![Photo of जयपुर भारत की शान by Soni’s Creation](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/1548975/TripDocument/1558872587_fullsizerender.jpg)
जयपुर
जयपुर का नाम आते ही हमें रजवाड़ों का शहर या फिर राजस्थान की रंग बिरंगी सभ्यता याद आती है।
मैंने बहुत सारे शहर की यात्रा की है परंतु मैंने जो इस शहर में देखा वो मैंने किसी और शहर में नहीं देखा यहाँ मेहमानों को भगवान का दर्जा देते हैं मैं ख़ुद मुंबई जैसे शहर से हूँ परंतु मैंने कभी यहाँ पे किसी और को किसी की हेल्प करते हुए नहीं देखा है परंतु मुझे जयपुर में यात्रा करते हुए 1 ऐसा इंसान मिला जिसें मैं आज भी याद करती हूँ।
मैंने स्कूल ट्रिप बहुत किया है पर परिवार के साथ घूमने का बहुत कम ही मौक़ा मिलता है 2018 अगस्त में मैं अपने परिवार के साथ जयपुर की यात्रा करने गई थी ।हम जब भी फ़ैमिली ट्रिप पे जाते हैं अपने साधन से जाना पसंद करते हैं क्योंकि अपने साधन ले जाने का फ़ायदा हो जाता है ।कि हम जब चाहें जहाँ जहाँ रोक सकते हैं और ज़्यादा ख़र्चा भी नहीं होता।
तो हमने अपनी यात्रा शुरू की मुंबई से ।हम रास्ते में काफ़ी जहाँ पे रुकते हुए जाते हैं क्योंकि मुंबई से जयपुर बहुत दूर पड़ता है तो हम काफ़ी जगह पे रुके ।हमने सारी यात्राएं 2 दिन में पूरी की हम क़रीब रात 11 बजे जयपुर पहुँचे थे |हम सब दिन दिन भर के थके हुए थें ।इसलिए होटल गयें और सो गये ।और दूसरे दिन तैयार होके हम सब जयपुर देखने निकले।
हम रात को जयपुर पहुँचे थे जिस कारण उतना सही से हमें सिटी नहीं दिखा पर जब हम सुबह उठे और हम पिंक सिटी जयपुर घूमने निकले तो हैरान रह गए ।वहाँ पे सारी इमारतें गुलाबी रंग की थी जिसके कारण वहाँ का नाम पिंक सिटी पड़ा इतना ख़ूबसूरत एक रंग में रंगा शहर पूरे जीवन में नहीं देखा था।बड़ा हीं मनमोहक दृश्य था ढेर सारे पक्षी कलवर करते हुए इधर से उधर दाना चुग रहे थे और इन्हीं सब चक्करों में हम रास्ता भूल गयें अगर आप भी मैप यूज़ करते होंगे तो आपके साथ भी बहुत बार ऐसा हुआ होगा ।हम ग़लत दिशा में चले गयें और हमारी गाड़ी 1 बहुत ही भीड़-भाड़ वाले इलाक़े में फँस गई ।बहुत परेशान हो रहे थे हम ।समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या करें न हम निकल पा रहे थे और ना ही रास्ता समझ में आ रहा था तभी एक लड़के ने हमारी गाड़ी को बुरी तरह फँसे हुए देखा ।मुझे का चेहरा याद नहीं है पर वो बुलेट लें था उसने सफ़ेद शर्ट और नीले रंग की जींस पहनी हुई थी ।एक बहुत सभ्य परिवार का पुरुष लग रहा था पर हम डर गए थे क्योंकि हम जहाँ भी जा रहे थे वहाँ पे कोई न कोई प्राइवेट गाइड आके हमें परेशान करने लगता था तो हमें लगा यह भी गाइड है ।पर हमारे पास और कोई दूसरा रास्ता था नहीं उसने हमसे पूछा क्या आप यहाँ फँस गए हैं ?
