सुबह तकरीबन जब आंख खुली तब उत्तराखंड राज्य में मैं प्रवेश कर चुका था और बेसब्री से इंतजार कर रहा था कि कब हरिद्वार पहुंच जाऊ। सवेरे 8:45 बजे ट्रेन का समय था जो कि मैं पहुंचा नही इस समय और मैं 9:30 बजे हरिद्वार स्टेशन पर उतरा। अब तक मेरा कार्यक्रम पूरा तय था परंतु यहां उतर कर मुझे ध्यान आया कि आने वाले कल सोमवार और दुर्गाष्टमी है और सोमवार को केदार बाबा के दर्शन हो जाए तो और भी बढ़िया हो जाए लेकिन ट्रेन के लेट पहुंचने की वजह से सोनप्रयाग एवम् रुद्रप्रयाग जाने वाली सारी बसें या तो जा चुकी थी या जो खड़ी थी वो पूरी भरी हुई थी।
हरिद्वार से सोनप्रयाग का सफर तकरीबन 9 से 10 घंटे का है और अगर जाम में फंस गए तो भगवान मालिक है कि कब फ्री होके निकलो।
अब मेरे पास आज का दिन था क्योंकि अब मैं सोनप्रयाग के लिए आज के दिन तो नही निकल सकता था इसलिए अपने कार्यक्रम के अनुसार ही चलने का सोचा और सबसे पहले मैं गया GMOU के ऑफिस अपनी केदारनाथ जाने की बुकिंग करवाने,ये ऑफिस रेलवे स्टेशन के सामने बस स्टैंड के पास में ही है। वहा से मेंने सुबह 7 बजे की हरिद्वार से सोनप्रयाग जाने की बुकिंग करवाई और फिर निश्चिंत होके फिर कॉफी पी। वहा से मैं हमारे समाज के भवन में गया जहा मेरा आज की रात रुकने का कार्यक्रम था और रेलवे स्टेशन से मैं दुधाधारी चौक जाने के लिए ऑटो ढूंढ रहा था और एक ऑटो वाले भाईसाब आए बोले हम छोड़ देंगे लेकिन मुझे पर्सनल ऑटो नही शेयरिंग ऑटो में जाना था इसलिए मैने उन्हें मना कर दिया तब उन्होंने कहा कि वे उस तरफ ही जा रहे हैं खाली हो हैं जो शेयरिंग में किराया दोगे वो दे देना आप चलो,मुझे भी लगा सही है चलते हैं शेयरिंग के किराए में पर्सनल ऑटो में । अब ऑटो मैं बैठ तो गया लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे डर लगा यार कि अनजान शहर में मैं ऐसे ही किसी के साथ अकेले जा रहा सही तो है पर वो ऑटो वाले भैया जिनका नाम उन्होंने अजय बताया वो बेहतरीन सोच के व्यक्ति थे और हरिद्वार के प्रमुख स्थानों के बारे के उन्होंने बताया कि कहा कहा जा सकते हैं एक दिन में और हम बातें करते करते एक दूसरे से परिचित हो गए और जब मेरा स्टॉप आ गया तब वो मुझसे इतने प्रभावित हुए कि कहे भैया आप केदारनाथ हो आओ फिर वापसी के जब हरिद्वार आओगे तब हम आपको दोस्ती के हरिद्वार घुमाएंगे आपसे पैसा नही लेंगे मैने कहा जरूर घूमेंगे पर आपको पैसा लेना पड़ेगा और फिर हमने साथ में सेल्फी ली और हम अपने रास्ते पर चले गए।
