पंजाब भारत का एक खूबसूरत राज्य है| टूरिस्ट पंजाब में अमृतसर देखकर चले जाते हैं लेकिन पंजाब इसके अलावा भी बहुत कुछ देखने लायक है| इस पोस्ट में हम पंजाब की आफबीट टूरिस्ट प्लेसस के बारे में बात करेंगे|
1. नूरमहल सराय जिला जालंधर
पंजाब के दुआबा क्षेत्र में जिला जालंधर के ईतिहासिक कस्बे नूरमहल में नूरमहल सराय बनी हुई है | ऐसा कहा जाता हैं मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां का जन्म यहां हुआ और यही उसका बचपन बीता।
नूरमहल_सराय
नूरमहल शेरशाह सूरी द्वारा बनाए हुए पुराने दिल्ली- लाहौर मार्ग पर एक पुराना कस्बा था, जिसका पुराना नाम कोट कथलूर था, साथ ही एक गांव था कोट बादल खाँ जो दोनों भाईयों के नाम पर था। कोट कथलूर का नाम जहांगीर ने बदलकर नूरमहल रख दिया लेकिन पास ही कोट बादल खाँ नाम का गांव आज भी मौजूद हैं। जब जहांगीर अकबर की मौत के बाद बादशाह बना और नूरजहां को उसने अपनी बेगम बनाया, तब उसने नूरजहां के लिए नूरमहल सराय का निर्माण करवाया और शहर का नाम भी नूरमहल रखा। आज भी यह आलीशान महल देखने लायक हैं। इसकी भव्यता कलाकारी लाजवाब हैं। इसकी बाहरी दिख मुझे फतेहपुर सीकरी के दरवाजे जैसी लगी। नूरमहल सराय भी हैं और एक खूबसूरत महल भी। नूरमहल सराय में बहुत सारे कमरे भी बने हुए हैं इन कमरों में जहांगीर की सैना के सिपाही रात को रुकते थे जब वह जहांगीर के साथ नूरमहल आते थे। नूरमहल सराय का दर्शनी गेट बहुत लाजवाब बना हुआ हैं। नूरमहल सराय के अंदर एक सुंदर बाग बना हुआ है। जहांगीर ने सराय के अंदर नूरजहां के लिए एक खूबसूरत महल भी बनवाया था। आज यह ईतिहासिक ईमारत भारतीय पुरातत्व विभाग के कंट्रोल में हैं, वह ही इसका रख रखाव करती हैं कयोंकि यह एक ईतिहासिक धरोहर हैं।
#नूरजहां
नूरजहाँ जहांगीर बादशाह की बेगम थी और मुगल काल की सबसे खूबसूरत औरतों में से एक थी। खूबसूरत होने के साथ साथ नूरजहां बहुत चतुर और राजनीतिक मामलों में बहुत माहिर थी। ऐसा कहा जाता हैं जहाँगीर शराबी किसम का आदमी था, शराब और अफीम की उसे लत लगी हुई थी। जहांगीर के सारे फैसले नूरजहां ही करती थी बस नाम जहांगीर का लगता था। नूरजहां के नाम पर जहां तक मुझे पता है एक तो पंजाब में नूरमहल का कस्बा बसा हुआ है जहां मैं 2016 में नूरमहल सराय देखने गया था। दूसरा हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में पठानकोट- मंडी हाईवे पर नूरपुर नाम का पहाड़ी शहर बसा हुआ है और तीसरा नूरी छंब जो जम्मू कश्मीर में मुगल रोड़ पर एक खूबसूरत झरना हैं जो नूरजहां के नाम पर बना हुआ है। कहते हैं जब एकबार जहांगीर कश्मीर से लाहौर आ रहा था तब मुगल रोड़ पर बनी एक सराय में जहांगीर की मृत्यु हो गई थी, लेकिन यह बात नूरजहां ने लाहौर पहुंचने से पहले गुप्त रखी और जल्दी जल्दी लाहौर