अभी कुछ ही दिन पहले मेरा हिमाचल से भीलवाड़ा लौटते हुए अमृतसर जाना हुआ।मुख्य रूप से अमृतसर में दो जगहे हैं जो यात्रियों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं एक है स्वर्ण मंदिर और दूसरा अटारी (ना कि वाघा )बॉर्डर। स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने और भारत-पाक सीमा की सेरेमनी देखने सैकड़ों विदेशी यात्री रोज यहाँ आते हैं।
असल में अमृतसर और लाहौर के बीच के सड़क मार्ग से गुजरती भारत-पाक की सीमा ही भारत की तरफ ''अटारी बॉर्डर'' और पाकिस्तान की ओर ''वाघा बॉर्डर'' कहलाती हैं। भारत से पाक जाने का यही वो सड़क मार्ग हैं जहाँ से यात्रियों के लिए सड़क परिवहन का आवागमन होता हैं।अटारी बॉर्डर में ट्यूरिस्ट जो देखने जाते हैं वह हैं यहाँ रोज होने वाली -''" बीटिंग दी रिट्रीट " सेरेमनी। चलिए आगे बढ़ते हैं –
सर्वसुविधा से युक्त हैं सीमा तक का पैदल मार्ग :
मैं 2016 में भी यहाँ जा चूका था ,मुझे पता था कि सेरेमनी का असली आनंद लेने के लिए अमृतसर से मुझे करीब दोपहर 3.30 बजे तक निकलना ही होगा। असल में अमृतसर से यह सीमा/बॉर्डर करीब 30 किमी दूर हैं। यहाँ पहुंचने के लिए अमृतसर से टैक्सी ,शेयर्ड कैब या पब्लिक बस किसी भी तरीके से आया जा सकता हैं।हमारे पास पुरे 2 दिन के लिए टैक्सी थी। हम थोड़ा और जल्दी निकले एवं सबसे पहले इसी रोड पर स्थित वॉर मेमोरियल को विजिट किया। यह एक लाजवाब जगह हैं जिसके बारे में अलग से लिखूंगा। यहाँ से फ्री होकर सीधा अटारी बॉर्डर की ओर ही निकले। रास्ते में बड़े बड़े हरे रंग के बोर्ड्स पर लिखा आ रहा था - लाहौर इतना किलोमीटर ,भारत -पाक सीमा इतने किलोमीटर दूर।
BSF (बॉर्डर सिक्योरिटी फाॅर्स ) के जवान हर जगह दिखने लग गए थे।बाहर से लोगों की भीड़ देखकर लगता हैं कि सब किसी मेले में जा रहे हैं। हमारी गाड़ी पार्किंग में रुकी। कुछ मीटर हमको अब पैदल चलना था। आर्मी के जवानों के बीच सुरक्षित पा कर और निश्चिंत होकर भीड़ उस ओर बढ़ रही थी जिधर की तरफ लाहौर का रास्ता जाता हैं। असल में ,लाहौर यहाँ से केवल 22 किमी दूर लिखा हुआ था। छोटे -छोटे तिरंगे ,तिरंगे के रंग की टोपिया , छल्ले ,पानी और कोल्ड ड्रिंक्स की बोतले आदि हर तरफ बेचीं जा रही थी।हमने वाटर कलर से गालों पर तिरंगा बनवाया और भीड़ के साथ सबसे पहले पहुंचे एक किले जैसी दिखने वाली बिल्डिंग पर जिसका नाम था -शाही किला। असल में यह एक बड़ा सा रेस्टोरेंट हैं ,इसके अंदर शॉपिंग करने और खाने -पीने के लिए दुकाने बनी हैं। यहाँ लाकर रूम और टॉयलेट्स भी बने हुए हैं। इसी ''शाही किला '' को इधर कहा जाता हैं -भारत का पहला रेस्टोरेंट। क्योकि पाकिस्तान से भारत में प्रवेश करते ही सबसे पहले यही रेस्टोरेंट आता हैं।
अगर आप इसमें ना भी जाना चाहे तो भी कोई बात नहीं ,आप आगे बढ़ सकते हैं। इसके आगे आदमी और औरतों की लाइन अलग -अलग लगती हैं और BSF के जवान सबकी दो-दो बार चेकिंग करके ,फिर आगे जाने देते हैं। अब कुछ सेल्फी पॉइंट्स पर भीड़ सेल्फ़िया लेती भी दिख जायेगी। सामने करीब 360 फ़ीट ऊँचे तिरंगे पर जैसे ही नजर पड़ेगी ,एकदम से होंगे गूसबम्प्स।उसके पीछे पाकिस्तान का झंडा भी दिखाई देगा जो असल में पाकिस्तान में लगा हुआ हैं। एक बड़ी ईमारत के अंदर बड़ी सड़क जाती हुई दिखी ,यही वो रोड थी जहाँ से पाकिस्तान में आवागमन किया जाता हैं। हम भीड़ के साथ पैदल पैदल इसी सड़क से पाक की ओर बढ़ते रहे और बिल्डिंग के अंदर से होते हुए सीधे हम पहुंचे एक बहुत बड़े स्टेडियम में। दोनों तरफ हजारों लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। 2016 में ऊपर की मंजिल का काम चल रहा था अब वहाँ भी बैठने के लिए जगहे बन चुकी थी।