रूम में नहा धो के फ्रेश होके अब मैं निकला सबसे पहले मनसा मैया के दर्शन करने के लिए दुधाधारी चौक से भीमगोड़ा कुंड चौक तक बैट्री रिक्शा में आया और वहा कुछ फलाहार ढूंढने लगा परन्तु कुछ खास मिला नही तो मैं वहा से पैदल ही मनसा मैया के मंदिर को तरफ चल दिया वहा नवरात्रि होने के कारण बहुत भीड़ थी और रोपवे के लिए बहुत लंबी लाइन थी इसलिए मैं सीढ़ियों के रास्ते मंदिर तक पहुंचा अच्छे से दर्शन हुए मैया के और वहा सुकून मिला बहुत अब मैं वहा से नीचे उतर आया और बिल्केश्वर महादेव के लिए पैदल ही निकल गया 2 km दूर है वहा से और वह मंदिर अच्छी जगह पर हैं शांति है वहा आराम से गया वहा महादेव का अभिषेक किया और वहा से निकला तब थोड़ी दूर वहा मुझे एक गुरुद्वारा दिखा और वहा भी अरदास की।
अब यहां से मैं निकला दक्षेश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए और यह जगह भी है जहा शिव जी का ससुराल है और जहा सती माता अग्नि में भस्म हुई थी वहा शिवजी की माता को गोदी में उठाए एक अच्छी मूर्ति भी है। वहा पहुंच कर देखा मंदिर के पास गंगा मां बह रही हैं तो वहा से लोटा जल लेकर महादेव का गंगाजल से अभिषेक किया।
यहां से सीधा मैं पहुंचा हर को पौड़ी गंगा आरती देखने के लिए यहां पर दोपहर 4 बजे से ही लोग जमा हो रहे थे आरती देखने के लिए शाम 6:30 पर आरती हुई और बहुत ही सुंदर मनोरम दृश्य था।आज का दिन गुजरने के बाद मैं अपने रूम जाके जल्दी ही सो गया।
सवेरे 5 बजे उठ के मैं बस स्टैंड के लिए निकल गया वहा सुबह 5 बजे 6 बजे और 7 बजे बस हैं और मेरी बुकिंग मैने 7 बजे में करवाई थी और वो बस 6:40 तक आ गई थी। बस एक दिन पहले ही लगभग फुल हो जाती हैं सोनप्रयाग की बस में सभी यात्री केदारनाथ के ही थे और 7 बजे बाबा केदार के जयकारों के साथ बस हरिद्वार से रवाना हुई। अब इस बस में एक गड़बड़ हो गई कि मैने विंडो सीट के लिए अनुरोध किया था और मुझे दी भी परन्तु बायी ओर वाली सीट मुझे मिली और नजारे सारे दांयी तरफ थे लेकिन फिर हुई कुछ नजारे आए मेरी ओर भी जैसे नदिया झरने ऊंचे पहाड़ आदि। मैं रास्ते में थोड़ी देर सो रहा था और थोड़ी थोड़ी देर नजारों के लिए जाग भी रहा था। वहा से बस तीन धारा में रुकी जहा मैने खाने के लिए खीरा का सलाद लिया जो वहा पत्थर पर बनी चटनी के साथ दे रहे थे और वहा पीछे पहाड़ से रिसते हुए पानी से मैने अपनी पानी को बोतल को भरा।
जाम वगेरह के चलते तकरीबन 6 बजे मेरी बस सीतापुर तक पहुंची जहा ज्यादा जाम होने के कारण मैं वही उतर गया और सोनप्रयाग के लिए पैदल ही निकल गया।
सोनप्रयाग पहुंचते हुए अंधेरा हो रहा था भूख भी लग रही थी और जुखाम जैसा महसूस होने लग गया था। वहा जाके दवाईयां ली और GMVN के डोरमेट्री में चला गया इतनी भीड़ होने के बावजूद मुझे एक बेड वहा उपलब्ध हो गया जैसे महादेव ने मेरे लिए ही वो बचा रखा हो सामान रखने और अच्छे से हाथ मुंह धोने के बाद वहा एक रेस्टोरेंट में पहाड़ी भोजन का लुत्फ उठाया और आके जल्दी ही सो गया बस के सफर की थकान थी इसलिए नींद भी जल्दी आ गई।