पहुंच कर सत्ता को काबू करने के बाद ही बताई। जहांगीर और नूरजहां दोनों का मकबरा लाहौर में ही बना हुआ है। नूरमहल के ऊपर एक खूबसूरत पंजाबी गाना भी बना हुआ हैं जिसके बोल हैं " एक तारा वजदा वे रांझणा नूरमहल दी मोरी " एक तारा संगीत का एक साज हैं और कोई गायक उसे नूरमहल की मोरी ( एक भीड़ी छोटी सी गली) में बजाता था, इसीलिये यह पंजाबी गाना बन गया। इसके अलावा नूरमहल के सुनियार और बाजार बहुत मशहूर हैं।
कैसे पहुंचे - नूरमहल पंजाब के जालंधर जिले में जालंधर शहर से 40 किमी और नकोदर शहर से 13 किमी दूर हैं। यहां बस सुविधा भी अच्छी हैं दिल्ली-अमृतसर जीटीरोड पर बसा कस्बा फिलौर भी नूरमहल के पास ही है। आप जब भी कभी पंजाब के जालंधर आए तो ईतिहास का यह शानदार नमूना नूरमहल सराय जरूर देखना।
2.ईतिहासक गांव संघोल
जिला फतेहगढ़ साहिब पंजाब
आज हम बात करेंगे पंजाब के ईतिहासिक और पुरातत्व सभयता के केंद्र रहे गांव संघोल की, संघोल पंजाब के जिला फतेहगढ़ साहिब जिले में लुधियाना-चंडीगढ़ हाईवे पर चंडीगढ़ से 42 किमी दूर और लुधियाना से 60 किमी दूर पर बसा हुआ हैं। संघोल को ऊंचा पिंड ( ऊंचा गांव) भी कहा जाता हैं कयोंकि इस गांव की गलियों, धरती की ऊंचाई आसपास के ईलाके से बहुत ऊंचा हैं। वैसे धरातल में भी ऊंचाई के साथ साथ ईतिहास, पुरातत्व सभयता में भी इस गांव का नाम बहुत ऊंचा हैं। संघोल हडप्पा काल से भी संबंधित रहा, कुशान वंश के साथ भी, एक चीज जो संघोल को दूसरी पुरातत्व जगहों से अलग करती हैं, वह यह हैं संघोल में अलग अलग सभयता से संबंधित वस्तुओं की प्राप्ति हुई है खुदाई के बाद लेकिन बाकी जगह पर सिर्फ एक या दो सभयता के बारे में पता लगता हैं। कहा जाता हैं संघोल किसी समय सतलुज नदी के किनारे पर बसा
हुआ एक बहुत बड़ा महानगर था, जो तकरीबन 200 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ था। आज भी अगर आसपास के ईलाके में खुदाई की जाए तो बहुत दुरलभ वस्तुओं प्राप्त हो सकती है।
संघोल मयूजियम
संघोल में लुधियाना चंडीगढ़ हाईवे पर एक खूबसूरत मयूजियम बना हुआ है, जिसकी टिकट मात्र 10 रुपये हैं, यह मयूजियम सोमवार को बंद रहता है। इस मयूजियम में संघोल गांव में की गई खुदाई से प्राप्त वस्तुओं जैसे सिक्के, मिट्टी के गहने और मूर्तियों को संभाल कर रखा हुआ हैं, मयूजियम के अंदर फोटोग्राफी मना है, इसलिए उनकी कोई तसवीर नहीं लगा रहा। संघोल का यह शानदार मयूजियम देखनेलायक हैं, अब इस मयूजियम की नई ईमारत तैयार हो रही हैं।
बौद्ध सतूप संघोल
