फाजिल्का शहर
पंजाब में कुल 22 जिले हैं, फाजिल्का को 2011 में जिला बनाया गया है, अबोहर फाजिल्का जिले का सबसे बड़ा शहर हैं वहां मैं गया था लेकिन जिला मुख्यालय फाजिल्का रहता था जैसे ही मैं फाजिल्का शहर पहुंच गया मेरे पंजाब के 22 जिला मुख्यालय पूरे हो गये जिन शहरों में मै गया हूँ। मुक्तसर से फाजिल्का की दूरी 61 किमी हैं जो मैंने बाईक से सवा घंटे में कर ली। फाजिल्का शहर में देखने के लिए घंटा घर और टीवी टावर हैं।
फाजिल्का घंटा घर
शहर में दाखिल होकर सबसे पहले मैं फाजिल्का के घंटा घर गया, यह घंटा घर 1939 में बना हुआ 81 साल पुराना हैं और फाजिल्का शहर की पहचान बन चुका हैं। यहां लगी हुई घड़ी इंग्लैंड के बरमिंघम शहर से मंगवाई थी। घंटा घर की ऊंचाई 95 फीट हैं, यह शहर के बीचों बीच बना हुआ हैं इसके चारों ओर चार रास्ते हैं, घंटा घर के आसपास के क्षेत्र को कार फ्री जोन बनाया गया हैं, जो पंजाब का पहला कार फ्री जोन हैं। फाजिल्का को जब 2011 में जिला बनाया गया तब सरकारी फंक्शन भी घंटा घर ही रखा गया, मैंने भी घंटा घर की थोड़ी फोटो खींचकर घंटा घर की याद को मोबाइल में कैद कर लिया।
दोसतों दोपहर का एक बजने वाला था, भूख भी लगी थी
फिर मैं घंटा घर के पास ही बने एक खूबसूरत कैफे Retreat rural arts पहुंच गया, वहां खाने के लिए फास्ट फूड ही था, तो मैने एक बरगर खा लिया, कैफे के मालिक Shivansh Kamra भाई बहुत खुशदिल इंसान हैं, उन्होंने मुझे फाजिल्का के बारे में काफी कुछ बताया इंजीनियरिंग करके भाई बहुत खूबसूरत कैफे चला रहे हैं, जो बहुत ही traditional look में बना हुआ है, थोड़ा समय गुफतगू करके मैं यहां से आगे बार्डर पर जाना था|
रास्ते में फाजिल्का टीवी टावर के पास से गुजरा।
फाजिल्का टीवी टावर
फाजिल्का टीवी टावर बहुत ऊंचा हैं, इसकी ऊंचाई 1000 फीट हैं, यह टीवी टावर भारत का दूसरा सबसे ऊंचा टीवी टावर हैं, पहला सबसे ऊंचा टीवी टावर रामेश्वरम तमिलनाडु में हैं, यह टीवी टावर पूरे फाजिल्का में दिखाई देता है, शहर के बाहर से भी दिखता हैं यह विशाल टीवी टावर इसकी फोटोज खींच कर मैं आगे बढ़ गया |
फाजिल्का के तोशे बहुत मशहुर हैं, यह एक मिठाई हैं जो फाजिल्का की पहचान बन चुकी हैं, पाकिस्तान में एक शहर हैं पाकपटन जो भारत-पाकिस्तान सरहद से 50 किमी और फाजिल्का से 65 किमी दूर पाकिस्तान में हैं, बाबा शेख फरीद जो बहुत पहुंचे हुए संत थे और जिनके नाम पर पंजाब का फरीदकोट शहर पड़ा , वह पाकपटन के रहने वाले थे, उनका मकबरा भी पाकपटन में बना हुआ है, पाकपटन धार्मिक तौर पर बहुत मशहूर हैं पाकिस्तान में लेकिन मैं आपको पाकपटन के बारे में कयों बता रहा हूँ ????
कयोंकि आज जो हम फाजिल्का के तोशे की बात कर रहे हैं वह पाकपटन पाकिस्तान से ही आए हैं, आजादी से पहले पाकिस्तान के पाकपटन शहर में तोशे बनाने वाले मुंशी राम गरोवर जी पाकपटन में मिठाई का कार्य करते थे, लेकिन विभाजन के बाद पहले उनका परिवार एक साल सहारनपुर में रहा फिर 1948 में फाजिल्का में आकर बस गया, यहां शुरुआत में उन्होंने विवाह शादियों में मिठाई बनानी शुरु कर दी, फिर 1949 में शुरु हो गई पाकपटनीआ दी हटटी , जिसे आज उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी चला रही हैं। इस मिठाई की नकल की नाकामयाब कोशिश भी की गई लेकिन रेसिपी की सामग्री की मात्रा का हिसाब केवल इसी परिवार के पास है। कहा जाता है कि " जिसने फाजिल्का के तोशे वालों का तोशा नहीं खाया , वो फाजिल्का आया ही नहीं " इस बात को ध्यान में रखते हुए मैं भी पहुंच गया पाकपटनीआ दी हटटी फाजिल्का में तोशे खाने, यह दुकान फाजिल्का के घंटा घर के पास ही हैं, मैंने पहले दो तोशे खाकर टेस्ट किये फिर घर के लिए एक किलो तोशे पैक करवा लिए जिसकी कीमत 250 रूपये हैं, तोशे को खोया, मैदा, पनीर से बनाया जाता हैं, जो डब्बा पाकपटनीआ दी हटटी ने मुझे एक किलो तोशे का दिया उसके पीछे तोशे के बारे में बहुत बढिय़ा जानकारी दी हुई हैं वहीं से पढ़कर मैंने तोशे की जानकारी आपको दी है| आप भी आओ कभी फाजिल्का तोशे खाने फाजिल्का आपका इंतजार कर रहा हैं।
