डिगलीपुर की पहली सुबह है आज। वैसे आज 6 बजे उठना था पर अंडमान में जैसे 4 बजे तड़के ही उठने की आदत सी पड़ गयी। खिड़की से हल्का उजालापन महसूस हो रहा था, सूरज भी थोड़ी देर में दस्तक देने ही वाला था। मुख्य भूमि की तुलना में समय चक्र के कुछ आगे चलने के कारण ऐसा लग रहा था कि मैंने आलस्य पर कुछ दिनों के लिए विजय प्राप्त कर लिया हो।
Ross and Smith Twin Islands (Image Courtesy: www.andamans.gov.in)
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डिगलीपुर के चौक-चौराहों पर जगह जगह बोर्ड लगा था - डिगलीपुर नहीं देखा तो क्या देखा? उत्तरी अंडमान के सुदूर इस शहर में देखने लायक जो जगह हैं वे हैं- सैडल पिक यानी अंडमान की सबसे ऊंची चोटी, रामनगर तट, कालीपुर तट पर टर्टल नेसलिंग और रॉस एंड स्मिथ आइलैंड। सैडल पिक की ऊंचाई करीब सात सौ मीटर है और दूर से ही पूरे डिगलीपुर में दिखाई देते रहती है। कुछ लोग यहां ट्रैकिंग के लिए भी आते हैं, उसके लिए एक दिन का और समय चाहिए, मेरे कार्यक्रम में शामिल नहीं था। रामनगर तट भी शहर से दूर था, जबकि कालीपुर तट कल शाम ही दर्शन कर चुका था।
सबसे बेहतरीन चीज जिसे देखने मैं इतनी दूर डिगलीपुर तक आया था वो था- रॉस एंड स्मिथ ट्विन आइलैंड यानि दो जुड़वाँ टापू । गूगल पर अंडमान के दर्शनीय स्थलों की खोज करते समय इस द्वीप, बल्कि जुड़वे द्वीप के फोटो एवं वीडियो मुझे बड़े हैरान कर देने वाले लगे थे। दो नीले समुद्र तटों का आमने सामने होना, बीच मे बालू की एक पट्टी, फिर कुछ देर बाद आधी पट्टी डूबकर गायब और जैसे दोनों तटों का मिलकर एक होना! ऐसा भूगोल मुझे बड़ा ही अचंभित कर देने वाला लगता था। मैंने ठान लिया कि ये जगह मुझे देखनी ही देखनी है, और डिगलीपुर जाने की सबसे बड़ी वजह भी यही थी।
तो रॉस एंड स्मिथ के लिए मुझे सुबह सात बजे डिगलीपुर के एरियल बे जेट्टी पर हाजिर हो जाने की सूचना मिली थी। समय से पहले तो मैं वहां पहुंच गया पर कोई पर्यटक नहीं दिख रहा था। बोट चलाने वालों का भी काउंटर अभी खुला नही था, सिर्फ फारेस्ट विभाग वाले अपने ऑफिस में बैठे थे। मुझे शक था कि डिगलीपुर तो बहुत कम लोग ही आते हैं, इसीलिए ये हाल है। पूछने पर उन्होंने बताया कि साढ़े सात से आठ बजे तक पर्यटक आने शुरू हो जाएंगे, दस-ग्यारह बजे तक तो काफी भीड़ भी हो जाती है, पर देखकर ऐसा कहीं से लगता नही।
प्राइवेट बोट वालों का हर जगह एक एसोसिएशन होता है, यहां भी था। रॉस एंड स्मिथ जाने के लिए अगर पूरा नाव बुक किया जाय तो तीन हजार रुपये देने पड़ेंगे। एक नाव में 6 से 8 यात्री तक जा सकते हैं और शेयर में प्रति व्यक्ति किराया चार सौ से लेकर छह सौ रुपये तक हो सकता है। अगर एक नाव के लिए इतने यात्री नहीं मिले तो फिर प्रति व्यक्ति किराया बढ़ जाएगा। मैं तो अकेला बंदा था, इसलिए मुझे किसी दूसरे ग्रुप के साथ जुड़ने की जरूरत थी।