अब क्या करते हैं हमने बोला हाँ उसने कहा ठीक है ये रास्ता ग़लत आ गए हैं आपको जाना कहाँ है ?हमने बताया हवा महल जाना है ।
अब वो बंदा शायद किसी बहुत ज़रूरी काम से जा रहा था परंतु उस इंसान ने अपना काम छोड़ कर हमें बोला की आप हमें फ़ॉलो कीजिए ।मैं आपको रास्ता बताता हूँ ।हाँ पर बहुत भीड़ थी उसने वहाँ पे खड़े ट्रैफ़िक पुलिस को हमारी प्रॉब्लम बतायी ट्रैफ़िक पुलिस ने 5 मिनट में ट्रैफ़िक धीरे धीरे धीरे धीरे करके क्लीन किया और हमें एक छोटी सी गली में से निकालने को बोला उस इंसान ने हमारे पीछे अपना 10 मिनट ख़राब किया और हमें उसको फ़ॉलो करने को बोला हम उसके पीछे पीछे गाड़ी को धीरे धीरे धीरे ले गये और उस इंसान ने हमें हवा महल छोड़ा ।मैं आज तक नहीं भूली ।हम लोग क्या सोच रहे थें।उसके बारे में और वो क्या निकला ।ख़ैर अपनी ग़लत सोच के लिए मैं आज तक शर्मिंदा हूँ।
हम काफ़ी वक़्त गंवा चुके थे अपना ट्रैफ़िक में फँस कर तो हमें बहुत भूख लगी थी हमने सोचा क्यों न जयपुर की मशहूर चीज़ें खाएं जाए ।तो हमने खाया हमने वहाँ पे मूंग दाल की पकोड़े खाएं भरे ला मिर्ची खाया और ढेर सारी दाल बाटी और राबड़ी भी आप यक़ीन मानिए अगर आप खाने पीने के शौक़ीन हैं तो आपको जयपुर जैसे शहर में सस्ते से सस्ता और अच्छे से अच्छा और साफ़ सुथरा खाना मिलेगा आप बहुत एन्जॉय करेंगे मैंने वहाँ से कुछ सामान भी ख़रीदा जैसे की 1 राजस्थानी चुनरी लिया और 1 दो बैग लिए अपने फ्रेंड्स को गिफ़्ट देने के
लिए। ये सब ख़त्म करने के बाद हमने हवा महल जाने के लिए टिकट ख़रीदा वहाँ पे आपको टिकट 50 रुपया का मिल जाएगा हमने टिकट लिया और अंदर गयें
हवा महल मैं पहले इसका थोड़ा परिचय देना चाहूंगी।
इसे सन 1798 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था और इसे किसी 'राजमुकुट' की तरह वास्तुकार लाल चंद उस्ता द्वारा डिजाइन किया गया था। इसकी अद्वितीय पांच-मंजिला इमारत जो ऊपर से तो केवल डेढ़ फुट चौड़ी है, बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है, जिसमें ९५३ बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। झरोखा बनाने के पीछे मूल कारण यह था कि राजस्थानी महिलाएँ पर्दा प्रथा का सख़्ती से पालन करती है जिस कारण इस महल में छोटी छोटी जालीदार खिड़कियाँ बनायी गई। राज घराने की महिलाएँ घर में होने वाली महोत्सव का आनंद इन्हीं खिड़कियों और झरोखों से लेती थी। ‘वेंचुरी प्रभाव" के कारण इन जटिल संरचना वाले जालीदार झरोखों से सदा ठंडी हवा, महल के भीतर आती रहती है, जिसके कारण तेज़ गर्मी में भी महल हमेशा ठंडा सा ही रहता है।
हवा महल को देखने के बाद हमें अपने भारतीय वास्तुकला तकनीक पर गर्व महसूस हो रहा था परन्तु उसमें फैली गंदगी को देखकर अपने आप पर शर्म आ रही थी ।
हम लोग कैसे हैं जो अपनी संस्कृति और अपनी धरोहरों को गंदा करते हैं पूरे महल में जगह जगह पर पान गुटखा खाकर लोग थूक रहे थे जिसके कारण बदबू फैली हुई थी ।
हम क्यों इतने गंदे हो गए हैं ।जिस समाज की सभ्यता कि लोग तारीफ़
करते थें ।पूरी दुनिया जिनके बारे में बातें करती थी आज वही देश
कें लोग गंदगी फैला रहे हैं। आप सभी से निवेदन है आप चाहें
जिस शहर के हो अगर आपके आस पास कोई आपकी संस्कृति आपकी धरोहर को गंदा कर रहा है नुक़सान पहुँचा रहा हो तो तुरंत उसे मना करें और उससे निवेदन करें कि वह ऐसा न करें और स्वयं भी गंदगी ना करने का प्रण लें।
वहाँ पर जगह जगह पर गार्डस् लगीहुई थी हवा महल में हमने कठपुतलियों का नाच भी देखा हवामहल बहुत ही ख़ूबसूरत और बहुत ही अच्छा महल है अगर आप इतिहास में दिलचस्पी रखते हैं आपको अवश्य एक बार वहाँ जाना चाहिए परंतु समय बीतने के साथ साथ हवा महल जगह जगह से क्षतिग्रस्त हो रहा है जगह जगह से टूट रहा है इस बात पर सरकार को ध्यान देना अति आवश्यक हो गया है।