फाजिल्का शहर के बाद मैं सादकी बारडर देखने के लिए चल पड़ा, फाजिल्का से 13 किमी हैं सादकी बारडर जो भारत पाकिस्तान में हद बनाती हैं, पाकिस्तान में सुलेमानकी नाम हैं बारडर का, एक चीज और भारत वाले हिस्से में फाजिल्का शहर सिर्फ 13 किमी हैं लेकिन पाकिस्तान वाले हिस्से में 50 किमी दूर पाकपटन शहर हैं, सुलेमानकी हैडवरकस बना हुआ है जहां पाकिस्तान में
सतलुज दरिया के ऊपर जिसमें तीन नहरें निकाल कर सिंचाई की जाती हैं, यह नहरें पाकिस्तान के लिए बारडर एरिया में सुरक्षा भी प्रदान करती हैं। मेरा मकसद सादकी बारडर देखना था लेकिन BSF अधिकारी ने सादकी बारडर में जाने नहीं दिया, कोरोना की वजह से बारडर बंद हैं, लेकिन सामने बारडर का गेट दिख रहा था पर फोटोग्राफी सख्त मना हैं यहां पर, लेकिन भारत- पाकिस्तान बारडर पर लगी हुई कंडियाली तार दिखाई दे रही थी। बारडर न देखना थोड़ा मायूस तो हुआ आप को पता हैं पंजाब में भारत-पाकिस्तान बारडर पर तीन चैक पोस्ट पर रीटरीट सैरेमनी होती हैं
1. अटारी बारडर अमृतसर
2. हुसैनीवाला बारडर फिरोजपुर
3. सादकी बारडर फाजिल्का
बेरीवाला_पुल
अब मैं बारडर से सटे हुए गांव बेरीवाला गांव देखने के लिए निकल पड़ा, असल में जब 1971 में भारत-पाकिस्तान में युद्ध हुआ था तब बेरीवाला पुल के ऊपर पाकिस्तान में एकदम हमला कर दिया था, बेरीवाला गांव के पास एक नहर हैं जिसके ऊपर बेरीवाला पुल बना हुआ था, इस पुल के ऊपर पाकिस्तानी आरमी ने तोपों से हमला कर दिया था, टूटा हुआ बेरीवाला पुल अब भी उसी हालत में मौजूद हैं। सबसे पहले मैं बेरीवाला गांव पहुंचा जहां बिल्कुल सामने बारडर की कंडियाली तार दिख रही थी, बेरीवाला में एक टियूबवैल पर हाथ मुंह धोकर ठंडा पानी पिया, हरे भरे खेत की फोटो खींचने के बाद ,बेरीवाला पुल के बारे में पूछा, रास्ता पता करना के बाद मैं गांव के बाहर बेरीवाला पुल पहुंच गया, टूटे हुए पुल को देखा, यही पुल भारत-पाकिस्तान युद्ध की निशानी हैं जहां से युद्ध शुरू हुआ था, 14 दिनों तक चला था, पाकिस्तान का मकसद फाजिल्का पर कबजा करना था लेकिन भारत के जांबाज वीरों ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी|
आसफ वाला वार मैमोरियल
आसफ वाला वार मैमोरियल फाजिल्का शहर के पास भारत-पाकिस्तान सीमा के पास आसफवाला गांव में बना हुआ है, यह मैमोरियल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए बहादुर सैनिकों की यादगार हैं, यह युद्ध बेरीवाला गांव में पाकिस्तान के हमले से शुरु हुआ, वहां शहीद हुए जवानों का सामूहिक अंतिम संस्कार आसफवाला में किया गया। आसफवाला में 90 फीट लम्बी और 55फीट चौड़ी चिता बनाकर सभी वीर जवानों का अंतिम संस्कार हुआ। उनकी याद में इस समारक का अनावरण पंजाब के मुख्यमंत्री गियानी जैल सिंह ने 22 सितंबर 1972 को किया। इस समारक में एक मयूजियम भी बना हुआ है जहां पेटिंग के जरिए युद्ध को दिखाया गया हैं, इन बहादुर वीरों की शहीदी का ईतिहास लिखा हुआ हैं, ऐसे वीर जवानों का इतिहास सुनकर पढ़कर मन भावुक हो गया।
#भारत_पाक_1971_युद्ध
यह युद्ध 3 दिसंबर 1971 को फाजिल्का बारडर से सटे गांव बेरीवाला पर हमला करके शुरू हुआ था, पाकिस्तान ने शाम को पांच बजे के करीब एकदम से 2500 पैदल बिग्रेड जवानों, 28 टैकों और तोपों से हमला कर दिया, सबसे खास बात यह है कि पाकिस्तान फौज आम किसान के भेस में भारत में दाखिल हुई, पंजाबी कुडता पजामा और ऊपर शाल उढ़कर अंदर हथियार छुपाकर, पाकिस्तान का मकसद फाजिल्का पर कबजा करना था।
बेरीवाला पुल को उन्होंने तोपों से उड़ा दिया था, पिछले पोस्ट में उस पुल को दिखाया था मैंने। यह युद्ध 14 दिन चला, 3 दिसंबर 1971 से शुरू होकर 17 दिसंबर 1971 तक युद्ध हुआ, भारत के वीर जवानों ने पाकिस्तान को फाजिल्का नहीं पहुंचने दिया, इसीलिए इनको फाजिल्का के रखवाले कहा जाता हैं।
इस युद्ध में 4 जाट के 82 सैनिक
5 राजपूत के 70 सैनिक
3 असाम के 39 सैनिक
3 गोरखा राईफल के 13 सैनिक
अन्य 28 सैनिक शहीद हुए।
ऐसे वीर बहादुर जवानों को शत शत नमन