संघोल गांव के बीचोंबीच खुदाई के बाद बौद्ध धर्म से संबंधित एक सतूप की प्राप्ति हुई हैं, जिसका आकार अशोक चक्र से मिलता जुलता हैं। बदकिस्मती से इस सतूप का ऊपरी भाग क्षतिग्रस्त हो चुका है, लेकिन ईटों की बनी हुई नीवों को देख सकते हैं, जो बहुत शानदार हैं और नालंदा यूनिवर्सिटी से मिलती हैं। यहां देखने से लगता हैं, यह बौद्ध धर्म का एक बहुत बड़ा केंद्र था, जहां भिक्षु रहते हैं, छोटे छोटे से कमरे बने हुए थे, जिनमें वह रहते थे और तपस्या करते थे। ऐसा भी कहा जाता हैं संघोल में इस तरह के 11 बौद्ध सतूप बने हुए थे, लेकिन आज संघोल में दो बौद्ध सतूप हम देख सकते है। संघोल गांव पिछले 5500 साल से आज तक बहुत बार उजड़ा और फिर दुबारा बसा, लेकिन इतने बार उजडऩे और बसने के बाद आज भी बस रहा हैं, इस गांव की आबादी अब 10000 तक पहुंच गई हैं। दोस्तों कभी पंजाब आए तो आप संघोल भी आईए, अतीत और ईतिहास को जानने के लिए संघोल आपको निराश नहीं करेगा।
3.हरीके_बरड_सेंचुरी
हरीके पतन सतलुज और बयास नदियों के संगम पर एक खूबसूरत कसबा हैं जो पंजाब के तरनतारन जिले में पड़ता हैं,जो अमृतसर से 65 किमी , तरनतारन से 35 किमी , मेरे घर से 70 किमी दूर हैं। हरीके पतन को कुदरत ने बहुत खूबसूरती बखशी हैं। हरीके पतन का नाम कैसे पड़ा ,कहते हैं पुराने जमाने में जब हरीके पतन में डैम नहीं बना था, तब हरी नाम का मलाह हुआ करता था, जो किशती से लोगों को सतलुज दरिया पार करवाया करता था इसी के नाम पर हरीके पतन नाम पड़ गया।
हरीके बरड सेंचुरी-
हरीके बरड सेंचुरी में दूर देश विदेश से पक्षी आते हैं जो सरदियों में नवंबर में आना शुरू करते हैं और मार्च तक रहते है फिर वापिस चले जाते हैं। इस समय में यहां पक्षियों को आप देख सकते हो। हरीके बरड सेंचुरी घूमने के लिए हम फरवरी 2020 में घर से निकले सुबह ही, हरीके पतन कसबे में पहुंच कर फारेस्ट डिपार्टमेंट आफिस से परमिशन लेकर गाडी़ का नंबर नोट करवाने के बाद, कुल कितने मैंबर हैं लिख कर एक परची बना कर दी जाती हैं, इस परची को दिखा कर आप बरड सेंचुरी में प्रवेश कर सकते है, बाहर निकलने वाले रास्ते पर परची ले लेते हैं। हम भी परची लेकर पहुंच गए हरीके बरड सेंचुरी में, अब सारा रास्ता जंगल से घिरा हुआ था, पक्षियों की खूबसूरत आवाज मंत्रमुग्ध कर रही थी, साथ में बह रहा सतलुज दरिया मनमोहक दृश्य पेश कर रहा था। दोस्तों हरीके वैटलैंड पंजाब की सबसे बड़ी मैनमेड़ वैटलैंड हैं जो 4100 हेक्टेयर में फैली हुई हैं, तीन जिलों में यह फैली हुई हैं तरनतारन, फिरोजपुर और कपूरथला जिले में। हरीके बैराज को 1953 में बनाया गया, इस बैराज में से दो बड़ी नहरें फिरोजपुर फीडर और इंदिरा गांधी नहर निकाली गई, इस बैराज के बनने के बाद ही बैकपरैशर से हरीके बरड सेंचुरी का निमार्ण हुआ। अब हम जंगल में पहुंच गए थे, मुझे पक्षियों के नाम नहीं पता और थोड़ी सी आवाज से ही पक्षी उड़ जाते हैं, सतलुज दरिया के किनारे लगे वृक्षों में ही पक्षियों की डारें बैठी थी। पक्षी देखने के लिए वाच टावर बने हुए हैं, जहां से आप आसपास और पक्षियों को देख सकते है। ऐसे ही नजारों को देखने के बाद हम बरड सेंचुरी को देखते हुए बाहर वाले रास्ते से बाहर निकलने के बाद हाईवे पर चढ़ गए और आगे बढ़ गए। आप भी जब पंजाब में आओ तो यहां जरूर आना चहचहाते हुए पक्षियों को देखने के लिए।
