किस तरह पापा की एक सलाह ने मुझे 'यायावर' बना दिया।

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Photo of किस तरह पापा की एक सलाह ने मुझे 'यायावर' बना दिया। by Shubhanjal

अक्सर लोगों के सोशल मीडिया एकाउंट्स पर काफी कुछ लिखा होता है। घर, पता, स्कूल, कॉलेज, ऑर्गेनाइजेशन, पद-पदवी और भी बहुत कुछ। पर अगर आप मेरी किसी भी सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल देखेंगे तो वहाँ बायो में बस एक शब्द लिखा होगा-'यायावर।' कई लोगों ने मेरी प्रोफ़ाइल में इस शब्द को लिखा देख उत्सुकतावश मुझसे इसका मतलब भी पूछा, जिन्हें मैं अपने हिसाब से समझाता भी हूँ। पर कल रात जब किसी ने एक बार फिर मुझसे इस शब्द का मतलब पूछा तो उसे बतलाने से पहले दिमाग में इस शब्द को अपनी बायो बनाने के पीछे की सारी बातें घूमने लगीं।

'यायावर' का अर्थ है घुमक्कड़, चलते-फिरते रहने वाला इंसान। ऐसा इंसान जो कहीं ठहरता नहीं। अगर आपको ध्यान हो तो मैं अपनी यात्रा ब्लॉग भी 'यायावरी' नाम से लिखता हूँ, और कहना ना होगा कि इस शब्द का मतलब चाहे लोगों को पता हो या ना हो, जबान पर ज़रूर चढ़ गया है। इस शब्द को जोड़ने के पीछे मेरा घुमक्कड़ स्वभाव है, जोकि वक्त के साथ बढ़ता ही जा रहा। तो सोचा आज कुछ बात उसपर कर ली जाए।

मैं केंद्रीय विद्यालय संगठन का अंग रहा हूँ, जहाँ अगक आप थोड़े भी एक्टिव हों, तो घूमने-फिरने के बहुत मौके मिल जाते हैं। स्कूल टाइम में ही मैं इवेंट्स में शिरकत करने के कारण कई जगह घूम चुका था लेकिन स्वभाव में असली घुमक्कड़ी साल 2019 में ही आई। इससे पहले जब घूमता था तो अधिकतर समय और लोग भी साथ रहते थे, बताई गई जगहों पर ही घूमना होता है। मगर अब, कोई फर्क नहीं पड़ता इन सबसे। अधिकतर सोलो ट्रिप पसन्द करने लगा, और जगह भी कोई एक नहीं, कई-कई देखी, वो भी किसी प्लान के बिना। निकल गए घर से तो लौटते वक्त कुछ नया अनुभव साथ ले आये।

मेरे कुछ दोस्त अक्सर मुझपर इस बात के लिए तंज कसते हैं कि मेरे पास बहुत खाली समय है इसलिए मैं इतना घूमता हूँ। कई लोग तो इन सबको समय बर्बाद करना भी कहते हैं मगर मुझे ही पता है कि ऐसा नहीं है। मैं सभी काम तय समयसीमा से पहले निबटाता हूँ ताकि मेरे पास घूमने के लिए वक्त बचे। समय बर्बाद करना तो बिल्कुल भी नहीं ये। औरों का नहीं कह सकता मगर यात्राओं ने मुझे खुद में इन्वेस्ट करना सिखाया है। चलते-फिरते-घूमते हुए कई चीजें सीखी जोकि आज व्यक्तित्व का हिस्सा हैं। यात्राओं ने मुझे एक बेहतर इंसान बनने में मदद की।

जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि मैं पहले भी बहुत घूमा हूँ मगर 'यायावर' शब्द सही मायनों में व्यक्तित्व से 2019 में ही जुड़ा। एक रोज पापा ने कॉल किया और कहे कि मिड सेमेस्टर ब्रेक में अमृतसर घूम आओ। ऐसा उन्होंने अपने कई फोन कॉल पर कहा और अब दिमाग में बस बाहर निकलने की बात घूमने लगी। इतनी अधिक कि मैंने मिड सेमेस्टर ब्रेक का भी इंतज़ार नहीं किया और घूमने निकल पड़ा। वहाँ गया तो चीजें देखी, नया अनुभव मिला। लौटा तो अलग ही इंसान था। पहले अगर कोई मुझे घूमने कहता था तो मैं ना-नुकुर करता था परंतु अब मैं ही सबको घूमने के लिए कहने लगा। कई और जगह घूमा। कई और राज्यों और जगह हो आया। कई बार पॉकेट में कम पैसे रहते थे, बावजूद उसके मैं कहीं और घूम आता था। अब धीरे-धीरे व्यवस्थित ढंग से कम लागत में ज्यादा घूमना सीख लिया था मैंने।