नवरात्रि के दिन थे सुबह जल्दी उठ कर मातारानी माँ त्रिपुरा सुंदरी के दर्शन करके 8 बजे उदयपुर के लिए निकला, अच्छा मौसम था और उदयपुर का रास्ता कोई नया नहीं हर 15-20 में जाना हो जाता है। चार घंटे का सफर ठीक ठाक निकला फिर लगभग 12-12:30 बजे तक उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन पहुंच गया जहां से 13:45 बजे मेरी हरिद्वार की ट्रेन थी नवरात्रि के उपवास भी थे तो फलाहार लिया और इंतजार कर रहा था ट्रेन के समय होने का। 13:30 बजे मैं ट्रेन के पास पहुंच गया था और अपनी बर्थ पर जाकर बैठ गया मगर ट्रेन थोड़ी लेट हुई और तकरीबन 14:10 तक अपने प्लेटफार्म से निकली।
एक बात है जब भी मैं ट्रेन का रिजर्वेशन करवाता हूं तब एक बात का ख्याल रखता हु कि मेरी बर्थ साइड लोअर ही हो क्योंकि मेरे हिसाब से ट्रेन के सफर के लिए सबसे आरामदायक और अच्छे व्यूज के लिए सबसे बढ़िया बर्थ यही है आराम से पैर खोल कर बैठो और खिड़की से सबसे अच्छी कंफर्टेबल पोजिशन से बेहतरीन नजारे देखो।
आराम से अरावली के नजारों के आनंद को देखते हुए सफर कट रहा था और कुछ देर अपने फोन को देखने के बाद मैं सो गया।
मध्यरात्रि 2:30 बजे मैं उठ गया था और तैयार होके 3 बजे सोनप्रयाग टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गया जहा सोनप्रयाग से गौरीकुंड जाने के लिए टैक्सी उपलब्ध होती हैं। वहा जाके देखा तो मुझसे पहले बहुत से लोग आ गए थे और अच्छी खासी भीड़ थी। थोड़ी देर इंतजार के बाद मैं टैक्सी में बैठा और गौरीकुंड के लिए निकल गया। लगभग 4:15 बज गए थे गौरीकुंड पहुंचने पर और वहा भी बहुत लोग थे, वहा पहुंच कर एक पानी की बोतल और ट्रेकिंग के लिए एक छड़ी ली।
करीब 4:30 बजे मैंने गौरीकुंड से बाबा केदारनाथ के लिए ट्रेकिंग शुरू की, अंधेरा था वहा रोशनी के इंतजाम है लेकिन कई कई जगह अंधेरा रहता है तब मोबाइल की रोशनी में आगे बढ़ रहा था लोग भी चल रहे थे और साथ ही खच्चर भी लगातार पास से निकल रहे थे ऐसा खच्चरों का मेरा पहला अनुभव था इसलिए डर भी लग रहा था और धीरे धीरे आहिस्ता मैं आगे बढ़ रहा था। गौरीकुंड के बाद सबसे पहले जंगल चट्टी में मैने थोड़ा ब्रेक लिया और फिर वहा से आगे बढ़ा। रास्ते में कुछ रिफ्रेशमेंट भी मिलते रहते हैं पर आम जगहों से यहां के भाव थोड़े ज्यादा रहते हैं। रास्ते के लिए मेरे पास कुछ सूखे मेवे भी थी तो उनके साथ निम्बू शिकंजी और अमूल कुल के साथ यात्रा अच्छी चल रही थी। बीच बीच में प्राकृतिक झरने और बर्फ से ढके पहाड़ आत्मा को तृप्त कर रहे थे। थोड़ा थोड़ा रुकते चलते करीब 11:22 बजे तक मैं बाबा केदार के मंदिर के पास पहुंच गया मानो स्वर्ग में ही पहुंच गया ऐसी अनुभूति। वहा पहुंच कर एकदम से मानो सारी थकान खत्म हो गई ऐसा लगा। मंदिर पहुंचने से पूर्व वहा यात्रा रजिस्ट्रेशन के काउंटर से रजिस्ट्रेशन करवाया।
