फिरोजपुर भारत- पाकिस्तान सीमा के पास, सतलुज नदी के किनारे पर बसा हुआ हैं। इस शहर को चौदहवीं सदी में फिरोज शाह तुगलक ने बसाया था। फिरोजपुर कैंट भी भारत के बड़े छावनी क्षेत्रों में आता हैं।
फिरोजपुर को शहीदों की धरती भी कहा जा सकता हैं।
वैसे पंजाब के शेरों ने कभी किसी के आगे घुटने नहीं टेके जब तक शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जीवित रहे, अंग्रेजो की सतलुज नदी पार करने की हिम्मत नहीं पड़ी लेकिन उनकी मृत्यु के बाद सत्ता के कुछ लालचियों की वजह से जो अपने मतलब के लिए अंग्रेजो के साथ मिल गए, और सिख फौज से गददारी की, उनकी गददारी की वजह से ही सिख फौज ऐगलो-सिख युद्ध हार गए, जो अंग्रेजो और सिख फौज के बीच हुए, उस युद्ध की गवाही देती हैं, मुदकी की पहली अंग्रेजो और सिख फौज के बीच दिसंबर 1845 में मुदकी की लडा़ई, जिसमें सिख बगैर किसी कमांडर की अगवाई में लड़ी, कयोंकि हमारे कमाड़र तो अंग्रेजो के हाथों में बिक गए थे, फिर भी सिख फौज बहुत बहादुरी से लड़ी, आप पंजाब के शेरों को मार सकते हो लेकिन झुका नहीं सकते।
#मुदकी समारक
दोस्तों मुदकी अमृतसर-बठिंडा हाईवे पर फिरोजपुर जिले में एक छोटा सा कसबा हैं, जो मेरे घर से 23 किमी और फिरोजपुर से 35 किमी दूर हैं। यहां पर मुदकी की लडा़ई हुई, अंग्रेजो और सिख फौज में पहली लडा़ई, कयोंकि पंजाब पर कब्जा करना बहुत मुश्किल था, सिख फौज ने आधुनिक हथियारों से लड़ रही फिरंगी फौज
को नानी याद करवा दी, अंग्रेजो ने सिख फौज की बहादुरी को सलाम की, चाहे हम यह युद्ध हार गए लेकिन अंग्रेजो से हमनें जबरदस्त मुकाबला किया, अगर हमारे कमाड़र अंग्रेजो से न मिले होते तो हम कभी न हारते, सरदार लाल सिंह और तेजा सिंह हमारे कमाड़र थे , दोनो ही अंग्रेजो से मिले हुए थे, मुदकी में अंग्रेजी हकूमत ने दोनों तरफ की ओर से शहीदों की याद में मुदकी समारक बनाया हैं।
#गुरू द्वारा शहीद गंज साहिब मुदकी
यह गुरू द्वारा मुदकी की लडा़ई में शहीद हुए बहादुरों की याद में बना हुआ हैं, मेरे क्षेत्र के बहुत सारे गावों से सिख बहादुर लड़ने गए थे, फिरंगियों से लडऩे के लिए, लेकिन आज के नौजवान अपने पंजाब की पवित्र भूमि को छोड़ कर कनाडा, इंग्लैण्ड जैसे फिरंगियों के देश में गुलामी करने को जयादा अच्छा समझते हैं, लेकिन हम तो पंजाब में ही रहेंगे आखरी दम तक।
इस गुरू द्वारा में माथा टेक कर , इन बहादुर शहीदों को नमन करके दिल जोश से भर जाता हैं हम इतनी बहादुर कौम के वारिस है।
सारागढ़ी गुरू द्वारा फिरोजपुर
दोसतों सारागढ़ी की ईतिहासिक लड़ाई के बारे में तो आपने सुना ही होगा, जिसके उपर बालीवुड में अक्षय कुमार की केसरी मूवी बन चुकी हैं, बहुत सारे दोसतों ने यह मूवी देखी भी होगी। यह सारागढ़ी की लड़ाई 12 सितंबर 1897 को सारागढ़ी के किले में ब्रिटिश राज के सिख रैजीमैंट और अफगानी अफरीदी और दूसरे कबीलों के साथ हुई थी। यह जगह अब पाकिस्तान में हैं। इस युद्ध में 12000 से 24000 कबीले वालों से कुछ सिख सिपाहियों ने लड़ाई की थी, कबीले वाले सारागढ़ी को घेर कर खड़ गए थे, सिख सिपाहियों ने भागने की बजाए लड़ कर शहीद होने को तरजीह दी, सिख सिपाहियों का सैनापती हवलदार ईशर सिंह थे, विश्व के ईतिहास में इस लडा़ई का बहुत अहम सथान हैं। सिख सिपाही लड़ते लड़ते शहीद हो गए, सिर्फ 21 सिख सिपाहियों ने लडा़ई की और सारागढ़ी की पोस्ट पर 600 अफगानों की लाशें मिली, इन 21 बहादुर सिपाहियों के नाम नीचे लिखे हैं
1. हवलदार ईशर सिंह
2. नायक लाल सिंह
3. लांस नायक चंदा सिंह
4. सिपाही सुंदर सिंह
5. सिपाही राम सिंह
6. सिपाही उत्तर सिंह
7. सिपाही साहिब सिंह