4. संगरूर शहर
पंजाब के दक्षिण पूर्वी भाग में पटियाला से तकरीबन 50 किलोमीटर की दूरी पर हैं, संगरूर शहर को संगू नाम के एक जाट ने तकरीबन 400 साल पहले बसाया था एक गांव के रुप में। संगरूर का ईलाका पहले नाभा रियासत में आता था, नाभा रियासत और जींद रियासत का आपस में झगड़ा रहता था, दोनों रियासतों में युद्ध हुआ और जींद रियासत की जीत हुई और नाभा रियासत के कुछ ईलाके जींद रियासत में शामिल हो गए जिसमें संगरूर भी शामिल था। जींद रियासत के राजाओं ने संगरूर को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया, यहां बाग बारांदरी मंदिर, गुरुद्वारा और घंटा घर का निर्माण करवाया।संगरूर शहर का नक्शा जैपुर की तरज पर बनाया गया यहां अब भी बहुत सारी ईतिहासिक और रियासती ईमारतें बनी हुई हैं जिनको संभाल कर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा सकता हैं।
बनासर बाग बारांदरी
पुराने समय में कहा जाता हैं एक बड़े तालाब के बीच राजा का महल हुआ करता था और उस महल पर जाने के लिए लकड़ी के पुल का उपयोग किया जाता था, लेकिन आजकल वह तालाब नहीं हैं। बनासर बाग बन का अर्थ होता हैं वृक्षों का जंगल, सर का अर्थ होता हैं तालाब किसी समय में जंगल के बीच बने हुए तालाब में महल होता था।
अब बात करते हैं बारांदरी की, बारांदरी का अर्थ होता हैं जिसके बारां (12) दरवाजे हो, इस बाग के भी 12 दरवाजे थे, पंजाब में लाहौर, दीनानगर, पटियाला और संगरूर में बारांदरी बनी हुई हैं। इस बारांदरी को बनाना जींद रियासत के राजा संगत सिंह ने 1827 ईसवीं में बनाना शुरू किया, बाद में उनके पुत्र महाराजा सरूप सिंह और उनके पुत्र महाराजा रघुवीर सिंह ने पूरा निर्माण करवाया। बनासर बाग के अंदर सफेद मारबल की खूबसूरत मीनाकारी के साथ बारांदरी के दरवाजे को बनाया गया, यह दूर से देखने से ही बहुत आकर्षक लगती हैं, दरवाजे के ऊपर इंग्लिश में Maharaja Jind लिखा हुआ हैं आप फोटो में पढ़ सकते हो। दरवाजे के दोनों तरफ मारबल से बने हुए दो द्वारपाल खड़े हुए हैं, एक खूबसूरत मीनाकारी और कलाकारी मन मोह लेती हैं। मुझे यह ईतिहासिक जगह बहुत पसंद आई। अब भी संगरूर शहर के लोग रोज सुबह टहलने के लिए सैर, योगा करने के लिए बनासर बाग आते हैं। यहां जाने के लिए कोई टिकट नहीं हैं, बस जरूरत हैं ऐसी ईतिहासिक धरोहरों को बचाकर संभालने की ताकि हमारी आने वाली पीढियों को हमारे कौशल, हुनर और ईतिहास का पता चलता रहे। आज की पोस्ट में बस इतना बाकी अगले संडे आयूगा पंजाब की कोई और जगह लेकर ।