वहा आगे से प्रसाद लिया और लाइन में लगते हुए मंदिर प्रांगण में पहुंचा रोंगटे खड़े हो रहे थे हर एक कदम के साथ, विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं सच में बाबा के दर पर हूं। मंदिर में अंदर अच्छे से बाबा के दर्शन किए अफसोस वहा जल चढ़ा नहीं पाया और ऐसे ही बाबा को देखते मंदिर से बाहर आया।बाहर आके खुद को संभाला और अच्छे से बाबा से प्रार्थना की कुछ फोटोज लिए और फिर पीछे भीम शीला और श्री शंकराचार्य की मूर्ति के पास चला गया। अब यहाँ से मैं थोड़ा और ऊपर भैरव बाबा के दर्शन के लिए गया और वहा से नीचे उतरते वक्त मैंने समय देखा तो दोपहर के 1:30 बज रहे थे, तब मैने सोचा की यहां अच्छे दर्शन कर लिए है क्यों ना अभी ही वापस सोनप्रयाग के लिए निकल जाऊ तो शाम तक पहुंच जाऊंगा और सुबह बद्रीनाथ दर्शन के लिए निकल जाता हूं क्योंकि अब तक मेरा यहां एक रात रुकने का कार्यक्रम था और बद्रीनाथ जाने का कोई कार्यक्रम तय था नही।
अब मेरे पास समय था तो मैंने बाबा के दर्शन किए और जल्दी फिर से बुलाने की प्रार्थना के साथ बाबा से विदा ली और नीचे गौरीकुंड के लिए प्रस्थान किया। तकरीबन 7:30 बजे तक गौरीकुंड पहुंचा मैं और सुबह की तरह टैक्सी लेके 8:30 बजे तक सोनप्रयाग पहुंच गया जहां जाकर सबसे पहले बद्रीनाथ जाने के लिए सवेरे की 6 बजे की गाड़ी की बुकिंग करवाई और वापस GMVN की डोरमेट्री की ओर चल दिया और वही रात का भोजन किया और इतनी ट्रेकिंग के बाद तुरंत नींद आ गई।
सवेरे 4 बजे ही उठ गया था क्योंकि डर था कहीं देर हो गई और बस छूट गई तो दूसरी और कोई बस नहीं थी बद्रीनाथ के लिए। सुबह वहा से करीब 2 किमी दूर सीतापुर पार्किंग में बस खड़ी थी वहा 5:30 बजे तक पहुंचा और जाके एक बहुत बड़ी समस्या से मुलाकात हुई कि जिस बस में मैं जा रहा था सिर्फ वही बस उस पार्किंग में नही थी और पूछताछ करने पर पता चला कि कुछ तकनीकी खराबी के चलते थोड़ा लेट होगी परन्तु 1 घंटे के इंतजार के बाद ये कह दिया की बस कैंसल कर दी है और सभी को टिकिट के पैसे रिफंड कर दिए। तब उस बस के सभी साथियों ने मिल कर एक बस को किराए पर लिया कि यहां से बद्रीनाथ एवम बद्रीनाथ से हरिद्वार तक ले जाएंगे। सुबह 7:30 बजे बस रवाना हुई बद्रीनाथ के लिए और बीच में एक जगह रुकी खाना खाने के लिए वहा खाया और फिर आगे बढ़े और करीब 7 - 7:30 बजे तक हम बद्रीनाथ पहुंच गए और मैंने बस में ही GMVN के डोरमेट्री में एक बेड की बुकिंग करवा ली थी तो उतर कर सबसे पहले वहा गया और अपना सामान रखा ।
करीब 3° C तापमान या उससे कम ही होगा ऐसे में मैने वहा ठंडे पानी से नहाने की हिम्मत की और थोड़ी देर के लिए मैं और मेरी रूह आमने सामने थे।
