्तर दिया कि ये गोदाम भगवान के भक्तों के है और उनके लिए सदैव खुले रहने चाहिए। तब अम्बरीश को राज्य के हितों के विरुद्ध कार्य के आरोप लगाकर दोषी घोषित किया गया, किन्तु जब गोदामों में आई माल की कमी का ब्यौरा लिया जाने लगा तो कर्मचारी यह देखकर विस्मित रह गए कि जो गोदाम खाली पड़े थे, वे रात- रात में पुनः कैसे भर गए। अम्बरीश ने इसे ईश्वर की कृपा बताया जो उनकी भक्ति के फलस्वरूप हुआ था। इस पर उनके पिता राजा नतमस्तक हो गये। तब ईश्वर की कृपा के लिये धन्यवाद स्वरूप अम्बरीश ने अपनी भक्ति और आराधना के लिए अरावली पहाड़ी पर इस स्थान को चुना। उन्हीं के नाम से कालांतर में अपभ्रंश होता हुआ अम्बरीश से "आम्बेर" बन गया।
मावठा सरोवर में काफी मछलियाँ भी है तो मैंने मछलियों के लिए दाना डाला।आमेर को देखने के लिए पूरे संसार से शैलानी आते है और इसे यूनेस्को के द्वारा विश्व धरोहर भी घोषित किया हुआ है।
शाम 5 बजे तक ही आप फोर्ट में प्रवेश कर सकते है। हाथी की सवारी करके आप इस यात्रा को और मनोरंजक बना सकते है। सिंधी कैंप बस स्टैंड से आमेर की दूरी लगभग 12km है। 7 बजे तक मै अपने हॉस्टल आ गया। रात को करीब 9:00 बजे के आसपास मैं पहुँचा lmb अर्थात लक्ष्मी मिष्ठान भंडार सिंधी कैंप से करीब 4 km दूर। यह जयपुर की करीब 200 साल पुरानी दुकान है। मैंने यहाँ खाना खाया यहाँ का खाना बहुत ही शानदार है। अगर आप कभी जयपुर आए तो यहाँ का खाना अवश्य खाएँ।
खाना खाने के बाद मैं अपने हॉस्टल वापस आ गया। कुछ देर तक सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने के बाद मैं सो गया।आज मैं थोड़ा जल्दी सो गया क्योंकि काफी थका हुआ था और जयपुर में देखने के लिए इतना कुछ था कि मुझे सुबह इसके लिए जल्दी उठना ज़रूरी था।
आज मैं थोड़ा जल्दी उठा टाइम 7 बजे के आस पास।सोचा आज थोड़ा हॉस्टल में ही मस्ती की जाए। तो पहुँच गया होस्टल पूल पर जो के हॉस्टल की टेरेस पर था मतलब रूफटॉप स्विमिंग पूल।अपने कपड़े उठाए और सबसे पहले मैंने अपने लिए चाय ऑर्डर की और वहाँ के स्टाफ के साथ वार्तालाप किया।ज्यादातर स्टाफ नया था लेकिन अपने काम को काफी जिम्मेदारी के साथ निभाया। मुझे नाम तो याद नहीं लेकिन में एक को प्यार से टकलू भाई(बाल कम) और दूसरे को किंगफिशर मेन(हाइट कम) कहता था। खैर मै पहुँचा पूल पर थोड़ा रिलैक्स किया मेरी वहाँ मुलाकात हुई रोजन से जो स्पेन से थी। उसने मुझसे कहा "सॉरी मेरी इंग्लिश थोड़ी कमजोर है"। ये सुनकर में और कंफरटेबल हो गया अपन कौन- से शेक्सपियर थे। हम को हमारी भाषा आती थी और मुझे गर्व है अपनी भाषा पर। उसने मुझे कहा यहाँ ऐसा क्या है जो मुझे देखना चाहिए।
मैंने उसे काफी कुछ सजेस्ट किया राजमंदिर सिनेमा से लेकर लक्ष्मी मिष्ठान भंडार तक सबकुछ। काफी खुश हुई और मैंने भी उसके देश के बारे में जाना उसने कहा वहाँ अभी काफी गर्मी है और मुझे ये जानकर हैरानी हुई के जैसा मुद्दा हमारे यहाँ कश्मीर का है वैसा ही उनके यहाँ है लेकिन वह अंतर सिर्फ इतना है के वहां आतंकवाद की समस्या नहीं है जैसी कश्मीर में। उसने मुझसे कश्मीर के बारे में विचार जाने।
उसने कहा "क्या आप मोदी जी के फैसलों से सहमत है?"
मैंने कहा "हर भारतवासी जो अपने देश से प्यार करता है वो मोदी जी के लिए जान भी से सकता है और मुझे अपने देश से प्यार है"।
इसके बाद में नहाने के बाद नीचे आ गया और हॉस्टल मै ही खाना खाया।
और एक गहरी नींद ली।
शाम को जागा तो सोचा क्यों ना यहाँ का बाज़ार घूमा जाए जो के काफी प्रसिद्ध है अपने हस्तकला सामग्री के लिए जैसे चूड़ी,चप्पल,कुर्ती,स्टोन,सारी,कपड़े एवं बेंड इत्यादि।
लेकिन मैंने इनमें से कुछ नहीं खरीदा क्योंकि कुछ पसंद नहीं आया यहाँ के बाज़ार की टारगेट ऑडियंस विदेशी सैलानी होते है।
रास्ते में आते वक़्त पता चला यहाँ की लस्सी काफी प्रसिद्ध है फिर क्या पहुँच गया "लसीवाला" सच मैं मज़ा आ गया।हॉस्टल आने के बाद थोड़ा आराम किया। खाने के बाद बस बेड पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
आगे की राजस्थान की यात्रा मैंने कैसे की इसके लिए जुड़े रहे मुझसे और मेरे अगले ब्लॉग का इंतजार करें।
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