जब बाकी के राज्यों में काफी घूम लिया तो ख्याल आया कि मैं तो दिल्ली में हूँ। दिल्ली मतलब काफी कुछ। यहाँ इतना कुछ है घूमने-फिरने को आप परेशान हो जाएँ। बार-बार बाहर घूमने नहीं निकल सकते थे, तो सोचा अब दिल्ली ही घूमा जाए। हालाँकि, दिल्ली की सभी प्रसिद्ध जगहों पर मैं कॉलेज के पहले सेमेस्टर में ही हो आया था परंतु सोचा कि अब उन जगहों को तलाशा जाए जिनके बारे में लोगों को कम जानकारी हो, या जिन्हें लोगों ने देखा ना हो। निकला तो शहर के अंदर जा-जाकर जगहें देखी। उन्हें तलाशा। कभी घने जंगलों में देखा, कभी पुराने खंडहरों को कुरेदा। जब सफलता मिलने लगी तो ये आदत बन गई। ऐसा हुआ कि मैंने बड़ी संख्या में ऐसी अनजान जगहों को खोज निकाला, जिनकी एक अच्छी-खासी और लम्बी चौड़ी लिस्ट मेरे पास तैयार है। घूमते-घूमते महसूस किया कि 'यायावर' एक अनुभव है, और ये अनुभव लंबी यात्राओं से भी ज्यादा इस चीज़ से मिलती है कि आप घर से निकलें हैं। जगह चाहे कोई भी हो, अनुभव करना ज़रूरी है।

घूमने-फिरने से कई चीजें खुद-ब-खुद आ गई मुझमें। अब शायद पहले से अधिक समाझदार हो गया हूँ। खुद की कम्पनी भी बहुत अच्छी लगती है। घूमना शुरू किया तो उन जगहों के बारे में दूसरों को बताने के लिए लिखने लगा। लिखने लगा तो पैसे भी आने लगे। इतिहास से और अधिक प्यार हो गया। पहले से काफी अधिक उत्सुक हो गया चीजों के लिए। जिंदगी की फिलॉसफी काफी अच्छी हो गयी है। सरल जीवन का अर्थ समझ आ गया है। फिज़ूलखर्ची पहले बहुत करता था, अब थोड़ी सेविंग कर उन पैसों का इस्तेमाल अपनी अगली यात्रा पर करता हूँ। 

जो लोग कॉलेज में हैं, उन्हें ज्यादा खर्च करने से ऐसे भी बचना ही चाहिए। अगर आपकी कुछ एक्स्ट्रा इनकम हो तो ठीक, वरना कम लागत में भी घूमा जा सकता है। बस कुछ समझदारी से काम लेना है। जब घूमने निकलें तो उन जगहों की ज्यादा जानकारी पहले ही ढूँढने का प्रयास करें। कैब के सफर से बचें। छोटी दूरी के लिए पैदल यात्रा चुनें, लम्बी के लिए सरकारी बस। महंगे होटल में ठहरने से बेहतर है कि लॉज या होस्टल में रुकें क्योंकि मेरे ख्याल से नींद दोनों जगहों पर आ सकती है। और हाँ, सबसे ज़रूरी सलाह कि घूमिये हमेशा अनुभव के लिए। दिखावे के लिए घूमेंगे तो किसी और आपसे भी अधिक दिखावा करता देख जलन होगी। अनुभव के लिए घर से निकलेंगे, तो हर बार लौटते वक्त किसी सीख के साथ वापस आएँगे।

इसलिए, निकलिए घर से। हर बार कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं। अपने आसपास की जगहों को ही देखिये, जानिए, उनके बारे में औरों को बताईये। एक बार आपने अगर  चीजों को जानने-समझने की इच्छा जगा ली घूमने के माध्यम से, मैं कह सकता हूँ कि आप आज जिस स्थिति में हैं, उससे कहीं बेहतर होंगे। दुनिया बहुत बड़ी है, बेहद खूबसूरत भी। कई जगहों को लोग जानते हैं, कई को नहीं। आपके पास मौका है इन जगहों पर घूमकर खुद को जानने का। मुझे तो मेरे पापा ने सलाह दी घूमने की, आपको मैं दे रहा हुँ। निकलिए बाहर वरना आपके क्षेत्र में जिन जगहों की जानकारी आपको पहले होनी चाहिए थी, आपको उन जगहों की जानकारी देने घूमते-फिरते किसी रोज मैं ही आ जाऊँगा।

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