जेट्टी से रॉस एंड स्मिथ द्वीप की दूरी मुश्किल से चार-पांच किलोमीटर ही है, फिर भी नावों का किराया आखिर इतना अधिक क्यों होता है, ये बात मुझे समझ न आती थी। नाव के ड्राइवर ने बताया कि बोट भले ही बहुत सामान्य सा प्लास्टिक का बना हुआ मालूम पड़ता हो, लेकिन इसकी कीमत लाखों में करीब आठ से दस लाख तक होती है। सुनकर एक बार मे मुझे तो विश्वास ही नही हुआ। अगर नाव वाले इतना पैसा न वसूले तो यह धंधा चल नही पायेगा, ऊपर से एक बार आने-जाने में दस लीटर पेट्रोल की खपत भी हो जाती है।
थोड़ी देर बाद एक-दो गाड़ियों में टूर पैकेज वाले कुछ यात्री आये, वे भी रॉस एंड स्मिथ जाने वाले थे। भोपाल से आये चार लोगों के एक परिवार से मेरी दोस्ती हुई। वे यह जानकर हैरान थे कि मैं इतने सुदूर जगह में भला अकेले कैसे घूम रहा हूँ? बहुत सारे लोगों को इस बात का जवाब अब तक दे चुका था मैं।
खैर, उनके साथ मैंने नाव का किराया शेयर किया और मुझे सिर्फ छह सौ रुपये ही देने पड़े। किराया देने के बाद एक पर्ची पर सभी सदस्यों का नाम लिखकर सामने के फारेस्ट आफिस में रॉस एंड स्मिथ जाने के लिए अनुमति या परमिट लेनी पड़ती है, क्योंकि यह इलाका वन्य जीव संरक्षण क्षेत्र में आता है। परमिट के लिए एक पहचान पत्र या आई डी प्रूफ अनिवार्य है।
नाव में बैठते ही तत्काल लाइफ जैकेट पहनने को कहा गया। यह एक फाइबर बोट थी जिसमें दस से भी अधिक लोग बैठ सकते थे, पर शायद वे इतना रिस्क न लेते हों। पानी पर फर्राटे के साथ पंद्रह मिनट में ही हम उस द्वीप के बिल्कुल करीब आ गए, पानी का रंग गाढ़े ब्लू से हल्का ब्लू होता गया।
तट पर कदम रखते ही जैसे हम सब जन्नत में पहुंच गए हो, जन्नत क्या, ये भी बहुत छोटा शब्द है व्याख्या करने के लिए। बिसलेरी का पानी भी किसी स्विमिंग पूल में उड़ेल दिया जाय तो ऐसा रंग नहीं मिल सकता। हम घरों को सजाने के लिए जैसे फोटो खरीदते हैं, यहां वास्तव में वैसा ही दृश्य था।
दरअसल यहां दो द्वीप हैं- रॉस और स्मिथ। दोनों पंद्रह बीस फुट चौड़ी एक बालू की पट्टी द्वारा जुड़े हुए है जिनपर चला जा सकता है। फोटो में इसी बालू की पट्टी के दोनों तरफ समुद्र तट दिखाई देता है। पहले हम स्मिथ द्वीप पर जाते हैं, फिर बालू की पट्टी यानि सैंड बार पार कर रॉस पर। यहां मैं यह बात साफ कर देना चाहूंगा कि यह रॉस द्वीप पोर्ट ब्लेयर वाला रॉस नही है, दोनों के नाम सिर्फ एक है, इसलिए भ्रांति हो सकती है। डिगलीपुर वाले इस रॉस को सामान्यतः रॉस एंड स्मिथ ट्विन आइलैंड कहा जाता है जबकि पोर्ट ब्लेयर के समीप वाले को सिर्फ रॉस आइलैंड।
स्मिथ पर बैठने और आराम करने की बहुत अच्छी व्यवस्था है। यह लोकेशन किसी भी विदेशी लोकेशन जैसे बाली, मॉरीशस या मालदीव्स जैसा ही है। समुद्री खूबसूरती का चरम। लोग सिर्फ हेवलॉक को जानते है, पर इसे देखने के बाद यह निर्णय लेना मुश्किल है कि कौन अधिक सुंदर है। मुझे तो रॉस एंड स्मिथ का ही पड़ला कभी कभी भारी लगता है।