8. सिपाही हीरा सिंह
9. सिपाही दया सिंह
10. सिपाही जीवन सिंह
11. सिपाही भोला सिंह
12. सिपाही नारायण सिंह
13.सिपाही गुरमुख सिंह
14.सिपाही जीवन सिंह
15. सिपाही गुरमुख सिंह
16. सिपाही राम सिंह
17. सिपाही भगवान सिंह
18.सिपाही भगवान सिंह
19. सिपाही बूटा सिंह
20 . सिपाही जीवन सिंह
21. सिपाही नंद सिंह
यह वह पंजाब के शेर थे, जो अफगानों के सामने खड़ गए थे, चट्टान की तरह, ईडियन आरमी की सिख रैजीमैंट 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस मनाती हैं।
36 सिख रैजीमैंट की सथापना 1887 में फिरोजपुर में हुई थी, यही 36 सिख रैजीमैंट के सिपाही सारागढ़ी में लड़े थे, इनकी याद में ही फिरोजपुर में सारागढ़ी मैमोरियल गुरुद्वारा बनाया हैं, जिसकी तस्वीरों को आप देख रहे हो पोस्ट में, सारागढ़ी पाकिस्तान तो हम जा नहीं सकते लेकिन जब भी फिरोजपुर आओ तो इन बहादुर शहीदों को नमन करना न भूले।
फिरोजशाह मयुजियिम
पंजाब की धरती शहीदों की है, महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब और अंग्रेजों के बीच सतलुज दरिया सरहद था, सतलुज के ऊपर का ईलाका जिसमें लाहौर, अमृतसर, जालंधर, तरनतारन तक महाराजा रणजीत सिंह के पास था, सतलुज का निचला ईलाका जिसमें लुधियाना, फिरोजपुर आता था अंग्रेजों के पास था। महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने धोखे से पंजाब पर कब्जे करने की शाजिश की लेकिन उसके लिए फिरंगियों को पंजाब के बहादुर शूरवीरों से लोहा लेना पड़ा|
वह बात अलग है हमारे कुछ गद्दार कमाडरों लाल सिंह और तेजा सिंह की वजह से हम अंग्रेजों से हार गए लेकिन हमें गर्व है हमारे पुरखों ने हमारी मिट्टी के लिए इतनी कुरबानी की हैं।
फिरोजशाह मयूजियम
फिरोजशहर पंजाब के फिरोजपुर जिले में मोगा-फिरोजपुर हाईवे पर एक कसबा हैं, जहां पर पहली ऐगलो सिख वार की लड़ाई हुई थी, जहां यह मयूजियम बना हुआ है जो सिख सिपाहियों की बहादुरी के किससे बताता हैं।
पहली_ऐगलों_सिख_वार
यह लड़ाई 1845-46 में सिख और अंग्रेजों के बीच पांच जगहों पर हुई।
1. मुदकी की लड़ाई (18 दिसंबर 1845)
जिला फिरोजपुर ( पंजाब )
2. फिरोजशहर की लड़ाई ( 21 दिसंबर 1845)
जिला फिरोजपुर (पंजाब)
3. बददोवाल की लड़ाई ( 21 जनवरी 1846)
जिला लुधियाना पंजाब
4. आलीवाल की लड़ाई ( 28 जनवरी 1846)
जिला लुधियाना ( पंजाब)
5. सभराओं की लड़ाई ( 10 फरवरी 1846)
सतलुज के किनारे पर जिला तरनतारन (पंजाब)
शहीद भगत सिंह
समाथी सथल
हुसैनीवाला बार्डर
फिरोजपुर
मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ हैं मेरी कलम कि , मैं इश्क भी लिखना चाहूँ तो इंकलाब लिखा जाता है- शहीदे आजम सरदार भगत सिंह
यह लाईनें भगत सिंह की लिखी हुई हैं, इस हद तक उनको भारत माता से पयार था, दोस्तों आज मैं बात करुंगा, शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के शहीदी सथान जो पंजाब के शहर फिरोजपुर से मात्र 10 किमी दूर हुसैनीवाला में हैं, इन तीनों महान सपूतों को लाहौर सेटरल जेल में एक दिन पहले ही 23 मार्च 1931 को शाम के 7 बजे फांसी देकर, लाशों के टुकड़े टुकड़े करके बोरी में डाल कर जेल की पिछली दीवार को तोड़ कर बेर्शम अंग्रेजी हकूमत लाहौर से हुसैनीवाला सतलुज नदी के किनारे लेकर उनको बिना किसी रसम रिवाज के अधजली हुई लाशों को सतलुज नदी में फेंक दिया।
एक बात और हुसैनीवाला में इन शहीदों की समाधि पाकिस्तान में चली गई थी जो भारत सरकार ने फाजिल्का के 12 गांव पाकिस्तान को देकर यह सथान लिया था, जब भी आप पंजाब आओ तो हुसैनीवाला बार्डर की परेड़ के साथ इन महान सपूतों की यादगार पर भी माथा जरूर टेकना।
इनकलाब जिंदाबादई