अगर आप हवा महल जाए तो सावधानी के साथ हाँ महल की सबसे ऊपर के झरोखों से पूरा शहर देखें आप हवा महल के किसी भी कोने में जाएंगे आपको हमेशा ठंडी ठंडी हल्की हवा ज़रूर मिलेगी हवा महल की खासियत यह है कि आप चाहे जहाँ भी खड़े हो जाएं आपको अंधेरा नहीं मिलेगा बहुत ही ख़ूबसूरत और बहुत ही उम्दा महल मैं कह सकती हूँ उसें ।
हमें घूमते घूमते वक़्त का पता ही नहीं चला शाम हो गई थी तो हमें वहाँ से जाने के लिए कह दिया गया वहाँ पे हर जगह फ़ोटो खींचना मना था परंतु कुछ कुछ जगहों की फ़ोटो खींच के मैं डाल रही हूँ देखियेगा। शाम को हमने वहाँ का लोकल फ़ूड खाया और वो रात होटल में बिताया।
दूसरे दिन हमने जल महल और नाहरगढ़ क़िला देखने का मन बनाया आयी आप सबको सबसे पहले जल मल का परिचय देते हैं।
जल महल मानसागर के बीचों-बीच स्थित ये एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है। ये महल अरावली की पहाड़ियों के गर्भ में स्थित है ।जल महल को आईबॉल और रोमांटिक महल के नाम से भी जाना जाता है।अब ये महल पक्षी अभ्यारण के रूप में विकसित हो रहा है इस माल की नर्सरी में 1, लाख से भी अधिक पेड़ पाए जाते है।
झील के बीचो बीच होने के कारण यह माहौल बहुत ही सुंदर और बहुत ही आकर्षक लगता है।
आप जयपुर घूमने जाएं तो जल महल अवश्य जाए।
जल महल घूमने के बाद हम लोग अरावली पहाड़ियों के नज़दीक झरना है वहाँ से हमने पानी पिया और ख़ूब मस्ती की।
हमने खाना भी वही आस पास की ही होटलों में खाया और फिर नाहरगढ़ किला देखने निकल गयें।
प्रसिद्ध जयपुर दंत कथाओं के आधार पर कहा जाता है कि नाहरगढ़ क़िला का नाम वहाँ के नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा है जिन्होंने इस क़िले के लिए जगह उपलब्ध करायी थी इन्हीं के याद पर वहाँ। क़िले के अंदर एक मंदिर भी बना हुआ है ।
पहले इस क़िलें का नाम सुदर्शन गढ था ।पर बाद में नाम बदलकर नाहरगढ़ रख दिया गया ।नाहर का अर्थ होता है ,’शेर का निवास,
अगर नाहरगढ़ क़िले से जयपुर देखा जाए तो बहुत ही सुंदर जयपुर शहर दिखलाई पड़ता है।
नाहरगढ़ किला 1734 में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय, जयपुर के संस्थापक ने बनवाया था। इस पर्वत के चारो और सुरक्षा के लिये दीवारे बनी हुई है, कहा जाता है की यह किला पहले आमेर की राजधानी हुआ करता था।
इस किले पर कभी किसी ने आक्रमण नही किया था लेकिन फिर भी यहाँ कई इतिहासिक घटनाये हुई है, जिसमे मुख्य रूप से 18 वी शताब्दी में मराठाओ की जयपुर के साथ हुई लढाई भी शामिल है।
1847 के भारत विद्रोह के समय इस क्षेत्र के युरोपियन, जिसमे ब्रिटिशो की पत्नियाँ भी शामिल थी, सभी को जयपुर के राजा सवाई राम सिंह ने उनकी सुरक्षा के लिये उन्हें नाहरगढ़ किले में भेज दिया था।
नाहरगढ़ क़िला शहर से 700 फ़ीट की ऊँचाई पर बना है।मुगलों द्वारा कभी भी इस किलें पर आक्रमण नहीं किया गया है।
बॉलीवुड फिल्मो रंग दे बसंती और जोधा अक़बर जैसी फ़िल्मों की बोहोत सारे दृश्य इस क़िले पर फ़िल्माए गए हैं।
नाहरगढ़ क़िले का सबसे अच्छा जगह माधवेन्द्र भवन है जो रानियों के लिए बनाया गया है।
इस महल ने हम सभी को बहुत आकर्षित किया बहुत ही सुंदर और बोहोत ही अनूठा वास्तुकला था ।इस महल को देखने के बाद हम सोच में पड़ गये है कि इस महल का निर्माण करने में कितना समय लगा होगा ।इतने महंगे पत्थर इतने भारी भारी पत्थर आये कैसे होंगे मानना पड़ेगा कि हमारी भारतीय वास्तुकला बहूत ही उत्कृष्ट और उच्च कोटि की थी ।जिसमें से काफ़ी कला लुप्त भी हो चुकी है परंतु जो भी हो इन्हें देखकर गर्व महसूस होता है हमारी संस्कृति पे जयपुर हमारे भारत की शान हैं।
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