स्मिथ से रॉस बालू की उस पट्टी पर पैदल चलकर जाया जा सकता है, पर रॉस के लिए 50 रुपये का अलग परमिट देना पड़ता है। फारेस्ट वालों का कहना है कि रॉस अलग विभाग में आता है इसलिए ऐसा है। दोनों द्वीपों में रात को कोई नही रहता। सिर्फ दिन में पर्यटकों के लिए सारी व्यवस्था है। वैसे नाव वाले यहां तीन घंटे के लिए ही रुकने देते है, वरना दिन भर बैठे रहने से भी यहां बोरियत महसूस नही होने वाली।
स्मिथ में हम एक घंटे बैठे रहे और नीले तटों का आनंद लेते रहे। सारा दृश्य ही चित्र जैसा सुंदर था। मौसम भी साफ होने के कारण सोने पे सुहागा जैसा था। कुछ देर बाद बालू की पट्टी पर गए, थोड़ी देर में शायद उच्च ज्वार का समय आ गया, और आधी बालू की पट्टी पर पानी आ गया, दोनों तट आपस में मिलकर टकराने लगे। यही नजारा सबसे अद्भुत है यहां। दोनों तटों के बीच खाली पैर चलना काफी रोमांचकारी था। घुटने भर पानी आ गया, लेकिन फिर भी डर की कोई खास बात नहीं थी, लहर अधिक ऊंचे नही थे। बालू की पट्टी पार करने पर हम रॉस आइलैंड पर थे। इस द्वीप पर कोई नही था, सिर्फ बैठने के लिए छोटा सा विश्रामालय बना था।
रॉस पर मैंने तट के बालू पर ध्यान देना शुरू किया। वैसे बालू में छिपे ढेर सारे समुद्री जीवों के कंकाल आदि तो नजर आ रहे थे, लेकिन जितनी उम्मीद थी उतनी संख्या में नही। अंडमान के समुद्र में बहुत सारे बेशकीमती जीव पाए जाते है, जो सरकारी संरक्षण में है, इनका व्यापारिक महत्व बहुत ज्यादा है। यही कारण है कि किसी भी तट से किसी भी प्रकार के सीप, शंख या पत्थर लेकर जाना सख्त मना है। इन सारी चीजों का पहले ही दोहन हो चुका है इसलिये आसानी से तट पर आजकल दिखाई नही देते।
रॉस एंड स्मिथ आइलैंड पर तीन घंटे कैसे बीत गए, ये पता न चला। बोट वाले ने बालू पर खंजर लगा कर बोट को फंसा रखा था। अगर तीन घंटे से अधिक देर हुआ, तो चार सौ रुपये प्रति घंटे के हिसाब से शुल्क लेने का भी प्रावधान है। वापस जेट्टी आने में पहले से भी कम समय लगा, ऐसा महसूस हुआ। खूबसूरत नजारे तो बहुत जल्द खत्म भी हो जाते हैं।
रॉस एंड स्मिथ देखकर मेरा डिगलीपुर या उत्तरी अंडमान आना सफल हो गया। दोपहर के बारह बज चुके थे, और डिगलीपुर से आज ही निकलना था और तुरंत रंगत की बस पकड़नी थी। रात आज रंगत में बितानी थी। अगली पोस्ट में आपको मैं ले चलूंगा रंगत, फिर बाराटांग की प्राकृतिक चुना पत्थर की गुफाओं की ओर।
एरियल बे जेट्टी पर फाइबर बोट एसोसिएशन- नाव के किराये
जुड़वाँ टापुओं की ओर प्रस्थान
टापू पर हो गयी "लैंडिंग"- पहले स्मिथ पर
यही है वो "सैंड बार" या बालू की पट्टी
यहाँ से सैंड बार पार कर सभी रॉस पर जा रहे