आँखों के एकदम सामने लोहे के बड़े दरवाजों के उस पार पाकिस्तान लिखा हुआ दिख रहा था और साथ में लगी थी जिन्ना की तस्वीर। उसी तस्वीर के ठीक सामने भारतीय तरफ तस्वीर लगी थी गांधीजी की। अपने यहाँ करीब 25000 लोगों के बैठने की व्यवस्था हैं। इधर हजारों की भीड़ ऑलरेडी आ चुकी थी ,वही सीमा के उस ओर केवल 2 लोग बैठे हुए नजर आये। उधर का स्टेडियम तो हमारे जैसा ही बना था ,बस हमसे छोटा था और एक मंजिला ही था।
यहाँ बैठने की व्यवस्था दो भागों में की हुई हैं। सीमा के पास वाली कुछ सीट्स इंटरनेशनल टूरिस्ट और आर्मी के परिवार वालों के लिए रिजर्व रहती हैं। उन सीट्स के अलावा आप पुरे स्टेडियम में किसी भी पंक्ति में कही भी बैठ सकते हैं।सदियों में सेरेमनी करीब 5 बजे और गर्मियों में 6 बजे शुरू हो जाती हैं। भीड़ करीब 2 घंटे पहले से ही आकर स्टेडियम में बैठ जाती हैं।
ऐसे होती हैं रिट्रीट सेरेमनी :
रिट्रीट सेरेमनी को देखने के लिए आपको कोई शुल्क नहीं देना होता हैं। पैसा लगेगा तो केवल पानी और कोल्ड ड्रिक्स का ,जिनके वेंडर पुरे स्टेडियम में हर 5 -5 मिनट में आपके पास आएंगे पानी और कोल्ड ड्रिंक बेचने। सेरेमनी से करीब २ घंटे पहले ही भीड़ पहुंच जाती हैं तो आप भी कम से कम एक दो बार पानी की बोतल तो ले ही लेंगे।
हम भी करीब 4.30 बजे तक अंदर पहुंच चुके थे और जिस जगह से हमे लगा कि अच्छा व्यू दिखेगा ,वहा हम बैठ गए। पाकिस्तान की ओर फ़िलहाल 7 से 8 लोग बैठे हुए दिख रहे थे और हमारे यहाँ पैर रखने की जगह भी ढूँढना भारी पड़ने वाली थी। जैसे ही करीब 5 से 7 हज़ार लोग हुए होंगे ,तेज आवाज़ में सोनू निगम की आवाज़ में गाना शुरू हुआ - ''जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा '' (असल गीत तो रफ़ी साहब का हैं ).. गीत चालु होते ही पुरे स्टेडियम में "भारत माता की जय" ,"वन्दे -मातरम" के नारे गूंजने लगे। उसके बाद तो बस आधा घंटा शानदार देशभक्ति गीतों से भीड़ को बांधे रखते हैं। ''मेरा रंग दे बसंती चोला'' और ''कर चले हम फ़िदा '' जैसे गीतों से कभी थोड़ा आक्रोश की फीलिंग आती हैं तो वही ''सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी '' और ''जय हो '' जैसे गानों पर हज़ारो की भीड़ पागलों की तरह झूमती नाचती रहती हैं। पर इस समय तक भी पाकिस्तान वाली साइड 100 -150 लोग हाथ में पाक का झंडा लिए ,सरहद पर से बोर होते हुए हमे देखते रहते हैं।हमारे यहाँ ऐसा नाचने गाने का इवेंट करीब 45 मिनट तक चलता हैं,उस ओर भी कुछ पाकिस्तानी गाने और ढोल नगाड़े की आवज़ कभी कभी सुनाई दे रही थी।
जल्दी ही निचे वाले स्टेडियम लबालब भर गया और स्टेडियम के बीच एक BSF जवान ने कमान संभाल ली। उन्होंने भीड़ में से सभी महिलाओं को निचे आमंत्रित किया। देखते ही देखते सैकड़ों महिलाये ,छोटी बच्चिया निचे पहुंच गयी। एक एक करके सबको राष्ट्रिय ध्वज दिया गया ,जिसे हाथ में लेकर महिलाओं को बारी बारी बॉर्डर के दरवाजे तक दौड़ कर जाकर ,लहरा के आने को कहा गया। मेरी बहन और पत्नी भी इसमें शामिल रही। उसके बाद में सभी महिलाओं ने देशभक्ति गीतों पर नृत्य किये। इन सबमे करीब 1 घंटे से ऊपर का समय लग गया। पाकिस्तान में तब तक सब नींद निकाल रहे थे ऐसा लग रहा था। वहा ना कोई नारेबाजी ,ना कोई जोश दिखाई देता हैं। फिर शुरू हुई असल सेरेमनी -