नहा धो के बद्रीनाथ भगवान के दर्शन के लिए निकला तब जाके देखा तो मंदिर में दर्शन के लिए बहुत ज्यादा लंबी लाइन लगी हुई थी तो बाहर से दर्शन किए और मार्केट की तरफ चला गया वहा रात्रि भोज किया और अपने बेड की तरफ गया और सो गया।
सवेरे 3 बजे ही उठ गया मैं और तैयार हो गया क्योंकि सुबह 4 बजे बद्रीनारायण के कपाट खुलते हैं इसलिए तैयार होके 4 बजे प्रसाद लेके मंदिर के बाहर पहुंच गया। सुबह भी थोड़ी भीड़ थी लेकिन ज्यादा नहीं आराम से आधे घंटे के अंतराल में अच्छे से बद्रीनारायण के दर्शन हो गए और 5:30 बजे बाहर मार्केट की तरफ आ गया एक कॉफी पी और सुबह के नजारे का लुत्फ उठाने लगा।
बद्रीनाथ दर्शन के पश्चात सुबह 10:30 बजे हमारा बद्रीनाथ से हरिद्वार के लिए प्रस्थान था और हम इस समय पर बद्रीनाथ भगवान की जय बोलते हुए निकल गए। ये आखिरी बस का सफर था इस trip में, टेढ़े मेढ़े रास्ते पहाड़ जैसे कह रहे हो कि बड़ा जल्दी जा रहे हो वापस और मैं उन्हें देख के उदास हो रहा कि ये इस trip का आखरी सफर है और मैं बड़े चाव से उन पहाड़ों को देख रहा था और खो जाना चाह रहा था उनकी खूबसूरती में।
आराम से बस जा रही थी और करीब रात 10:30 बजे बस ने मुझे हरिद्वार उतारा यहां मेरे रहने की व्यवस्था थी तो वहा जा के खाना खाया और इस थकान के सफर के कारण नींद जल्दी ही आ गई।
इतने दिन जल्दी उठने के बाद आज थोड़ा देर से उठा और नींद पूरी की। सुबह 8:30 बजे उठने के बाद स्नान के लिए मैं गंगा किनारे गया और वहा सप्त ऋषि घाट पर जहा अमूमन भीड़ कम रहती है गया और आराम से गंगा स्नान किया और गंगा मां को प्रणाम करके उनसे मनोकामना पूर्ण करने की कामना की। वहा से स्नान करके आके थोड़ा मार्केट देखा इस तरफ का और वापस अपने रूम की तरफ आ गया।
दोपहर का खाना खाने के पश्चात हरिद्वार रेलवे स्टेशन के लिए निकल गया जहा मेरी 13:30 बजे की ट्रेन थी रतलाम के लिए।
अपनी trip की खूबसूरत यादों के साथ में ट्रेन में बैठा और सारे फोटोज को देखने लगा फिर दिल्ली पहुंच कर खाना खाया और आराम से सो गया।
सवेरे 9 बजे ट्रेन रतलाम रेलवे स्टेशन पर आ गई और मैं भी उतर कर सीधा बाहर आया और अच्छा सा पोहा समोसा का नाश्ता किया। वहा से रतलाम बस स्टैंड गया जहा से मुझे बांसवाड़ा के लिए राजस्थान रोडवेज मिल गई और मैं 11:30 बजे तक अपने शहर बांसवाड़ा आ गया। बांसवाड़ा शहर से मेरा गांव 26 किमी दूर है जहा के लिए भी मुझे बस तुरंत ही मिल गई और मैं दोपहर 1 बजे अपने घर पहुंच गया।
और इस प्रकार बाबा केदार और बद्री विशाल की खूबसूरत यात्रा को मैने पूरा किया और ऐसा लग रहा था कि पूरी यात्रा के दौरान महादेव स्वयं मेरे कार्यक्रमों को गढ़ रहे हो और उनकी वजह से मेरी यात्रा में कोई विघ्न नहीं आया और सुखमय रही मेरी यात्रा।
जय बाबा केदार
जय बद्री विशाल