भीड़ को व्यवस्थित ढंग से बैठने को कहा गया। BSF के जवानों की परेड निकाली गयी,उधर भी सेम समय पर परेड निकली। BSF की महिला गार्ड्स की भी परेड निकली।थोड़ी देर में दोनों देशों के दरवाजे खोल दिए गए। अब साफ़ एक सीधी सड़क पाकिस्तान में प्रवेश होती दिख रही थी। 2016 में तो एक बस भी इस रास्ते से सेरेमनी के दौरान भारत से पाकिस्तान को जाते हुए हमने देखा था। बॉर्डर के गेट खुलते ही दोनों देशों के जवान एक दूसरे को अभिवादन करते हैं। अपने अपने करतब आदि दिखते हैं। गुस्से से एक दूसरे पर चिल्लाते हैं(पार्ट ऑफ़ सेरेमनी ) ,गुस्सा दिखाते हैं ,अपनी अपनी जनता की आवाज़ को दूसरे से तेज निकलवाते हैं,अपने पैरों को सर तक ले जाते हैं। यह चीजे दोनों देशों में एक ही समय पर एक ही साथ होती रहती हैं। करीब आधे घंटे तक यह चलता रहता हैं ,BSF के जवान हममे जोश खत्म नहीं होने देते। इन सबके बाद दोनों देश का ध्वज उतारा जाता हैं ,फोल्ड किया जाता हैं। यह जो दृश्य होता हैं वो देखने लायक होता हैं। इस तरह सेरेमनी खत्म होते ही दोनों देश के दरवाजे एक साथ फिर बंद कर दिए जाते हैं। सेरेमनी के बाद आप वापस फिर भारत के पहले रेस्टोरेंट ''शाही किला '' के बाहर चाट पकोड़ी ,चाय कॉफ़ी ,पिज़्ज़ा आदि के स्वाद का लुत्फ़ ले सकते हैं। यादगार के तौर पर या परिचित को देने के लिए मेग्नेट , टी शर्ट्स आदि गिफ्ट्स ले सकते हैं।
असल में ,इस सेरेमनी का हिस्सा बनना एक लाइफटाइम अनुभव होता हैं। यह सेरेमनी रोज आयोजित होती हैं। हर दिन करीब 10000 लोग इसे देखते हैं ,पीक टाइम में यह स्टेडियम 20000 से ज्यादा लोगों से भर जाता हैं।आप एकदम खुद को यहाँ गर्वित और जोश से भरा महसूस करते हैं। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहाँ और भी भव्य आयोजन होता हैं। अगस्त की इन आने वाली छुट्टियों में आप अमृतसर का प्लान बना कर यहाँ के भव्य आयोजन का हिस्सा बनकर ,आप एक लाइफटाइम मेमोरी जरूर क्रिएट कर सकते हैं।
नोट : 1.) बॉर्डर के इस एरिया में जैमर लगा होता हैं। मतलब आपकी कोई भी सिम में नेटवर्क नहीं आएगा।
2.) ऐसी ही सेरेमनी जल्दी ही जैसलमेर में पाक बॉर्डर पर स्थित लोंगेवाला में भी शुरू होने वाली हैं।
कैसे पहुंचे : यहाँ पहुंचने के लिए अमृतसर से टैक्सी ,शेयर्ड कैब या पब्लिक बस किसी भी तरीके से आया जा सकता हैं।स्वर्ण मंदिर के बाहर मुख्य बाजार में भी कई टूर ऑपरेटर के एजेंट्स अटारी बॉर्डर के लिए टूरिस्ट ढूंढते मिल जाते हैं जो बड़े ही वाजिब दाम में टैक्सी से आपको घुमा कर ले आते हैं। अटारी गाँव जो कि सीमा से कुछ 2 -3 किमी ही दूर हैं ,वहां के लिए अमृतसर बस स्टैंड से रोडवेज बसें भी मिल जाती हैं।अमृतसर रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पंहुचा जा सकता हैं। नजदीकी एयरपोर्ट ,अमृतसर एयरपोर्ट ही हैं।
अन्य रमणीय स्थल : स्वर्ण मंदिर ,पार्टीशन म्यूजियम ,वॉर मेमोरियल , जलियावाला बाग ,गोविंदगढ़ ,दुर्गियाना मंदिर
प्रसिद्द व्यंजन : कुल्छे और फिरनी जरूर खाये।
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धन्यवाद
-ऋषभ भरावा